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Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-9

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran vayaviya sanhita uttar khand adhyay-9 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran vayaviya sanhita uttar khand adhyay-9 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-9 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-9

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोल येश्यु शंकर भगवाने की
जैये
प्रीय भक्तों
श्री शिव महा पुरान के वायविये सहिता उत्तरखंड की अगली कता है
शिव के अवतार योगाचारीयों तथा उनके शिष्षों की नामावली
तो हाई ये भक्तों आरम्ब करते हैं
इस कथा के साथ नू आध्या है
श्री कृष्ण पोले
हे भगवन समस्त युगावर्तों में योगाचारीय के व्याज से भगवान शंकर के जो
अवतार होते हैं और अवतारों के जो शिष्षों होते हैं उन सबका वर्णन कीजी
उप्मन्यूने कहा
श्वेत सुतार सदन सुहोत्र कंकलोग अधिही महामायावी
जैगिश्व दधीवाः रिशब्मुनी
उग्र अत्री
सुपालक गोतम वेदशिरा मुनी
गोकर्ण गुहावासी
शिखंडी जटामासी अठास
दारुक,
लांगुली,
महाकाल, शूली, दंडी,
मुन्डीश,
सहिष्ण,
सोम्स शर्मा और नकुलिश्वर
ये बाराह कल्ब के इस सात्वे मन्वंतर में
युग करम से अठाईस योगाचारिय प्रगट हुए हैं
इन में से प्रतेख के शांती चित्वाले चार-चार शिष्ष हुए हैं
जो श्वेत से लेकर
रूष्य परियंत्र बताए गए हैं
मैं उनका करमशे वर्णन करता हूं, सुनो
श्वेत शिक् श्वेत आश्व
श्वेत लोहित
ढुन्धू ही शत्रूप
रचीक केतुमाझ
विकोष्ं विकेश विपाष पाश नशन
सूमक दुरमुक
दुर्गं दुरतिकरम
सनत कुमार सनक
सनंधन सनातन सुनाढ मासं ہوगे
विर्जाशंख अंडज सारस्वत मेग मेगवाह सुवाहक कपिल आसुरी पंचशिक वाशकल
पराशर गर्ग भारगव अंगीरा
बलबंधु निरामित्र।
केतुशिंग
तपोधन लंबोधर
लंब लंबात्मा
लंबकिशक सर्वज्य संवुध्धि
साध्यसिद्धि सुधामा कश्षव वशिष्ट विर्जा अत्री उग्र
गुरुशेष्ट शवन शविष्ठक
कुणि कुनबाव कुशरीर
कुनित्रक कश्षव
उश्णा अंगीरा ब
जवन
ब्रहस्पती उतत्य बामदेव महाकाल महानिल वाचेश्वा
सुवीर
श्यावक
यतिश्वर
हिरन्यनाव कोशल्य लोकाक्षी
कुथुमी
सुमन्तु
जैमनी कुवंध कुशकंधर
पलक्ष
दारभायनी केतमान गोतम भल्लवी माजवान परवावावावावावावावा�
वधुपिंग श्वेतकेतु
उशिज
व्रधश्व
देवल कवी
शालीहोत्र सुवेश
यवनाश्व शर्दशु
चकल
कुंबकरण कुंब
प्रभाहुक उलूक विधुत शंबूक आश्वलायन अक्षपाद
कनाद उलूक वच्च कुशिक गर्ग चित्रक और प्रभावावा�
रुष्य योगाचार्य रूपी महिश्वर के शिष्चे हैं
इनकी संख्या 112 हैं
ये सबके सब सिद्ध पाशुपत हैं
और इनका शरीर भस्म से भिवुशित रहता हैं
ये संपून शास्त्रों के तत्वज्य वेद वेदांगों के पारंगत विद्ध्वान
शिवाश्रम में अनुरक्त शिव ज्ञान परायन
सब परकार की आसक्तियों से युक्त
एक मात्र बगवान शिव में ही मन को लगाय रखने वाले
संपून द्वन्दों को सेहने वाले और धीर सर्व भूत हितकारी
सरल,
कॉमल,
स्वस्त,
क्रोध,
सुन्य और जीतेंद्रिय होते हैं
रुक्तराक्श की माला ही इनका अबूशण है
इनके मस्तकत्रि पुन्ड्र से अंकित होते हैं
उनमें से कोई तो शिखा के रूप में ही जटा धारण करते हैं
किनी के सारे केष भी जटा रूप होते हैं।
क्योंकोई ऐसे हैं, जो जटा नहीं रखते हैं।
और कितने ही सदा माधा डमडाइ रहते हैं।
वह प्राय, भल, मूल का अहार करते हैं।
प्राणायाम साधन में तद पर होते हैं।
मैं शिव का हूँ
इस अभीमान से युक्त होते हैं। सदाशिव के ही चिंतन में लगी
रहते हैं। उन्होंने संसार रूपी विश्वरक्ष के अंकुर को मत डाला
है। वे सदा परमधाम में जाने के लिए ही कटी बद्ध होते हैं।
जो योगाचारियों सहित इन शिश्वों को
जान मान कर सदाशिव की आराधना करता है,
वे शिव का सायुज्या प्राप्त कर लेता है।
इसमें कोई अन्यता विचार नहीं करना चाहिए।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए।
प्रिये भगतों,
इसवरकार यहां पर शिश्व महाप्रान के वाइवियस सहिता उत्तर खंड की यह कथा
और नौ अध्या यहां पर समाप्त होता है। तो स्नही से बोली,
आदर के साथ बोली। बोलिये शिवशंकर भगवाने
की जैए। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शि�

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