Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की
जेव
प्रिये भक्तों
शिष्यु महा पुरान के विद्धेश्व सहीता की अगली कथा है
शिवलिंग की स्थापना
उसके लक्षन
और पूजन की विधी का वर्णन
तथा शिव पद की प्राप्ती करने वाले
सत कर्मों का विवेचन तो आईए भक्तों आरम्ब
करते हैं इस कथा के साथ ग्यार्मा अध्याय
रिश्यों ने पूछा सोच जी शिवलिंग की स्थापना
कैसे करनी चाहिए उसका लक्षन क्या है
तथा उसकी पूजा कैसे करनी
शुच जी ने कहा
महरशियों मैं तुम लोगों के लिए इस विशे का वढडन करता हूँ
ध्यान देकर सुनो और समझो
अनुकोल एवं शुब समय में किसी पवित्र तीर्थ में नदी आदी के तढ़ पर
अपनी रुची की अनुसार
ऐसी जगहें शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए जहां नित्य पूजन हो सके
पार्थिव द्रव्य से जल में द्रव्य से अथ्वा तेजस पदार्थ से
अपनी रुची की अनुसार
कलपोक्त लक्षनों से युक्त शिवलिंग का निर्मान करके उसकी पूजा
करने से उपासको उस पूजन का पूरा पूरा फल प्राप्त होता है
संपून शुब लक्षनों से युक्त शिवलिंग की यदि पूजा
की जाए तो यदि तत्काल पूजा का फल देने वाला होता है
यदि चल प्रतिष्ठा करनी हो तो उसके लिए चूटा
सा शिवलिंग अथ्वा विगरहे शेष्ट माना जाता है
और यदि अचल प्रतिष्ठा करनी है
तो इस थूल शिवलिंग अथ्वा विगरहे अच्छा माना जाता है
उत्तम लक्षनों से युक्त शिवलिंग की पीट सहीथ इस्थापना करनी चाहिए
शिवलिंग का पीठ मंडलाकार अर्थात गोल,
चोकोर,
त्रिकोन अथ्वा खाट के पाय की भात ही उपर,
नीचे,
मोटा और बीच में पतला होना चाहिए
ऐसा
लिंग पीठ महान फल देने वाला होता है
पहले मिट्टी से,
प्रस्तर आदी से अथ्वा लोहे आदी से शिवलिंग का निर्मान करना चाहिए
जिस द्रवशे शिवलिंग का निर्मान हो उसी से उसका पीठ भी बनना चाहिए
यही इस्थावर
अर्थात अचल प्रतिष्ठा वाले शिवलिंग की विशेश बात है
चर
अर्थात
चल प्रतिष्ठा वाले शिवलिंग में भी लिंग
और पीठ का एक ही उपाधान होना चाहिए
किंटू बान लिंग के लिए यह नीम नहीं है
लिंग की लंबाई निर्मान करता या इस्थापना
करने वाले यज्मान के बारे उंगुल के
बराबर होनी चाहिए
ऐसे ही शिवलिंग को उत्तम कहा गया है
इससे कम लंबाई हो तो फल में कमी आ सकती है
अधिक हो तो कोई दोश की बात नहीं है चर्लिंग में भी वैसा ही नीम
है उसकी लंबाई कम से कम करता के एक अंगुल के बराबर होनी चाहिए
उससे छूटा होने पर
अलप फल मिलता है
किंटू उससे अधिक होना दोश की बात नहीं है
जो
देवगणों की मूर्तियों से अलंकरत हो
उसका गर्वग्रह बहुती सुंदर,
सुद्रिद और दर्पन के समान स्वच्च हो
उसे नो प्रकार के रत्नों से विबुशित किया गया हो
उसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में दो मुख्य द्वार हों
जहां शिवलिंग की स्थापना करनी हो
उससे थान के गर्व में नीलम,
लाल,
वैधूय,
शाम,
मरकत,
मोती,
मूंगा,
गोमेद और हीरा
इन नो रत्नों को तथा अन्य महतपूर्ण द्रव्यों को मंत्रों के साथ छोड़ें
सधो जात आदी पांच वैधिक मंत्रों जैसे
ओम् सधो जातं
प्रपधामि सधो जाताय वै नमो नमः
भवे भवे नाति भवे भवस्यमाम भवो ध्वाय नमः
द्वारा शिवलिंग का पांच इस्थानों में क्रमश है पूजन करके
अगनी में हविष्च की अनेक आहुतियां दें
और परिवार सहित मेरी पूजा करके गुरू स्वरूप आचारियों को
धन से तथा भाई बंधुओं को मन चाही वस्तूओं से सन्तुष्ट करें
याचकों को जड़
अर्थात स्वर्ण,
ग्रह एवं भू संपत्ति
तथा चेतन अर्थात गो आधी वैभव प्रदान करें
इस्थावर जंगम सभी जीवों को यतन पूर्वक सन्तुष्ट करके एक गढ्धे में
स्वर्ण तथा नो प्रकार के रत्न भरकर सधो जाता अधी वैधिक मंत्रों
का उच्छारन करके परम कल्यान कारी महा देव जी का ध्यान करें
तत पस्चात नाद घोश से युप्त महा मंत्र ओमकार
का उच्छारन करके उक्त गढ्धे में शिवलिअं
की स्थापना करके उसे पीठ से सम्यूक्त करें
युक्त लिंग की स्थापना करके उसे नित्यलेप अर्थात दीर्ग
काल तक तिके रहने वाले मसाले से जोड़कर इस्थिर करें
इसी प्रकार वहां परम सुंदर वेर वेर अर्थात मूर्ती
की भी स्थापना करनी चाहिए
सारांश्य अहे है की भूमी,
संशकार аदी की सारी विधी जासे लिंग प्रतिष्ठा के लिए कही गई है
वैसे हीः वेर
अर्थात मूर्तीReally the statue should
be considered for the occasion too
अंतद इतना ही है кон सकत्रमांत्रा beloved like it
is a basis of the titled practice of ever venerable
प्रणो मंत्र के उच्चारन का विधान है
परन्तु वेर की प्रतिष्ठा पंचाक्षर मंत्र से करनी चाहिए
जहां लिंग की प्रतिष्ठा हुई है
वहां भी
उच्चव के लिए बाहर
सवारी निकालने आदी के निमित
वेर
अर्थात मूर्ती को ही रखना अवश्यक है
वेर को बाहर से भी लिया जा सकता है उसे गुरुजनों से ग्रहन करें
बाहिय वेर वही लेने योग्य है जो साधु पुर्शों द्वारा पूजित हो
वेर देखने बाहर लिंग में और वेर में भी की हुई
महादेव जी की पूजा शिव पदब परदान करने वाली होती है
इस्ठावर और जंगम के भेद से लिंग भी दो परकार का कहा गया है
व्रिक्ष,
लता आदी को इस्ठावर, लिंग कहते हैं
कीट आदी को जंगम लिंग,
इस्ठावरम लिंग की सीचने आदी के द्वारा सेवा करनी चाहिए
और जंगम लिंग को आहार एवं जल आदी देकर तृप्त करना चाहिए
अरथात
यो चराचर जीवों को ही भगवान शंकर के प्रतीक मान कर उनका पूजन करना चाहिए
पूजा करनी चाहिए तथा देवाले के पास ध्वजा रोहन आदी करना चाहिए
शिवलिंग साक्षाथ शिव का पद प्रदान करने वाला है अथ्वा चर
लिंग में शोडशोप चारो द्वारा यतोचित रीती से क्रमशे पूजन करें
यह पूजन भी शिव पद प्रदान करने वाला है
आवाहन, आसन,
अर्ग,
पाध,
पाधांग,
आच्मन,
अभ्यंग पूर्वक स्नान,
वस्त्र एवं, यग्यो पवीत,
गंध, पुष्प,
धूप, दीप, नयवेद्य, तामबूल,
समर्पन,
निराजन,
अर्थात आर्थी
यह सोले उपचार हैं अथवा अर्ग से लेकर
नयवेद्य तक विधी वत पूजन करें,
अभिशेक,
नयवेद्य,
नमसकार और तरपन यह सब यथाशक्ति नित्य करें,
इस तरहें किया हुआ शिव का पूजन शिव पद की प्राप्ती कराने वाला होता है,
अथवा किसी मन�
शिव लिंग में,
अपने आप प्रगट हुए,
स्वैं भू लिंग में,
तथा अपने द्वारा नूतन इस्ठापित हुए शिव लिंग में भी उपचार,
समर्पन पूर्वक जैसे तैसे पूजन करने से या पूजन
की सामकरी देने से भी मनुश्य उपर जो कुछ कहा गया
यदि नियम पूर्वक
शिव लिंग का दर्शन मात्र कर लिया जाय,
तो वहे भी कल्यान प्रद होता है
मिट्टी,
आटा,
गाय के गोबर,
फूल,
कनेर पुष्प,
फल,
गुर,
मक्खन,
भस्न अथवा अन्य से भी अपनी रुची के अनुसार शिव लिंग बनाकर
तद अनुसार उसका पूजन करें
अथवा प्रते दिन दस हजार पणव मंत्र का जप करें
अथवा दोनों संध्याओं के समय एक-एक सहस्त पणव का जप किया करें
यह करम भी शिव पद की प्राप्ती कराने वाला है ऐसा जानना चाहिए
जबकाल में मकारांत पणव का उच्छारन मन की शुद्धी करने वाला होता है
मन्त्र अक्षरों का इतने धीमे स्वर्ष से
उच्छारन करें कि उसे दूसरा कोई न सुन सके
समान प्रणव कहते हैं
यदि प्रति दिन आदर पूर्वक दस हजार पंचाक्षर मन्त्र का जप किया जाए
अथ्वा दोनों संध्याओं के समय एक एक सहस्र का ही जब किया जाए
तो उसे शिव पद की प्राप्ती कराने वाला समझना चाहिए भक्तों
ब्राह्मनों के लिए आदिमे प्रणव से युक्त
पंचाक्षर मन्त्र अच्छा बताया गया है
कलश से किया हुआ इसदान मन्त्र की दीक्षा मात्रिकाओं का न्याज सत्य से
पवित्र अंतह करन वाला ब्राह्मन तथा ज्यानी गुरू इन सब को उत्तम माना गया है
द्वीजों के लिए नमः शिवाय के उच्छारन का
विधान है द्वीजेत्रों के लिए अंतमे नमः
पद के प्रियोक की विधी है अर्थात वे शिवाय नमः
इस मन्त्र का उच्छारन करें
नमः शिवाय का जब करें
अथ्वा पांच करोड जब करके मनुश्य भगवान सदाशिव के समान हो जाता है
एक,
दो,
तेन अथ्वा चार करोड का जब करने से क्रमश है
ब्रह्मा,
विश्णू,
रुद्र तथा महेश्वर का पद प्राप्त होता है
घरीम मी मनलमुश्य आपना नारत्र की लीजिया में जितने अक्षर हैं
उनका प्रतिक-प्रतिक एक-एक लाख जब करें अथ्वा समस्त अक्षरों का किसे,
लाख जब करें
शिव पद की प्राप्ती कराने वाला समझना चाहिए
यदि एक हजार दिनों में प्रति दिन एक सहस्तर जब के करम से
पंचाक्षर मंत्र का दस लाख जब पूरा कर लिया जाय
और प्रति दिन ब्राह्मन भोजन कराया जाय
तो उस मंत्र से अभिष्ट कारिय की सिद्धी हो जाती है जो
कारिय आप सोच कर इसको करते हैं वे अवश्च पूर्ण होता है
अईसा जानना चाहिए
उनका भी जितने अक्षर हों उतने लाख जब करें
इस प्रकार जो यताशक्ती जब करता है वे क्रमश है शिव पद
अरथार मोक्ष को प्राप्त करता है
अपनी रुची के अनुसार किसी एक मंतर को अपना कर
म्रत्यू परियंत प्रति दिन उसका जब करना चाहिए
अत्वा
ओम
इस मंतर का प्रति दिन एक सहस्त जब करना चाहिए ऐसा करने
पर भगवान शिव की आज्या से संपून मनोर्थों की सिधी होती है
जो मनुष्य भगवान शिव के लिए फुलवाडी या बगीचे आधी लगाता है तथा शिव के
सेवा कारिये के लिए मंदिर में ज्जाडने बुहारने आधी की व्यवस्था करता है
वै इस पुन्य कर्म को करके शिव पद प्राप्त कर लेता है
भगवान शिव के जो काशी आधी ख्षेत्र हैं
उनमें भक्ती पूर्वक नित्य निवास करें
वै जड़,
चेतन,
सभी को भोग और मोक्ष देने वाला हुता है
अतेह विद्वान पुरिश को भगवान शिव के ख्षेत्र में आमरन निवास करना चाहिए
पुन्य ख्षेत्र में इस्थित भावडी,
कुआं और पोखरें आधी को शिव गंगा समझना चाहिए
भगवान शिव का ऐसा ही वचन है वहां स्नान, दान और जप
करके मनुष्य भगवान शिव को प्राप्त कर लेता है अतेह
मृत्यों परियंत शिव के ख्षेत्र का आश्ये लेकर रहना चाहिए
जो शिव के ख्षेतर में अपने किसी मृत्य सम्मन्धी का दाँशाह,
मासिक शाद पिंड़ी करन अथ्वा वार्शिक शाध
करता है अथ्वा किसी भी शिव के ख्षेतर में
वे ततकाल उस पाप से मुक्त हो जाता है और अंत में शिव पद पाता है
अथवा शिव के ख्षेतर में साथ,
पाच,
तीन या एकी रात निवास कर ले
ऐसा करने से भी क्रमशे शिव पद की प्राप्ती होती है भगतोँ
लोक में अनेक अनेक वर्ण के अनुरूप सदाचार का पालन
करने से भी मनुश्य शिव पद को प्राप्त कर लेता है
वर्ण अनुकोल आच्छरन से तता भक्ती भाव
से वे अपने सत्कर्म का अतीशे फल पाता है
कामना पूर्वक किये हुए अपने कर्म के अभीश्ठ फल को शिगर ही पालेता है
निशकाम भाव से किया हुआ सारा कर्म साक्षात
शिव पद की प्राप्ती कराने वाला होता है भगतोँ
दिन के तीन विभाग होते हैं प्रातह,
मध्याहन और सायाहन
इन तीनों में क्रमश है एक-एक प्रकार के कर्म का संपाधन किया जाता है
प्रातह काल को शास्त्र विहित निथ्य कर्म के अनुष्ठान का समय जानना चाहिए
मध्याहन काल सकाल कर्म के लिए उप्योगी है तथा साय
काल शान्ती कर्म के उप्यूखत है ऐसा जानना चाहिए
इसी प्रकार रात्री में भी समय का विभाजन किया गया है
रात्री के चार परहरों में से जो बीच के दो परहर हैं
उन्हें निशित काल कहा गया है विशिस्त हा इसी
इसी काल में ही कुछ भगवान शिवकी पूजा अविष्ट फलों को देने वाली होती है
ऐसा जानकर कर्म करने वाला मनुश्य यतोकत फलका भागी होता है
विशेष्ट ख कली काल में कल युग में कर्मसे ही फलकी सिध्धी होती है
अपने अदिकार के अनुसार उपर कहे गए किसी भी कर्म के द्वारा
शिवाराधन करने वाला पुरुष यदी सदाचारी है और पाप से डरता है
तो वै उन उन कर्मों का पूरा पूरा फल अवश्य प्राप्त कर लेता है।
रिशियों ने पूचा
हे सूध जी
पुन्न क्षेत्र कौन कौन से हैं
जिनका आश्चे लेकर सभी स्ठी पुरुष शिव पद प्राप्त कर लें
यह हमें संक्षेप में बताईए।
भकतों
इस विशे को हम अगली कथा में बताएंगे
यहाँ पर शिव पुराण का ग्यार्मा अध्याय समाप्त होता है।
बोलिये शिवशंकर भगवान की जेव।