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Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-19

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Kailash Pandit

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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-19

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिए शिवशंकर भगवान की जय प्रिय भक्तु शिष्यु महापुरान के वायविय सहिता उत्तरखंड की अगली कथा है
साधक संसकार और मंत्र महात्म का वर्ण
तो आईए भक्तु आरंब करते हैं इस कथा के साथ उन्नीस वाध्या है
उपमन्यू कहते हैं
हे यदुनन्दन अब मैं साधक संसकार और मंत्र महात्म का वर्णन करूँगा
इस बात की सूचना मैं पहले दे चुका हूँ
पूर्वत मंडल में कलश पर इस्थापित महादेव जी की पूजा करने के पश्चात हवन करें
फिर नंगे सेर शिष्य को उस मंडल के पास भूमी पर बिठावें
ओनाहुती होम परियंत सब कारिये पूर्वत करके मूल मंत्र से सो आहुतियां दें
स्रेष्ट गुरु कलशों से मूल मंत्र के उच्चारन पूर्वक तरपन करके संधीपन कर्म करें
फिर कमशे पूर्वक्त कर्मों का संपाधन करके अभिशीक करें
तत्वश्यात गुरु शिष्य को उत्तम मंत्र दे
वहां विधोप देशांत सब कारे विस्तार पूर्वक संपाधित करके
पुष्प युक्त जल से शिष्य के हाथ पर शैवी विध्या को समर्पित करें
और इस प्रकार कहें
सोम्य
यह महा मंत्र परमिश्व शिव के कृपा प्रसाद से तुमारे लिए
एह लोकिक तथा पारलोकिक संपूर्ण सिद्धियों के फल को देने वाला हो
ऐसा कहें मादेव जी की पूजा करके उनकी आग्या ले
गुरु साधक को साधन और शिव योग का उपदेश दे
गुरु के उस उपदेश को सुनकर मंत्र साधक शिष्य
उनके सामने ही विनियोग करके मंत्र साधन आरंब करे
मोल मंत्र के साधन को पुरश्चरण कहते हैं
क्योंकि विनियोग नामक करम सबसे पहले आचरण में लाने योग है
यही पुरश्चरण शब्द की उतपत्ती है
मुक्षु के लिए मंत्र साधन अत्यंत कर्तव्य है
क्योंकि किया हुआ मंत्र साधन इह लोक और परलोक में साधक के लिए कल्यान दायक होता है
शुब दिन और शुब देश में निर्दोश समय में दात और नक साफ करके अच्छी तरह स्नान करें
और पूर्वाहन कालिक कर्त पून करके यथा प्राप्त गंध, पुष्प माला तथा अभूशनों से अलंक्रित हो
सिर पर पगड़ी रख, दुपट्टा ओड, पून ते श्वेत वस्त धार्ण कर देवाले में, घर में या किसी
और पवित्र तथा मनोहर देश में पहले से अभ्यास में लाए गए
सुखासन से बैठकर शिव शास्त्रोक्त पद्यति के अनुसार अपने शरीर को शिव रूप बनाए
फिर देव देविष्वर, नकुलिष्वर शिव का पूजन करके उन्हें खीर का नयवेध्य अर्पित करें
क्रमश है उनकी पूजा पूरी करके उन प्रभु को प्रणाम करें
और उनके मुख से आग्या पाकर एक करोड, आधा करोड अथवा चोथाई करोड शिव मंत्र का जब करें
अथवा बीस लाख या दस लाख जब करें
उसके बाद से सदा खीर एवं क्षार, नमक रहित अन्य पदार्थ का दिन रात में केवल एक बार भूजन करें
अहिंसा, क्षमा, शम, उनो निग्रह, दम, इंद्रिय सैयम का पालन करता रहें
खीर न मिले तो फल, मूल आधी का भूजन करें
भगवान शिव ने निम्नांकित भूज्य पदार्थों का विधान किया है
जो उत्तोतर श्रिष्ट है
पहले तो चरू भक्षन करने योग्य है
उसके बाद सत्तु के कण, जो के आटे का हलुआ, साग, दूद, दही, घी, मूल, फल और जल
ये आहार के लिए विहित है
इन भक्ष भोज्य आधी पदार्थों को मूल मंत्र से अभीमंत्रित करके
प्रति दिन मौन भाव से भूजन करें
इस साधन में विशेष रूप से ऐसा करने का विधान है
व्रती को चाहिए कि 108 मंत्र से अविमंत्रित किये हुए पवित्र जल से स्नान करें
अथवा नदी नद के जल को यदा शक्ती मंत्र जप्त के द्वारा
अविमंत्रित करके अपने शरीर का प्रोक्षन कर ले
प्रति दिन तरपन करें और शिवागनी में आहुती दे
हवनी ये पदार्थ साथ पांच या तीन द्रव्यों के मिश्रण से तियार करे
अथवा केवल घर्ट से ही आउती दे
जो शिव भक्त साधक इस प्रकार भक्ती भाव से शिव की साधना या आराधना करता है
उसके लिए इहलोक और परलोक में कुछ भी दुरलब नहीं है
अथवा परती दिन बिना भोजन किये ही एक आगरचित हो एक सहस्त्र मंत्र का जप किया करे
मंत्र साधना के बिना भी जो ऐसा करता है उसके लिए नहीं तो कुछ दुरलब है और नहीं कहीं उसका अमंगल ही होता है
वह इस लोक में विध्या, लक्ष्मी तथा सुख पाकर आंत में मौक्ष पाप्त कर लेता है
साधन विनियोग तथा निध्य नमित्तिक कर्म में क्रमशह चल से, मंत्र से और भस्म से भी स्नान करके
पवित्र शिखा बांध कर, यग्यो पवीत धारन कर, कुछ की पवित्री हाथ में ले, ललाट में त्रिपुंड लगा कर, रुद्राक्ष की माला लिये पंचाक्षर मंत्र का जब करना चाहिए
भोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
प्रिये भक्तों, शिश्यु महा पुरान की वाइविय सहिता उत्तर्खन की ये कथा और उन्निस वाध्या यहाँ पर समाप्त होता है
भोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
सने से बोली, ओम नमह शिवाय

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