Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिए शिवशंकर भगवान की जय प्रिय भक्तों शिव महापुराण के वायविय सहिता उत्तरखण की अगली कथा है
शडद्व शोधन की विधि तो आईए भक्तों आरम करते हैं इस कथा के साथ अठार्वा अध्याए उपमन्यु कहते हैं
हे यदुनन्दन तदंतर गुरु की आज्या ले शिष्य स्नान आदि संपूर्ण कर्म को समाप्त करके शिव का चिंतन करता हुआ हाथ जोड़ शिव मंडल के समीप जाए
इसके बाद पूजा के सिवा पहले दिन का शिष्य साहरा कृत्य नेत्र बंधन परियंत कर लेने की अनंतर गुरु से मंडल का दर्शन कराए
आख में पट्टी बंधे रहने पर शिष्य कुछ फूल भिखेरे जहां भी फूल गिरे वहीं उसको उपदेश दे
फिर पूर्वत उसे निर्माल्य मंडल में ले जाकर इशान देव की पूजा कराए और शिवागनी में हवन करे
यदि शिष्य ने दुह स्वप्न देखा हो तो उसके दोश की शांती के लिए सो या पचास बार मोल मंतर से अगनी में आफती दे
तरंतर शिखा में बंधे हुए सूत को पूर्वत लटका कर आधार शक्ती की पूजा से लेकर निवत्ती कला सम्मंधी वागिश्वरी पूजन परियंद सब कारिय होम पूर्वक करे
इसके बाद निवत्ती कला में व्यापक सती बागिश्वरी को प्रणाम करके
मंडल में महादेव जी के पूजन पूरवक्त तीन आउठ्या दी
शिष्य को एक ही समय संपून योणियों में प्राप्त कराने की भावना करे
फिर शिष्य के सूत्र में शरीर में ताड़न प्रोक्षन आदि करके
उसके आत्मचैतन्य को लेकर द्वासल शान्त में निविदन करे
फिर वहां से भी उसे लेकर आचारिय मूल मंत्र से
शास्त्रोक्त मुद्रा द्वारा मानसिक भावना से एक ही साथ संपून योणियों में संयुक्त करे
देवताओं की आठ जातियां हैं
तियक, योणियों, पशुपक्षियों की त्माच और मनिश्यों की एक जाति
इस परकार कुल चोधे योणियां हैं
उन सब में शिष्य को एक साथ प्रवेश कराने के लिए
गुरु मन ही मन भावना द्वारा शिष्य की आत्मा को यथोचित रीती से
वागिश्वरी के गर्व में निविष्ट करे
वागिश्वरी में गर्व की सिद्धी के लिए महादिव जी का पूजन
प्रणाम और उनके निमित्त हवन करके चिंतन करे की यथावत रूप में वह गर्व सिद्ध हो गया
सिद्ध हुए गर्व की उत्पत्ती, कर्मानुवत्ती, सरल्ता, भोग प्राप्ती और पराप्रीती का चिंतन करे
तथ प्रशाद उस जीव के उद्धार तथा जाती आयु एवं भोग के संसकार की सिद्धी के लिए तीन आहुत्यों का हवन करके
शेष्ट गुरु महादिव जी से प्रार्थना करे
भुक्त्रित्व विश्यक आसक्ति अथवा भुक्त्रिता और विश्यासक्ति
रूप मल के निवारन पूर्वक शिष्य के शरीर का शोधन करके
उसकी त्रिविद पाश का उच्छीद कर डाले
कपट या माया से बंधे हुए शिष्य के पाश का अत्यंत भीदन करके
उसके चेतन्य को केवल स्वच्च माने
फिर अगनी में पूर्ण आहुती देकर ब्रह्मा का पूजन करे
ब्रह्मा के लिए तीन आहुती देकर उन्हें शिव की आज्या सुनाए
हे पिताम्य, यह जीव शिव के परंपद को जाने वाला है
तुम्हें इसमें विग्न नहीं डालना चाहिए
यह बगवान शिव की गुरूत राज्या है
ब्रह्मा जी को शिव का यह आदेश सुनाकर
उनकी विधिवत पूजा और विसरजन करके
वहाँ देव जी की अर्जना करें और उनके लिए तीन आहुती दें
तथ पश्चात निवर्ती द्वारा शुद्ध हुए शिष्य के आत्मा का पूर्वत उध्धार करके
अपनी आत्मा एवं सूत्र में स्थापित कर वागीश का पूजन करें
उनके लिए तीन आहुती दें और प्रणाम करके विसरजन कर दें
तथ पश्चात निवर्त बुरुष प्रतिष्ठा कला के साथ सानिध है स्थापित करें
उस समय एक बार पूजा करके तीन आहुतियां दें
और शिष्य के आत्मा के प्रतिष्ठा कला में प्रवेश के भावना करें
इसके बाद प्रतिष्ठा का वाहन करके
पूर्वक्त संपून कारिय संपन्न करने के पस्चात
उसमें व्यापक
वागीश्वरी देवी का ध्यान करें
उनकी कान्ती पूर्ण
चंद्र मंडल के समान है ध्यान के पश्चात शेष कार्य पूर्वत करें तदंतर भगवान विष्णु को परमात्मा शिव की आज्या सुनाएं फिर उनका भी विशर्जन आदि शेष कृत पूर्ण करके प्रतिष्ठा का विध्या से संयोग करें उसमें भी पूर्वत सब का
शेष संपन्य करके पूर्वत नील रुद्र का वाहान एवं पूजन आदि करें फिर पूर्वक्त रीती से उन्हें भी शिव की आज्या सुना दें तदंतर उनका भी विशर्जन करके शिष्ठ की दोष शान्ती के लिए विध्या कला को लेकर उसकी व्याप्ति का उलोकन क
करें और उसमें व्यापि का वागईश्वरि देवी का पूर्वत ध्यान करें उनकी आक्रदि प्रातय काल के सूर्य की भाथी अरुन रंग की है और वे दसो दिशाओं को उदभासित कर रही हैं इस प्रकार ध्यान करके शीष कार्य पूर्वत करें फिर महिश्वर देव का
पूजन और उनके उद्देश्य से हवन करके उन्हें मन ही मन शिव की पूर्वक्त आज्या सुनाएं।
तब बश्चात महिष्वर का विसर्जन करके अन्य शांति कला को शांत्यतीता कला तक पहुंचा कर उसकी व्यापकता का अवलोकन करें।
इसके स्वरूप में व्यापक वागीश्वरी देवी का चिंतन करें। उनका स्वरूप आकाश मंडल के समान व्यापक है।
इस प्रकार ध्यान करके पूर्णाहुती होम परियंत सारा कारिये पूर्वत करें।
शिष कार्य की पूर्ती करके सदा शिव की विधिवत पूजा करें और उन्हें भी अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की विधिवत पूजा करें और उन्हें भी अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की विधिवत पूजा करें और उन्हें भी अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की विधिवत पूजा करें और उन्हें भी अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की अमित पूजा करें और उन्हें भी अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की अमित पूजा करें और उन्हें भी अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
शिव की पूर्ती करके सदा शिव की अमित पराक्रमी शंभू की आज्या सुना दें।
वह उस ओमकार से ही संपुटित हो और उसके अंत में नमह लगा हुआ हो।
वह विध्या शिव और शक्ति दोनों से सैंयुक्त हो।
इस प्रकार यथा।
ओम ओम नमह शिवाय ओम नमह।
इसी तरह शक्ति विध्या का भी उपदेश करें।
इस प्रकार यथा।
ओम ओम नमह शिवाय ओम नमह।
इन विध्याओं के साथ रिशी, चंद, देवता, शिवा और शिव की शिव रूपता,
आवरण पूजा तथा शिव सम्बन्धी आसनों का भी उपदेश दें।
तथा शाद देविश्वर शिव का पुनह पूजन करके कहें।
हे भगवन, मैंने जो कुछ किया है, वैं सव आप सुकृत्त रूप कर दें।
इस तरह भगवान शिव से निवेदन करना चाहिए।
तदंतर शिश्य सहित गुरू पृत्वी पर दंड की भाथी गिरकर महादेव जी को प्रणाम करें।
प्रणाम के अनंतर उस मंडल से और अगनी से भी उनका विसर्चन कर दें।
इसके बाद समस्त पूजनिय सदस्यों का क्रमशे पूजन करना चाहिए।
सदस्यों और रितजों के अपने वैभव के अनुसार सेवा करनी चाहिए।
साधक यदि अपना कल्यान चाहे तो धन खर्च करने में कंजूसी ना करे।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जय।
प्रिय भक्तों, इस प्रकार यहाँ पर शिश्यु महपुराण की वायविय सहीता अउत्तरखंड की एकथा और अठार्व आध्या यहाँ पर समाप्त होता है।
तो आनंद के साथ बोलिये।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जय।
भाव के साथ।
ओम् नमः शिवाय।