Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की
जेव
प्रिये भक्तों
शिशिव महा पुरान के विन्दिश्वर सहीता की अगली कता है
पुरत्वी आदी से निर्मित देव पुरतिमाओं के पूजन की विधी
उनके लिए नैवध्य का विचार
पूजन के विभिन उपचारों का फल विशेश मास वार तिथी एवं नकशत्रों के
योग में पूजन का विशेश फल तथा लिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन
तो आईए भगतों आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ सोल्मा ध्याय
रिश्यों ने कहा
साधु शिरोमने
अब आप पार्थिव प्रतिमा की पूजा का विधान बतलाईए
जिससे समस्त अभिष्ट वस्तूओं की प्राप्ती होती है
सूच जी बोले
हे महरश्यों तुम लोगों ने बहुत उठम बात पूची है
पार्थिव प्रतिमा का पूजन सदा संपून मरोर्थों को देने वाला है
तथा दुख का ततकाल निवारन करने वाला है
मैं उसका वडन करता हूँ
तुम लोग उसको ध्यान देकर सुनो
पिर्थ्वी आदी की बनी हुई देव प्रतिमाओं की पूजा इस भूतल पर
अभिष्ट दायक मानी गई है
निष्चय ही इसमें पुर्शों का और इस्त्रियों का भी अधिकार है
नदी, पोखरे अथ्वा कूए में प्रवेश करके
पानी के भीतर से मिट्टी ले आएं
फिर गंद चोण के द्वारा उसका संचोधन करें
और शुद्ध मंडप में रखक उसे महीन पीसें और सानें
इसके बाद हाथ से प्रतिमा बनाएं
और दूद से उसका सुन्दर संसकार करें
उस प्रतिमा में अंग प्रत्यंग अच्छी तरहें प्रकट हुए हो
तता वै सब प्रकार के अस्त्रवस्तों से संपन्य बनाई गई हो
उसके प्रतिमा पूजन करें
गनेश, सूर्य,
वेश्णू,
दुर्गा
और शिव की प्रतिमा का शिव का एवं
शिवलिंग का दुज़ को सदा पूजन करना चाहिए
पूजन जनित फल की सिध्धी के लिए सोहले उपचारों द्वारा पूजन करना चाहिए
पुष्प से
प्रोक्षन और मंत्र पाथ पूर्वक अभिशेक करें
अगनी के चावल से नयवध्य तियार करें
सारा नयवध्य एक कुडव अर्थात लगबग पाव भर होना चाहिए घर में
पार्थिव पूजन के लिए एक कुडव और बाहर किसी मनुष्य द्वारा
इस्ठापित शिवलिंग के पूजन के लिए एक प्रस्थ अर्थात सेर भर
नयवध्य तियार करना चाहिए
ऐसा जानना चाहिए भक्तों कि देवताओं द्वारा इस्ठापित शिवलिंग
के लिए तीन सेर नयवध्य अर्थित करना उचित है और स्वयम प्रकट
हुए स्वयम भूलिंग के लिए पाथ सेर
ऐसा करने पर पून्द फल की प्राप्ती समझनी चाहिए भक्तों
इसप्रकार सेहस्त्र बार पूजा करने से
द्विज् सत्लोक को प्राप्त होता है
बारे अंगुल चोडा इससे दूना
और एक अंगुल अधिक अर्थात 35 अंगुल लम्बा तता 15 अंगुल चोडा
जो लोहे या लकडी का बना हुआ पात्र होता
है उसे विद्धौन पुरुष शिव कहते हैं
उसका आठ्वा भाग प्रहस्थ केलाता है जो चार कुडव के बराबर माना गया है
पुरुष शिव को गण्द द्रव्यों के लिए यथा योगय बना होगा
आत्म सोर्वसासे आत्मरोरिमदि र Phi Santhasa.
गंध से सोर्वरिमदि र पिकान्ति न सोर्वररमि
खोरीएर से सोर्वर्मदि र फिक्शन,
चारोरिमदिरि का प्लतने
न अपपर्ती स्वर्माना थाँऽाथवागंनिरो लेम्दारी
भोग की उपलब्दी होती है।
इसलिए इसनान आदी
छए उपचारों को
यतन पूर्वक अरपित करें।
नमसकार और जब ये दोनों
समपूर्ण अभिष्ट फल को देने वाले हैं।
इसलिए भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले
लोगों को पूजा के अंत में सदाही जब और नमस्कार करने चाहिए।
मनुश्य को चाहिए कि वे सदाः पहले मंद से
पूजा करके फिर उन उन उपचारों से करें।
अन्धिताओं की पूजा से उन उन देवताओं के लोकों की प्राप्ती होती है
तथा उनके अवान्तर लोक में भी यतेश्ट भोग की वस्तुएं उपलब्द होती हैं
प्रबंधों
अम मैं देव पूजा से प्राप्त होने वाले विशेश फलों का वर्णन करता हूं
हे द्विजों तुम लोग शद्धा पूर्वक सुनों विगनराज गनेश जी
पूजा से भू लोक में उत्तम अभिष्ट वस्तु की प्राप्ती होती है
विशेश को शावन और भाद्र पदमासों के
शुकल पक्ष की चतुर्थी को और पोश मास में शत विशा नकशत्र
के आने पर विधी पूर्वक गनेश जी की पूजा करनी चाहिए
सो या सहस्त दिनों में
सो या सहस्त बार पूजा करें
देवता और अगनी में शद्धा रखते हुए किया जाने वाला उनका नित्य पूजन
मनुष्यों को पुत्र एवं अभिष्ट वस्तु प्रदान करता है
मैं समस्त पापों का शमन्कर
तथा भिन्य-भिन्य दुषकर्मों का विनाश करने वाला है
विभिन वारों में की हुई शिव अदी की पूजा को
आत्म शुद्धी प्रदान करने वाली समझना चाहिए
वार या दिन तिथी, नक्षत्र और योगों का आधार है
योगों का आधार है
समस्त कामनाओं को देने वाला है
उसमें व्रद्धी और क्षे नहीं होता
इसलिए उसे पून ब्रह्म स्वरूप मानना चाहिए
सूर्योदे काल से लेकर
सूर्योदे काल आने तक
एक वार की स्थिती मानी गई है
ब्राह्मन आदी सभी वर्णों के कर्मों का आधार है
वही तिथि के पूर्व भाग में की हुई देवपूजा
मनुष्यों को पून भोग परदान करने वाली होती है
यदि मध्यान के बाद तितH का आरम्भ होता है,
तो հात्रे युक्त तितH का काच्च तेो स्मविदी
के sañnChild के लिए उत्तम बतयाजाता है।
अईसी तिथी का परभाग ही
दिन से युक्त होता है अतय वही देव कर्म के लिए प्रसस्थ माना गया है
जदि मध्यान काल तक
तिथी रहे तो
उदए व्यापनी तिथी को ही देव कारिय में ग्रहन करना चाहिए
इसी तरहें शुद्ध तिथी एवं नकशत्र आदी ही देव कारिय में ग्रह होते हैं
वार आदी का भली भाती विचार करके पूजा और जप आदी करने चाहिए
वेदों में पूजा शब्द के अर्थ की इस प्रकार योजना की गई है
पूजा यते अनेन इती पूजा
यह पूजा शब्द की उव्युत्पत्ती है
पूह का अर्थ है भोग और फल की सिध्धी
वे जिस कर्म से उत्पन्य होती है उसका नाम पूजा है
मनो अंचित वस्तू तथा ज्यान यही अभिष्ट वस्तूएं हैं
सकाम भाव वालों को अभिष्ट भोग अपिक्षित होता है
और निषकाम भाव वालों को
अर्थ पारमार्थिक ज्यान
यह दोनों ही पूजा शब्द के अर्थ हैं
नित्य और नैमित्तिक कर्म काल अंतर में फल देते हैं
यह पूजा ज्यान करने की पूजा निषकाम भाव
वालों पारमार्थिक ज्यान ज्यान बाते हैं
वो जब सूर्य सिंग राशी परिश्ठित हो उस समय भादरपद मास की चतुर्थी
को किए हुई गनेश जी की पूजा एक वर्ष तक मनुवाणचित भोग पुरदान करती
हैं ऐसा जानना चाहिए
शावन मास ल माँरे सा रील वी प्रिन्द तांति क blob के उसराय
की सब पे भाव वालों माणमोल वी में हिस्पोर पूजा चले हाया है
बुद्ध्वार को शवन नकषत्र से युपत द्वादशी तिथी को
तथा केवल द्वादशी को भी किया गया भगवान विश्णू का
पूजन अविष्ट समपत्ती को देने वाला माना गया है भगतों
शावन मास में श्री हरी की की जाने वाली पूजा
अविष्ट मनोरत और आरोग्य प्रदान करने वाली होती है
अंगों एवं उपकर्णों सहीट
पूर्वोक्त गो आदी बारहे वस्तों का दान
करने से जिस फल की प्राप्ती होती है
वे उनकी प्रसनता प्राप्त कर लेता है
इसी प्रकार संपूँधेवताओं के विभिन बारहे
नामों द्वारा किया हुआ बारहे ब्रहमनों का पूजन
उन देवताओं के विभिंद बारे नामों द्वारा किया हुआ बारे ब्रहमनों
का पूजन उन उन देवताओं को परसन्द करने वाला होता है भगतों
करक की संक्रांती से युक्त शावन मास में नवमी तिती को
मृक्षिरानक्षत्र के योग में अम्भिका का पूजन करें
वे सम्पून मनोवान्चित भोगों और फलों को देने वाली हैं
एश्वरे की इच्छा रखने वाले पुर्शों
को उस दिन अवश्य उनकी पूजा करनी चाहिए
आश्विन मास के शुकल पक्ष की नवमी तिती
सम्पून अभिष्ट फलों को देने वाली है भगतों
उसी मास के कृष्ण पक्ष की चतुरदशी को यदी रवीवार
पड़ा हो तो उस दिन का महत्त विशेश बढ़ जाता है
उसके साथ ही यदी आर्ड्रा और महार्ड्रा सूर्य
संक्रांती से युक्त आर्ड्रा का योग हो तो उक्त अवसरों
पर की हुई शिव पूजा का विशेश महत्त माना गया है
माग कृष्णा चतुरदशी को की हुई शिव जी की पूजा
समपून अभिष्ठ फलों को देने वाली है भक्तों
वैं मनुश्यों की आयू बढ़ाती नत्यू कष्ट को दूर
हटाती और समस्त सिद्धियों की प्राप्ती कराती है
जेश्ट मास में चतुरदशी को यदी महाराद्रा का योग हो अथ्वा
मार्गशीर्ष मास में किसी भी तिति को यदी आर्ध्रा नक्षत्र
हो तो उस अउसर पर विभिन वस्तुओं की बनी हुई मूर्ती
के रूप में शिव की जो सोले उपचारों से पूजा करता है उस �
पूजन इसे जानना चाहिए
कार्थिक मास में प्रतेख वार और तिथी आधी में
महाधेव जी की पूजा का विशेश महत्व है कार्थिक मास
आने पर विद्वान पुरुष दान तप होम जप और नियम आधी
के द्वारा समस्त देवताओं का शोट शोपचारों से प�
कार्थिक मास में देवताओं का यजन,
पूजन समस्त भोगों को देने वाला व्याधियों को हर
लेने वाला तता भूतों और गरहों का विनाष करने वाला है
कार्टिक मास के रवीवार को भगवान सूर्य की पूजा करने और तेल तथा
सूती वस्तर देने से मनिष्च के कोड आधी रोगों का नाष होता है।
अधर्रे,
काली मिर्च,
वस्तर और खीरा आदी का दान और ब्राह्मनों की प्रतिष्ठा करने से
ख्षे के रोग का नाश होता है।
दीप और सरसों के दान से मिर्गी का रोग मिट जाता है।
कृतिकानक्षत्र से युक्त सोमवारों को किया हुआ शिवजी का पूजन
ग्रेव और ख्षेत्र आदी का दान करने से भी उक्तपल की प्राप्ति होती है।
कृतिका युक्त मंगलवारों को स्री स्कंध का पूजन करने से तथा दीपक एवं घंटा
आदी का दान देने से मनुष्य को शिगर ही वाग सिध्धी प्राप्त हो जाती है।
और उनके मोह से निकली हुई हर एक बात सत्य होती है भक्तों।
कृतिका युक्त बुद्धवारों को किया हुआ
स्री विश्णू जी का यजन तथा दही भात का दान
मनुष्यों को उत्तम संतान की प्राप्ति कराने वाला होता है।
कृतिका युक्त गुरुवार को धन से ब्रह्मा जी का पूजन तथा मधु,
सोना और घी का दान करने से मनुष्यों के भोग,
वैभव की व्रध्यी होती है।
कृतिका युक्त शुक्रुवारों को गजानन,
गनेश जी की पूजा करने से तथा गंध,
पुष्प एवं अन्य का दान देने से मानुवों
के भोग पडार्थों की व्रध्यी होती है।
उस दिन सोना,
चान्दी आधी का दान करने से बंध्या को
भी उत्तम पुत्र की प्राप्ती होती है।
किर्तिका युक्त शनीवारों को दिगपालों की वंदना,
दिगजो, नागों और सेतपालों का पूजन,
त्रिनेत्रधारी रुद्र,
पाप हारी विश्णू तथा ज्ञान दाता ब्रह्मा का आराधन और
धन्वंत्री एवं दोनों अश्वनी कुमारों का पूजन करने स
भावा तेल और उड़दादी का तिरकुट्ध,
सौथ, पीपल और गोलमिर्च,
फल,
गंद और जल आदी का तथा घरत आदी द्रवपदार्थों का और स्वर्ण,
मोती आदी कठोर वस्तुवों का भी दान देने
से स्वर्ग लोक की प्राप्ती होती है
पूजन करने सबस्त पूजन का आदी पूजन पर जब इस
पूजन में अगहनी के चावल से त्यार किये गए
हविश्षकानयवद्ध उत्तम बतयाजाता है
पोशतमाण्श में ननापराकार के अन्यकानयवद्ध
विशेश नहित हरतवरखता है
मार्गशितमाण्श में केवल अन्य का डान करने वाले मनुश्यों को
अन्तों अभिष्ट फलों की प्राप्ती हो जाती है
मार्ग शीस मास में अन्य का दान करने वाले मनुश्य के
सारे पाप नष्ट हो जाते हैं
वे अभिष्ट सिध्धी,
आरोग्य,
धर्म,
वेद का सम्य ज्ञान,
अन्धान श्थान का फल इह लोक और परलोक में महान भोग,
अन्त में सनातन योग,
अर्थात मोक्ष तथा वेदानत ज्ञान की सिध्धी प्राप्त कर लेता है,
आन्तमें को 2009-11 टोंग,
लेधे आपो पूर्थ बालें लेकिन 3 टौजन ।
पाल से लेकर संगव काल तक ही
पोश मास में पूजन का विशेश महत बताया गया है भकतों
पोश मास में पूरे महीने भर
जितेंद्रिय और निराहार रहकर
द्विज्ज प्राते काल से मध्यान काल तक
वेद माता गायति का जब करें
पशात रात को सोने के समय तक
पंचाक्षर आदी मंतरों का जब करें
ऐसा करने वाला ब्राहमन्द ज्ञान पाकर शरीच
छूटने के बाद मोक्ष प्राप्त कर लेता है
इस दिधर नर नारीयों को त्रिकाल स्नान और पंचाक्षर मंतर
के ही निरंतर जब से विशुद्ध ज्ञान प्राप्त हो जाता है
ईश्ट मंतरों का सदा जब करने से बड़े से बड़े पापों का भी नाश हो जाता है
पंचाक्षर मंतर,
प्राप्तुरे तरण,
जगत,
सरा,
चलाचर,
जगतु,
बिंदु,
नाध,
स्वरूप है
बिंदुशक्ती है और नाध शिवू
यही सकलीकरण है इस सकलीकरण की स्थिति में ही
स्विष्टी खाल में जगत का प्रातुरभाव होता है
इसमें संशे नहीं है
शिवलिंग बिंदू नाध स्वरूप करें
अतेह उसे जगत का कारण बतया जाता है
बिंदु देव है और नाध शिव
इन दोनों का सईयूक्त रूप ही शिवलिंग कहलाता है
अतेह जन्म के संकत से छुटकारा पाने के लिए
शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
बिंदु रूपा देवी ऊमा माता है
और नाध स्वरूप भगवान शिव पिता
इस माता पिता के पूजित होने से परमानन्द की ही प्राप्ती होती है
अतेह परमानन्द का लाव लेने के लिए शिवलिंग का विशेश रूप से पूजन करें
देवी ऊमा जगत की माता है
और भगवान शिव जगत के पिता
जो इनकी सेवा करता है
उस पुत्र पर इन दोनों माता पिता की किरपा नित्य अत्य धिक बढ़ती जाती है
माता देवी बिंदु रूपा नाद रूप है शिव है पिता पूजिता भ्याम पित्र
भ्याम तो परमानन्द एवही परमानन्द लाव हारत शिव लिंगम प्रपूजियेत
साधेवी जगता माता से शिवो जगते है पिता
पित्रोह शुषुस के नित्यम करपा धिक्यम ही वर्धते
वे पूज़क पर करपा करके उसे अपना आंत्रिक एश्वर्ये प्रदान करते हैं
अतः मुनिश्वरो आंत्रिक आनन्द की प्राप्ती के लिए शिव
लिंग को माता पिता का स्वरूप मान कर उनकी पूजा करनी चाहिए
भर्ग शिव पुरुष रूप हैं और भर्गा
शिवा अथवा शक्ती
त्रकर्ती कहलाती हैं
पुरउष आदी गर्ब हैं पर प्रगृती रूप गर्भ से हमinkaरन
जो प्रदतिक लिए संवरूप को आंत्रिक आधिष्थान भूदती कला
अव्यक्त्य प्रकर्ती से,
महत्त्रत्वा अधी के करणों से
जो जगत का व्यक्त होना है,
यही उस प्रकर्ती का द्वितिय जन्म कहलाता है.
जीव पुरुष से ही बारंबार जन्म और मृत्यू को प्राप्त होता है.
माया द्वारा अन्य रूप से प्रकर्त किया जाना ही उसका जन्म कहलाता है.
जीव का शारीरिक जन्मकाल से ही जीण छै
भाग विकारों से युक्त होने लगता है.
इसलिए उसे जीव संग्या दी गई है.
जो जन्म लेता और विविद पाशों द्वारा तनाव बंधन में पढ़ता है,
उसका नाम जीव है.
जन्म और बंधन जीव शब्द का अर्थ ही है.
अते जन्म मृत्यू रूपी बंधन की निवर्त्ती के लिए
जन्म के अधिष्ठान भूद मात्र पित्र स्वरूप शिव
पूजन के लिए शहद और शक्कर के साथ प्रतक प्रतक भी रखें और
इन सब को मिला कर समलित रूप से पंचाय म्रत भी तियार कर लें.
इसके द्वारा शिव लिंग का अभिषेक और स्नान कराएं
फिर गाय के दूद और अन्य के मेल से नयवध त्यार करके प्रनाव
मंत्र के उच्छारन पूर्वक उसे भगवान शिव को अरपित करें.
सम्पून प्रनाव को धळीलिँग कहते हैं.
स्वैंभो लिँग,
नाथ स्वरूप होने के कारण नाध लिंग कहा जाता है.
जर लिंग कहना ता है
सवारी निकालने आदी के लिए
जो चर लिँग होता है
वह उकार स्वरूप होने से
उकार लिंग कहागया है
तता पूज़ा की दिख्षा देने वाले
जो गुरू या आचारिये हैं
उन्गा विग्रह अकार का प्रतीख होने से अकार लिंग माणा गया है
इस प्रकार अकार, उकार, मकार, बिंदु,
नाध और ध्वनी के रूप में लिंग के 6 भीध हैं
इन छै हो लिंगों के निठ पूजा करने से साधःक जीवन मुक्त हो जाता है
इसमें सनचे नहीं है
बोलिए शिवशंकर भगवाण की जेव
तो प्रीय भकतो इसप्रकार यहां पर
सिशिव महपुरान के विध्यिश्वर सहीता की ये कता
और सौलुम आध्याय हां पर समाप्त होता है
सने से बोलिये
बोले शिवशंकर भगवाने की जए
आनन्द के साथ
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय