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Shiv Mahapuran Shat Rudra Sanhita Adhyay-29

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran shat rudra sanhita adhyay-29 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran shat rudra sanhita adhyay-29 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Shat Rudra Sanhita Adhyay-29 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Shat Rudra Sanhita Adhyay-29

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रिय भक्तों,
शिशिव महा पुरान के शत्रुद्ध सहिता की अगली कता है
भगवान शिव के क्रिष्ण दर्शन
नामक अवतार की कता।
तो आये भक्तों,
आरम्ब करते हैं इस कता के साथ उनतीसम अध्याय।
नन्दीश्वर कहते हैं,
सनत्कमार जी,
भगवान शंभु के एक उत्तम अवतार का नाम क्रिष्ण दर्शन है,
जिसने राजा नवक को घ्यान प्रदान किया था। उसका वर्णन करता हूं।
सुनो,
शात्रदेव नामक मनु के जो एक ख्ष्वांकु आधी पुत्र थे,
उनमे नवम का नाम नभग था,
जिनका पुत्र नाभाग नाम से प्रसिद्ध हुआ।
नाभाग के ही पुत्र अमरीश हुए,
जो वगवान विश्णु के भक्त थे,
तत्हा जिनकी ब्रह्मन भक्ती देखकर उनके
ऊपर महरशी दुर्वासा प्रसन्न हुए थे।
हे मुने,
अमरीश के पिता में जो नभग कहे गए हैं,
उनके चरित्र का वर्णन सुनो।
उनी को भगवान शिव ने ज्यान प्रदान किया था।
मनू पुत्र नभग बढ़े बुद्धीमान थे।
उनोंने विद्ध्या अध्यन के लिए दीरग काल तक
इंद्रिय सैयंपूर्वक गुरुकुल में निवास किया।
अपना अपना भाग ले चुके हैं। तब उनोंने भी बड़े स्नेह से
दाय भाग पाने की च्छा रखकर अपने इक्श्वाकुआदी बंधों से कहा।
ही भाईयो मेरे लिए भाग दिये बिना ही आप लोगोंने आपस में सारी
संपत्ती का बढ़वारा कर लिया। अतेव प्रसनता पूर्वक मुझे भी
हिस्सा दीजिये। मैं अपना दाय भाग लेने के लिए ही यहां आया हूं।
भाई बोले,
जब संपत्ती का बढ़वारा हो रहा था
उस समय हम तुम्हारे लिए भाग दिना भूल गय थे। अब इस समय पिताजी को ही
तुम्हारे हिस्से में देते हैं। तुम उने को ले लो। इसमें संचे नहीं है।
भाईयों का यह वचन सुनकर नबक को बढ़ा विश्मे हुआ।
वे पिता के पास जाकर बोले,
हे तात,
मैं विध्या धन के लिए गुरुकुल में गया था
और वहां अब तक ब्रह्मचारी रहा हूं।
वे उनोंने तुमें ठगने के लिए कही हैं। मैं
तुम्हारे लिए भोग सादक उत्तम दाय नहीं बन सकता।
तत्हापी उन वंचकोंने
यदि मुझे ही दाय के रूप में तुम्हें दिया हैं,
तो मैं तुम्हारे जीवी काका का एक पाय बतलाता हूं।
सुनो,
इन दिनों उत्तम बुद्धी वाले आंगिरस कोत्रिय ब्राह्मन एक बहुत बड़ा यज्य
कर रहे हैं। उस कर्म में प्रतेक छटे दिन का कारिय वे ठीक-ठीक नहीं समझ
पाते। उसमें उनसे भूल हो जाती है। तुम वहाँ जाओ और उन ब्राह्मनों को विश
ब्राह्मन जब स्वर्ग को जाने लगेंगे,
उससमें सन्तुष्ठ होकर अपने यज्य से बचा हुआ सारा धन
तुमें दे देंगे। पिता की यह भात सुनकर सत्यवादी नभग बड़ी
प्रसन्दाता के साथ उस उत्तम यज्य में गए। हे मुने,
वहाँ छटे दिन के क
प्र्शुर्ण गा उनको आपको प्रसन्दाता के साथ जाने लगेंगे,
उस माथ अपने यज्य से बचा हुआ अपना अपना धन नभग को दे कर स्वर्ग लोग को
चले गए। उस यज्य सिस्ठ धन को जौये एकरहें करने लगे उससमें सुन्दर लीला
सब बाते ठीक ठीक बताओ।
नभग ने कहा,
यह तो यग से बचा हुआ धन है,
जिसे रिशियों ने मुझे दिया है,
अब यह मेरी ही संपत्ती है,
इसको लेने से तुम मुझे कैसे रोख सकते हो।
कृष्णुदर्शन ने कहा,
हे तात,
हम दोनों के जगडे में तुमारे पिता ही पंच रहेंगे,
जाकर उनसे पूछो और वे जो निर्णे दें उसे ठीक ठीक यहां हाकर बताओ।
उनकी बात सुनकर नभग ने पिता के पास जाकर उक्त प्रश्ण को उनकी सामने रखा।
शाधदेव को कोई पुरानी बात यादा गई,
और उन्होंने भगवान शिव के चरण कमलो का चिंतन करते वे कहा। मनु बोले,
हे तात,
वे पुरुष जो तुम्हें वे धन लेने से रोक रहे हैं,
साक्षात भगवान शिव हैं। योंतो संसार की सारी वस्तु ही उनी की
अधिकारी हैं,
उसे भगवान रुद्र का भाग निश्चित किया जाता है। अतेहें,
यग्याव शिष्ठ सारी वस्तु ग्रहन करने के अधिकारी
सर्विश्वर महादेव जी ही है। उनकी इच्छा से ही,
दूसरे लोग उस वस्तु को ले सकते हैं। भगवान शिव तुम
और प्रणाम पूर्वक उनकी स्तुती करो। नभग पिता की आग्या से वहां गए,
और भगवान को प्रणाम करके हाथ छोड़ कर बोले,
ये वैश्वर,
ये सारी त्रिलोकी ही आपकी है,
फिर यग से बचे हुए दन के लिए तो कहना ही क्या है। निश्चे
ही स्वराप का दिकार है। यही मेरे पिता ने निर्णे दिया है।
हे नाथ,
मैंने यथारत बात ने जानने के कारण,
ब्रहमवश्व, जो कुछ कहा है,
मेरे उस अपराद को ख्षमा कीजिये।
मैं आपके चर्णों में मस्तक रखकर यह प्रार्थना करता हूं,
कि आप मुझ परसन न हो।
ऐसा कहकर नवगने अत्यंत दीनता पूर्ण हिर्दय से दोनों हाथ जोड,
महिश्वर किष्णधर्शन का इस्तवन किया। उधर
शाद्धदेवने भी अपने अपराद के लिए ख्षमा मांगते हुए,
भगवान शिव की स्तुती की।
तद अंतर भगवान रुद्र ने मन ही मन प्रसन हो नवग
को कृपा दश्टी से देखा और मस्क्राते वे कहा।
किष्णधर्शन बोले,
हे नवग,
तुम्हारे पिता ने जो धर्मानुकूल बात कही है,
वै ठीक ही है।
तुमने भी साधु स्वभाव के कारण सत्य ही
कहा है। इसलिए मैं तुम पर बहुत प्रसन हूँ
और कृपा पुरुवक तुम्हे सनातन ब्रह्म तत्व का ज्यान प्रदान करता हूँ। इस
समय यह सारा धन मैंने तुम्हे दे दिया। अव तुम ही से ग्रहन करो। इस लो
न रुद्र सबके देखते देखते वही अंतर ध्यान हो गये। साथ ही शाद
देव भी अपने पुत्र नभक के साथ अपने स्थान को लोटाये। इस लोग में
विपुल भोगों का उपभोक करके अंत में वे
बगवान शिव के धाम में चले गये। हे ब्रह्मन,
इस प्रका
अपने पुछ बाद प्राप्त हो जाते हैं। बोले शिव शंकर भगवाने की जये।
प्रीय भक्तों,
इस प्रकार यहाँ पर शिव शिव महा पुराण के
शत रुद्र सहिता की यह कथा और उन तीस्मा अध्याय
यहाँ पर समाप्त होते हैं। तो स्ने से बोलीए,
बोले श
नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।

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