Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शुवशंकर भगवाने की जै!
प्रिय भगतों,
शिष्यों महापुरान के शत्रुद्र सहिता की अगली कथा है
बगवान शिव का यतीनाथ एवं हन्स नामक अवतार।
तो आये भगतों, आरंब करते हैं
इस कथा के साथ अठाईसमा अध्याय
नन्दीश्वर कहते हैं,
हे मुने,
अब मैं परमात्मा शिव के यतीनाथ नामक अवतार का वर्णन करता हूं।
हे मुनीश्वर,
अर्बुदाचल नामक परवद के समीप एक भील रहता था,
जिसका नाम था आहुक,
उसकी पत्नी को लोग आहुका कहते थे,
वे उत्तम वर्त का पालन करने वाली थी,
वे दोनों पती पत्नी महान शिव भक्त थे,
और शिव की आराधना पूजा में लगे रहते थे।
एक दिन वे शिव भक्त,
भील अपनी पत्नी के लिए आहार की खोच करने
के निमित जंगल में बहुत दूर चला गया,
उसी समय संध्या काल में भील की परिक्षा लेने के लिए,
भगवान शंकर
सन्यासी का रूप धारन करके घर आये,
इतने में ही उस घर का मालिक भील भी चला आया,
और उसने बड़े प्रेम से उन यतिराज का पूजन किया,
उसने मनोभाव की परिक्षा के लिए उन यतिश्वर ने दीन भाणी में कहा,
हे भील,
आज रात में यहां रहने के लिए मुझे इस्थान दे दो,
सवेरह होते ही चला जाऊँगा,
तुम्हारा सदा कल्यान हो,
भील बोला,
स्वामी जी,
आप ठीक कहते हैं,
ततापी मेरी बात सुन्ये,
मेरे घर में इस्थान तो बहुत थोड़ा है,
फिर उसमें आपका रहना कैसे हो सकता है?
भील की यह बात सुनकर स्वामी जी वहां से चले जाने को उध्धत हो गए,
तब भील नी ने कहा,
कि जुळाख़े कुछ देकर हो गया.
पशू से पीडा देने लगे। उसने भी यताशक्ती
उनसे बचने के लिए महान यतन किया।
इस तरहें यतन करता हुआ वै भील बल्वान होकर भी प्रारब्ध
प्रेत हिनसक पश्वों का बलपूर्व क्हा लिया गया।
प्राते का अलुटकर जब यतीने देखा कि हिनसक पश्वोंने
वनवासी भील को खा डाला है
तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। सन्यासी को दुखी देख भीलनी दुख से
व्याकूल हुने पर भी धैरिये पूर्वक उस दुख को दवा कर यूं बोली।
हे स्वामी जी,
आप दुखी किसली हो रहे हैं?
इन भील राज का तो इस समय कल्यान ही हुआ है। ये धन्य
और कृतार्थ हो गए। जो इने ऐसी मृत्यू प्राब्त हुई,
मैं चिता की आग में जल कर इनका अनुसरन
करूंगी। आप प्रसनता पूर्वक मेरे लिए एक च
उसकी बात सुनकर सन्यासी जी ने स्वेम चिता तयार की
और भीलनी ने अपने धर्म की अनुसर उसमें फिरवेश किया।
उसी समय भगवान शंकर अपने साक्षात सरूप से उसके सामने
प्रगट हो गए और उसकी प्रशंसा करते वे बोले तुम धन्य हो,
धन्य हो,
मैं तुम पर प्रसन हूँ,
तुम इच्छानुसार वर मांगो,
तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अधे नहीं है।
बगवान शंकर का ये परमाननद दायक वचन सुनकर
भीलनी को बड़ा सुख मिला,
वो ऐसी विभोर हो गए कि उसे किसी भी बात की सुद नहीं थी।
उसकी उस अवस्था को लक्ष करके भगवान शंकर और भी प्रसन हुए,
और उसके एक न मांगने पर भी उसे वर देते भी बोले,
मेरा जो यती रूप है,
यह भावी जन्म में हंस रूप से प्रकट होगा
और प्रसनता पूरवक तुम दोनों का परसपर संयोग कराएगा।
यह है भील,
निशद देश की उत्तम राजधानी में राजा वीर सेन का शिष्ट पुत्र होगा।
उस समय नल के नाम से इसकी ख्याती होगी और तुम
विधर्व नगर के भीमराज की पुत्री दम्यन्ती होगी।
तुम दोनों मिलकर राज भोग भोगने के पश्चात वे मोक्ष प्राप्त करोगे,
जो बड़े-बड़े योगिश्वरों के लिए भी दुरलब है।
नन्धिश्वर कहते हैं,
ए मुने,
ऐसा कहकर भगवान शिव
उस समय लिंग रूप में इस्थित होगे।
वे भील अपने धर्म से विशलित नहीं हुआ था,
अतेहसी के नाम पर उस लिंग को
अचलेश संग्या दी गई।
दूसरे जन्मे वेह आहुक नामक भील,
नैशद नगर में वीरसेन का पुत्र हो,
महराज नल के नाम से विख्यात हुआ,
और आहुका नाम की भीलनी,
विधर्व नगर में राजा भीम की पुत्री दम्यन्ती हुई,
और वे यतीनाद शिव वहां हन्स रूप में प्रगट ह�
प्रसन हुँ भगवान शिव ने यहां,
हन्स का रूप धारन कर उन दोनों को सुक दिया,
हन्स आवतार धारी शिव भाती भाती की बाते
करने और संदेश पहुचाने में कुशल थे,
वे नल और दम्यन्ती दोनों के लिए परमाननद दायक हुए,
बोलिये शिवशंकर भग�
बगवान की जए,
और स्नेह के साथ ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय,
ओम नमः शिवाय.