Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिए शिवशंकर भगवाने की जय प्रिय भक्तों शिव महापुराण की वायविय सहिता उत्तरखंड की अगली कथा है
शिव पूजन की विधी जिन भक्तों को शिव पूजन की विधी अभी तक नहीं पता है
क्रिपा करके सावधानी पूर्वक धैरिये के साथ इसे सुने और उस पर अमल कीजिएगा
देखेगा इश्वर आपके किस परकार से सहिता करते हैं आपकी इच्छाओं को पूरी करते हैं
ताहिए भक्तों आरम करते हैं इस कथा के साथ चोबिस्वा अध्या है
उपमन्यू कहते हैं
अस्त्र मंत्र का संपोर्ण दिशाओं में न्यास करके पूजा भूमी की कल्पना करें
वहां सब और कुष्ः बिछादें और प्रोक्षन अधी के द्वारा उस भूमी का प्रक्षालन करें
पूजा सम्मंधी समस्त पात्रों का शोधन करके द्रव्य शुद्धी करें
प्रोक्षणी पात्र, आरग्य पात्र, पाध पात्र और आश्मिनिय पात्र
इन चारों का प्रक्षालन, प्रोक्षण और विक्षन
ये करके इनमें शुद्ध जल डाले और जितने मिल सके उन सभी पवित्र दव्यों को उनमें डाले
लें पंच रत्न चांदी सोना गंध पुष्प अक्षत आदि तथा फल पल्लव और कुष यह सब अनेक प्रकार के पुन्य द्रव्य
हैं इसनान और पीने के जल में विशेष रूप से सुगंध आदि एवं शीतल मनोग्य पुष्प आदि छोड़े पाद पात्र में
खश और चंदन छोड़ना चाहिए आज मनी है पात्र में विशेषत जायफल कंकोल कपूर सही जन और तमाल का चून करके
डालना चाहिए इलायची सभी पात्रों में डालने की वस्तु है कपूर चंदन कुषाग्र भाग अक्षत जो धान तिल घी
शरी सरसो फूल और ख़स्म इन सब को अर्ग पात्र में छोड़ना चाहिए कुष फूल जो ठान पहिजन तमाल और बस
कि इन सब का प्रोक्षणी पात्र में पृषपन करना चाहिए सर्वत्र मंत्र नियास करके कवच मंत्र से से प्रतिक
पात्र को बाहर से अविष्ठित करें तब पश्चात अस्त्र मंत्र से उसकी रक्षा करके धेनों मुद्रा दिखाएं
पूजा के सभी द्रव्यों का प्रोक्षणी पात्र के जल से मूल मंत्र द्वारा प्रोक्षण करके विधिवत शोधन करें
शेष्ट साधक को चाहिए कि अधिक पात्रों के ना मिलने पर सब कर्मों में एक मात्र प्रोक्षणी पात्र को ही संपादित करके रखें
और उसी के जल से सामान्यते आर्गद आदी दें
तत्पश्चात मंडप के दक्षिन द्वार भाग में भक्ष बहुज्य आदी के क्रम से विधी पूर्वक विनायक देव की पूजा करके
अन्तहपूर के स्वामी साक्षात नन्दी की भली भाथी पूजा करें
उनकी अंग कांती स्वाण में परवत के समान है
समस्त आभूशन उसकी शोभा वढ़ाते हैं
मस्तक पर बाल चंदर का मुकुट्ष शोभित होता है
उनकी मूर्ती सौम में है
वे तीन नेत्रों और चार भुजाओं से युक्त हैं
उनके एक हाथ में चमचमाता हुआ तिर्शूल
दूसरे में म्रगी, तीसरे में टंग
और चोथे में तीखा बेद है
उनके मुख की कांती चंदर मंडल के समान उज्जवल है
मुख वानर के सद्रश्य है
द्वार के उत्तर पार्शु में उनकी पत्नी सुयशा है
जो मरुद गणों की कन्या है
वे उत्तम व्रत का पालन करने वाली हैं
और पार्वती जी के चड़नों का शंगार करने में लगी रहती हैं
उनका पूजन करके परमिश्वर शिव के भवन के भीटर प्रवेश करें
और उन द्रव्यों से शिवलिंग का पूजन करके
के निर्माल्य को वहां से हटा लें तदंतर फूल धोकर शिवलिंग के मस्तक पर उसकी शुद्धि के लिए रखें
फिर हाथ में फूल ले यथा शक्ति मंत्र का चप करें इससे मंत्र की शुद्धि होती है इशान कोण में चंडी की
साथना करके उन्हें पूर्वक्त निर्माल्य अर्पित करें तद पश्चात इष्ठ देव के लिए आसन की कल्पना करें क्रमशय
आधार आदि का ध्यान करें कल्यानमय आधार शक्ति भूतल पर विराजवान है और उनकी अंग कांति शाम है इस प्रकार उनके
रूप का चिंतन करें उनके ऊपर फन उठाए सर्पाकार अनंत बैठे हैं जिनकी अंग कांति उज्जवल है वह पांच फनों से
युक्त हैं और आकाश को चाटते हुए से जान पड़ते हैं अनंत के ऊपर भद्रासन है जिसके चारों पायों में सिंह की
मिर्शकर्ति बनी हुई विचारां पायें से धार्म ज्ञान वैराज्य और ओष्ट्रीत रूप है धर्म नाम वाला पाया अग्नेप
कोण में है और उसका रंग सफेद है ज्ञान नामक पाया नहरित्य कोण में है और उसका रंग लाल है वैराज्य वायोव्य
प्रश्वय कोण में है और उसका रंग पीला है, तथा एश्वर्य ईशान कोण में है और उसका वण्ण शाम है।
अधर्म आदि उस आसन के पूर्वादी भागों में क्रमश है स्तित हैं, अर्थाद अधर्म पूर्व में, अज्ञान दक्षन में, एवैराज्य पश्चिम में और एनेश्वर्य उत्तर में हैं।
इनके अंग राजा वर्थ मनी के समान हैं। ऐसी भावना करनी चाहिए। इस भद्रासन को ऊपर से आच्छादित करने वाला श्वेत निर्मल पद्म में आसन हैं।
अनिमा आधी आठ एश्वरिये, गुण ही उस कमल के आठ तल हैं। वाम देव आधी रुद्र हपनी वामा आधी शक्तियों के साथ उस कमल के केसर हैं। वे मनोन मनी आधी अंतह शक्त यही बीज हैं।
अपर वैराग करनिका है। शिव स्वरूप ज्ञान नाल है। शिव धर्म कंद है। करनिका के ऊपर तीन मंडल, चन्द्र मंडल, सूर्य मंडल और वहिन मंडल है। और इन मंडलों के ऊपर आत्म तत्व, विध्या तत्व तथा शिव तत्व रूप त्रिविद आसन है।
जो शुद्ध विध्या से अत्यंत प्रकाश्मान हो, आसन के अनंतर आवाहन, स्थापन, सन्निरोधन, निरिक्षन एवं नमस्कार करें, इन सब की प्रिथक-प्रिथक मुद्राएं बांध कर दिखाएं।
दोनों हाथों की अंजली बनाकर अनामिका अंगुली के मूल पर्व पर अंगूठे को लगा देना आवाहन मुद्रा है।
दोनों मुठ्थियों को उत्तान कर देने पर सम्मुखी करण नामक मुद्रा होती है, इसी को यहां निरिक्षन नाम से कहा गया है।
शरीर को दंड की भाथी देवता के सामने डाल देना, मुख को नीचे की ओर रखना और दोनों हाथों को देवता की ओर फैला देना, साश्टांग प्रणाम की इस क्रिया को ही हाँ नमस्कार मुद्रा कहा गया है।
तदंतर पाद, आच्मन, अर्ग, स्नानीय, वस्त्र, यज्ञ पवित, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवैद्य और ताम्बूल देकर शिवा और शिव को शेहन कराएं।
अथवा उपर्युक्त रूप से आसन और मूर्थी की कल्पना करके, मूल मंत्र एवं अन्य ईशानाती ब्रह्म मंत्रों द्वारा सकली करण की क्रिया करके, देवी पार्वती सहित परम कारण शिव का हवाहन करें।
भगवान शिव की अंग कांति शुद्ध स्वटिक के समान उज्जवल है। वे निष्चल, अविनाशी, समस्त लोकों के परम कारण, सर्व लोक स्वरूप, सब के बाहर, भीतर विद्धमान, सर्व व्यापी, अनु से अनु और महान से भी महान हैं।
भक्तों को अनयासी दर्शन देते हैं। सब के इश्वर एवं अव्यव हैं। ब्रह्मा, इंद्र, विश्णु तथा, रुद्र आदि देवताओं के लिए भी अगोचर हैं। संपूर्ण वेदों के सार्थत्व हैं। विद्वानों के भी दृष्टि पथ में नहीं आते ह
हैं। आदि, मद्द और अंत से रहित हैं। भाव रोग से गृष्ट प्राणियों के लिए ओषद रूप हैं। शिव तत्व के रूप में विख्यात हैं और सब का कल्यान करने के लिए जगत में सुइस्थिर शिवलिंग के रूप में विद्धुमान हैं। ऐसी भावना क
प्रमिष्व शिव के लिंगमय मूर्ति के स्नान काल में जयजयकार आदि शब्द और मंगल पाठ करें। पंच गव्य, घी, दूद, दही, मद्दु और शर्करा के साथ फल मूल के सार्थ तत्व से, तिल, सर्षों, सत्तु के उपटन से, जो आदि के उत्तम बीजों से, उ
करके गरम जल से शिव लिंग को नहलाएं। लेप और गंध के निवारण के लिए विल्वपत्र आदि से रघड़ें। फिर जल से नहलाकर चक्रवर्ति सम्राठ के लिए उपयोगी उपचारों से, अर्थात सुगंधित तेल, फुलेल आदि के द्वारा सेवा करें। सु�
सब वस्तुओं से शिव लिंग अथवा शिव मूर्थि का भली भाथी शोधन करके, चंदन मिश्चित जल, खुश, पुष्प युक्त जल, स्वार्ण एवं रत्न युक्त जल तथा मंत्र सिद्र जल से करम से स्नान कराएं। इन सब द्रव्यों का मिलना संभवने होने पर
यथा संभव संग्रहित वस्तुओं से युक्त जल द्वारा अथवा केवल मंत्रा भी मंत्रित जल द्वारा शद्धा पूर्वक शिव को स्नान कराएं।
कलश, शंघ और वर्धनी से तथा कुष और पुष्प से युक्त हाथों के जल से मंत्रों चारण पूर्वक इष्ठ देवता को नहिलाना चाहिए।
पहुँ मानशुक्त, रुद्रसूक्त, नीलरुद्रसूक्त, त्वरित मंत्र, लिंगसूक्त, अधिसूक्त, अथरवशीर्ष रिगवेद्द्ध साम्वे तथा शिव सम्मन्धी शान आदि, पंचवर्म्म मंत्र, शिव मंत्र तथा बढ़णोव से देव देविश्वर-�
शिव को स्नान कराएं। जैसे महादेव जी को स्नान कराएं उसी तरह महादेवी पार्वटी philosophie जी को
स्नान आदि कराना चाहिए। उन दोनों में कोई अंतर नहीं है। क्योंकि वे दोनों सर्वथा समान हैं।
पहले महादेव जी के उदेश्च से स्नान आदी क्रिया करके फिर देवी के लिए उनहीं देवादी देव के आदेश से सब कुछ करें
अर्धनारिश्वर की पूजा करनी हो तो उसमें पूर्वाव पर का विचार नहीं
अतहे उसमें महादेव और महादेवी की साथ-साथ पूजा होती ही रहती है
शिवलिंग में या अन्यत्र, मूर्ति आदी में अर्धनारिश्वर की भावना से
सभी उपचारों का शिव और शिवा के लिए एक साथ ही उप्योग होता है
पवित्र सुगंधे जल से शिवलिंग का अभिशेक करके उसे वस्तर से पौचे
फिर नूतन वस्तर एवं यग्य पविच चड़ावे
तत्पश्याद पाध, आच्मन, अर्घ, गंध, पुष्प, आभूषण, धूप, दीप, नैवेद्य, पीने योग जल, मुक्ष शुद्धी, पुनराचमन, मुक्ष वास्तता संपून रत्नों से जटित सुन्दर मुकुठ, आभूषण, नाना प्रकार की पवित्र पु�
पंखा और दर्पन देकर सब प्रकार की मंगल मैई वाद ध्वनियों के साथ इष्ट देव की निराजना करें, आर्थी उतारें, उस समय गीत और नत्य आदी के साथ जैजयकार भी होनी चाहिए, सोना, चांदी, तामबा अथवा मिट्टी के सुन्दर पात्र में कमल आदी
नामक शंख विशेष, सुखे गोबर की आग, श्रीवत्स, स्वास्तिक, दर्पन, वज्र तथा अगनी आदी से चिन्हित पात्र में आठ दीपक रखें, वे आठों आठ दिशाओं में रखें और एक नवा दीपक मद्दे भाग में रखें, इन नव दीपकों में वामा आ
पुद्रा दिखा कर दोनों हातों से पात्र को उपर उठाएं अथवा पात्र में क्रमश है, पांच दीप रखें, चार को चारों कोनों में और एक को बीच में इस्थाफित करें, तथ पस्चाद उस पात्र को उठाएं शिव लिंगया, शिव मूर्ती आदी के उपर क्रम�
से तीन बार प्रदक्षिन क्रम से घुमाएं और मूल मंत्र का उचारण करता रहें तदंतर मस्तक पर अर्गोर सुगंधित भस्म चढ़ाएं फिर पुष्पांजली देकर उपहार निविधन करें उसके बाद जल देकर आच्मन कराएं फिर सुगंधित द्रव्यों से युक्
तो पांच ताम्बूल भेट करें तद पश्चात प्रोक्षनीय पदार्थों का प्रोक्षन करके नित्य और गीत का आयुजन करें
लिंग्या मूर्ती आदि में शिव तथा पारवती का चिंतन करते हुए यथाशक्ती शिव मंत्र का चप करें
जबके पश्चात प्रदिक्षणा, नमस्कार, इस्तुती पाठ, आत्मसमर्पन तथा कारिय का विने पूर्व विज्ञापन करें
फिर अर्ग और पुष्पांजली दे विधिवत मुद्रा बांध कर ईश्ट देव से तुरूटियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें
पुजन करना चाहि है अत्वा अर्ड आदि से पुजन आरम करना चाहिए
या आधिक संकट की स्तती में प्रेम पूर्वक केवल फूल मात्र चला देने चाही
प्रेम पूर्वक फूल मात्र चला देने से ही परम धर्म का संपादन हो जाता है
जब तक प्राण रहे शिव का पूजन किये बिना भोजन ना करे
बोले शिव शंकर भगवाने की जै
तो प्रिये भक्तो इस प्रकार यहाँ पर
शिव महापुराण के बायविय सहीता उतरखन की एक अथा
और चोवीसमा अध्या यहाँ पर समाप्त होता है
तो स्नेह से बोली बोले शिव शंकर भगवाने की जै
आदर सम्मान के साथ बोली
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय