Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की जए!
प्रिये भक्तों,
शिष्यु महा पुरान के रुद्र सहीता
द्विती सती खंड की अगली कता है
सती को शिवसे वर की प्राप्ती
तथा भगवान शिव का ब्रह्मा जी को दक्ष के पास भेजकर
सती का वरन करना
तो आईये भक्तों आरंब करते हैं कथा
और सत्रवा अध्याय
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे मुने
उधर सती ने आश्विन मास के शुकल पक्ष की अश्टमी तिथी
को उपवास करके भक्ती भाव से सरविश्वर शिव का पूजन किया
इसप्रकार नन्दा वरत पूर्ण होने पर
नव्मी तिथी को दिन में ध्यान मगन हुई सती
को भगवान शिव ने प्रत्यक्ष दर्शन दिये
उनका श्री विग्रह सरवांग सुन्दर एवं गोर वर्ण का था
उनके पांच मुख थे और प्रतेक मुख में तीन तीन नेत्र थे
भाल देश में चंद्रमा शोबा दे रहा था
उनका चित्र
प्रसन्न था और कंठ में नील चिन दिश्टी गोचर होता था
उनके चार भुजाएं थी उनोंने हाथों में तिर्शूल ब्रह्म कपाल
वर्ण तथा आवे धारन कर रखे थे
भस्म में अंग राग से उनका सारा शरीर उद्भासित हो रहा था
गंगा जी उनके मस्तक की शोभा बढ़ा रही थी उनके सभी अंग
बड़े मनोहर थे वे महान लावण्य के धाम जान पढ़ते थे
उनके मुख करोडो चंद्रमाओं के समान प्रकाश्मान एवं आलाध जनक थे
उनकी अंग कान्ती करोडो कामदेव को तुरिश्कत कर रही थी
तथा उनकी आकृती इस्त्रियों के लिए सरवता ही प्रिय थी
सती ने ऐसे सोंद्रिये माधुरिये से युक्त प्रभु महादेव
जी को प्रतक्ष देख कर उनके चर्णों की वन्दना की
उस समय उनका मुख लज्जा से जुका हुआ था
तपस्चा के पुञ्ज का फ़ल परदान करने वाले महादेव जी
उनहीं के लिए कठोर व्रत धारन करने वाली सती को पत्मी
बनाने के लिए प्राप्त करने की इच्छा रखते हुए भी
उनकी बात सुनने के लिए बोले
कोई वर मांगो परन्तु सती लज्जा के अधीन हो गई थी
इसलिए उनकी हिरदे में जो बात थी उसे वे सपष्ट
शब्दों में कहे न सकी उनका जो अभीष्ट मनोरत था
वे लज्जा से आच्छाडित हो गया
पानवल्लब शिव का प्र
भगवान शंकर बड़े प्रसन हुए और शीगरता
पूरवक बारंबार कहने लगे वर मांगो वर मांगो
सत्पुर्शों के आश्रे भूत अंतरयामी शंभू सती की भक्ती के वशी
भूत हो गए थे तब सती ने अपनी लज्जा को रोक कर महादेव जी से कहा
वर देने वा
जो टल न सके
भक्त वच्चल भगवान शंकर ने देखा
सती अपनी बात पूरी नहीं कर पा रही है तो वे स्वेम ही उनसे बोले
देवी तुम मेरी भारिया हो जाओ
अपने अभीश फल को प्रगट करने वाले उनके इस वचन
को सुनकर आनन्द मगन हुई सती चुप चाप खड़ी रह गई
क्योंकि वे मनुवान्चित वर पाचुकी थी
फिर दक्ष कन्या प्रसन हो दोनों हात जोड कर
मस्तक जुका भक्त वच्चल शिव से बारंबार कहने लगी
सती बोली
हे देवादी देव महादेव
हे प्रभू
हे जगत्पते
आप मेरे पिता को कहकर वेवाहिक विधी से मेरा पाने ग्रहन करें
ब्रह्मा जी कहते हैं कि हे नारद सती
की है बात सुनकर भक्त वच्चल महाईश्र ने
प्रेम से उनकी ओर देखकर कहा
प्रिये
ऐसा ही होगा
तव दक्ष कन्या सती भी भगवान शिव को प्रणाम करके भक्
आनन्द से युप्त हो माता के पास लोट गई
इदर भगवान शिव भी हिमाल्य पर अपने आश्रम में प्रवेश करके दक्ष कन्या
सती के वियोग से कुछ कश्ट का अनूभव करते हुए उनी का चिंतन करने लगे
हे देवरशे फिर मन को एकागर करके लोकिक गती का आश
प्रेरित हो मैं तुरंत ही उनके सामने जा खड़ा हुआ
हे तात
हिमाल्य के शिकर पर जहां सती के वियोग का
अनूभव करने वाले महादेव जी विद्दमान थे
वही मैं सरस्वती के साथ उपस्तित हो गया
हे देवरशे सरस्वती सहित मुझे आया देख
सती के प्रेम पाश में बंधे हुए शिव उत्सुक्ता पूर्वक बोले
शम्भू ने कहा
ब्याहमन मैं जब से विभा के कारिये में स्वार्थ बुद्धी कर बैठा हूँ
तब से अम मुझे इस स्वार्थ में ही स्वत्व सा प्रतीत होता है
दक्ष कन्यासती ने बड़ी भक्ती से मेरी आराधना की है
उसके इनन्दा व्रत के प्रभाव से मैंने उसे अभिष्ठ वर देने की गोशना की
ब्याहमन तब उसने मुझे यह वर मांगा कि आप मेरे पती हो जाईए
यह सुनकर सरवता संतुष्ठ हो मैंने भी कह दिया
कि तुम मेरी पत्नी हो जाओ
तब दाख्षायनी सती मुझे से बोली जगतपते आप मेरे पिता
को सुचित करके वैवाहिक विदी से मुझे ग्रहन करें
हे ब्रह्मन उसकी भक्ती से संतुष्ठ होने के
कारण मैंने उसका यह अन्रोध भी स्विकार कर लिया
विधातः तब सती अपनी माता के घर चली गई और मैं यहां चला आया
इसलिए अब तुम मेरी आज्या से दाख्ष के घर जाओ और एसा यतन करो
जिससे परजापती दाख्ष शिगर ही मुझे अपनी कन्या का दान कर दें
उनके इसपरकार आज्या देने पर मैं कृत कृत और प्रसन्न हो गया
उन भक्त वच्चल विश्वनात ने इसपरकार बोला
मुझ ब्रह्मा ने कहा
हे भगवन हे शंभू
आपने जो कुछ कहा है उसपर भली भात ही विचार करके
हम लोगों ने पहले ही उसे सुनिश्चित कर दिया है
वशब्धज इसमें मुख्रते देवताओं का और मेरा भी स्वार्थ है
दक्ष स्वेम ही आपको अपनी पुत्री परदान करेंगे
किन्टु आपकी आज्या से मैं भी उनके सामने आपका संदेश कहे दूँगा
सरविश्वर महाप्रभू महादेव जी से अईसा कहकर मैं
अच्यंत वेगशाली रत के दुआरा दक्ष के घर जा पहुँचा
नारत जी ने पूछा नारायन नारायन वक्ताओं में सेश्ट महाभाग
विधात बताईए
जब सती घर पर लोट कर आई तब दक्ष ने उनके लिए क्या किया
ब्रह्मा जी ने कहा
तपस्या करके मनोवान छित वर पाकर सती जब घर को लोट आई
उदार चेता दक्ष और महा मनष्वनी वीरनी ने
ब्रह्मानों को उनकी इच्छा के अनुसार द्रव्य दिया
तथा अन्यान्य अंधों और दीनों को भी धन बाता
परसनता बढ़ाने वाली अपनी पुत्री को हिरदे से लगा कर माता वीरनी
ने उसका मस्तक सुंगा और आनंद मगन होकर उसकी बारंबार प्रशंसा की
तरंतर कुछ काल व्यतीत होने पर
धर्मग्यों में शेष्ट दक्ष
इस चिन्ता में पड़े की मैं अपनी इस पुत्री
का विवा भगवान शंकर के साथ किस तरह करूँ
महादेव जी प्रसन होकर आय थे पर वे तो चले गए
अम मेरी पुत्री के लिए वे फिर कैसे यहां आयेंगे
यदि किसी को शिगर ही भगवान शिव के निकट
भेजा जाय तो यह भी उचित नहीं जान पड़ता
क्योंकि यदि वे इस तरह अन्रोध करने पर भी मेरी पुत्री को ग्रहन न करें
तो मेरी याच का निस्फल हो जायेगी
इस प्रकार की चिन्ता में पड़े हुए प्रजापती दक्ष
के सामने मैं सरस्वती के साथ सहसा उपस्थित हुआ
मुझ पिता को आया देख दक्ष परनाम करके विनीत भाव से खड़े
हो गए उन्होंने मुझ स्वेम्भू को यथा योग्य आसन दिया
एए प्रजापते भगवान शंकर ने तुम्हारी पुत्री को प्राप्त
करने के लिए निष्चय ही मुझे तुम्हारे पास भेजा है
इस विशय में जो स्वेष्ट कृत्र हो उसका निष्चय करू
जैसे सती ने नानापरकार के भावों से तता सात्विक व्रत के द्वारा
भगवान शंकर की आराधना की है उसी तरहें वे भी सती की आराधना करते
हैं इसलिए हे दक्ष भगवान शिव के लिए ही संकलपित
एवं प्रगत हुई अपनी इस पुत्री को तुम अविलम्ब �
जाकर उन्हें तुमारे घर लियाओंगा फिर तुम उन्हीं के
लिए उत्पन्य हुई अपनी ये पुत्री उनके हात में दे दो
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद मेरी है बात सुनकर मेरे पुत्र दक्ष को बड़ा हर्ष हुआ
वे अत्यंत प्रसन्न होकर बोले
हे बिताजी ऐसा ही होगा
मुने
तब में अत्यंत हर्षित हो वहां से उस इस्थान को लोटा
जहां लोक कल्यान में तत्पर रहने वाले भगवान शिव
बड़ी उत्सुकता से मिरी प्रितीक्षा कर रहे थे
हे नारद
मेरे लोट आने पर इस्त्री और पुत्री सहित
पुर्जापती दक्ष भी पून काम हो गए
वे इतने सन्तुष्ठ हुए मानों अमरित पीकर अगा गए हो
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैये
तो प्रिय भक्तों इसप्रकार यहां पर शिष्यु महा पुरान के रुद्र सहिता
द्वितिय सती खंड का
सत्रवा अध्यायत समाप्त होता है
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैये