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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Dwitiya Sati Khand Adhyay-39

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Kailash Pandit

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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Dwitiya Sati Khand Adhyay-39

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवान की जए!
प्रीये भगतों,
शिषिव महापुरान के
रुद्र सहीता द्वतिय सती खंड की अगली कथा है
श्री विश्नु और देवताओं से एपराजित दधीची का
उनके लिए शाप और क्षूब पर अनुग्रह है
आईये भगतों,
आरम्ब करते हैं ये कथा और उन्तालीस्मा अध्याय
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद्ध,
भक्त वच्चल भगवान विश्नु राजाक्षूब का हित साधन करने
के लिए ब्रह्मन का रूप धारन कर दधीची के आश्यम पर गए
वहां उन जगत गुरू श्री हरी ने
शिव भक्त शिरोवनी
ब्रह्म रिशी दधीची को परणाम करके ख्षूब के कारिय
की सिध्धी के लिए उध्धत हो उनसे ये बात कही
श्री विश्णू बोले
भगवान शिव की आराधना में तत्पर रहने वाले अविनाशी ब्रह्म रिशी दधीच
मैं तुम से एक वर मांगता हूँ
उसे तुम मुझे दे दो
ख्षूब के कारिय की सिध्धी चाहने वाले दिवाधि देव
श्री हरी के इस प्रकार याचना करने पर शैव शिरोमनी
दधीच ने शिगर ही भगवान विश्णू से इस प्रकार कहा
दधीच बोले
ब्रह्मन
आप क्या चाहते हैं
यह मुझे घ्यात हो गया है
आप ख्षूब का काम बनाने के लिए साक्षाद भगवान श्री हरी ही ब्रह्मन का
रूप धारन करके यहां आये हैं इसमें संदेश नहीं कि आप पूरे मायावी हैं
किन्तु देवेश हे जनारदन मुझे भगवान रुद्र की कृपा से भूद,
भविश्च और वर्तमान तीनों कालों का ज्यान सदाही बना रहता है
हे सूवरत
मैं आपको जानता हूँ
आप पाप अहारी श्री हरी एवं विश्णू हैं
यह ब्राह्मन का वेश छोड़िये दुष्ट बुद्धी वाले राजा
अक्शोव ने आपकी आराधना की है इसलिए आप पधारे हैं
भगवन हे हरे
आपकी भक्त वच्षलता को मैं भी जानता हूँ
यह छल छोड़िये
अपने रूप को ग्रहन कीजीए और भगवान शंकर के इसमन में मन लगाईए
मैं भगवान शंकर की आराधना में लगा रहता हूँ
एसी दशा में भी
यदि मुझे किसी को भै हो तो आप उसे यतन पूर्वक सत्य की शपत के साथ कहिए
मेरा मन शिव के इसमन में ही लगा रहता है मैं कभी जूट नहीं बोलता
इस संसार में किसी देवता या दैत्य से भी मुझे भै नहीं होता
श्री विश्णू बोले उत्तम व्रत का पालन करने वाले दधीची
तुबारा भै सर्वता नश्च ही है
क्योंकि तुम शिव की आराधना में तत्पर रहते हो इसलिए सर्वग्य हो
परन्तु
मेरे कहने से तुम एक बार अपने प्रतिद्वन्दी राजाक्षू पर देवता
भगवान विश्णू का ये वचन सुनकर
शैव श्रोमनी महामुनी दधीची निरभय ही रहे और हसकर बोले
दधीची ने कहा
मैं देवाधी देव पिनाक पाणी भगवान शम्भू के परसाथ से कहीं
कभी किसी से और किंचित मात्र भी नहीं दरता
सदाही निरभय रहता हूं
इस पर श्री हरी ने मुनी को दबाने की
चेष्टा की देवताओं ने भी उनका साथ दिया
किन्तु सब के सभी अस्तर कुंठित हो गए
तद अंतर भगवान श्री विश्णू ने अगनित गणों की स्च्रिश्टी की
परन्तु महरशी ने उनको भी भस्म कर दिया
तब भगवान ने अपनी अनंत विश्णू मूर्थी प्रगट की
यह सब देख कर
चवन कुमार ने यहां जगडीश्वर भगवान विश्णू से कहा
ददीची बोले महाबाहो
माया को त्याग दीजिये
विचार करने से यह प्रतिभास मात्र प्रतीत होती है
हे माधव मैंने सहस्त्रो दुर्विज्ञे वस्तों को जान लिया है
आप मुझ में अपने सहित संपून जगद को देखिये
निरालस्य होकर मुझ में ब्रह्मा एवं रुद्र का भी धर्शन कीजिये
मैं आपको दिव्य द्रिश्टी देता हूँ
ऐसा कहकर भगवान शिव के तेज से पौन शरीर वाले चवन कुमार
दधीची मुनी ने अपनी देह में समस्त ब्रह्मान का धर्शन कराया
तब भगवान विश्णू ने उन पर पुनहें कोप करना चाहा
इतने में ही मेरे साथ राजा क्षू वहां पहुंचे
मैंने निष्चेष्ट खड़े हुए भगवान पद्मनाब
को तथा देवताओं को क्रोध करने से रोका
मेरी बात सुनकर इन लोगों ने ब्रह्मान धधीची को परास्त नहीं किया
श्री हरी उनके पास गए और उन्होंने मुनी को प्रानाम किया
तर अंतर क्षू अत्यंत दीन हो उन मुनीश्वर धधीची के
निगट गए और उन्हें प्रानाम करके प्रार्थना करने लगे
क्षू बोले
हे मुनी शेस्ठ
शिव भक्त शिरोमने
मुझ पर प्रसन होईए
हे परमिश्वर
आप दुर्जणों की दुश्टी से दूर रहने वाले हैं
मुझ पर कृपा कीजिये
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारध राजा क्षू की है बात सुनकर तपस्चा
के निधी ब्राह्मन धधीच ने उन पर अनुग्रह किया
तब पस्चात श्री विश्णु आधी को देख कर वे मुनी क्रोध से व्याकूल हो गए
और मन ही मन शिव का इसमर्ण करके विश्णु तथा देवताओं को शाप देने लगे
दधीची ने कहा
देवराज इंद्र सहित देवताओं और मुनीश्वरों तुम लोग रुद्र की क्रोधागनी
से श्री विश्णु तथा अपने गनों सहित पराजित और ध्वस्थ हो जाओ
देवताओं को इस तरह शाप दे ख्शू की ओर देख कर
देवताओं और राजाओं के पूजनीय द्विजशिष्ठ दधीच ने कहा
राजेंद्र ब्राह्मन ही बली और प्रभावशाली होते हैं
ऐसा इसपश्ट रूप से कहकर ब्राह्मन दधीच ये अपने आश्चम में प्रविश्ठ
हो गई फिर दधीच को नमसकार मात्र करके ख्शू अपने घर चले गई
तद पश्चाद भगवान विश्णु देवत
थानेश्वर नामक तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया
इस थानेश्वर की यात्रा करके मनुष्य शिव का सायुज्य प्राप्त कर लेता है
तात मैंने तुम्हें संख्षेप से ख्शू और दधीच के विवाद की कथा सुनाई
पानशंकर को छोड़कर केवल ब्रह्मा और विश्णु
को ही जो शाप प्राप्त हुआ उसका भी वर्णन किया
जो ख्शू और दधीच के विवाद सम्मंदि इस प्रसंग का नित्य
पाठ करता है वे अप मृत्यू को जीत कर देह त्याग के पश्यात
ब्रह्म लोक में जाता है
बोलिये शिवशंकर भगवान की जए
होम नमहां शिवाय

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