Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शुषंकर भगवाने की जैये
प्रिये भक्तों
श्री शिव महा प्रान के शत रुद्र सहीता की अगली कथा है
शुव जी के दुर्वासा अवतार तथा हनूमद अवतार का वर्णन
तो आईए भक्तों
इस कथा के साथ आरम्ब करते हैं
उन्नीस्वा और बीस्वा अध्याय
नन्दिश्व जी कहते हैं
हे महा मुने
अब तुम शंभू के एक दूसरे चरित्र को
जिसमें शंकर जी धर्म के लिए दुर्वासा होकर प्रकट हुए थे
प्रेम पूर्वक शवन करो
अन्सुया के पती ब्रह्मवित्ता तपस्वी अत्री ने
ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार पत्नी सहीत
रिक्ष्य कुल परवत पर जाकर
पुत्र कामना से घोर तप किया
उनके तप से प्रसन होकर ब्रह्मा,
विश्णू और महिश्वर तीनों उनके आश्षम पर गए
उनोंने कहा कि हम तीनों संसार के ईश्वर
हैं हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे
जो तिरलोकी में विख्षात तथा माता पिता का यश पढ़ाने वाले होंगे।
यों कहकर वे चले गए।
ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा हुए,
जो देवताओं के समंद्र में डाले जाने पर समुद्र से प्रगट हुए थे।
विश्णों के अंश से स्विष्ट सन्यास पद्धिती को पचलित करने वाले
दत्य उत्पन्य हुए। और रुद्रक अंश से मुनीवर दुर्वासा ने जन्म लिया।
इन्दुर्वासा ने
महराज अम्रीश की परिक्षा की थी।
और जब सुधर्शन चक्र ने इसका पीछा किया,
तब शिवजी के आधेश से अम्रीश के द्वारा प्रार्थना करने पर चक्र शांत हुआ।
उन्होंने भगवान राम की परिक्षा की। काल ने मुनी का वेज
धारन करके शीराम के साथ एक शर्द की थी कि मेरे साथ बात
करते समय शीराम के पास कोई ना आये। जो आयेगा उसका निर्वासन
करदिया जाएगा। दुर्वासा जी ने हट करके लक्ष्वन को भेजा।
इसप्रकार दुर्वासा मुनी ने अनेइक विचित्र चरित्र किये।
हे मुने अब इसके बाद तुम हन्वान जी का चरित्र शावन करो।
हनुम्रदूप से शिव जी ने
बड़े उत्तम लिलाएं की।
हे विपरवर्ग,
इसी रूप से महिश्वा ने भगवान राम का परम हित किया था।
वे सारा चरित्र सब प्रकार के सुखों का
दाता है। उसी तुम प्रेम पूर्वक सुनो।
एक समय की बात है,
जब अत्यंत अद्भुद लीला करने वाले गुनशाली भगवान शम्भू को
विश्णू के मोहिनी रूप का अप्तर्शन प्राख्त हुआ,
जो वे कामदेव के बाणों से आहत हुए की तरहें ख्षुब्द हो उठें।
उस समय उन परमिश्वर ने राम कारिय की सिध्धी के लिए अपना भीर्य पात किया।
तफ सब्तरिशियों ने उस भीर्य को पत्र पुटक में इस्थापित कर दिया,
तत्पस्चात उन महरशियों ने शम्भु के अस भीर्य को राम कारिय की
सिध्धी के लिए गौतम कन्या अञ्जणी के कान के रास्ते स्थापित कर दिया।
उस समय आने पर
उस गर्व से शम्भु महान बलपराकरम संपन्य वानर शरीर
धारन करके उतपन्य हुए। उनका नाम हनुमान रखा गया।
कपिश्वर हनुमान जब शिशु ही थे
उसी समय उदै होते हुए सूर्य बिम्व को
चोटा सा फल समझकर तुरंत ही निगल गये।
जब देवताओं ने उनकी प्रार्थरणा की
तब उन्होंने उसे महाबली सूर्य जानकर उगल दिया।
तब देवरिशियों ने उन्हें शिव का अवतार माना और बहुत सा वर्दान दिया।
तद अंतर हनुमान अठ्यंत हर्षित होकर
अपनी माता के पास गये और उन्होंने ये
सारा व्रतान्त आदर पूर्वक कह सुनाया।
फिर माता की आज्या से धीर वीर कपी हनुमान ने नित्य
सूर्य के निकट जाकर उनसे अनायासी सारे विध्याईं सीखली।
तद अंतर रुद्र की अन्शभूत कपी शेष्ट हनुमान सूर्य की
आज्या से सूर्यांश से उत्पन हुए सुगरीव के पास चले गये।
इसके लिए उन्हें अपनी माता से भी अनुज्या मिल चुकी थी।
तद अंतर नंधिश्वर ने भगवान राम का
संपूर्ण चरित संख्षेब से वर्णन करके कहा।
हे मुने,
इस प्रकार कपी शेष्ट हनुमान ने सब तरहें से श्रीराम का कारिय पूरा किया।
नाना प्रकार की लिलाएं की,
असुरों का मान मरदन किया,
भूतल पर राम भकती की स्थापना की,
और स्वेम भगताग्र गण्य होकर सीताराम को सुख प्रदान किया।
वेरुद्रावतार एश्वर्यशाली हनुमान लक्ष्वन के प्रांदाता संपून
देवताओं के गर्वहारी और भकतों का उध्धार करने वाले हैं।
हे तात,
इसप्रकार मैंने हनुमान जी का स्रीष्ट चरित,
जो धन,
कीर्ती और आयु का वरधक तथा संपून अभिष्ठ फलों का दाता है,
तुम से वर्णन कर दिया।
जो मनुष्य इस चरितर को भकती पूरवक सुनता
है अथवा समाहित चित से दूसरे को सुनाता है,
वे इस लोक में संपून भोगों को भोग कर अंत
में परम मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
तो प्रीय भगतों,
इस प्रकार यहाँ पर शिवशिव महा पुरान के शत रुद्र सहीता की यह कथा
और उननीस तथा बीसमा अध्या यहाँ पर समाप्त होता है।
तो भगतों स्नेह के साथ बोलिये।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
बोलिये।
ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।