Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
बोलिये शिवशंकर भगवाने की
जैये
प्रिये भगतों
शी शिव महा पुरान के वाइविय संहिता उत्तर खंड की अगली कता है
पंचाक्षर मंत्र के महात्मे का वर्णन
तो आईए भगतों
आरंब करतें इस कता के साथ बार्मा अध्याय
श्री कृष्ण बोले
हे सर्वग्य महायर्शी परवर
आप संपून ज्यान के महासागर हैं
अब मैं आपके मुक्से पंचाक्षर मंत्र के
महात्मे का ततत्व वर्णन सुनना चाहता हूं
उपमन्यू ने कहा
हे देवकी ननन पंचाक्षर मंत्र के महात्मे का
विस्तार पूर्वक वर्णन तो
सो करोल वर्षों में भी नहीं किया जा सकता
अतेक संक्षीप से उसकी महिमा सुनो
वेद में तथा
शैवागम में दोनों जहे यह शरकषर
प्रणाव सहित पंचाक्षर
मंत्र समस्त शिवभक्तों के समपून अर्थ का साधक कहा गया है
इस मंत्र में अक्षर तो थोड़े ही हैं
परन्त यह महान अर्थ से संपन्य है
यह वीद का सार्थत्व है
मोक्ष देने वाला है
शिव की आज्या से सिद्ध है संधेशून्य है तथा शिव स्वरूप वाक्य है
यह नाना प्रकार की सिद्धियों से युक्त दिव्य,
लोगों के मन को प्रसन्य एवं निर्मल करने वाला,
सुनिश्चित अर्थ वाला अथवा निश्चय ही मनूरत को पून करने वाला
तथा परमेश्वर का गंभीर वचन है इस मंत्र का मुक से सुख पूरोख चारण होत
इस एकाक्षर मंत्र संपून विधाओं मंत्रों का बीज मूल है,
जैसे वट के बीज में महान व्रख्ष चिपा हुआ है
इसी प्रकार अत्यंत सूक्ष्म होने पर भी इस
मंत्र को महान अर्थ से परिपून समझना चाहिए
इस एकाक्षर मंत्र में तीनों गुणों से अतीत सर्वग्य
सर्वकर्ता धुतिमान सर्वव्यापी प्रभूः शिव प्रतिष्ठित हैं
ईशान आदी जो सूक्ष्म एकाक्षर रूप ब्रह्म हैं वो ये सब नमः शिवाय
इस मंत्र में क्रमशे हिस्तित हैं
तीनों चाहिए इस एकाक्षर मंत्र में
पंच ब्रह्म रूप धारी साक्षात भगवान शिव
स्वभावत है वाच्च वाचक भाव से ब्राच्मान हैं
अप्रमे होने के कारण शिव वाच्च हैं और मंत्र उनका वाचक
माना गया है
जैसे एक गोर संसार सागर अनाधी काल से प्रवत्त है
उसी प्रकार संसार से चुडाने वाले भगवान शिव भी अनाधी
प्रकर्ति जण काल से ही नित्त विराज्मान हैं।
जैसे ओषद रोगों का सवभाव तै शत्रु हैं,
उसी प्रकार भगवान शिव संसार दोशों के सवभाविक शत्रु माने गए।
यदि वे भगवान विश्वनात्म न होते,
तो यह जगत अंधकार में हो जाता,
तो कि प्रकर्ति जण है और जीवात्म अज्ञानी,
अतयहे नहीं प्रकाश देने वाले परमात्मा ही हैं।
गटी से लेकर परमानों परियंत जो कुछ भी जड़ रूप तत्व है,
वे किसी बुद्धी मान,
चेतन कारण के बिना स्वयम करता नहीं देखा गया है।
जीवों के लिए धर्म करने और अधर्म से बचने का उपदेश करता है।
उनके बंधन और मोक्ष भी देखे जाते हैं।
अतयहे विचार करने से सरवग्य परमात्मा,
शिव के बिना प्राणियों के आधी सर्ग की सिद्धी नहीं होती।
जैसे रोगी वैद के बिनाव सुक्स से रहित हो कलेश उठाते हैं,
उसी प्रकार सरवग्य शिव का आश्यने लेने से
संसारी जीव नाना प्रकार के कलेश भोगते हैं।
अतेहें सिद्ध हुआ है कि जीवों का संसार सागर से उध्धार करने वाले स्वामी
अनाधी सरवग्य परिपून सदाशिव विद्धमान हैं।
वे प्रभु आधी मध्य और अंत से रहित हैं,
सवभाव से ही निर्मल हैं तता सरवग्य वं
परिपून हैं। उन्हें शिव नाम से जानना चाहीं।
शिवागम में उनके सरूप का विशद रूप से वर्णन है।
यह पंचाक्षर मंत्र उनका अभिधान वाचक है और वे शिव अभिधेय वाच्च हैं।
अभिधान और अभिधेय
वाचक और वाच्च रूप होने के कारण परम
शिव सरूप यह मंत्र सिद्ध माना गया है।
ओम नमः शिवाय। यह जो शडकशर शिव वाक्य है,
इतना ही शिव ज्यान है और इतना ही परमपद है।
यह शिव का विधी वाक्य है,
अर्थवाद नहीं है। यह उनहीं शिव का सुरूप है जो सरवग्य,
परिपून और सवभावत है,
निर्मल है।
जो समस्त लोकों पर अनुग्रह करने वाले हैं,
वे भगवान शिव जूठी बात कैसे कह सकते हैं।
वे राग और अज्यान आदी दोश इश्वर में नहीं हैं।
अत्याए इश्वर कैसे जूठ बोल सकते हैं।
जिनका सम्पून दोशों से कभी परीचे ही नहीं हुआ,
अन सर्वग्य शिव ने जिस निर्मल वाक्य पंचाक्षर मंत्र का परनेन किया है,
वह प्रमान भूत ही हैं। इसमें संचे नहीं है।
इसलिए विद्वान पुरुष को चाहिए कि वे इश्वर से वच्णों पर श्रद्धा करें।
पार्थ पुण्य पाप के विशे में इश्वर के
वच्णों पर श्रद्धा न करने वाला पुरुष
नरक में जाता है।
शांत सवभाव वाले श्रेष्ट मुनियोंने स्वर्ग और
मोक्ष की सिध्धी के लिए जो सुन्दर बात कही है
उसे सुभाशित समझना चाहिए।
जो वाक्य राग, द्वेश, असत्य,
काम, क्रोध और त्रश्णा का अनुसरन करने वाला हो,
वो ये नरक का हिद होने के कारण दुर्भाशित कहलाता है।
राग, द्वेश, अनुत, क्रोध, काम, त्रश्णा नुसारीयत,
अविध्या
एवं राग से युक्त वाक्य,
जन्म,
मरन,
रूप,
संसार,
कलेश की प्राप्ती में कारण होता है।
अतहवे कोमल, ललित अत्वा संस्कृत,
संसकार युक्त हो तो भी,
उससे क्या लाव?
जिसे सुनकर कल्यान की प्राप्ती हो तता राग आधी दोशों का नाश हो जाए,
वह वाक्य सुन्दर शब्धाबली से युक्त न हो,
तो वह भी शोबन तता समझने योग्य है।
मंत्रों की शंक्या,
बहुत होने पर भी जिस विमल शडक्षर मंत्र
का निर्मान सरवग्य शिव ने किया है,
उसके समान कहीं कोई दूसरा मंत्र नहीं है।
शडक्षर मंत्र में छवों अंगों सहिच सम्पून वेद और शास्त्र विद्धुमान हैं,
अतेहें उसके समान दूसरा कोई मंत्र कहीं नहीं है।
अगर विद्धुमान हैं, उसका जीवन सफल हो गया।
पंचाक्षर मंत्र ने पर जिस विद्धुमान नहीं है।
परिय भगदों,
इसपरकार यहांपर शीशिव महा पुरान के वायविय सहिता उत्तरखंड
की ये घथा और बार्वा अध्याई यहांपर समाफ्त होता है,
तो आई आनन्द के साथ बोलते हैं,
बोली ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।