Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की
जेव
प्रिये भक्तों
शिशिव महा पुरान के विद्धेश्र संहिता की अगली कता है
मोक्ष दायक पुण्यक शित्रों का वर्णन
काल विशेश में विभिन्य नदियों के जल में
इसनान के उत्तम फल का निर्देश
तथा तीर्थों में पाप से बचे रहने की चेताओनी
तो आईये भक्तों आरम्ब करते हैं इस कधा के साथ बार्मा अध्याय
सूज्जी कहते है विद्ध्वान एवं बुद्धीमान महरशियों
मोक्ष दायक शिव शित्रों का वर्णन सुनो
अध्याय सुनो पर परवत वन और काननों सहित
इस पृत्वी का विस्तार पचास करोड योजन है
भगवान शिव की आज्या से पृत्वी संपून जगत को धारन करके इस्थित है
भगवान शिव ने भूतल पर विभिन इस्थानों में वहां वहां के निवासियों
को करपा पूर्वक मोक्ष देने के लिए शिव ख्षेत्र का निर्मान किया है
कुछ ख्षेत्र ऐसे हैं जिने देवताओं तथा रिश्यों ने
अपना वासिस्थान बनाकर अनुग्रहित किया है इसलिए उनमें
तीर्थत्तु प्रकट हो गया है तथा अन्य बहुत से तीर्थ ख्षेत्र
ऐसे हैं जो लोकों की रक्षा के लिए स्वहम प्रादुरभूत
अन्य था वे रोग,
दरिद्रता तथा मूक्ता आदी दोशों का भागी होता है
जो मनुश्य इस भारत वर्ष के भीतर मृत्यू को प्राप्त होता है
अथात,
पापी मनुश्य पाप करके दुर्गती में ही पड़ता है
ब्राह्मणों पुण खशेत्र में पाप करम
किया जाये तो वे और भी दृड़ हो जाता है
अतेः पुन ख्षेत्र में निवास करते समयं सूक्ष्म
से शूक्ष्म अथवा थोड़ा सा भी पाप ना करें
ख्षेत्रे पापस्य करनम् द्रड़म् भवती भूसराः
पुन ख्षेत्रे निवासे ही
पाप मन्यवपी नाचरेत
नदी के तट पर
बहुत से पुन ख्षेत्र हैं
सरस्वती नदी परमपवित्र और साथ मुकवाली कही गई है
अर्थात उसकी साथ धारायं हैं
विद्वान पुरुष सरस्वती के उन उन धारायों के तट पर निवास करें
तो वह क्रम से ब्रह्म पद को पालेता है
वह नदी के तट पर पुन ख्षेत्र हैं
वह नदी समस्त पापों का नाश करने वाली है
उसके अठारे मुख बताए गये है तथा वह विश्नू लोक परदान करने वाली है
तुंघ भद्रा के दस मुख हैं
वह ब्रह्म लोक देने वाली है
उसके तट पर जन्म लेते हैं
सरस्वती नदी,
पंपा सरोवर,
कन्या कुमारी,
अंतरीप तथा शुब कारक श्वेत नदी
ये सभी पुन ख्षेत्र हैं इनके तट पर निवास
करने से इंद्र लोक की प्राप्ती होती है
तक तो
सेह्य परवट से निकली हुई महा नदी कावेरी परम पुन्य मयी है उसके
27 मुख बताए गए हैं वह सम्पून अभीष्ठ वस्तूओं को देने वाली है
उसके तट स्वर्ग लोक की प्राप्ती कराने वाले
तथा ब्रह्मा और विश्णू का पद देने वाले हैं
कावेरी के जो तथ शैविक शित्र के अंतर गत हैं वे
अभीष्ठ फल देने के साथ ही शिव लोक परदान करने वाले हैं
नैमिशारन्य तथा बद्रिक आश्रम में सूर्य और
ब्रस्पति के मीश राशी में प्रेविश करने पर
यदि स्नान करें
तो उस समय वहाँ केव हुए स्नान,
पूजन आधी को ब्रह्म लोक की प्राप्ती करने वाला जानना चाहिए भक्तो
सिंग और करक राशी में सूर्य के संक्रांती होने पर सिंधु नदी में किया हुआ
स्नान तथा केदार तीर्थ के जल का पान एवं स्नान ज्ञां दायक माना जाता है
जब ब्रहस्पति सिंघ राशी में इस्थित
हो उस समय सिंग की संक्रांती से युक्त
भाद्र पद मास में यदी गोडावरी के जल में इस्नान किया जाये
तो वै शिवलोक की प्राप्ती कराता है भक्तो
ऐसा पूर्वकाल में स्वेम भगवान शिव ने कहा था
जब सूर्य और ब्रहस्पति कन्या राशी में इस्थित
हो तब यमुना और शोन भध्र में इस्नान करें
वै इस्नान धर्मराज तथा गनेश जी के लोक
में महान भोग परदान करने वाला होता है
यह महरशियों की माननता है
जब सूर्य और ब्रहस्पति तुला राशी में इस्थित हो उस समय
कावेरी नदी में इस्नान करें वै इस्नान भगवान विश्णू के वचन की
महिमा से समपूर्ण अविश्ठ वस्तूं को देने वाला माना गया है
श्री विश्णू लोग की प्रापती हो सकती
है सूर्य और ब्रह्स्पति के धन राशी में
इस्थित होने पर सुर्णमुखरी नदी में किया गया इसनान
किया गया विश्णू की प्रापती करें.
आग मास में तथा सूर्ये के कुम राशी में इस्थित होने पर
फालकुन मास में गंगा जी के तट पर किया हुआ शाद,
पिंडडान अथ्वा तिलोधकदान,
पिता और नाना,
दोनों कुलों के पित्रों की अनेकों
पीडियों का उध्धार करने वाला माना गया है.
सूर्ये और ब्रहस्पती जब मीन राशी में इस्थित हों,
तब
क्रश्णवेनी नदी में किये गए इस्नान की रिशियों ने प्रशंशा की है.
उन उन महिनों में पूर्वक्त तीर्थों में किया हुआ
इस्नान इंद्रपद की प्राप्ती कराने वाला होता है.
विद्वान पुरुष गंगा अथ्वा कावेरी नदी का आश्चे लेकर तीर्थवास करें,
ऐसा करने से ततकाल किये हुए पाप का निश्चही नाश हो जाता है.
रुद्रलोग परदान करने वाले बहुत से ख्षेत्र हैं.
ताम्रपढणी और वेगमती यह दोनों नदीयां
ब्रम्मलोग की प्राप्ती रूप फल देने वाली हैं.
इन दोनों के ततपर कितने ही स्वर्गदायक ख्षेत्र हैं.
इन दोनों के मद्ध में बहुत से पुन्ने पद्ध शेत्र हैं
वहाँ निवास करने वाला विद्वान पुरुष वैसे फल का भागी होता है
सदाचार,
उत्तम वृती तथा सदभावना के साथ मन में द्याभाव रखते हुए
विद्वान पुरुष को तीर्च में निवास करना चाहिए अन्यथा उसका फल नहीं मिलता
पुन्ने खेत्र में किया हुआ थोड़ा सा पुन्ने
भी अनेक प्रकार से विद्धी को प्राप्त होता है
तथा वहाँ किया हुआ छूटा सा पाप भी महान हो जाता है
तुम्हें खेत्र में रहकर ही जीवन बिताने का निश्चे हो
तो उस पुन्न शंकल्प से उसका पहले का सारा पाप ततकाल नश्ट हो जाएगा
क्योंकि पुन्य को एश्वर्य दायक कहा गया है
ब्राह्मनों तीर्थ वास जनित पुन्य काईक वाचिक
और मानसिक सारे पापों का नाश कर देता है
तीर्थ में किया हुआ मानसिक पाप
वरजलेप हो जाता है
वह कई कलपों तक पीछा नहीं छोड़ता
वैसा पाप केवल ध्यान से ही नश्ट होता है अन्यथा नहीं
तीर्थ पुन्य निक्षे मेश्चती पुन्य मेश्वर्यदं प्राहु काईकं वाचिकं तथा
मानसं चेत तथा पापं ताध्रश्यं नाश येद द्विजाः
वाचिक पाप जब से तथा काईक पाप शरीर को
सुखाने जैसे कठोर तप से नश्ट होता है
अतेः
सुख चाहने वाले पुरुष को देवताओं की पूजा करते और ब्राह्मनों
को दान देते हुए पाप से बचकर ही तीर्थ में निवास करना चाहिए
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार यहाँ पर शिश्व महापुराण के विदेश्वर सथीता
की येंकथा और बाहर वाह अध्याय यहाँ पर समार्ट होता है
तब सनही से बोलिये, बोलिये शिवशंकर भगवान की जैसे
आदर के साथ पोलिये Davis says, OM NAMAH SHIVAY
Om Namah Shivay!