Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शुषंकर भगवाने की जै!
प्रिय भक्तों,
शिष्युव महापुरान के शत्रुद्र सहिता की अगली कथा है
शिव के सुरेश्वर अवतार की कथा,
उपमन्यू की तपस्या और उने उत्तम्वर की प्राप्ती.
तो हैये भक्तों,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ बतीसमा अध्याय,
नन्दीश्वर कहते हैं.
सनत्कमार जी,
अब मैं परमात्मा शिव के सुरेश्वर अवतार का वर्णन करूँगा,
जिनोंने धोम्य के बड़े भाई उपमन्यू का हित साधन किया था.
उपमन्यू व्यागरपाद मुनी के पुत्र थे,
उन्होंने पूर्व जनम में ही सिध्धी प्राप्त कर ली थी,
और वर्दमान जनम में मुनी कुमार के रूप में प्रगट हुए थे.
वे शैश्वावस्था से ही माता के साथ मामा के घर में रहते थे.
दैववश्च दरिद्र थे.
एक दिन उन्हें बहुत कम दूद पीने को मिला,
इसलिए अपनी माता से वे बारंबार दूद माँगने लगे.
उनकी तपस्वनी माता ने घर के भीतर जाकर एक उपाय किया.
उन्छ वित्ती से लाए हुए कुछ बीजों को सिल पर पीसा
और उन्हें पानी में गोल कर कृतिम दूद तयार किया.
फिर बेटे को पुछकार कर वे उसे पीने को दिया.
मा के दिये हुए उस नकली दूद को पीकर बालक उपमन्यू बोले,
यह तदूद नहीं है,
इतना कहकर वे फिर रोने लगे.
बेटे का रोना धोना सुनकर मा को बढ़ा दुखुआ.
अपने हाथ से उपमन्यू की दोनों आखें पूछकर उनकी लक्ष्मी जैसी माता ने कहा
जो कुछ किया गया है
वर्तमान जन्म में वही मिलता है.
माता की यह बात सुनकर उपमन्यू ने भगवान
शिव की आराधना करने का निश्चे किया.
वे तपस्या के लिए हिमाल्य परवत पर गए और वहां वायू पी कर रहने लगे.
उन्होंने आठ इंटो का एक मंदिर बनाया और उसके भीतर मिट्टी के शिवलिंग
की स्थापना करके उसमें माता पारवती सहित शिव का आहवाहन्द किया.
ततफशात जंगल की पत्र,
पुषब आधी ले आकर भखती भाऊ सेपंचberryक � verte
समण्त्र के उचारण पूरवक साम्बशिव की पूजा करने लगे.
मातापारवति उर शिव का ध्यान करके उनकी
पूजा करने के परशात वेपंचकशर मंत्र कस जप
माता पार्वती और शिव का ध्यान करके उनकी पूजा करने
के पश्यात वे पंचाक्षर मंत्र का जब किया करते थे।
इस तरहें दीरग काल तक उन्होंने बड़ी भारी तपस्या की।
हे मुने
बालक उपमन्यों की तपस्या से चराचर
प्राणियों सहित त्रिभुवन संतप्त हो उठा।
तब देवताओं की प्रार्थना से उपमन्यों के
भक्ती भाव की परिक्षा लेने के लिए भगवान शंकर
उनके समीब पधारे।
उस समय शिवने देवराज इंद्र का,
पारवतीने शची का,
नन्दिश्वर बशबने एरावत हाती का,
तता शिवके गणोंने सम्पून देवताओं का रूप धारन कर लिया।
निकटाने पर सुरेश्वर रूप धारी शिवने बालक उपमन्यू को वर
मांगने के लिए कहा। उपमन्यू ने पहले तो शिव भक्ती मांगी,
फिर अपने को इंद्र बताकर जब उनोंने शिव की निंदा
की। तब उस बालक ने भगवान शिव की अतिरिक्त दूसरे कि
उसे नन्दी ने पकड़ लिया और उनोंने अपने को जलाने के लिए जो अगनी की धार्णा
की उसे भगवान शिव ने शांत कर दिया। फिर वे सब के सब अपने यथार्थ स्वरूप
में प्रकट हो गए। शिव ने उपमन्यू को अपना पुत्र माना और उनका मस्तक स�
नातन कुमारत्त प्राप्त होगा। मैं तुम्हारे लिये दूद,
दही और मधु के सहस्त्रो समुद्र देता हूं। बक्ष,
भोज्य आदी पदार्थों के भी समुद्र तुम्हारे लिये सुलब
होंगे। मैं तुम्हें अमरत्व तथा अपने गणों का अधिपत्य प्र
प्रवचन की शक्ती दी और अपना परम पद अरपित किया।
फिर दोनों हातों से उपमन्यू को हिरदय से लगाकर उनका
मस्तक सुंगहा और देवी पारवती को सौपते हुए कहा।
यह तुम्हारा बेटा है।
पारवती ने भी बड़े प्यार से उनके मस्तक पर अपना करकमल रखा
और उन्हें अक्शय कुमार पद प्रदान किया।
शिवने संतुष्ट होकर उनके लिए पिंडी भूत एवं
अविनाशी साकारक शीर सागर प्रिस्थुत कर दिया।
साथ ही योग संबंधी एश्वरिय,
नित्य संतोष,
अक्शय ब्रह्म विध्या तथा उत्तम संबध्यी प्रदान की।
उनके कुल और गोत्र के अक्शय होने का वरदान दिया और यह भी कहा
कि मैं तुम्हारे इस आश्चम पर नित्य निवास
करूँगा। इतना कहकर भगवान शिव अंतरध्यान हो गये।
उपमन्यू वरपाकर पसंदनता पूर्व घर आये। उन्होंने माता से सब बाते बताई।
सुनकर माता को बढ़ा हर्ष हुआ। उपमन्यू सबके पूजनीय और अधिक सुखी हो गये।
यह अवथार सत्य पुर्शों को सदा ही सुख देने वाला है।
सुरेश्वर आवतार की है कथा पाप को दूर करने वाली
तथा समपून मनोवांचित फलों को देने वाली है।
जो इसे भक्ती पूर्वक सुनता या सुनाता है,
वे समपून सुखों को भोग कर अंत में भगवान शिव को प्राप्त करता है।
बोलिये शिवशंकर भगवान ने की जैये।
तो प्रीय भक्तों,
इस प्रकार यहां पर शिशिव महा पुरान के शत रुद्ध सहिता की यह कथा
और बतीसमा अध्या यहां पर समाप्त होता है।
तो भक्तों, स्नही के साथ बोलिये।
बोलिये शिवशंकर भगवान ने की जैये।
ओम नमः शिवाय।