Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की
जेव
प्रिये भक्तों
शिष्यु महा पुरान के विद्धेश्व सहिता की अगली कता है
अगनी यग्य, देव यग्य और ब्रह्म यग्य आदी का वर्णन
भगवान शिव के द्वारा सातो वारों का निर्मान
तथा उनमें देव आराधन से विभिन परगार के फलों की प्राप्ती का कथन
तो आईये भक्तों आरंब करते हैं इस कथा के साथ चोध्मा अध्याय
रिश्यों ने कहा
हे प्रभो अगनी यग्य,
देव यग्य,
ब्रह्म यग्य
गुरू पूजा तथा
ब्रह्मत्त्रिप्ति का हमारे समक्ष क्रमशे वर्णन कीजिये
सूज्जी बोले
हे
महरशियों ग्रहस्त पुरुष अगनी में साइकाल और प्रातेकाल जो
चावल आदी द्रव्य की आहुती दिता है उसी को अगनी यग्य कहते हैं
वरत आदी का पालन तथा विशेष यजन आधी ही
कर्तव्य है अर्थात यही उनके लिए अगनी यग्य है
हे द्विजो जिन्होंने बाही अगनी को विसजजित करके
अपने आत्मा में ही अगनी का आरोप कर लिया है
ख़ान प्रस्थियों और सन्यासियों के लिए यही हवन
या अगनी यग्य है कि वे विहित समय पर हित कर
परिमित और पवित्र अन्ने का भोजन कर लें
हे ब्राह्मणों साइकाल अगनी के लिए दी हुई आहोती
संपत्ति परदान करने वाली होती है
ऐसा जानना चाहिए
और प्राते काल सूर्य देव को दी हुई आहोती आयू की व्रद्धी
करने वाली होती है यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए
दिन में अगनी देव सूर्य में ही प्रिविष्ठ हो जाते हैं
अतय प्राते काल सूर्य को दी हुई आहोती भी अगनी यग के ही अंतरगत है
इस परकार यह अगनी यग का वर्णं किया गया है
इंद्र आदी समस्त देवताओं के उद्धेश्य से अगनी में जो आहोती दी जाती है
उसे देव यग्य समझना चाहिए
इस ठाली पाक आदी यग्यों को देव यग्य ही मानना चाहिए
लोकिक अगनी में प्रतिष्ठित जो चूडा करन आदी संसकार
निमित्तक हवन कर्म है उन्हें भी देव यग्य के ही अंतरगत जानना चाहिए
रात में इसका विधान नहीं है
अगनी के बिना देव यग कैसे संपन्य होता है
इसे तुम लोग शद्धा से और आदर पूर्वक सुनो
स्रश्टी के आरंब में सर्वग्य,
दयालू
और सर्व समर्थ
महादेव जी ने समस्त लोकों के उपकार के लिए
वारों की कलपना की
वे भगवान शिव संसार रूपी रोग को दूर करने के लिए वैध हैं
सब के ग्याता तथा समस्त ओष्टियों के भी ओशद हैं
उन भगवान ने पहले अपने वार की कलपना की जो आरोग्य परदान करने वाला है
जन्व काल में दुरगती ग्रस्त बालक की रखशा
के लिए उन्होंने कुमार के वार की कलपना की
जिसके बाद सब के स्वामी भगवान शिवने पुष्टियों
रखशा के लिए आयू करता त्रिलोग श्ट्रिस्टा परमेश्ठी
ब्रह्मा का आयुशकारक वार बनाया
जिस्ते संपून जगत के आयुश की सिध्धी हो सके
इसके बाद तीनों लोकों की व्रद्धी के लिए
पहले पुन्य पाप की रचना हो जाने पर
उनके करने वाले लोगों को शुभा शुभ फल देने के लिए
भगवान शिवने इंद्र और यम के वारों का निर्मान किया
ये दोनों वार क्रम से है
भोग देने वाले तथा संसार के म्णत्यूभय को दूर करने वाले हैं
इसके बाद
सूर्य आदी साथ गरहों को जो अपने ही स्वरूप
भूत तथा प्राणियों के लिए सुख दुख के सूचक हैं
स्वूर्य आदी के वारों के डिन के शक्ती भार के स्वामी सूम खें
परक्षिन बार वार के स्वामी बुद्धगे देखाने के दिन के अदिपती मंगल हैं
अदिपती ब्रहस्पति हैn
इंद्रवार के स्वामी शुक्र और यंवार
के स्वामी शणिष्चर हैं
अपने-अपने वार में की है उन देवतों की पूजा
उनके अपने-अपने फलों को देने भागतों
हैं
सुर्य आरोग्य के ओर Кोरiumsंपत्ती के दाता हैं
मंगल करते हैं जिसक्षा देते हैं
ब्राष्पति आयो की भुरद्धी गरते हैं
शुक्र भोगा,
ङगनार जान जान म्रत्यू शीवानोज outbreak
ये साथ वारों के क्रिनमे
जो उन उन देवताओं की प्रीत से प्राप्त हुते हैं,
अन्य देवताओं की भी पूजा का फल देने वाले भगवान शिव ही हैं,
देवताओं की परसंद्नता के लिए पूजा की
पांच परकार की ही पद्धती बनाई गई हैं,
पूजा
ये पहला प्रकार है,
उनके लिए होम करना दूसरा,
दान करना तीसरा तथा तप करना चोथा प्रकार है.
इसी वेदी पर प्रतिमा में,
अगनी में अथ्वा ब्राह्मन के शरीर में आराध्य देवता की भावना करके
सोहले उपचारों से उनकी पूजा या आराधना करना पांच्वा प्रकार है.
वह पूजा के उत्र-उत्तर आधार शेष्ट हैं.
पूर्व-पूर्व के अभाव में उत्र-उत्तर आधार का
अवलंबन करना चाहिए.
इससे यदि प्रवल प्रारब्द का निर्वान हो जाये
तो रोग एवं जरा आधी रोगों का नाश हो जाता है.
ईश्ट देव के नाम मंत्रों का जप आधी
साधन वार आधी के अनुसार फल देते हैं.
रविवार को सूर्य देव के लिए,
अन्य देवताओं के लिए तथा ब्राह्मनों के लिए विशिष्ट
वस्तु अरपित करें.
यह साधन विशिष्ष्ट फल देने वाला होता है
तथा इसके द्वारा विशेष रूप से पापों की शान्ती होती है.
सोमवार को विद्वान पुरुष संपत्ति की
प्राप्ती के लिए लक्ष्मी आधी की पूजा को करें
तथा सेपतनीक ब्राह्मनों को घरत पक्व अन्य का भोजन कराएं.
मंगलवार को रोगों की शान्ती के लिए काली आधी की पूजा करें तथा उडद
मूँगेवं अरधकी दाल आधी से युक्त अन्य ब्राह्मनों को भोजन कराएं.
बुद्धवार को विद्वान पुरुष दधी युक्त
अन्य से भगवान विश्णू का पूजन करें.
ऐसा करने से सदा पुत्र,
मित्र और कलत्र आधी की पुष्टी होती है.
जो देरगाई होने की इच्छा रखता हो,
वे गुरुवार को देवताओं की पुष्टी के लिए वस्त्र,
यज्योपवीत तथा घृत मिश्रित,
खीर से यजन पूजन करें.
इसी प्रकार इस्तिर्यों की प्रसुन्दता के
लिए सुन्दर वस्त्र आधी का विधान करें.
देवताओं को संतुष्ट करके ब्रह्मनों को तिल मिश्रित अन्य भोजन कराएं.
जो इस्त्रहें देवताओं की पूजा करेगा,
वे आरोग्य आधी फलका भागी होगा.
वे वोगों के नित्य पूजन, विशेष पूजन,
इस्नान, दान,
जप होमत तथा ब्रह्मन तरपण आधी में एवं रवी आधी बारों
में विशेष तिथी और नक्षत्रों का योग प्राप्त होने पर
विभिन देवताओं के पूजन में सरवग्य जगधीश्वर,
भग
देश, काल, पात्र, द्रव्य,
शद्धायों लोक के अनसार उनके तार्थम्य क्रम का ध्यान नकते हुए
महादेव जी आराधना करने वाले लोगों को आरोग्य आधी फल देते हैं
शुभ अर्थात मांग्ली करम के आराभमे और अशुभ अर्थात
अंतिष्टी आधी करम के अंतमे तथा जन्मन नक्षत्रों के आने पर
ग्रहस्त पुरुष अपने घर में आरोग्य आधी की
समद्धी के लिए सूर्य आधी गिरहों का पूजन करें
इससे सिद्ध है कि देवताओं का यजन सम्पून अभेष्ट वस्तों को देने
वाला है प्राहमुनों का देव यजन करम वैधिक मंत्र के साथ होना चाहिए
यहां ब्राहमन शब्द ख्षत्रिय और वैश्य का भी उप्रक्षन है
शूद्र आधी दूसरों का देव यजन तांत्रिक विदी से होना चाहिए
शुब्फल की च्छा रखने वाले मनिश्यों को सातों ही
दिन अपनी शक्ती के अनुसार सदा देव पूजन करना चाहिए
निर्धन मनुश्य,
तबस्या अरथात वर्त आधी के कश्ट सेहिन
द्वारा और धनी धन के द्वारा देवुताओं की आराधना करें
वे बार बार शद्धा पूर्वक
इस स्थान के धर्म का अनुष्ठान करता है और
बारंबार पुन्य लोकों में नाना परकार के फल भोग कर
पुनहे इस पुर्थी पर जन ग्रहन करता है
धन्वान पुरुष सदा भोग सिध्धी के लिए मार्ग में
व्रक्षादी लगाकर लोगों के लिए छाया की विवस्था करें
जलाशे
कूआ बावली और पोखरें बनवाएं
धन्वान पुरुष सदा भोग सिध्धी के लिए मार्ग में भूखरें बनवाएं
प्रीय भक्तों इसप्रकार यहां पर श्रि शिव महापुरान का
चोदवा ध्याय समाप्त होता है
शिवशंकर भगवाने की जए!
स्नेख के साथ बोलेंगे
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय