Nhạc sĩ: Traditional
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भोलिय शिवशंकर भगवान की जए!
प्रिय भक्तों,
शिष्यु महा पुरान के रुद्र सहीता..
..द्वित्य सती खंड की अगली कथा है.
दक्ष की साथ कन्याओं का विवहा..
..दक्ष और विरणी के यहां देवी शिवा का अवतार..
..दक्ष द्वारा
उनकी स्तुति तथा सती के सदगुणों एवं चेष्ठाओं से
माता पिता की प्रसन्यता.
तो आईए भक्तों,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ चोहद्वा अध्याय.
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे देवरिशे,
इसी समय दक्ष के इस
बरताओं को..
..जान कर मैं भी वहाँ आ पहुँचा
और पूर्वत उन्हें शांत करने के लिए सांत्वना देने लगा.
तुम्हारी प्रसन्यता को बढ़ाते हुए मैंने दक्ष के साथ
तुम्हारा सुन्दर सनेह पून सम्बन्द स्थापित कराया.
तुम मेरे पुत्र हो,
मुनियों में स्ठेश्ट और संपून देवताओं में प्रिय हो,
अतेख
बड़े प्रेम से तुम्हें आश्वासन देकर मैं फिर अपने इस्थान पर आ गया.
तद अंतर
प्रजापती दक्षने मेरी अनुने के अनुसार
अपनी पत्नी के गर्व से साथ सुन्दरी कन्याओं को जन्म दिया
और आलश से रहित हो धर्म आदी के साथ उन सब का विभा कर दिया.
हे मुनिश्वर
मैं उसी प्रसंग को बड़े प्रेम से कह रहा हूँ.
तुम सुनो हे मुने दक्षने अपनी दस कन्याएं
विधी पूर्वक धर्म को ब्याह दीं,
तीहरे कन्याएं कश्चप मुनी को दे दीं,
और सत्ताइस कन्याओं का विभा चंद्रमा के साथ कर दिया.
भूत या बहुपुत्र
अंगिरा तथा किशाश्व को उन्होंने दो दो कन्याएं दीं,
और शेष चार कन्याओं का विभा तार्क्ष या अरिष्टनेमी
के साथ कर दिया.
इन सब की संतान परमपराओं से तीनों लोग भरे पड़े हैं अतहें विस्तार भैसे
उनका वर्णन नहीं किया जा सकता.
कुछ लोग शिवा या सती को दक्ष की जेष्ट पुत्री बताते हैं,
दूसरे लोग उन्हें मंजली पुत्री कहते हैं,
तता कुछ अन्ने लोग सबसे छोटी पुत्री बताते हैं.
कल्पभेद से ये तीनों मत ठीक हैं.
पुत्रों और पुत्रियों की उत्पत्ती के पश्चात,
पत्नी सहीत प्रजापती दक्ष ने बड़े प्रेम से मन ही मन
जगदंबिका का ध्यान किया,
साथ ही गदगद वानी से प्रेम पुर्वक उनकी स्तुती भी किया.
बारंबार अञ्जली बांध नमस्कार करके वे
विनीद भाव से देवी को मस्तक जुकाते थे.
इससे देवी शिवा संतुष्ठ होई और उन्होंने अपने
प्रण की पूर्टी के लिए मन ही मन यह विचार किया
कि अम मैं विरणी के गर्व से अवतार लूँ.
ऐसा विचार कर वे जगदंबा दक्ष के हिर्दे में निवास करने लगी.
हे मुनी शेष्ट उस समय दक्ष की बड़ी शोभा होने लगी.
फिर उत्तम मुहुर्त देख कर दक्ष ने अपनी
पतनी में प्रसनता पूर्व गर्वाधान किया.
तब दयालू शिवा दक्ष पतनी के चित में निवास करने लगी.
उनमें गर्व धारन के सभी चिन्न प्रगत हो गए.
हे तात उस अवस्था में विर्णी की शोभा बढ़
गई और उसके चित में अधिक हर्ष च्छा गया.
बगवती शिवा के निवास के प्रभाव से विर्णी महामंगल रूपनी हो गई.
दक्षने अपने कुल संप्रदाय,
वेद ज्ञान और हार्दिक उत्साह के अनुसार प्रसनता पूर्वग
पुन्सवन आदी संसकार संबंदी सेश्ट किरियाएं संपन्न की.
उन कर्मों के अनुस्थान के समय महान उत्साव हुआ.
प्रजापती ने ब्राह्मनों को उनकी इच्छा के अनुसार धन दिया.
उस अवसर पर विर्णी के गर्ह में देवी का निवास हुआ जानकर,
श्री विश्नू आदी सब देवताओं को बड़ी प्रसनता हुई.
उन सबने वहाँ आकर जगदंबागा इस्तमन किया और समस्त लोकों
का उपकार करने वाली देवी शिवा को बारंबार प्रणाम किया.
वे सब देवता प्रसन्य चित हुए,
दक्ष प्रजापती तथा विर्णी की भूरी भूरी
प्रशंसा करके अपने अपने इस्थान को लोड गये.
हे नारद,
जब नो महीने बीड गये,
तब लोकिक गती का निर्भा कराकर दस्मे महीने के पूर्ण होने पर
चंद्रमा आदी ग्रहों तथा ताराओं की अनुकूलता से युक्त सुखद
मुहुर्त में देवी शिवा शीगर ही अपनी माता के सामने प्रगत हुई.
उनकी अवतार लेते ही प्रजापती दक्ष बड़े प्रसन हुए
और उने महान तेज से दिदिप्यमान देख उनके मन में ये विश्वास हो गया
कि साक्षात वे शिवा देवी ही मेरी पुत्री के रूप में प्रगत हुई है.
उस समय आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी,
मेग जल बरसाने लगे,
हे मनिश्वर सती के जन्म लेते ही सम्पूर्ण दिशाओं में ततकाल शान्ती चागई,
देवता आकाश में खड़े हो,
मांगलिक बाजे बजाने लगे,
अगनी शालाओं की भुजीवी अगनिया सह
दक्षने दोनों हाथ जोड़कर नमसकार किया और
बड़े भकती भाव से उनकी बड़ी इस्तुती की
बुद्धिमान दक्ष के इस्तुती करने पर जगदन
माता शिवा उस समय दक्ष से इस परकार बोली,
जिससे माता विरणिनी ने सुन सके
देवी बोली पुरजापते
तुमने पहले पुत्री रूप में मुझे प्राप्त करने की लिए मिरी आराधना की
तुम्हारा ये मनोरत आज सिद्ध हो गया
अब तुम उस तपस्या के फल को ग्रहन करो
उस समय दक्ष से ऐसा कहकर देवी ने अपनी माया से शिष्व रूप
धारन कर लिया और शैश्यव भाव प्रगट करती हुई वे वहां रोने लगी
उस बालीका का रोधन सुनकर सभी इस्त्रियां और
दासियां बड़े वेग से प्रसनता पूर्वक वहां पहुची
असिकनी की पुत्री का अलोगिक रूप देखकर
उन सभी इस्त्रियों को बड़ा हर्ष हुआ
नगर के सब लोग उस समय जैजै कार करने लगे गीत
और वाद्धों के साथ बड़ा भारी उत्सव होने लगा
पुत्री का मनोहर मुख देखकर सब को बड़े ही प्रसनता हुई
दक्षने वैदिक और कलोचित आचार का विधी पूर्वक अनुष्थान किया
ब्राह्मनों को दान दिया और दूसरों को भी धन बाटा
सब और यतोचित गान और नत्य होने लगा
भाती भाती के मंगल किर्त्यों के साथ बहुत से बाजे बजने लगे
उस समय दक्षने समस्त सद्गुणों की सत्ता से प्रसन्सित
होने वाली अपनी उस पुत्री का नाम प्रसनता पूर्वक
ओमा रखा
तद अंतर संसार में लोगों की और से उसके और भी नाम पुरिचलित किये गए
जो सब के सब महान मंगल दायाक तथा विशेस्थ
समस्त दुखों का नाश करने वाले हैं
वारणी और महत्मा दक्ष अपनी पुत्री का पालन करने लगे
तथा वह शुक्लपक्ष की चंद्र कला के समान तिनों दिन बढ़ने लगी
दुझ शेष्ट बाल्यावस्था में भी समस्त उत्तम
उत्तम गुण उसमें उसी तरह परवीश करने लगे
जैसे शुक्लपक्ष के बाल चंद्रमा में भी
समस्त मनो हारणी कलाएं परवीश्ट हो जाती हैं
दक्ष कन्यासती सक्हियों के बीच बैठी बैठी जब अपने भाव में निमगन
होती थी तब बारंबार भगवान शिव की मूर्ती को चित्रित करने लगती थी
बोली शिव शंकर भगवान की जैए
प्रिये भक्तों
इस प्रकार यहाँ पर
शिव महा पुरान की रुद्र सहीता दुत्या सती खंड
की ये कथा और चोहदमा अध्याय समाप्त होता है
बोली शिव शंकर भगवान की जैए
॥
भगवान की जैए ॥