Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की
जै!
प्रिये भक्तों
शिशिव महापुरान के
विधिश्वर सहीता की अगली कता है
शिव नाम जप
तथा भस्म धारन की महिमा
तृपुंडर के देवता
और इस्थान आदी का प्रतिपादन
तो आईये भक्तों
आरंब करते हैं इस कथा के साथ तेइस्वा तथा चोविश्वा अध्याये
रिशी बोले
हे महाभाग
व्यास शिष सूत जी आपको नमसकार है
अब आप उस परम उठ्तम भस्म महात्म का ही वर्णन कीजिये
परम प्रसन्यता पूर्वग प्रतिपादन कीजिये और हमारे हिर्दे को आनंद दीजिए
सूत जी ने कहा
हे महरशीयो आपने बहुत उठ्तम बात पूछी है
यह समस्त लोकों के लिए हित कारक विशेह है
जो लोग
भगवान शिव की उपास्ना करते हैं वे धन्य हैं
कृतार्थ हैं
उनका देह धारन सफल है
तत्हा उनके समस्त कुल का उध्धार हो गया है
हे श्री शिव आपको नमस्कार है
श्री शिवाय नमस्तुब्भ्यम एसी बात जब मूँ से निकलती है तव वेह
मुक समस्त पापों का विनाश करने वाला पावन तीर्थ बन जाता है
जो मनुष्य प्रसन्नता पूर्वक उस मुख का दर्शन करता है
उसे निष्चे ही तीर्थ सेवन जनित फल पाप्त होता है
ही ब्रह्मणों शिव का नाम विभूति भस्म
तथा रुद्ढाक्ष
ये तीनों तुर्वेनी के समान परमपुन्य में माने गई हैं
जहां ये तीनों शुब्धर वस्तुमें सर्वदा रहती हैं उसके
दर्शन मात्र से मनुष्य तुर्वेनी स्नान का फल पालेता है
भगवान शिव का नाम गंगा है
विभूति
यमुना मानी गई है तथा रुद्ढाक्ष को सर्स्वती कहा गया है
इन तीनों की संयुक्त तुर्वेनी समस्त पापों का नाश करने वाली है
हे श्रेष्ट ब्रह्मनों इन तीनों की महिमा को सद सद्विलक्षन
भगवान महिश्वर के बिना दूसरा कौन भली भात ही जानता है
इस ब्रह्मान्ड में जो कुछ है
वे सब तो केवल महिश्वर ही जानते हैं
हे विप्रगण मैं अपनी शद्धा भकती के अनुसार
संख्षेप से
भगवन नामों की महिमा का कुछ वढनन करता हूं
तुम सब लोग प्रेम पूर्वक सुनो
यह नाम महात्म समस्त पापों को हर लेने वाला सरवुत्तम साधन है
शिव इस नाम रूपी दावनल से महान पातक
रूपी परवत अनायास ही भस्म हो जाता है
यह सत्य है सत्य है इसमें संशे नहीं है
हे शोनक पाप मूलक जो नाना परकार के दुख हैं वे एक मातर शिव नाम
भगवन नाम से ही नष्ट होने वाले हैं
दूसरे साधनों से संपूर्ण यत्न करने पर भी पूर्ण तया नष्ट नहीं होते हैं
जो मनुष्य इस भूतल पर सदा भगवान शिव के नामों
के जप में ही लगा हुआ है वे वेदों का ग्याता है
वे पुन्यात्मा है वे धन्यवाद का पात्र है तथा वे विद्ध्वान माना गया है
मुने जिनका शिव नाम जप में विश्वास है
उनके दुआरा आचरित नाना परकार के धर्म
ततकाल फल देने के लिए उत्सुक हो जाते हैं
हे महरशे
भगवान शिव के नाम से जितने पाप नष्ट होते
हैं उतने पाप मनुष्य इस भूतल पर कर नहीं सकते
भवन्ति विविधा धर्मास्तेशाम सदः फलोन मुखाः
येशाम भवति विश्वासः शिव नाम जपे मुने
जो शिव नाम रूपी नोका पर आरुढ हो
एवा अगर यावाराश्य चामोडर अगर यावा रूपी शाम्मण पर पर तेहें
उनके जन्म मरन्रूप संसार के मूल भूत
विसारे पाप निश्चे ही नश्ठ हो जाते हैं
पापों के दावनल से दग्द होने वाले लोगों को
उस शिव नामा मृत के बिना शान्ती नहीं मिल सकती
जो शिव नाम रूपी सुधा की व्रष्टी जनित धारा में गोते ला रहे हैं
वे संसार रूपी दावनल के बीच में खड़े
होने पर भी कदापी शोक के भागी नहीं होते
जिन महात्माओं के मन में शिव नाम के परती बड़ी भारी
भगती है ऐसे लोगों की सहसा और सर्वता मुक्ती होती है
शिव नाम तरिम प्राप्यम संसार आपधिम तरंतिते संसार मूल पापानी
तानी नश्यंत संचयम संसार मूल भूतानाम पात कानाम अहामुने
शिव नाम कुठारेन विनाशो जायते ध्रुवं
शिव नाम अम्रतं पेयं पाप दावान लार्धिते
पाप दावागनी तप्तानामु शांती स्थेन विनान नहीं
शिवेति नाम पी युश्वर्शाधारा परीप
लुबता संसार दवमधेय पी नईशोचनती कदाचनः
बोलिये शिवशंकर भगवान की
जए
हे मुनिश्वर
जिसने अनेक जन्मों तक तपस्या की है
भगवान शिवके नाम के प्रती कभी कहंडित नहीं
आसाधारण भक्ती पितना थिस्यारिया मूक्ष्य सुलभ है
इसमें संचे नहीं है।
जैसे वन में दावनल से दगद हुए व्रक्ष भस्म हो जाते हैं,
उसी प्रकार शिव नाम रूपी दावनल से दगद होकर
उस समय तक के सारे पाप भस्म हो जाते हैं।
हे शोनक,
जिनके अंग नित्य भस्म लगाने से पवित्र हो गए हैं,
तथा जो शिव नाम जब का आदर करने लगा है,
वह घोर संसार सागर को पार कर ही लेता है।
सम्पूर्ण वेदों का अवलोकन करके
पूर्वर्ती महरशियों ने यही निष्चे किया है,
कि भगवान शिव के नाम का जब संसार सागर
को पार करने के लिए सर्वुत्तम उपाय है।
हे मुनीवरो,
अधिक कहने से क्या लाव,
मैं शिव नाम के सर्वपापापहारी महत्मे का एक ही शलोक में वर्ण करता हूं।
भगवान शंकर के एक नाम में भी पाप हरन की जितनी
शक्ती है उतना पातक मनुष्य कभी कर ही नहीं सकता।
पापा नाम हरने
शंभोर नामनी है शक्ती रही यावती।
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैए।
हे हे own पुर्वकाल में
महा पापि राजा
इंद्र धुम्न ने
शिव नाम के प्रभाओ ऐसे ही उत्तम celebrity मechic प्राफ्ट की Shaktiki
एक अचुड़ों मैंनी युपती अजु आँगति कुकड़ेबुर ने किर पाप मनना दकी ने
शिव नाम के प्रभाव से ही उत्तम गति को प्राप्त हुई
हे द्विजवरो,
इस प्रकार मैंने तुम से भगवन नाम के उत्तम महात्म का वर्णन किया है
अब तुम भस्म का महात्म सुनो,
जो समस्त पावन वस्तुओं को भी पावन करने वाला है
हे महरशियो,
भस्म संपूर्ण मंगलों को देने वाला
तथा उत्तम है,
इसके दो भेद बताए गए हैं,
उन भेदों का मैं वर्णन करता हूं,
सावधान होकर सुनो
एक को महाभस्म जानना चाहिए और दूसरे को स्वल्पभस्म
श्रोत,
स्मार्थ,
लोकिक
वे अन्य सब लोगों के लिए भी उपयोग में आ सकता है
सेश्ट महरशियों ने
यह बताया है
कि दुजों को वैदिक मंत्र के उच्छारण पूर्वक भस्म धारन करना चाहिए
दूसरे लोगों के लिए बिना मंत्र के ही केवल धारन करने का विधान
है जले हुए गोबर से प्रगट होने वाला भस्म आगनेह केलाता है
हे महामुने वेह भी त्रिपुंडर का द्रव्य है
ऐसा कहा गया है
अगनी होत्र से उत्पन हुए भस्म का भी मनीशी पुर्शों को संग्रह करना चाहिए
अन्य यग्य से प्रगट हुए भस्म भी त्रिपुंडर धारन करने के काम आ सकता है
जाबालोपनिशद में आये हुए अगनी है इत्यादी साथ मंत्रों द्वारा
जलमिश्चित भस्म से धूलन विभिन अंगों में मरदन या लेपन करना चाहिए
महरशी जाबाली ने सभी वर्णों को आश्रमों के लिए मंत्र से या बिना
मंत्र के भी आदर पूर्वग भस्म से त्रिपुंडर लगाने की आउशक्ता बताई है
समस्त अंगों में सलज भस्म को मलना अथवा
विभिन अंगों में तिरच्छा त्रिपुंडर लगाना
इन कारियों को मोक्षार्थी पुरुष प्रमाद से भी न छोड़ें
ऐसा शुती का आदेश है
भगवान शिव और विश्णू ने भी तुरियक त्रिपुंडर धारन किया है
अन्य देवियों सहित
भगवती ओमा और लक्ष्मी देवी ने भी वानी द्वारा इसकी प्रशंशा की है
ब्राह्मणों, ख्षत्रियों,
वैश्यों, शुद्रों,
वजन संकरों तथा जाती भ्रष्ट पुर्शों ने भी उद
धूलन एवं त्रिपुंडर के रूप में भस्म धारन किया है
इसके पश्चात भस्म धारन तथा त्रिपुंडर की
महिमा एवं विधी बताकर सूत जी ने फिर कहा
हे महरशियों,
इसप्रकार मैंने संक्षेव से त्रिपुंडर का महात्म्य बताया है
ये समस्त प्राणियों के लिए गोपनीय रहस्य है
अतहः तुम्हें भी इसे गुप्त ही रखना चाही
हे मुनीवरो,
ललाट आदी सभी निर्धिष्ट इस्थानों में जो
भस्म से तीन तिरची रेखाएं बनाई जाती हैं,
उनहीं को विद्धुआनों ने
त्रिपुंडर कहा है
भोहों के मद्धभाग से लेकर
जहां तक भोहों का अंत है उत्णा बड़ा त्रिपुंडर ललाट में धारन करना चाहिए
मध्यमा और अनामिका अंगुलियों से दो वेखाएं करके बीच में अंगुष्ठ द्वारा
प्रतीलों भाव से की गई रेखा त्रिपुंडर कहलाती है
अत्वा बीच की तीन उंगुलियों से भस्म लेकर यत्न
पूर्वक भक्ती भाव से ललाट में त्रिपुंडर धारन करें
त्रिपुंडर अत्यंत उत्तम तरथा भोग और मोक्ष को देने वाला है
त्रिपुंडर की तीनों रेखाओं में से पुरतेक के
नौ नौ देवता हैं जो सभी यंगों में इस्थित हैं
मैं उनका परिश्य देता हूँ सावधान होकर सुनो
हे मुनीवरो प्रणव का प्रथम अक्षर अकार
गार्य पत्य अगनी
तत्वी धर्म
रजोगुन
रिगवेद क्रियाशक्ति प्रातेह सवन तथा महदेव
ये त्रिपुंडर की प्रथम रिखा के नौ देवता हैं
यहे बात शिव दिख्षा परायन पुर्शों को अच्छी तरहें समझ लेनी चाहिए
प्रणव का दूसरा अक्षर उकार
दक्षिनागनी
आकाश सत्व गुन
यजुरवेद मध्यम दिन सवन इच्छाशक्ति
अंतरात्मा तथा महेश्वर
ये दूसरी रेखा के नौ देवता हैं
प्रणव का तीसरा अक्षर मकार
आहवनीय अगनी परमात्मा
तमो गुन
धूलोक
ज्यान शक्ती
सामवेद तृतीय सवन तथा शिव ये तीसरी रेखा के नौ देवता हैं
इस प्रकार इस्थान देवताओं को उत्तम भक्ति भाव से नित्य
नमसकार करके इस्नान आदी से शुद्ध होकर पुरुष्य दी त्रपुंड
धारन करे तो भोग और मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है
हे मुनिश्वर ये संपूर्ण अंगो में इस्थान देवता बताये गई हैं
अव उनके सम्मंधी इस्थान बताता हूँ
भक्ति पूर्वक सुनो
बत्तीस,
सोलह,
आठ और पाच इस्थानों में त्रपुंड का न्यास करें
मस्तक,
लालाथ,
दोनो कान,
दोनो नेत्र,
दोनो नासिका,
मुक,
कंठ,
दोनो हाथ,
दोनो कोहनी,
दोनो कलाई,
हिरदय,
दोनो पार्श-भाग,
नाभी,
दोनो अंडकोश,
दोनो उरू,
दोनो गुल्प,
दोनो घुटने,
दोनो पिंडली और दोनो पेर
ये 32 उत्तम इस्थान हैं,
इनमें क्रमश है,
अगनी,
जल,
प्रत्वी,
वायू,
दस दिक्प्रदेश,
दस दिक्पाल
तथा आठ वसूमों का निवास है
धर,
द्रू,
सोम,
आप, अनिल,
अनल,
प्रत्यूश और प्रभास ये आठ वसू कहे गए हैं
इन सब का नाम मातर लेकर
इनके इस्थान में विद्वान पुरुष त्रिपुंड्र धारन करें
अत्वा
एकागर चित हो सोले इस्थान में ही त्रिपुंड्र धारन करें
नासत्य और दस्त्र
अत्वा मस्तक,
केश, दोनों कान, मुक, दोनों भुजा,
हिर्दय,
नाभी,
दोनों उरु, दोनों जानू,
दोनों पेर और पिश्ट भाग इन सोले इस्थानों
में सोलह त्रिपुंड्र का न्यास करें
मस्तक में शिव,
केश में चंद्रमा,
दोनों कान में रुद्र होर ब्रह्मा,
मुख में बिघनराज गनेश,
डून राज गनेश दोनो भुजाउं में विश्णु और लक्ष्मी
हिर्दे में शंबू नावी में परजापती
दोनो उरुलों में नाग यूप कन्याए।
दोनो घुत्णों में रिशी कन्याए।
दोनों पैरों में समुद्र
तथा विशाल पिष्ट भाग में सम्पूर्ण तीर्थ देवता रूप से विराजमान हैं।
इस प्रकार सोलह स्थानों का परीचे दिया है।
अब आठ स्थान बताये जाते हैं।
गुह्य अश्थान,
ललाथ,
परम उत्तम कर्ण युगल,
दोनों कंधे,
हिर्दय,
उनाभी
ये आठ स्थान हैं। इनमें ब्रह्मा तथा सप्तरिशी
ये आठ देवता बताये गए हैं।
हे मुनिश्वरो,
भस्म के इस्थान को जानने वाले विद्वानों ने इस
तरहें आठ इस्थानों का परीचे दिया है। अत्वा मस्तक,
दोनों भुजाये,
हिर्दय और नाभी इन पांच इस्थानों को भस्म
विद्दापुर्शों ने भस्म धारन के योग्य बताया है।
परिचे दिया है,
अत्वा मस्तक,
दोनों भुजाये,
हिर्दय और नाभी इन पांच इस्थानों का परीचे दिया है।
अत्वा मस्तक,
दोनों भुजाये,
हिर्दय और नाभी इन पांच इस्थानों को भस्म धारन के योग्य बताया है।
परिचे दिया है,
अत्वा मस्तक,
दोनों भुजाये,
हिर्दय और नाभी इन पांच इस्थानों का परीचे दिया है।
परिचे दिया है,
अत्वा मस्तक, दोनों भुजाये,
हिर्दय और नाभी इन पांच इस्थानों को भस्म धारन के योग्य बताया है।
पित्रिभ्यामनमः
कहकर नीचे के अंगों में
उमेशाब्भ्यामनमः
कहकर ऊपर के अंगों में
तथा भीमायनमः
कहकर पीठ में और सिर के पिछले भाग में
तो
प्रिय भक्तों,
इस प्रकार यहां पर शिश्यु महापुरान के विद्ध्वेश्व सहीता
की ये कथा और 23 तथा 24 आध्या यहां पर समाप्त होता है।
तो भक्तों, साथ मिलकर बोलेंगे,
बोलिये शिवशंकर भगवान की जए,
सिनहे के साथ बोलेंगे।
ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।