Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रिय भक्तों,
शिष्यु महा पुरान के शत्रुद्र सहीता की अगली कथा है
शिव जी की अष्ट मूर्त्यों का तथा अर्ध नारी नर रूप का सवस्तार वर्णन।
तो आईए भक्तों,
आरंब करते हैं इस कथा के साथ
दूसरा और तीसरा अध्याय।
नन्दिश्वर जी कहते हैं
एश्वरे शाली मुने,
अव तुम महिश्वर के उन शेष्ट अवतारों का वर्णन शवन करो,
जो लोक में सबके संपून कारीयों को पून करने वाले अतेव सुख्ताता हैं।
तात,
यह जगतन परमिश्वर शम्भू की आठ मूर्तियों का स्वरूप ही है।
जैसे सूत में मनिया पिरोई रहती हैं,
उसी तरहें यह विश्व उन अश्ट मूर्तियों में व्याप्त होकर इस्थित है।
वे प्रसिद्ध आठ मूर्तियां यह हैं।
शर्व, भव, रुद्र,
उग्र,
भीम, पशुपती, ईशान और महादेव।
शिवजी के इन शर्व आधी अश्ट मूर्तियों द्वारा पृत्वी,
जल,
अगनी,
बायू,
आकाश,
ख्षित्रग्य,
सूर्य और चंद्रमा अधिष्ठित हैं।
शर्व आधी यह हैं।
वहें उस रूप को सत्व पुरुष उग्र कहते हैं।
महादेव का जो सब को अवकाश देने वाला सर्वभापी आकाशात्मक रूप हैं।
उसे भीम कहते हैं।
वहें भूत व्रंदिका भेदक हैं।
महादेव
नाम से पुकारा जाता है।
आत्मा, परमात्मा, शिव का अठ्वा रूप हैं।
वह मूर्ती अन्न मूर्तियों की व्यापिका है।
इसलिए सारा विश्व शिव में है।
जिसप्रकार व्रिश के मूल को सीचने से उसकी शाखाएं पुश्पित हो जाती हैं।
उसी तरहें शिव का पूजन करने से शिव स्वरूप विश्व परिपुष्ट हुता है।
जैसे इस लोक में पुत्र पोत्र आदी को प्रसन्न देखकर पिता हर्षित हुता है।
उसी तरहें विश्व को भली भाती हर्षित देखकर शंकर को आनन्न मिलता है।
इसलिए यदि कोई किसी भी देहधारी को कश्ट हुता है
तो निसंदही मानो उसने अश्टमूर्ती शिव का ही अनिष्ट किया है।
सनत्कुमार जी,
इसप्रकार भगवान शिव अपनी अश्टमूर्तियों द्वारा समस्त शिव को
अधिष्ठित करके भिराश्मान है। अते तुम पून
भक्ति भाव से उन परम कारण रुद्र का भजन करू।
प्रिये सन्तकुमार जी,
अब तुम शिव के अनूपम अर्धनारी नरूप का वर्णन सुनो।
हे महाप्राज्य,
वैरूप ब्रह्मा की कामणाओं को पूर्ण करने वाला है।
अगर वो प्रिये नहीं प्रग़त ही नहीं हुआ था,
इसलिए पद्मयोनी ब्रह्म मैतुनी सच्च्ची रचने में समर्थ न हो सके,
तव वे यों विचार करकी शम्भू की किरपा से
बिना मैतुनी पुरजा उत्पन नहीं हुँ सकती,
तप करने को उध्धत हुए।
उस समय ब्रह्मा पराशक्ती शिवा सही परमिश्वर शिव का
प्रेम पूर्वक हिर्दय में ध्यान करके गोर तप करने लगे।
तद अंतर
तपो अनुष्ठान में लगे हुए ब्रह्मा के उस तीवर
तप से थोड़ी ही समय में शिव जी प्रसन हो गए।
तब एक कश्ट हारी शंकर पूर्ण सच्चिदानन्द
की कामदा मूर्ती में प्रविश्ट होकर
अर्धनारी नर के रूप में ब्रह्मा के निकट प्रकत हो गए।
उन देवाधि देव शंकर को पराशक्ती शिवा के साथ आया हुआ देखकर
ब्रह्मा ने दन्ड की भाती भूण्य पर लेटकर उन्हें प्रणाम किया
और फिर वे हात जूड कर इस्तुती करने लगे।
तब विश्व करता
देवाधि देव महादेव महिश्वर परम प्रसन होकर ब्रह्मा
से मेग कीसी गंभीर मानी में पोले। ईश्वर ने कहा,
हे महाभाग वच्छ
मेरे प्यारे पुत्र पितामः,
मुझे तुम्हारा सारा मनूरत पूर्णते आग्यात हो गया है।
यों सवभाव से ही मधुर तथा परम उदार वचन कहकर शिवजी ने
अपने शरीर की अर्दभाग से शिवा देवी को प्रकट कर दिया।
अब शिवसे प्रतक होकर प्रगट हुई उन परमाशक्ती को देखकर,
ब्रह्मा विनम्र भाव से प्रणाम करके उनसे प्रार्थना करने लगे।
शिवसे
प्रार्थना करने लगे।
शिवसे प्रार्थना करने लगे।
वर्देश्वरी,
मैं तुमसे एक और वर की आश्णा करता हूँ। जगनमाता,
कृपा करके उसे भी मुझे दीजिये। मैं
तुम्हारे चर्णों में नमस्कार करता हूँ।
हे मातिश्वरी,
वह वर्याय है सर्व वापणी जगत जन्नी।
तुम चराचर जगत की वध्धी के लिए अपने एक सर्व
समर्थ रूप से मेरे पुत्र दक्ष की पुत्री हो जाओ।
ब्रह्मा द्वारा यों याच्णा किये जाने पर
परमिश्रि देवी शिवा ने तथास्तु ऐसा ही होगा कहकर
वह शक्ति ब्रह्मा को प्रदान कर दी।
सुत्राम जगन्मै शिवशक्ति शिवा देवी ने अपनी भोओं के
मद्यभाग से अपने ही समान प्रभावाली एक शक्ति की रच्ना की।
उस शक्ति को देखकर देव श्रेष्ट भगवान शंकर जो लीलाकारी,
कश्चहारी और कृपा के सागर हैं हसते हुए जगदंभिका से बोले।
शिव जी ने कहा,
एदेवी परमेश्ठी
ब्रह्मा ने तपस्या द्वारा त्मारी आराधना की है,
अतथ अब तुम उन पर प्रसन्न हो जाओ और उनका सारा मनोरत पूर्ण करो।
एमुने। इस प्रकार शिवा देवी ब्रह्मा को अनूपम शक्ती
प्रदान करके शम्भू के शरीर में प्रुविष्ठ हो गई।
तद पस्चात भगवान शंकर भी तुरंत ही अंतरध्यान हो गए।
तभी से इस लोक में इस्त्री भाग की
कल्पना हुई और मेथुनी शर्ष्ठी चल पड़ी।
इस से ब्रह्मा को महान आनन्द प्राप्त हुआ।
हे तात्
इस प्रकार मैंने तुम से शिवजी के महान अनूपम
आर्धनारी नरार्ध रूप का वर्णन कर दिया।
यह सत्वुर्षों के लिए मंगल दायक है।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
तो प्रिये भक्तों,
इस प्रकार यहां पर श्रिशिव महापुरान के
शत्रुद्र सहिता का
यह दूसरा और तीसरा ध्याय इस कथा के साथ समाप्त होता है।
अधिकारता पर बोलिये
शिवशंकर भगवाने की जैये।