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Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-28, 29

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Kailash Pandit

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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Vayaviya Sanhita Uttar Khand Adhyay-28, 29

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

कर दो कि बोलिए शिवशंकर भगवान की प्रीय भक्तों श्री शिव महापुराण के वायव्य सहिता उत्तरखंड की अगली
कथा है काम में कर्म के प्रसंग में शक्ति सहित पंचमुख महादेव की पूजा के विधान का वर्णन
तो आइए वक्तों आरंभ करते हैं इस कथा के साथ 28 तथा 29 अध्याय तदंतर शिवाश्रम सेवियों के लिए
नयमित्तिक कर्म की विधि बताकर उपमन्यु ने कहा हे यदुननन अब मैं काम में कर्म का वर्णन करूंगा
जो इह लोग और पर लोग
लोक में भी फ़ल देने वाला है शैव्यों तथा महेश्वरों को क्रमशे भीतर और बाहर इसे करना चाहिए
कि जैसे शिव और महेश्वर में जहां अतियत भेद नहीं है उसी प्रकार शैव्यों और महेश्वरों में भी अधिक
भीद नहीं है जो मनुष्य शिव के आश्रित रहकर ज्ञान यज्ञ में तत्पर होते हैं विश्यव कहलाते हैं और जो
शिवा शृत्रित भक्त भूतल पर कर्म यज्ञ में सनलग्न रहते हैं वह महान ईश्वर का यजन करने के कारण महेश्वर
कहे गए हैं इसलिए ज्ञान योगी शायवों को अपने भीतर भगवान द्वारा कर्म का अनुस्थान करना चाहिए और कर्म
भरायन महेश्वरों को बाहर वेहित द्रव्यों तथा उपकरणों द्वारा उसका संपादन करना चाहिए हैं
आगे बताये जाने वाले कर्म के प्रियोग में उनके लिए कोई भेद नहीं है
गंद, वर्ण और रस आदी के द्वारा विधी पूर्वक भूमी की परिक्षा करके
मनु अभिलशित इस्थान पर आकाश में चंदो आतान दे
और उस इस्थान को भली भाथी लीप पोत कर दर्पन के समान सुच्छ बना दे
तथ पश्यात शास्त्रोक्त मार्ग से वहाँ पहले पूर्व दिशा की कल्पना करे
उस दिशा में एक या दो हाथ का मंडल बनाए
उस मंडल में सुन्दर अश्टतल कमल अंकित करे
कमल में कर्णिका भी होनी चाहिए
यथा संभव संचिती रत्न और स्वार्ण आदी के चोम से उसका निर्मान करे
वैत्यंत शुभायमान और पाँच आवरों से युक्त हो
कमल के आठ दलों में पूर्वादी क्रम से अनीमा आदी आठ सिद्धियों की कल्पना करे
तथा उनके केसरों में शक्ती सहिद वामदेव आदी आठ रुद्रों को पूर्वादी दल के क्रम से इस्थाफित करे
कमल की कर्णिका में वैराग्य को इस्थान दे और बीजों में नव शक्तियों की स्थापना करे
कमल के कंद में, शिव सम्मंधी धर्म और नाल में, शिव सम्मंधी ज्ञान की भावना करें
करणीगा के ऊपर, अगनी मंडल, सूर्य मंडल और चंद्र मंडल की भावना करें
इन मंडलों के ऊपर, शिव तत्तु, विद्या तत्तु और आत्म तत्तु का चिंतन करें
सम्पून कमलासन के उपर सुख पूर्वक विराजमान और नाना प्रकार के विचित्र पुष्पों से अलंक्रित
पाँच आवर्णों सहित भगवान शिव का माता परवती के साथ पूजन करे
उनकी अंग कांती शुद्ध इस्वटिक मनी के समान उज्जवल है
वे सतत प्रसन्न रहते हैं उनकी प्रभाज शीतल है
मस्तक पर विधुन मंडल के समान चमकीली जटा रूप मुकुट उनकी शोभा बढ़ाता है
वे व्यागर चर्म धारन कियो हुए हैं उनके मुखार विंद पर कुछ-कुछ मंद मुस्कान की जटा चा रही है
उनके हाथ में हथेलिया और पैरों के तलवे लाल कमल के समान अरुन प्रभासे उद्भासित हैं
वे भगवान शिव समस्त शुब लक्षनों से संपन्ने और सब प्रकार के आभूषनों से विभूषित हैं
उनके हाथों में उत्तमौत्तम दिव्य आयुद्ध शोभा पा रहे हैं
और अंगों में दिव्य चंदन का लेप लगा हुआ है
उनके पाँच मुख और दस भुजाएं हैं
आर्धचंद्र उनकी शिखा के मनी है
उनका पूर्व वर्ती मुख प्राते काल के सूर्य की भाती
और उन प्रभासे उद्भासिते उम्सोम में है
उसमें तीन नेत्र रूपी कमल खिले हुए हैं
तथा सिर पर बाल चंद्रमा का मुकुट शोभा पाता है
दक्षिन मुख नील जलंधर के समान शाम प्रभासे भासित होता है
उसकी भोएं तेडी हैं
वह देखने में भयानक है
उसमें गोलाकार लाल लाल आखें दृष्टी गोचर होती है
दाड़ों के कारण वह मुख विक्राल जान पड़ता है
उसका पराभव करना किसी के लिए भी कठिन है
उसके अधर पल्लव फड़कते रहते हैं
उत्तर वर्ती मुख मुंगे की भाती लाल है
काले काले केश पांश उसकी शोभा बढ़ाते हैं
उसमें विभ्रम विलास से युक्त तीन नेत्र हैं
और उसका मस्तक अर्ध चंद्र में मुकुट से विभूशित है
भगवान शिव का पश्चिम मुख पून चंद्रमा के समान
उज्जवल और तीन नेत्रों से प्रकाश मान है
उसका मस्तक चंद्रलेखा की शोभा धारन करता है
वह मुख देखने में सोम्य है और मंद मुस्कान की शोभा से
उपासकों के मन को मोह लेता है
उनका पाँचवा मुख इसफटिक मनी के समान निर्मल
चंद्रलेखा से समुझवल अत्यंत सोम्य
तथा तीन प्रफुल नेत्र कमलों से प्रकाश मान है
भगवान शिव अपने दाइने हात में शूल, परशू, वज्र, खडग और अगनी धारन करके
उन सब की प्रभासे प्रकाशित होते हैं
तथा बाएं हाथों में नाग, बान, घंटा, पाश तथा अंकोश उनकी शोभा बढाते हैं
पेरों से लेकर गुटनों तक का भाग निर्वत्ती कला से सम्बद्ध है
उस से उपर नाभी तक का भाग प्रतिष्टा कला से, कंठ तक का भाग विध्या कला से, ललाट तक का भाग शांती कला से
और उसके उपर का भाग शांतितीता कला से संयुक्त है
इस प्रकार वे पंचात ध्वयापी तथा साक्षात पंच कलामे शरीर धारी है
ईशान मंत्र उनका मुकुट है
तत्पुरुष मंत्र उन पुरातन देव का मुक है
अगोर मंत्र हिर्दय है
वाम देव मंत्र उन महिश्वर का गोहिय भाग है
और सदो जात मंत्र उनका युगल चरण है
उनकी मूर्ति अड़तिस कला मही है
कला, काल, नियती, विध्या, राग, प्रकृति और गुण
ये साथ तत्व, पंच भूत, पंच तन्मात्रा, दस इंद्रियां, चार अंतह करण और पाँच शब्द आदी विशे
ये चट्टीस तत्व हैं
ये सब तत्व जीव के शरीर में होते हैं
परमिश्वर के शरीर को शाक्त, शक्ती स्वरूप एवं चिन में तथा मंत्र में बताया गया है
इन दो तत्वों को जोड लेने से अड़तीस कलाएं होती हैं
समस्त जर्थ चेतन परमिश्वर का स्वरूप होने से
उनकी मूर्ती को अर्थिस कला में बताया गया है
अथवा पाँच स्वर और तैपीस वेंजन रूप होने से
उनके शरीर को अर्थिस कला में कहा गया है
परमिश्वर शिव का विग्र है
मात्रिका वर्णवाला मैं
पञ्च ब्रह्म, ईशान, सर्व विध्यानाम, इत्यादी पांच मंत्र मैं
परणवों मैं तथा हन्स शक्ति से संपन्न है
इच्छा शक्ती उनकी अंक में आरुड है
ग्यान शक्ती दक्षिन भाग में है
तथा क्रिया शक्ति वाम भाग में विराजमान है
वे त्री तत्तों में हैं
अर्थात आत्म तत्व, विध्या तत्व, और शिव तत्व उनके स्वरूप हैं
वे सदा शिव साखशात विध्या मूर्ती है
इस प्रकार उनका ध्यान करना चाहिए
मूल मंत्र से मूर्ती की कलपना और सकली करण की क्रिया करके
मूल मंत्र से ही यथोचित रीती से क्रमशह पाद आदी विशेशार्ग परियंत पूजन करें
फिर पराशक्ती के साथ साक्षात मूर्ति मान शिव का पूर्वक्त मूर्ती में आवहन करके
के सदसद व्यक्ति रहिद, परमिश्वर महादेव का अगंधादि पंचोप चारों से पूझन करें।
पांच ब्रह्म मंत्रों से, छ्य अंग मंत्रों से, मात्रिका मंत्र से, परनौफ से,
शक्तियुक्त शिव मंत्र से
शांत तथा अन्य वेद मंत्रों से
अथवा केवल शिव मंत्र से उन परमदेव का पूजन करें
पाद से लेकर मुख शुद्धी परियंत पूजन संपन्य करके
ईश्ट देव का विसरजन किये बिना ही
क्रमशे पांच आवरणों की पूजा आरंब करें
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
प्रिये भक्तो इस प्रकार यहाँ पर
शिश्यु महापुरान के बायविय सहीता उत्तरखन की यह कथा
और 28 तथा 29 वाध्या यहाँ पर समाप्त होता है
सने के साथ बोलेंगे
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
आनंद के साथ हिर्दे में अपने इष्ट देव को बसा कर बोलेंगे
ओम नमः शिवाय

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