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Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-31

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran vayaviya sanhita uttar khand adhyay-31 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran vayaviya sanhita uttar khand adhyay-31 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-31 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-31

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवाने की जए!
प्रिये भगतों,
शिशिव महा पुरान के वाईविये सहिता उत्तरखंड की अगली कथा है
शिव के पांच आवरणों में स्थित सभी देवताओं की स्तुति
तथा उनसे अभिष्टपूर्ती एवं मंगल की कामना।
तो आईए भगतों,
आरंब करते हैं इस कथा के साथ एक अतीस्मा अध्याय।
उप्मन्यू रुआच्।
इस्त्रोतं वक्षामिते क्रश्नं पंचावरण मार्गतः
योगेश्वर्मिदं पुन्यं कर्म येन समाप्ययते।
उप्मन्यू कहते हैं।
हे श्री क्रेश्न,
अब मैं तुम्हारे समक्ष पंचावरण मार्ग से
किये जाने वाले इस्त्रोत का वर्णन करूँगा।
जिससे ये योगेश्वर नामक पुन्य कर्म पूर्ण रूप से संपन्य होता है।
जय जय जगदेक नाथ शंभु प्रकर्ती मनोहर नित्य चित्य स्वभाव।
अतिगत कलुष्य प्रपंच बाचा
मपीमन साम पदवी मतीत तत्वं।
जगद के एक मात रक्षक नित्य चिन्मे स्वभाव
प्रकर्ती मनोहर शंभु।
स्वभाव निर्मिला भोग जय सुन्दर चेष्टितः।
स्वात्म तुल्य महाशक्ते जय शुध्य गुणार्नव।
अनन्त कान्ति संपन्य जया सद्रिश्य विग्रह।
आप अनन्त कान्ति से संपन्य हैं,
आपके श्रीविग्रह की कहीं तुल्णा नहीं है।
आपकी जय हो। आप अतर्ग महिमा के आधार हैं,
तत्वा शान्ति में मंगल के निकेतन हैं। आपकी जय हो।
निरंजन,
निर्मल,
आधार रहित
तथा बिना कारण के प्रकट होने वाले शिव।
आपकी जय हो।
निरंदर परमाननद में शान्ति और सुख के कारण आपकी जय हो।
अतीशे उत्किष्ट एश्वरिय से सुशोभित
तथा त्यंत करणा की आधार
आपकी जय हो।
हे प्रभू,
आपका सब कुछ स्वतंतर है तथा आपके वैभव की कहीं समता नहीं है।
आपकी जय हो। जय हो।
जयावृत्महाविश्व जयानावृत्किनचित जयोत्तरसमस्तस्य जयात्यंतनिरुत्तरह
आपने विराठ विश्व को व्याप्त कर रखा है,
किन्टु आप किसी से भी व्याप्त नहीं है।
जयादभुत् जयाक्षुद्र जयाक्षत जयाव्यय जयामेय जयामाय जयाभव जयामला
आपकी जय हो,
आप
अक्षुद्र महान हैं,
आपकी जय हो,
आप अक्षत
निर्विकार हैं,
आपकी जय हो,
आप अविनाशी हैं, आपकी जय हो,
एपरमेय परमात्मन आपकी जय हो,
माया रहित महेश्वर आपकी जय हो,
अजन्माशिव आपकी जय हो,
निर्मलशंकर आपकी जय हो,
महा भुज महा सार, महा गुण महा कथ,
महा बल महा माय, महा रस महा रथ,
महा भाव,
महा सार,
महा गुण,
महती,
कीरती कथा से यूप्त,
महा बली,
महा मायावी,
महान रसिक तथा महा रथ,
आपकी जय हो.
नमहैं परमदेवाय नमहाः परमहेतवे,
नमहाः शिवाय शान्ताय नमहाः शिवतरायते,
आप परमाराद्धे को नमसकार है,
आप परमकारण को नमसकार है,
शान्त शिव को नमसकार है,
और आप परमकल्यान में प्रभू को नमसकार है.
देवताओं
और असुरों सहीथ यह सम्पून जगत आपकी अधीन है,
अतेहें आपकी आज्या का उलंगन करने में कौन समर्थ हो सकता है?
हे सनातन देव,
यह सेवक एक मातर आपके ही आश्चित है,
अतेहें आप इसपर अनुग्रह करके
इसे इसकी
प्रार्थित वस्तु प्रदान करें.
हे अम्बिके,
हे जगन मातर,
आपकी जै हो,
हे सर्व जगन में ही
आपकी जै हो,
असीमिश्वरे शालिनी,
आपकी जै हो,
आपके श्रीविग्रह की कहीं उपमा नहीं है,
आपकी जै हो.
मन वानी से अतीत शिवे,
आपकी जै हो,
अग्यान अंधकार का बंजन करने वाली देवी,
आपकी जै हो,
जन्म और जरा से रहित उमे,
आपकी जै हो,
पाल से भी अतीशे उत्कृष्ट,
शक्ती भाली दुर्गे,
आपकी जै हो,
जयाने के विधानस्थे, जय विश्विश्वर प्रिये,
जय विश्व सुराराध्ये,
जय विश्व विज्ज्रीम्भिनी,
आपकी जै हो,
समस्त देवताओं की आराधनिया देवी,
आपकी जै हो,
सम्पून विश्व का अविस्थार करने वाली जगदंभी के,
आपकी जै हो,
मंगल मैं दिवं अंगोवाली देवी,
आपकी जै हो,
मंगल को प्रखाशीत करने वाली, आपकी जै हो,
मंगल मैं चरित्र वाली सर्व ratulations,
आपकी जै हो,
मंगल दाईनी आपकी जै हो,
त्वत्ततः खलूसं उत्पन्नं जगत्येवलियते
परमकल्यान में गुणों की आप मूर्ती हैं,
आपको नमस्कार हैं.
सम्पून जगत आपसे ही उत्पन्न हुआ है,
अते आपमे ही लीन होगा.
त्वत्वीनातः फलं दातूमिश्वरो अपीन शक्नुयात।
जन्मप्रभृती देवेशी जनोयं तदू पारशित हैं।
अतो अस्य तव भक्तस्य निर्वर्तये मनोरतं।
हे देवेश्वरी,
अते आपके बिना ईश्वर भी फल देने में समर्थ नहीं हो सकते।
यह जन्मकाल से ही आपकी शरण में आया हुआ है। अते है देवी,
आप अपने इस भक्त का मनोरत सिध्ध कीजिए।
हे प्रभु,
आपके पाँच मुख और दस्व बुजाएं हैं।
आपकी अंग कान्ती शुद्ध स्वठिक मनी के समान निर्मल है।
वर्ण,
ब्रह्म और कला आपके विग्रह रूप हैं।
आप सकल और निशकल देवता हैं।
शिव मूर्ती में सदा व्याप्त रहने वाले हैं।
शान्त तीत पद में विराजवान सदा शिव आप ही है।
मैंने भक्ती भाव से आपकी अर्चना की हैं।
आप मुझे पार्थित कल्यान प्रदान करें।
सदा शिव के अंक में आरुड इच्छा शक्ती स्वरूपा
सर्वलोक जननी शिवा
मुझे मनो वान्चित पस्तु पढ़ान करें।
शिव योर्द यितो पुत्रो देवो हेरंब शनमुखो
शिवानुभावो सर्वज्यो शिव ज्ञानां अम्रताशिणो।
तृप्तो परस्परं सनिग्धो शिवां भयां नित्य सत्कृतो सत्कृतो चै सदा
देवो ब्रह्मधैस्त्रिद शेरपी सर्वलोक परीत्रानं करतुभ्यो दितो सदा
शिव और पारवती के प्रिय पुत्र
शिव के समान प्रभावशाली सर्वज्य तथा शिव ज्ञानां
अम्रत का पान करके तृप्त करने वाले देवता गनेश
और कार्ति के
परसपर स्नेही रखते हैं,
शिवा और शिव दोनों से सत्कृत हैं
तथा
ब्रह्मा अधी देवता भी इन दोनों देवों का सरवता सत्कार करते हैं
ये दोनों भाई निरंतर संपून लोकों की रख्षा करने के लिए उधथत रहते हैं
और विभिन अंशों द्वारा अनेक बार सुईच्छा पूर्वक अवतार धारन करते हैं
वे ही ये दोनों बंधु शिव और शिवा के पार्शो भाग
में मेरे द्वारा इस परकार पूजित हों उन दोनों की
आज्या ले प्रति दिन मुझे पार्थित वस्तु प्रदान करें
जो शुद्ध
पहले
शक्ति के साथ पूजित हैं वे पवित्र परब्रम्म
मुझे मेरी अविश्ट वस्तु प्रदान करें
बाल सूर्य प्रतीकाशं पुर्शाक्यं पुरातनं
पूर्वक्ताभिमानं च सिवस्य परमेश्ठिनः
शान्तयात्मकं उम्मरुत संस्थतं शंभोह पादार चनेरतं
प्रधमं शिव बीजेशु कलासुचे चतुष्कलं
पूर्वभागे मया भक्तया शक्तया से समर्चितं
जो प्राते काल के सूर्य की भाती अरुन प्रभासे युक्त
पुरातन्तत पुरुश नाम से विख्यात
परमेश्ठी शिव के
पूर्वर्ती मुख का अभिमानी
शांती कला स्वरूप या शांती कला में प्रतिष्ठित
वायुमंडल में इस्थित शिव चर्णार चन परायन
शिव के बीजों में प्रथम और कलाओं में चार कलाओं से युक्त हैं
अन्जनादि प्रतीकाश्यम घोरं घोर विग्रहं
देवस्य दक्षिनं वक्त्रं देवदेव पदार्चकं
जो वञ्जन आदि के समान्शाम
घोर शरीर वाला एवं अगोर नाम से प्रसिद्ध हैं
महादेव जी के दक्षिन मुक्का भिमानी तथा
देवादि देव शिव के चर्णों का पूजक है
विध्या कला परारुड और अगनी मंडल के मद्ध विराजमान है
शिव बीजों में द्विर्थिये तथा कलाओं में अश्ट कला युक्त
एवं भगवान शिव के दक्षिन भाग में शक्ती के स्थात पूजित
है वह पवित्र परब्रम मुझे मेरी अभिष्ट वस्तु परदान करें
प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठतं वारी मंडल मध्यस्थं महादेवार्चनेरतं
तुरियं शिव बीजेशु त्रियोधशकलान्वितं देवस्योत्तरदिगभागे
शक्तयासेह समर्चितं पवित्रं परंब्रम्पार्थितं में प्रयच्छतु
जो कुमकुम चूर्ण अथ्वा केसर युक्त चंदन के समान रक्त
पीत वर्ण वाला
सुन्दर वेशधारी और वामदेव नाम से प्रिशिद है
भगवान शिव के उत्तरवर्ती मुख का अभिमानी है
प्रतिष्ठा कला में प्रिश्ठित है जल के मंडल में
विराज्मान तथा महादेव जी की अर्चना में तत्पर है
शंख कुन्देन्दु धवलं सध्याक्यं सोम्य लक्षणं
शिवस्य पश्चिमं वक्त्रं शिव पाधार्चने रतं
निवित्ति पदनिष्ठम्च पृत्विव्याम् सम्वस्थितं
तृत्यम् शिव बीजेशु कला भिष्चाष्ट भीर युतं
देवस्य पश्चिमे भागे शक्तयासेह समर्चितं
पवित्रं परंब्रंब्रंभार्थितं में प्रयच्छतू
जो शंख,
कुंद और चंद्रमा के समान धवल सोम में तथा सधो जात नाम से विख्यात है
भगवान शिव के पश्चिम मुख का भिमानी एवं शिव चरणों की अर्चना में रत है
निवित्ति कला में प्रतिष्ठित तथा
पृत्थि मंडल में स्थित है
शिव बीजों में तरतिय आठ कलाओं से युक्त और महादेव
जी के पश्चिम भाग में शक्ति के साथ पूजित हुआ है
वह पवित्र परब्रह्म मुझे ही मेरी पार्थित वस्तु दे
शिव और शिवा की हिर्दै रूपी मूर्तिया
शिव भाव से भावित हुआ
उनहीं दोनों की आज्या शिरोधार्य करके मेरा मनुरत पून करें
शिव और शिवा की शिखा रूपा मूर्तिया शिव के ही आश्चित रहकर
उन दोनों की आज्या का आधर करके मुझे मेरी अभेष्ट वस्तु पुरदान करें
शिव और शिवा की कवच रूपा मूर्तिया
शिव भाव से भावित हुआ
शिव पार्वती की आज्या का सतकार करके मेरी कामना सफल करें
शिव और शिवा की नित्र रूपा मूर्तिया शिव के
आश्चित रहकर उन ही दोनों की आज्या शिरोधारिय करके
मुझे मेरा मनूरत प्रदान करें
शिव और शिवा की अस्तर रूपा मूर्तिया नित्र
उनहीं दोनों की अर्चन में तत्पर रहें
उनकी आज्या का सतकार करती हुई मुझे मेरी अभीष्ट वस्तु प्रदान करें
वाम जेष्ट रुद्र काल विकरण बलविकरण बलप्रमधन
तथा सर्वभूत दमन
ये सब शिव और शिवा के ही शासन से मुझे तार्थित वस्तु प्रदान करें
अधारंतश्च सुखश्मष्च शिव श्चापय एक नेट्रकह एहरोचन प्रेप्याण
ये सब शिव और शिवा के ही शासन से मुझे तार्थित वस्तु प्रदान करें।
अनन्त शुक्स्म शिव अथवा शिवथम
एक नेत्र एक रुद्र त्रिमूर्ति
श्री कंठ और शिखंडि
याट विद्विश्व तथा इनकी वैसी ही आट शक्तियां।
अनन्त शुक्स्म शिव अथवा शिवथम एक नेत्र एक
रुद्र त्रिमूर्ति श्री कंठी और शिखंडि याट
जिनकी दुटियावरण में पूजा हुई है।
शिवा और शिव के ही शासन से मेरी मनु कामना पूर्ण करें।
भवाधा मूर्त यश्चास्तो
तासामपीचे शक्तयह।
महादेवाधयश्चान्ये
तथेकादश मूर्तये।
शक्ति भी है संयिताह सर्वेत्रित्यावर्णे स्थिताह।
भवाधी आठ मूर्तियाँ और उनकी शक्तियां तथा शक्तियों सहित
महादेवाधी ग्यारे मूर्तियां जिनकी इस्थती तीसरे आवरण में है।
शिव और पार्वती की आज्या शिरोधारिय करके मुझे अभीश्ट फल प्रदान करें।
मेरुमंदर केलास हिमाद्री शिखरूपमः।
सिताब्रशिखर आकार कुकदा परिशोभितः।
महाभोगिंद्र कलपेन वालेन चेविराजितः।
रक्तास्य श्रिंग चर्णो रक्त प्राय विलोचनः।
प्रशस्त लक्षनः श्रीमान प्रजल्न्न बनिभूषनः।
शिव प्रियः शिवासक्तः शिव योर्ध्वज्जवाहनः।
तथा तच्छरन्यास पावितार परविग्रः।
जो व्रश्वों के राजा
महा तेज़स्वी महान वेग के समान शब्द करने वाले
मेरु, मंद्राचल,
कैलास और हिमाले के शिकर की भाती उंचे एवं उज्जवल वर्ण वाले हैं।
श्वीत बादलों के शिकर की भाती उंचे कुगद से शोबित हैं।
महा नागराज शीश के शरीर की भाती पूच जिनकी शोभा बढ़ाती है।
जिनके मुख,
सींग और पैर भी लाल हैं,
नेत्र भी प्रायलाल ही हैं।
जिनके सारे अंग मोटे और उन्नत हैं,
जो अपनी मनोहर चाल से बड़ी शोभा पाते हैं।
जिनमें उत्तम लक्षन विद्धमान हैं,
जो चमचमाते हुए मनी में आभूशनों से विभूशित हो,
अत्यंत दीपती मान दिखाई देते हैं।
जो भगवान शिव को प्रीय हैं,
और शिव में ही अनुरक्त रहते हैं।
शिव और शिवा दोनों के ही जो ध्वज़ और वाहन हैं
तत्हा उनके चर्णों के सपर्श से जिनका प्रिष्ट भाग
परम पवित्र हो गया है।
जो गोवों के राजपुरुष हैं,
जो स्चेष्ट और चमकीला तृशूल धारन करने वाले नन्धिकेश्वर,
ब्रशब,
शिव और शिवा की आग्या शिरोधार्य करके मुझे अभिष्ट वस्तु परदान करें।
नन्धिकेश्वरो महातेजा नगिंद्रतने आत्मजः सनारायन कैर
देवेर नित्यं भयर्च वंदितः सर्वशयांतः पुर्द्वारी
सार्धं परिजने है स्थितः सर्वेश्वर संप्रक्यः सर्वासूर्विमर्धनः।
सर्वेशामशिरधर्मानामध्यक्षत्वे अभिषेचितः।
शिवप्रियः शिवासक्तः श्रीमच्छूलवरायुधः।
शिवास्रितेशु संसक्त इस्त्वनरुरक्तश्चेतेरपि।
सत्कृत्यः शिवयोराज्याम सेमेकामं प्रयच्छतु।
जोगिरी राजनननी पार्वती के लिए पुत्र की तुल्ल प्रियें हैं।
श्री विश्णु आधी देवताओं द्वारा नित्य पूजित एवं मंदित हैं।
भगवान शंकर की अंतहःपुर के द्वार पर परीजणों के साथ खड़े रहते हैं।
सरविश्वर शिव के समान ही तेजश्वी हैं तथा
समस्त असुरों को कुछल देने की शक्ती रखते हैं।
शिव धर्म का पालन करने वाले सम्पून शिव
भक्तों के अध्यक्ष पद पर जिनका अभिशेक हुआ है,
जो भगवान शिव के प्रिये
शिव में ही अनुरक्त तथा तेजश्वी तिरशूल
नामक शीष्ट आयुद्ध धारन करने वाले हैं।
भगवान शिव के शर्णागत
भक्तों पर जिनका स्ने है तथा शिव भक्तों का भी जिन में अनुराग है,
महाकालो महाभाहूर महाधेव इवापरह
महाधेवाश्रीतानाम् तू निथ्यमेवाभिरक्षतू।
दूसरे महाधेव के समान महातेजस्वी महाभाहूर महाकालो
महाधेव जी के शर्णागत भक्तों की निथ्यही रक्षा करें।
शिव प्रियः शिवासक्तः शिवयोरचकः सदा सत्क्यत्यः
शिवयोराज्याम् सेमेधिष्तूकांक्षितम्।
वे भगवान शिव के प्रिये हैं। भगवान शिव में उनकी आसक्ती हैं
तथा वे सदा ही शिव तथा पारवती के पूजक हैं।
इसलिए शिवा और शिव की आज्या का
आधर करके मुझे मनवानच्छित वस्तु पुरदान करें।
सर्वशास्तार्थ तत्वज्यः शास्ताविश्नो परातनुह। महामोहात्मनयो
मधूमान्सासवप्रियः। तयोराज्यां पुरुष्क्यतं सेमेकामं प्रियच्छतू।
जो सम्पून शास्त्रों के तात्विक अर्थ के ग्याता,
बगवान विश्णों के दूत्य स्वरूप,
सब के साशक तथा महामोहात्मा कद्रु के पुत्र है,
मधू,
फल का गूदा
और आसव जिने प्रिय है।
वेनागराज भगवान शेष शिव और पारवती की आग्या
को सामने रखते हुए मेरी इच्छा को पूर्ण करें।
ब्रह्मानी,
महिश्वरी,
कोमारी,
वेश्णवी,
बाराही,
महेंद्री तथा प्रचंड प्राकरम शाल्नी,
चामुण्डा देवी,
ये सर्वलोक जननी साथ माताई परमेश्वर शिव के
आदेश से मुझे मेरी प्रार्थित वस्तु प्रदान करें।
जिनका मत्वाले हाती का सार्व, मुख है,
जो गंगा, ऊमा और शिव के पुत्र हैं।
आकाश जिनका शरीर है,
दिशाएं,
भुजाएं हैं तथा चंड्रमा,
सूर्य और अगनी जिनके तीन नेत्र हैं।
एहरावत आदी दिव्वेदिग्जज
जिनके नित्य पूजा करते हैं,
जिनके मस्तक से शिव घ्यान में मदखी धारा बहती है,
जो देवताओं के विघन का निवारन करते हैं,
और असुर आदी के कारियों में विघन डालते रहते हैं,
वे विघन राजगनेश शिव से भासित हों,
शिवा और शिव की आज्या शिरुधार्य करके,
शिव प्रिये है,
शिव प्रिये है,
शिव प्रिये है,
जिन के छे मुख हैं,
भगवान शिव से जिन की उत्पत्य हुई है,
जो शक्ति और वज्ज्र धारन करने वाले प्रभु हैं,
भगनी के पुत्त तथा अपर्णा शिव के बालक हैं, गंगा,
गणामबा तथा कृतिकाओं के भी पुत्र हैं,
विशाक, शाक और नैगमेर
इन तीनों भाईयों से जो सदा घिरे रहते हैं,
जो इंद्र विजयी,
इंद्र के सेनापती तथा तारकासुर को परास्त करने वाले हैं,
जिनोंने अपनी शक्ति से मेरु आधी परवतों को छेद डाला है,
कुमार नाम से जिनकी प्रसिद्धी है जो
सुकुमारों के रूप के सबसे बड़े उधारन हैं,
शिव के पिरियें,
शिव में अनुरक्त तथा शिव चर्णों के नित्य अर्चना करने वाले हैं,
शिव और शिवा की आग्या शिरोधारिय करके मुझे मनुवानचित वस्तु दे।
जेष्ठा वरिष्ठा वर्दा शिव योर यजने रता
तयोर आग्या पुरुषकत्य सामे दिश्तू कांक्षितम।
सर्वशेष्ठ और वर्दायनी जेष्ठा देवी,
जो सदा भगवान शिव और पार्वती के पूजन में लगी रहती हैं,
उन दोनों की आग्या मानकर मुझे मनुवानचित वस्तु परदान करें।
त्रेलोक के वंदिता साक्षा दुलका कारा गणांबिका,
जगत शिष्टी वी विध्यवर्थम ब्रह्मनाभ्यव्धिताशिवात्,
शिवायाह प्रवी भक्ताया भुरूवों तर निस्रिता,
दाक्षायनी सतीमेना तथाहेमवतीम्भुमा,
कोशिक्याश्चेव जर्नी
भद्रकाल्यास्थतेव चै,
अपर्णाश्चेजर्नी पातलायास्थतेव चै,
त्रेलोग के वंदिता,
साक्षात उलकालुकाथी जैसी आकृतिवाली गणामभिका,
जो जगत की स्विष्टी वढ़ाने के लिए ब्रह्माजी के प्रार्थना करने पर
शिव के शरीर से प्रतक हुई,
शिवा के दोनों भहों के बीच से निकली थी,
जो दाक्षायनी
सतीमेना तथाहेमवान कुमारी उमा आधी के रूप में प्रसिद्ध हैं,
भोशी की बद्रकाली अपढ़ना और पाटला की जननी हैं,
नित्य शिवार्चन में तत्पर रहती हैं,
एमं रुद्रवल्भा रुद्रानी कहलाती हैं,
विश्व और शिवा की आज्या शिरोधारिय करके मुझे मनुवानचित वस्तु दें।
समस्त शिवगणों के स्वामी चंड जो भगवान शंकर के मुक से प्रगट हुए हैं,
शिवा और शिव की आज्या का आदर करके
मुझे अभीष्ट वस्तु प्रदान करें।
भगवान शिव में आसक
और शिव के प्रिये गनपाल श्रीमान पिंगल शिव
और शिवा की आज्या से ही मेरी मनो कामना पूंड करें।
शिव की आराधना में तत्पर रहने वाले ब्रंगिश्वद नामक गनपाल
अपने स्वामी की आज्या ले मुझे मनो वान्चित वस्तु प्रदान करें।
हिम कुंद और चंद्रमा के समान उज्ञवल,
भद्रकाली के प्रिये,
सदाही मात्रिगनों के रख्षा करने वाले,
उरात्मा दक्ष और उसके यग का सिर काटने वाले,
उपेंद्र,
इंद्र और यम आधी देवताओं के यंगों में घाओ कर देने वाले,
शिव के अनुचर तथा शिव की आज्या के पालक,
आतेजस्वी,
शिमान,
वीर,
भद्र,
शिव और शिवा के आधेश से ही मुझे मेरी मन चाही वस्तु दें,
सरस्वती महेशस्य वाक्स रोज समुध्वभवा,
शिव योह पूज नहीं सक्ता,
सामे दिश्टू कांक्षितम्,
महिश्वर के मुख कमल से पकट हुई,
तथा शिव पार्वती के पूजन में आसक्त रहने वाली,
वे सरस्वती देवी मुझे मनुवानचित वस्तु प्रदान करें,
विश्णोर वक्ष है स्थिता,
लक्ष्मी है शिव योह पूजने रता,
भगवान विश्णू के वक्ष है स्थल में इवराजमान,
लक्ष्मी देवी,
जो सदाशिव और शिवा के पूजन में लगी रहती हैं,
उन शिव दंपती के आधेश से ही
मेरी अभिलाशा पून हो,
महा देवी,
पार्वती के पाद पद्मों की पूजा में परायन,
महा मोटी,
उन ही की आज्या से मेरी मन चाही वस्तु मुझे दे,
पार्वती की सबसे शेष्ट पुत्री,
सिंग वाहनी कोशी की,
भगवान विश्णू की योग निद्रा महा माया,
महा महिश मरदनी,
महा लक्ष्मी तथा मधु और फलों के गूदे
तथा रस को प्रेम पूर्वक भोग लगाने वाली,
निशुंब शुंब संगारणी,
महा सर्स्वती माता पार्वती की आज्या
से मुझे मनो आउचित वस्तु प्रदान करे,
रुद्रा रुद्र संप्रक्याः प्रमधाः प्रतीतोजसः,
भूताख्याश्च महावीर्याः, महादेव संप्रभाः,
नित्यमुक्तानिरूपमाः,
निर्द्वन्दानिरूपपल्लवाः,
सशक्तयाः सानूचराः सर्वलोकन्मस्कृताः,
सर्वेशामेवलोकानां स्रश्ती संगरणंक्षमाः,
शिवकृताः शिवताः,
शिवकृताः शिवताः,
रुद्रदेव के समान तेजस्वी रुद्रगण्,
प्रक्ष्यात प्राक्रमी
प्रमद्गण तथा महादेव जी के समान तेजस्वी महावली भूतगण,
जो नित्य मुक्त उपमा रहित,
निर्द्वन्द,
उपद्रवशून्य,
शक्तियों और अनूचरों के साथ रहने वाले,
तर्वलोक वन्डित,
समस्तलोकों की सुश्टि और संघार में समर्थ,
परसपर एकदूसरे की अनुरक्त और भगत,
आपस में अध्यंत स्नेही रखने वाले,
जिन्नों से लक्षित
सोम्य घोर
उभय भाव युक्त दोनों के बीच में रहने वाले द्विरूप,
कुरूप,
सुरूप और नाना रूप धारी हैं
वे शिव और शिवा की आज्या का सतकार करते हुए मेरा मनूरत सिद्ध करें
देव्या प्रिये सखी वर्गो
देवी लक्षन लक्षितः सहितो रुद्र कन्याभिः शक्ति भिष्चापने कशः
देवी की प्रिये सखीओं का समुधाय
जो देवी के ही लक्षनों से लक्षित है और भगवान शिव के तीसरे आवरण में
रुद्र कन्यावं तथा अनेक शक्तियों सहित
निम्न भक्ति भाव से पूजित हुआ है
वह शिव पारवती की आज्या का सतकार करके मुझे मंगल प्रदान करें
एके सामान विक्रिय हाँ
असाधारन करमाचे स्रश्टी इस्ठित लेक्रमात्म
एवं तृधा चतुर्धा चे विभगते पंचधा पुनहां
चतुर्धा वर्णे शम्भो
पूजित अश्चानुगेह से है
भगवान सूर्य महिश्वर की मूर्ती हैं
उनका सुन्दर मंडल दीपती मान है
वे निर्गुन होते हुए भी कल्यान में गुणों से युक्त हैं
केवल सद्गुन रूप हैं निर्विकार सब के आदी कारण और एक मात्र अधित्ये हैं
यह सामान्य जगत उनहीं की सुष्टी है सुष्टी पालन और संगार के क्रम से
उनके कर्म असाधारन हैं
इस त्रहें वे तीन,
चार और पांच रूपों में भिभगत हैं
भगवान शिव के चोथे आवरण में अनुचरों सहित उनकी पूजा हुई है
वे शिव के प्रिय शिव में ही आसक्त
तथा शिव के चरणार विंदों की अरचना में तत्पर हैं
ऐसे सूर्य देव शिवा और शिव की हाग्या
का सत्कार करके मुझे मंगल प्रदान करें
विस्तरा सुत्रा बोधिन्या प्याया इन्य परापुन हां
ऊशा प्रभात तथा प्राज्या संध्याचेत्य यपी शक्तयः
सोमाधिकेतु परियंता ग्रहाष्चे शिव भावितः
शिव यो राज्या आनुना मंगलं प्रधिशंतुमे
अथवाद्वादशाधित्य अस्थताद्वादश शक्तय
रिश्यो देवे गंधर्वाः
पन्न गाप सर्सामगणाम ग्रामन्यस्चे तथा यक्षा राक्षशास्चे सुरास्थता
सूर्य देव से सम्मंद रखने वाले छहुं अंग
उनकी दीबता अधि आठ शक्तियां
आधित्य भासकर भानु रवी अर्क ब्रह्मा रुद्र तथा विश्णु
ये आठ आधित्य मूर्तियां और उनकी विस्तरा सुत्रा भोधनी
आप्याईनी तथा उनकी अतिरिक्त ऊशा प्रभा प्राज्या और संध्या
ये शक्तियां
अधित्य बाहरे अधित्य उनकी बाहरे शक्तियां
तथा रिशी देवता
गंधर्व नाग अपसराओं के समूँख
ग्रामनी अगुआ यक्ष राक्षस
ये साथ साथ संख्यावाले गण साथ चंदों में अश्व
वाल खिल आधि मुनी ये सब के सब भगवान शिव के चरण
ये लोग शिव और पारवती की आज्या का आधर करते हुई मुझे मंगल परदान करें
अविकारात्म को देवस्ततह साधारने पुरह असाधारन करमाचे स्रश्टी
इस्ठितले करमात एवं तुधा चतुर्धाचे विभकती है पंचधापुन
चतुर्धावर्ने शंभु पूजी तस्चे सहानुगे है शिव प्रिये शिवा सक्त हैं
ब्रह्मा जी,
देवादि देव महादेव जी की मूर्ती है,
भुमंणल की अधिपती है,
चोंसट गुनों के एश्वर्य से युक्त हैं
और बुध्धी तत्व में प्रतिश्ठित हैं,
वे निर्गुन होते हुए भी अनेक कल्यान में गुनों से संपन्य हैं,
सद्गुन समोह रूप हैं,
निर्विकार देवता हैं,
उनके सामने दूसरे सब लोग साधारन हैं,
सिश्टी पालन और संगार के क्रम से उनके सब कर्म असाधारन है,
इस तरह वे तीन,
चार,
एवं पांच आवरणों या स्वरूपों में विभक्त हैं,
भगवान शिव के चोथे आवरण में अनूचरों सहित उनकी पूजा हुई हैं,
वे शिव के प्रिये,
शिव में ही आसक्त,
तत्था शिव के चरणार विंदों की यर्चना में तत्पर हैं,
ऐसे ब्रह्मदेव,
शिवा और शिव की आज्या का सतकार करके मुझे मंगल परद
सनत कुमार हे सनकः सननन्दश्चे सनातनः
प्रिजानाम पतश्चेव दक्षाधा ब्रह्म सूनवः
एकादशः से पतनीका धर्मे संकल्प इवचे
शिवार्चनं रताश्चेति शिवभक्ति परायनाः
हिरन गर्ब
लोकेश
विराट काल पुरुष
सनत कुमार सनक
सनन्दश्चे
सनातनः
दक्षाधा ब्रह्म पुत्र
ग्यारे प्रजापति और उनकी पतनीया
धर्म तथा संकल्प
ये सब के सब शिव की अर्चनामे तत्पर रहने वाले
और शिवभक्ति परायन है अतेह शिव की
आग्या की अधीन हो मुझे मंगल परदान करें
चार वेद,
इतिहास, पुराण,
धर्मशास
और वेदिक विध्याएं
ये सब के सब एक मात्र शिव के स्वरूप का प्रतिबादन करने वाले हैं
अतेह इनका तात्परिय एक तूसे के विरुद्ध नहीं है
ये सब शिव और शिवा की आग्या शिरुधार्ये करके मिरा मंगल करें
जनकस्त नयस्चापि राजश्चेव तामसः अवीकार रतः
पूर्वं ततस्तू सम्विक्रियः असाधारन करमाचे
सिश्टी आधी करनाश्य पृत्का
पीशिरच्छेता जनकस्तस्ये तत्सुतः जनकस्त नयस्चापि विश्णोरपी नियामकः
बोधकश्यतयोर नित्य मनूग्रः करः प्रभूः
महादेव रुद्र
शम्भु की सबसे गरिष्ट मूर्ती है
ये अगनी मंडल की अधिश्वर हैं
समस्त पुर्शार्थों और एश्वर्यों से सम्पन्य हैं सर्व
समर्ध हैं इन में शिवत्व का अभिमान जागरत है ये
निर्गुन होते हुए भी तिर्गुन रूप हैं किवल सात्विक राज
में सिज़तार अमरते ३ग्गन पर सुछनर गलि एकतर इतो हैं ंअकल लिया
कि ważne यह
सो नीरी ही,
कि दिनो नीर यह नाकर लिया
उन पर अनुग्रह करने वाले हैं।
ये प्रभु ब्रह्मान्ड के भीतर और बहर भी व्यापत हैं।
तथा ईहलोक और परलोक
दोनों लोकों के अधिपती रुद्र हैं।
ये शिव के प्रिय हैं।
शिव में भी आसक
तथा शिव के ही चरणार विंदों की अरचनामे तत्पर हैं।
तथा शिव की आज्या को सामने रखते हुए मिरा मंगल करें।
बगवान शंकर के सरूप भूत,
ईशान आधी ब्रह्म,
हिर्दयादी छे अंग,
आठ विद्धिश्वर, शिव आधी चार मूर्ति भेद,
शिव भव, हर और मृद,
यह सब के सब शिव के पूजक हैं। यह लोग शिव की
आज्या को शिरुधारिय करके मुझे मंगल प्रदान करें।
अविकाराभिमानी चे त्री साधारन विक्रिय हैं।
असाधारन करमा चे सुष्टी आधी करनात प्रथक,
दक्षिनांग भवेनापी,
स्पर्धामानह स्वां भुआ।
आधेन ब्रह्मना साक्षात स्वश्टी हैं इस्त्रष्टा चेतस्यतू,
अंडस्यान्तरवहेरवर्तिही विश्णूर लोक द्वयाधिपः।
असुरान्तक रश्चक्रि शक्रस्यापी तथानुजः,
प्रादूर भूतश्ये दशधा,
भ्रगूषापश्चलादिह।
भूभारनिग्रहार्थाय स्वेच्छयावातरतक्षितो,
अप्रमेयबलोमायि माययामोहयज्जगतः।
मूर्तिं कृत्वा महाविश्णुं सदाविश्णुमधापिवा,
वैश्णवह पूजितो नित्यं,
मूर्ती त्रयं यासने।
भगवान विश्णु,
महिश्वर शिव के ही उत्किष्ट स्वरूप हैं।
वे जल तत्तु की अधिपती और साक्षात अव्यक्त पद पर प्रतिश्ठित हैं।
प्राक्रित गुणों से रहित हैं,
उनमें दिव्य सत्व गुण की प्रधानता हैं।
तत्हावे विशुद्ध गुण स्वरूप हैं।
उनमें निर्विकार रूपता का अभिमान हैं।
साधार्णत्या तीनों लोक उनकी कृती हैं।
सुष्टी पालन आदी करने के कारण उनकी कर्म असाधार्ण हैं।
वे रुद्र के दक्षिनांग से प्रगट हुए।
स्वेम्भू के साथ एक समय स्प्रधा कर चुके हैं।
सागशात आधी ब्रह्म द्वारा उतपादित होकर भी,
ये उनके भी उतपादक हैं। ब्रह्मान्ड के भीतर और बाहर व्याप्त हैं।
इसलिए विश्णू कहलाते हैं। दोनों लोकों के अधिपती हैं।
असुरों का अंत करने वाले चक्रधारी
तथा इंद्र के भी चोटे भाई हैं।
अधित्रास अवतार विग्रहों के रूप में यहां प्रकट हुए
हैं। ब्रगु के शाप के बहाने पृत्वी का भार उतारने के
लिए उन्होंने स्विज्चा से इस भूतल पर अवतार लिया है।
वे शिव के प्रिये शिव में ही आसक तथा
शिव के चरणों की अर्चनामे तत पर हैं।
वे शिव की आग्या शिरुधारिय करके मुझे मंगल परदान करें।
मतस्यहे कूर्मो वराहस्ये नारसिंगोस्थवामनः।
राम त्रयं तथा कृष्णो विश्णो इस्तूर्गवत्रकः।
चक्रं नारायनस्यास्त्र्यं
पांच जन्यं चे सारंगकं।
वासुदेव
अनिरुद्ध
प्रदूम्द
तथा संकर्शन।
ये श्रीहरी की चार विख्यात मूर्तियां विवू हैं।
मतस्यहे कूर्मो वराहस्ये नारसिंगोस्थवामनः।
परशुराम
राम बलराम।
श्रीकृष्ण विश्णो है ग्रीव। चक्र
नारायनास्त्र पांच जन्यं तथा सारंग धनुश।
ये सब के सब शिव और शिवा की आज्या का
सतकार करते हुए मुझे मंगल परदान करें।
प्रभासरस्वती गौवरी लक्ष्मीष्च शिवभाविता।
प्रभासरस्वती गौवरी तथा शिव के परती भक्ति भाव रखने वाली लक्ष्मी
ये शिव और शिवा के आधेश से मेरा मंगल करें।
इंद्र,
अगनी,
यम,
न्रिहती,
वरुन,
वायू,
सौम, कोवेर तथा,
तिशूल धारी शान,
ये सब के सब
शिव सदभाव से भावित होकर शिवारचन में तत्पर रहते हैं।
ये शिव और शिवा की आज्या का आधर मानकर मुझे मंगल परदान करें।
विशूल मथ वरजम्चे तथा परशू सायको,
खड़ग पाशांग कुशाश्चेवे पिनाश्चा यूध्धोतवां।
दिव्या युधानी देवस्य,
देव्याश्चेतानी नित्यशे सत्कत्यः।
तिशूल,
वज्र, परशु,
बान, खड़ग, पाश,
अंकुश और शेष्ट आयुध पिनाग,
ये महादेव तथा महादेवी के दिव्यायुध
शिव और शिवा की आज्या का नित्य सतकार करते हुए सदा मेरी रख्षा करें।
व्रशरूप धरो देव सोरभेयो महाबल वडवाक्यानल
इस परद्धि पंच गोमात्री भिवर्तितः।
व्रशरूप धरी देव
जो सुरभी के महाबली पुत्र हैं।
वडवानल ते भी होड लगाते हैं,
पांच गोमाताओं से घिरे रहते हैं और अपनी तपस्या के प्रभाओ से।
परमिश्वर शिव तथा परमिश्री शिवा के वाहन हुए हैं। उन
दोनों की आज्या शिरुधार्य करके मेरी च्छा पूर्ण करें।
नन्दा, सुनन्दा, सुरभीर, सुशीला और सुमना
ये पांच गोमाताओं सदा शिवलोक में निवास करती हैं।
ये सब की सब नित्य शिवरचना में लगी रहती हैं।
और शिवभक्ती परायणा हैं। अतेवा शिव तथा शिवा
के आदेश से ही मेरी इच्छा की पूर्थी करें।
भेरो भेरवेह सिद्धेर योगिनी भीष्चे सम्वृतः
शेत्रपाल महान तेजस्वी हैं।
उनकी अंग कान्ती नील मेग के समान है और
मुक्ख दाड़ों के कारण विक्राल जान पड़ता है।
उनके लाल-लाल होट फढ़कते रहते हैं जिस से उनकी शोभा बढ़ जाती है।
उनके सिर के बालु मीश्यकास को वोट देंजुय हैं।
वैं वो तेजश्यी हैं।
उनकिछे म्आस्यकास देझीं हैं।
तथा उनके हाथों में तृशूर,
पाश,
खडग,
और कपाल उठे रहते हैं।
वे भैरो हैं और भैरो,
सिद्धों तथा योगनियों से घिरे रहते हैं।
पिरतेक शेत्र में उनकी स्थती है,
वे वहां सत्पुर्षों के रखशक होकर रहते हैं।
उनका मस्तग सदाशिव के चर्णों में जुका रहता है।
वे सदाशिव के सद भाव से भावित हैं,
तथा शिव के शर्णागत भगतों की ओरस पुत्रों की भाती विशेष रक्षा करते हैं।
ऐसे प्रभावशाली शित्रपाल शिव और शिवा की आज्या
का सतकार करते हुए मुझे मंगल परदान करें।
ताल जंगाधस्थस्य प्रत्मावर्णेर चिताः सत्क्रत्यः शिवयोराज्याम
चत्वारे सम्वन्तुमाम।
ताल जंग आधी शिव के प्रत्मावर्ण में पुझित हुए हैं।
विचारो देवता
शिव की आज्या का आधर करके मेरी रक्षा करें।
जो भैरवादी तथा दूसरे लोग शिव को सब ओर से घीर कर इस्थित हैं।
वे भी शिव के आधेश का गोरो मान कर मुझ पर अनुग्रह करें।
नारद आधी देव पूझित दिव्यमुनी
साध्य नाग
जन-लोक-निवासी देवता।
विशेशादिकार से संपन्य मेहर-लोक-निवासी,
सफ्त-रिशी तथा अन्य वैमानिक गण सदा शिव की अरचना में तत्पर रहते हैं।
वे सब शिव की आज्या के अधीन हैं अते शिवा और शिव
की आज्या से मुझे मनुवान्चित वस्तु पुरदान करें।
गंधर-वाधा पिशाचान्ता अश्चत-अस्त्रोदेव योनयः
सिद्धा विध्यादधाराश्च ए अपीचान्ने नवश्चराः
असुराराक्ष साश्चेव पाताल तलवासिन
अनन्ताधाश्चे नागेंद्रः वेन ते याद योद्विजाः
कुष्मांडाः प्रेत वेताला ग्रहा भूत गणाः परे
दाकिन्यस्चापियोगिन्यः शाकिन्यस्चापिताध्रिशः
ख्षेत्रारामग्रहाधिनि तीर्थान्यायतनानिचे
द्वीपाह समुद्राह नधश्चे नधाश्चान्ने सरांसिचः
घिरश्चे सुमेरवाधाः काननानी समंततः पश्वः
पक्षिनो व्रक्षाः क्रिमिकीताधयो म्रगाः
भूनान्यः पी सर्वाणि भूनानामुधिश्वराह अंडान्यावर्णेह
सार्धमासाश्चे दश्दिग्जाः वर्णाह पदानि मंत्राश्चे
तत्वानयः पी सहाधिपे
गंधर्वों से लेकर
पिशाच परियंत जो चार देव योनिया हैं
अच्छविश्वराह पी परियंत जो
चार देव योनिया हैं
अच्छविश्वराह पी परियंत जो चार देव योनिया हैं
योगनिया, शाकनिया तथा वैसी ही और इस्त्रियां
शेत्र आराम,
बगीचे,
ग्रह आधी तीर्थ,
देव मंदेर,
देप,
समुद्र,
नधियां,
नध सरोवर,
सुमेरु आधी परवत,
सब ओर पहले होए वन,
पशुपक्षी,
व्रक्ष,
क्रमी,
कीट आधी,
म्रग समस्त भुवन,
भुवनेश्वर,
आवर्णों सहीत ब्रह्मान्
धारक रुद्र,
अन्य रुद्र,
और उनकी शक्तियां,
तथा इस जगत में जो कुछ भी देखा,
सुना और अनुमान किया हुआ है, वे सब के सब
शिवा और शिव की आज्या से मेरा मनूरत पूर्ण करें।
विद्धा पराशेवी पशुपाश विमोचनी,
पंचार्थ सहिता दिव्या
पशुविध्या बहिश्कता।
शास्त्रं चे शिवधर्माक्यं,
धर्माक्यं चे तदुत्तरं,
शेवाक्यं शिवधर्माक्यं,
पुराणं शुते सम्मितं,
शेवाज्यमाश्य ये चान्ने,
कामिकाधाश्य तुर्विध्या,
शिवाभ्याम विशेशेन उत्कृतेह समर्चिता,
ताभ्यामेव समाज्याता, ममाभिप्रेत सिध्ये,
कर्मेदमनो मन्यन्ताम सफलं साध्वनो श्ठितं।
जो पंच पुर्शार्थ स्वरूपा होने से पंचार्थ ही कही गई हैं,
जिसका स्वरूप धिव्य है,
तथा जो पशुविध्या की कोटी से बाहर है,
वह पशुवों को पाश से मुक्त करने वाली शेवी पराविध्या,
शिवधर्मशास्त, शेवधर्म, शुती सम्मत,
शिव संग्यक पुराण,
शेवागम,
तथा धर्मकाम अधी, चत्रुविध पुर्शार्थ,
इनें शिव और शिवा के समान ही मान कर उनें समान पूजा दी गई है,
उनें दोनों की आक्या लेकर मेरे अभेश्ट की सिध्धी के लिए,
इस कर्म का अनुमोधन करें,
इसे सफल और सुसंपन्य घुशित करें।
श्वेताधान कुलिशान्तः सशिष्याश्चापिदेशिकाः,
तत्संततिया गुर्वो विशेशाध गुर्वो ममा,
शेवा महिश्वराश्चेवे ज्ञान कर्म परायना,
कर्मेद मनो मन अन्ताम, सफलं साध्वनू श्ठितं।
श्वेत से लेकर
अकुलीश परियंत,
शिष्य सहित आचार्य गण,
उनकी संतान परंपरां में उतपन्य गुरुजन,
विशेष्ठे मेरे गुरु,
शेव, महिश्वर।
जो ज्ञान और कर्म में तत्पर रहने वाले हैं,
मेरे इस कर्म को सफल और सुसंपन्य माने।
लोकिका ब्रहमनाह सर्वेक्षत्रियाश्च विशेखरमात्,
वेद वेदांग तत्वज्ञाम् सर्वशास्त्रविशारदा,
सांख्या वेशेशिकाश्चेव योगानयाईकानरा,
सोराब्रहमस्थतारोद्रा,
वेश्णवाश्चरापरेनरा,
लोकिक ब्रहमन,
शत्रिय, वेश,
वेद वेदांगों के तत्वज्ञ विद्वान,
सर्वशास्त्र कुशल,
सांख्य वेशेशिक,
योगशास्त्र के आचारिय, नयाईक,
सूर्योपासक,
ब्रह्मोपासक,
शेव,
वेश्णव,
तत्वान्य सब शिष्ट और विशिष्ट पुरुष्ट शिव की आज्या के अधीन हूँ,
मेरे इस कर्म को अभिष्ट साधक माने
सिधान्त मार्गी शेव,
पाशुपत शेव,
महाव्रत्धारी शेव,
दक्षिन ज्ञान निष्ठास्च,
दक्षिन उत्तर मार्ग गाह,
अविरोधेन वर्तन्ताम्, मंत्रम् सेयो अर्थिनोमं,
जो दक्षिन आचार के ज्ञान में,
परि निष्ठ तथा दक्षिन आचार के उत्किष्ट मार्ग पर चलने वाले हैं,
वे परस्पर विरोधन रखते हुए मंत्र का जब करें और मेरे कल्यान कामी हो।
नास्तिकाश्चे शथाश्चेव,
कृत्यग्नाश्चेव तामसाह,
पाशणडाश्चाति पापाश्च,
वर्तन्ताम् दूरतोमं,
बहुभीह किम इस्तूतेरत्रह, ये अपीके अपीचिदास्तिका,
नास्तिक, शथ,
कृत्यग्न,
तामस,
पाखंडी और अती पापी प्राणी मुझे से दूर ही रहें,
यहां बहुतों की इस्तूती से क्या लाब,
जो कोई भी आस्तिक संथ है,
वे सब मुझ पर अनुग्रह करें,
और मेरे मंगल होने का आशिवात दें।
जो पंचावरन रूपी प्रपंच से घिरे हुए हैं,
और सब के आदी कारण हैं,
उन आप पुत्र सहित साम्ब सदाशिव को मेरा नमसकार है।
पुजाशेशं समापहेत जपित्वा तत्व समर्पणं
कित्वातं उक्षम यत्वेशं पुजाशेशं समापहेत।
ऐसा कहकर
शिव और शिवा के उद्देश से भूमी पर दंड की भाती गिरकर प्रणाम करें,
और कम से कम 108 बार पंचाक्ष्री विध्या का जप करें।
इसी प्रकार शक्ती विध्या
ओम नमः शिवाये
का जप करके उसका समर्पण करें। और महादेव जी
से ख्षमा मांग कर शेष पूजा की समाप्ती करें।
यह परम पुन्य में इस त्रोत शिव और शिवा के हिरदे को अध्यंत प्रिय है।
सम्पून मनोर्थों को देने वाला है और भोग
तथा मोक्ष का एक मात्र साक्षाद साधन है।
जो एकागरचित हो,
प्रती दिन इसका कीर्तन अथ्वा
शवन करता है,
वे सारे पापों को शिगर ही धो,
बहाकर भगवान शिव का सायुज्य प्राप्त कर लेता है।
जो गोहत्यारा, कतिग्न,
वीरखाती,
गर्भस्त शिषु की हत्या करने बाला,
शर्नागत का वद करने वाला और मित्र के परती विश्वास खाती है,
दुराचार और पापाचार में ही लगा रहता है,
तथा माता और पिता का भी घातक है। वहे भी इस
त्रोथ के जब से ततकाल पाप मुग्द हो जाता है।
दुः स्वप्न आधि महान अनर्थ सूचक भयों के
उपस्थित होने पर यदी मनुश्य इस इस त्रोथ का कीर्तन करें,
तो वहे कदाप ये अनर्थ का भागे नहीं हो सकता।
आयू
आरोग एश्वर्य
तथा और जोभी मनुवान्चित वस्तु हैं,
उन सब को इस इस त्रोथ के जप में संलगन
रहने वाला पुर्ष प्राब्ध कर लेता है।
ए संप्युज्य शिवं इस त्रोथ्र जपात्र फल मुदाह्रतं
संपुज्य चे जपे तस्य फलं वक्तुं नशक्यते।
एक लिए सारे जप में,
आधी दीतै अस्मॉल मेें,
बंबी कया देवः शुत्वेव दिवी तिष्ठति
तस्मान्य भसी संपुज्य देवदेवं सहो मया
क्रतान्जली पुटस्तिष्ठन इस्तोत्रमेत दुधीरियेत
यह फल की प्राप्ती अलग रहे
इस इस्तोत का कीर्तन करने पर इसे सुनते ही माता पारवती सहित
महादेव जी आकाश में आकर खड़े हो जाते हैं
अतय है
उस समय ऊमा सहित देव देव महादेव की आकाश में पूजा करके
दोनो हात जोड़ खड़ा हो जाय और इस इस्तोत का पाठ करे
तव सबकी swatch लिए अनंद के साथ
भव के साथ हिर्दे में सवा संभू KNOWρώक हाग़े
शम्भू को बिठाकर फिर मेरे साथ फोलीए
ओम नमह शिवाय
ओम नमह शिवाय
ओम नमह शिवाय

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