Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की जए!
प्रिये भक्तों,
शिशिव महा पुरान के
रुद्ध सहीता द्वित्य सती खंड की ये
अगली कता है
ब्रह्मा जी की आग्या से दक्ष द्वारा मैथुनी स्रष्टी का आरंब
अपने पुत्र
हैरिश्वों
और शबलाश्वों को निवत्ती मार्ग में
भेजने के कारण दक्ष का नारद को शाप देना
आईये भक्तों,
इस कथा के साथ तेर्वा अध्याय आरंब करते हैं
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद प्रजापति दक्ष अपने आश्यम पर जाकर मेरी आग्या पा
हर्ष भरे मन से नाना प्रकार की मानसिक स्रिष्टी करने लगे
उस प्रजास्यश्टी को बढ़ती हुई न देख प्रजापति
दक्ष ने अपने पिता मुझ ब्रह्मा से कहा
दक्ष बोले
हे ब्रह्मन
हे तात
प्रजानात
प्रजा बढ़ नहीं रही है
हे प्रभो
मैंने जितने जीवों की स्विष्टी की थी वे सब उतने ही रह गए हैं
हे प्रजानात मैं क्या करूँ
जिस उपाये से जीव अपने आप बढ़ने लगें
वहें मुझे बतलाईए
तदनुसार मैं प्रजाक की स्विष्टी करूँगा
इसमें संशे नहीं है
ब्रह्मा जी अर्थात मैंने कहा
हे तात
प्रजापति दक्ष
मेरी उत्तम बात सुनो
और उसके अनुसार
कारिय करो
सुर्ष्ट भगवान शिव तुम्हारा कल्यान करेंगे
प्रजेश प्रजापति पंच जन वीरन
की जो परम सुन्द्री पुत्री
असिकनी है
उसे तुम पत्नी रूप में ग्रहन करो
इस्त्री के साथ मैथुन धर्म का आ
आपने पट्नी वीरनी के गर्व से प्रजापति
दक्ष ने दस हजार पुत्री के साथ विवहा किया
अपनी पत्नी
वीरनी के गर्व से प्रजापति दक्ष ने दस हजार पुत्र उत्पन ने किये
जो
हैर्यश्व कहलाए
हे मुने वे सबके सब पुत्र समान धर्म का आचन करने वाले हुए पिता
की भक्ती में तद पर रहकर वे सदा वैधिक मार्ग पर ही चलते थे
एक समय पिता ने उन्हे प्रजा की स्वश्टी करने का आधेश दिया
तात तवे सभी दाक्षायन नामधारी पुत्र स्वश्टी के
उद्धिश से तपस्या करने के लिए पश्चिम दिशा की ओर गए
वहाँ नारायन सर नामग
परमपावन तीर्थ है जहाँ दिव्य सिन्धुनद और समुद्र का संगम हुआ है
उस तीर्थ जल का ही निकट से सपर्ष करते उनका
अंतयकरन शुद्ध एवं ज्यान से संपन्य हो गया
उनकी आंत्रिक मलराशी धुल गई और वे परमहंस धर्म में इस्तित हो गए
दक्ष के वे सभी पुत्र पिता के आदेश में बंधे होए थे अतयमन
को स्विष्ठिर करके पुरजा की व्रध्धी के लिए वहाँ तप करने लगे
वे सभी सत्पुर्शों में शेष्ठ थे नारध जब तुम्हें पता लगा की
हरिश्वगन सिष्टी के लिए तपस्या कर रहे हैं तब भगवान लख्ष्मी पती के
हार्धिक अभिप्राय को जान कर तुम स्वइम उनके पास गए और आदर पूर्वक यों बोले
दक्ष पुत्र हरिश्वगन तुम लोग पुरिथ्वी का अंत देखे
बिना सश्टी रचना करने के लिए कैसे उद्धत हो गए
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारध
हरिश्व आलश्य से दूर रहने वाले थे और जन्व काल से ही बड़े बुद्धीमान थे
वे सब के सब तुम्हारा उपर्यूक्त कथन सुनकर स्वयम उस पर विचार करने लगे
उन्होंने यह विचार किया कि जो उत्तम शास्तर
रूपी पिता के निवत्ती परक आदेश को नहीं समझ था
वे केवल रज आदी गुनों पर विश्वास करने वाला पुर्ष
स्रिष्टी निर्मान का कारिये कैसे आरंब कर सकता है
ऐसा निश्चे करके वे उत्तम बुद्धी और एकचित वाले
दक्ष कुमार नारद को परणाम और उनकी परिक्रमा करके ऐसे
पथ पर चले गए जहां जाकर कोई वापस नहीं लोटता है
हे नारद तुम भगवान शंकर के मन हो और मुने
तुम समस्त लोकों में अकेले विच्रा करते हो
तुम्हारे मन में कोई विकार नहीं है
क्योंकि तुम सदा महेश्वर की मनोवरती के अनुसार ही कारिय करते हो
जब बहुत समय बीट गया
तब मेरे पुत्र परजापती दक्ष को यह पता लगा कि
मेरे सभी पुत्र नारद से शिक्षा पाकर नष्ट हो गए,
मेरे हाथ से निकल गए,
इस से उन्हें बड़ा दुख हुआ
वे बार बार कहने लगे उत्तम संतानों का पिता होना शोक का ही स्थान है
क्योंकि सेश्ट पुत्रों के बिछुड जाने से पिता को बहुत कश्ट होता है
शिव की माया से मोहित होने से दक्ष को
पुत्र वियोग के कारण बहुत शोक होने लगा
तब मैंने आकर अपने बेटे दक्ष को बड़े प्रेम से समझाया और सांत्वना दी
देव का विध्हान प्रवल होता है इत्यादी बाते बताकर उनके मन को शांत किया
मेरे सांत्वना देने पर दक्ष पुन है पंच जन कन्या आशिकनी
के गर्व से शबलाश्व नाम के एक सहस्त्र पुत उत्पन ने किये
पिता का आधेश पाकर वे पुत्र भी पजा सिष्टी के लिए द्रह्धा पूर्वक
प्रितिग्या पालन का नीम ले उसी स्थान पर गए
जहां उनके सिध्धी को प्राप्थ हुए बड़े भाई गए थे
नारायन सरोवर के जल का इसपर्श होने मातर से उनके सारे
पाप नष्ट हो गए अंतह करण में शुद्धता आ गई और वे उत्तम
वरत के पालक शबलाश्व ब्रह्म प्रणो का जब करते हुए वहां
बड़ी भारी तपस्या करने लगे उने प्रजा सिष्टी के लिए उ�
प्रजा पती दक्ष को बहुत से उत्पात दिखाई दिये इससे मेरे पुत्र दक्ष को
बड़ा विश्मय हुआ और वे मन ही मन दुखी हुए फिर उनोंने पूर्वत तुमारी ही
कर्तूत से अपने पुत्रों का नाश हुआ सुना इससे उने बड़ा श्रेव देखे जाए
वे पुत्र शोक से मूर्चित हो अत्यंत कश्ट का अनुभव
करने लगे फिर दक्ष ने तुम पर बड़ा क्रोध किया और कहा
यह नारत बड़ा दुश्ट है
देववश उसी समय तुम दक्ष पर अनुग्रह करने
के लिए वहाँ पहुँचे तुम्हे देखते ही शोकाव
तुम्हे जूट मूट साधुओं का
बाना पहन रखा है इसी के द्वारा ठक कर हमारे
भोले भाले बालकों को जो तुमने विक्षाओं का
मार्ग दिखाया है यह अच्छा नहीं किया तुम निर्दय
और शट हो इसलिए तुमने हमारे बालकों के जो
अभी रिशी रिण,
दे
ब्रह्मचरिय पालन पूर्वक
वेद शास्त्रों के स्वाध्याय से रिशी रिण,
यग्य और पूजा आधी से देव रिण तथा पुत्र के
उत्पादन से पित्र रिण का निवारन होता है
लोक और परलोक दोनों के श्रेय का नाश कर डालता है जो पुरुष इन तीनों
रिणों को उतारे बिना ही मोक्ष की इच्छा मन में लिए माता पिता को त्याग कर
घर से निकल जाता है सन्यासी हो जाता है वे अधोगती को प्राप्त होता है
तुम निर्दय और बड़े निर्लज्ज हो बच्चों की बुद्धी में भेद
पैदा करने वाले हो और अपने स्वयश को स्वयम ही नश्ट कर रहे हो
मूडबते तुम भगवान विश्णू के पार्शदों में व्यर्थ ही घूंदे फिरते हो
अधमाधम तुमने बारंबार मेरा अबंगल किया है अते आज से तीनों
लोकों में विचरते हुए तुमारा पैर कहीं इस्ठिर नहीं रहेगा
तुमारा कहीं भी तुमें ठहरने के लिए सुईस्ठिर ठोड ठिकाना नहीं मिलेगा
ए नारध यद्यपी तुम साधु पुर्शों द्वारा सम्मानित हुँ
तथापी उस समय दक्ष के शोकवस तुमें
वैसा शाप दे दिया
वे इश्वर की इच्छा को नहीं समझ सके शिव
की माया ने उने अत्यंत मोहित कर दिया था
हे मुने तुमने उस शाप को चुपचाप ग्रहन कर
लिया और अपने चित में विकार नहीं आने दिया
यही ब्रह्म भाव है इश्वर कोटी के महात्मा पुरुष स्वेम
शाप को मिटा देने में समर्थ होने पर भी उसे सहे लेते हैं
प्रिया भक्तों,
इस प्रकार यहां पर शिष्टि सहिता दुट्य सती खंड
की ख़था और तेर्वा ध्या यहां पर समाप्त होता है
शिवाय
ओम् नमहां शिवाय
ओम् नमहां शिवाय