Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिए शिवशंकर भगवान की जय प्रिय भक्तु शिष्यु महापुरान के वायविय सहिता उत्तरखंड की अगली कथा है
साधक संसकार और मंत्र महात्म का वर्ण
तो आईए भक्तु आरंब करते हैं इस कथा के साथ उन्नीस वाध्या है
उपमन्यू कहते हैं
हे यदुनन्दन अब मैं साधक संसकार और मंत्र महात्म का वर्णन करूँगा
इस बात की सूचना मैं पहले दे चुका हूँ
पूर्वत मंडल में कलश पर इस्थापित महादेव जी की पूजा करने के पश्चात हवन करें
फिर नंगे सेर शिष्य को उस मंडल के पास भूमी पर बिठावें
ओनाहुती होम परियंत सब कारिये पूर्वत करके मूल मंत्र से सो आहुतियां दें
स्रेष्ट गुरु कलशों से मूल मंत्र के उच्चारन पूर्वक तरपन करके संधीपन कर्म करें
फिर कमशे पूर्वक्त कर्मों का संपाधन करके अभिशीक करें
तत्वश्यात गुरु शिष्य को उत्तम मंत्र दे
वहां विधोप देशांत सब कारे विस्तार पूर्वक संपाधित करके
पुष्प युक्त जल से शिष्य के हाथ पर शैवी विध्या को समर्पित करें
और इस प्रकार कहें
सोम्य
यह महा मंत्र परमिश्व शिव के कृपा प्रसाद से तुमारे लिए
एह लोकिक तथा पारलोकिक संपूर्ण सिद्धियों के फल को देने वाला हो
ऐसा कहें मादेव जी की पूजा करके उनकी आग्या ले
गुरु साधक को साधन और शिव योग का उपदेश दे
गुरु के उस उपदेश को सुनकर मंत्र साधक शिष्य
उनके सामने ही विनियोग करके मंत्र साधन आरंब करे
मोल मंत्र के साधन को पुरश्चरण कहते हैं
क्योंकि विनियोग नामक करम सबसे पहले आचरण में लाने योग है
यही पुरश्चरण शब्द की उतपत्ती है
मुक्षु के लिए मंत्र साधन अत्यंत कर्तव्य है
क्योंकि किया हुआ मंत्र साधन इह लोक और परलोक में साधक के लिए कल्यान दायक होता है
शुब दिन और शुब देश में निर्दोश समय में दात और नक साफ करके अच्छी तरह स्नान करें
और पूर्वाहन कालिक कर्त पून करके यथा प्राप्त गंध, पुष्प माला तथा अभूशनों से अलंक्रित हो
सिर पर पगड़ी रख, दुपट्टा ओड, पून ते श्वेत वस्त धार्ण कर देवाले में, घर में या किसी
और पवित्र तथा मनोहर देश में पहले से अभ्यास में लाए गए
सुखासन से बैठकर शिव शास्त्रोक्त पद्यति के अनुसार अपने शरीर को शिव रूप बनाए
फिर देव देविष्वर, नकुलिष्वर शिव का पूजन करके उन्हें खीर का नयवेध्य अर्पित करें
क्रमश है उनकी पूजा पूरी करके उन प्रभु को प्रणाम करें
और उनके मुख से आग्या पाकर एक करोड, आधा करोड अथवा चोथाई करोड शिव मंत्र का जब करें
अथवा बीस लाख या दस लाख जब करें
उसके बाद से सदा खीर एवं क्षार, नमक रहित अन्य पदार्थ का दिन रात में केवल एक बार भूजन करें
अहिंसा, क्षमा, शम, उनो निग्रह, दम, इंद्रिय सैयम का पालन करता रहें
खीर न मिले तो फल, मूल आधी का भूजन करें
भगवान शिव ने निम्नांकित भूज्य पदार्थों का विधान किया है
जो उत्तोतर श्रिष्ट है
पहले तो चरू भक्षन करने योग्य है
उसके बाद सत्तु के कण, जो के आटे का हलुआ, साग, दूद, दही, घी, मूल, फल और जल
ये आहार के लिए विहित है
इन भक्ष भोज्य आधी पदार्थों को मूल मंत्र से अभीमंत्रित करके
प्रति दिन मौन भाव से भूजन करें
इस साधन में विशेष रूप से ऐसा करने का विधान है
व्रती को चाहिए कि 108 मंत्र से अविमंत्रित किये हुए पवित्र जल से स्नान करें
अथवा नदी नद के जल को यदा शक्ती मंत्र जप्त के द्वारा
अविमंत्रित करके अपने शरीर का प्रोक्षन कर ले
प्रति दिन तरपन करें और शिवागनी में आहुती दे
हवनी ये पदार्थ साथ पांच या तीन द्रव्यों के मिश्रण से तियार करे
अथवा केवल घर्ट से ही आउती दे
जो शिव भक्त साधक इस प्रकार भक्ती भाव से शिव की साधना या आराधना करता है
उसके लिए इहलोक और परलोक में कुछ भी दुरलब नहीं है
अथवा परती दिन बिना भोजन किये ही एक आगरचित हो एक सहस्त्र मंत्र का जप किया करे
मंत्र साधना के बिना भी जो ऐसा करता है उसके लिए नहीं तो कुछ दुरलब है और नहीं कहीं उसका अमंगल ही होता है
वह इस लोक में विध्या, लक्ष्मी तथा सुख पाकर आंत में मौक्ष पाप्त कर लेता है
साधन विनियोग तथा निध्य नमित्तिक कर्म में क्रमशह चल से, मंत्र से और भस्म से भी स्नान करके
पवित्र शिखा बांध कर, यग्यो पवीत धारन कर, कुछ की पवित्री हाथ में ले, ललाट में त्रिपुंड लगा कर, रुद्राक्ष की माला लिये पंचाक्षर मंत्र का जब करना चाहिए
भोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
प्रिये भक्तों, शिश्यु महा पुरान की वाइविय सहिता उत्तर्खन की ये कथा और उन्निस वाध्या यहाँ पर समाप्त होता है
भोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
सने से बोली, ओम नमह शिवाय