Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की जए!
प्रिये भगतों,
आज हम आपको आरम्ब करने जा रहे हैं.
श्रीशिव महापुरान के रुद्र सहीता का
चतुर्थ खंड,
अर्थात कुमार खंड.
तो आईए आरम्ब करते हैं,
श्रीशिव महापुरान के रुद्र सहीता,
चतुर्थ कुमार खंड को.
और इसकी पहली कथा है,
नारकासुर का आना और दोनों सेनाओं में मुठबेड,
वीर भद्र का तारक के साथ गोर संग्राम,
पुनहें श्री हरी और तारक में भयानक युद्ध.
तो आईए बंदु,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ,
पहले से लेकर आठ्वा अध्याय तक.
वन्दे वन्दन्तुष्ट मानस समित
प्रेमप्रियं प्रेमदं
पूर्णं पूर्ण करं प्रपूर्ण निकलेश्वर्यः कवासं चिवं
वन्दना करने से जिनका मन प्रसन्न हो जाता है,
उन्हें प्रेम अध्यंत प्यारा है।
जो प्रेम प्रदान करने वाले
पूर्णानन्द में भक्तों की अभिलाशा पून करने
वाले सम्पूर्ण एश्वर्ये के एक महत्र आवास थान
और कल्यान सरूप हैं,
सत्य जिनका श्री विक्रे है।
जो सत्य में हैं,
जिनका एश्वर्ये
त्रिकाला बाधित हैं।
जो सत्य प्रिये एवं सत्य प्रदाता हैं,
ब्रह्मा और विश्णू जिनकी स्तुती करते हैं।
स्विज्चानुसार शरीर धारन करने वाले
उन भगवान शंकर की मैं वंदना करता हूं।
श्री नारद जी ने पूछा,
नारायन, नारायन,
देवताओं का मंगल करने वाले देव,
परमात्मा शिव तो सर्व समर्थ हैं।
आत्माराम होकर भी उनोंने
जिस पुत्र की उत्पत्ती के लिए पार्वती के साथ विवहा किया था,
उनके वै पुत्र किस प्रकार उत्पन्य हुआ,
तथातार कासुर का वद्ध कैसे हुआ।
हे ब्रह्मन,
मुझ पर कृपा करके
यह सारा व्रतान्त
पून रूप से वर्णन कीजिये।
इसके उत्तर में ब्रह्मा जी ने कथा प्रसंग सुनाकर
कुमार के गंगा से उत्पन्य होने तथा कृतिका आदी छे स्ठियों के द्वारा
उनके पाले जाने,
उन छहों की संतुष्टी के लिए उनके छे मुख धारन करने,
और कृतिकाओं के द्वारा पाले जाने के कारण
उनका कार्थिकेय नाम होने की बात कही।
तरंतर उनके शंकर गिर्जा की सेवा में लाये जाने की कथा सुनाई।
फिर ब्रह्मा जी ने कहा,
भगवान शंकर ने कुमार को गोद में बैठा कर
अत्यंत स्मेह किया।
देवताओं ने उन्हे नाना परकार के पदार्थ,
विध्याएं,
शक्ती और अस्त्र शस्त्र अधी प्रदान किये।
पारवती के हिरदे में प्रेम समाता नहीं था,
उन्होंने हर्ष पूर्वक मुषकरा कर कुमार को परमुत्तम अश्वरे प्रदान किया।
पाथी चिरनजीवी भी बना दिया।
लख्ष्मी ने दिव्य संपत तथा एक विशाल
एवं मनोहर हार अर्पित किया।
सावित्री ने प्रसन्न होकर सारी सिध्ध विध्याएं प्रदान किया।
मुनी शेष्ट इस प्रकार वहां महोच्छव मनाया गया।
परवती परिणे तथा कुमार उत्पत्ती आधी उत्तम चरित घटित हुआ है।
उसका काम तमाम करने के हेतु
कुमार को आज्याती जीए। हम लोग आज ही अस्तर शस्त से सुसजजित होकर
तारक को मारने के लिए रन्यात्रा करेंगे।
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे मुने यह सुनकर भगवान शंकर का हिरदय दयारद्र हो गया।
उन्होंने उनकी प्रार्थना स्विकार करके उसी समय तारक का
वद करने के लिए अपने पुत्र कुमार को देवताओं को सौप दिया।
फिर तो शिवजी की आज्या मिल जाने पर ब्रह्मा,
विश्णू आदी सभी देवता एकत्र होकर गुह को
आगे करके तुरंत ही उस परवत से चल दिये।
उस समय श्री,
हरी आदी देवताओं के मन में पून विश्वास था
कि अवश्य तारक का वद कर डालेंगे।
वे भगवान शंकर के तेज से भावित हो,
कुमार के सेना पतित्व में तारक का संघार करने के लिए रणक शित्र में आये।
उधर महाबली तारक ने
जब देवताओं के इस युद्योध्योग को सुना,
तव वेह भी एक विशाल सेना के साथ
देवों से युद्ध करने के लिए ततकाल ही चल पड़ा।
उसकी उस विशाल वाहिनी को आती देख,
देवताओं को परम विश्मे हुआ,
फिर तो वे बलपूरवक बारंबार सिंगनाज करने लगे।
उसी समय तुरंत ही भगवान शंकर की प्रेड़ना से
विश्णू आती संपून देवताओं के प्रती आकाश्वानी हुई।
आकाश्वानी ने कहा,
हे देवगण,
तुम लोग जो कुमार के अधिनायक्तों में युध करने के लिए उध्धत हुए हुँ,
इससे तुम संग्राम में देवत्यों को जीत कर विजएई होगे।
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे मुने,
उस आकाश्वानी को सुनकर सभी देवताओं का उत्साः बढ़ गया।
उनका भै जाता रहा
और वे वीरोचित गरजना करने लगे।
युद्ध कामना बलवती हो उठी और वे सब के सब
कुमार को अगरणी मान कर
बड़ी उतावली के साथ मही सागर संगम को गए।
उधर बहु संख्यक असुरों से घिरा हुआ वह तारग भी
बहुत बड़ी सेना के साथ शेगर ही वहाँ अधमका
जहां वे सभी देवताओं करे थे।
उस असुर के आगमन काल में प्रलेकालीन मेगों के समान गर्जना करने वाली
रनभेरिया तथा अन्यान करकश शब्द करने वाले रनवाद बज रहे थे।
उस समय तारकासुर के साथ आने वाले दैत्य ताल ठोकते हुए गर्जना कर रहे थे।
उनके पदाग हाथ से प्रत्वी कांप उठती थी।
उस अत्यंत भहंकर कोलाहल को सुनकर भी सभी देवता निर्भय ही बने रहे।
वे इक साथ मिलकर तारकासुर से लोहा लेने के लिए डटकड खड़े हो गए।
उस समय देवराज इंद्र कुमार को गजराज पर बैठा कर
सबसे आगे खड़े हुए।
वे लोकपालों से घिरे हुए थे और उनके साथ देवताओं की महिती सेना थी।
ततपश्याद
कुमार ने उस गजराज को तो महिंद्र को ही दे दिया
और वे स्वेम एक ऐसे विमान पर आरुड हुए जो परमाश्चरिय
जनक तथा नाना प्रकार के रत्नों से शुशोबित था।
उस समय उस विमान पर सवार होने से सार्व गुण संपन्य महाई
शिश्वी शंकर पुत्र कुमार उतकिष्ट शोभा से सैंयुक्त होकर शुशोबित
हो रहे थे। उन पर परम प्रकाश्मान चवर ढुलाय जा रहे थे।
इसी बीच बला भीमानी एवं महाबीर देवता और दैत्य
क्रोध से विहवल होकर परसपर युद्ध करने लगे।
उस समय देवताओं और दैत्यों में बड़ा घमाशान युद्ध हुआ।
शनभर में ही सारी रणभूमी रुंड मुंडों से व्याप्त हो गई।
तब महावली तारकासुर बहुत पड़ी सेना के साथ देवताओं
से युद्ध करने के लिए वेग पूर्वक आगे बढ़ा।
उस रणदुर्मद तारक को युद्ध की कामना से आगे बढ़ते देखकर
इंद्र आदी देवता तुरंत ही उसके सामने आये।
फिर तो दोनों सेनाओं में महान कोलाहल होने लगा। तत पश्यात देवों
ततासुरों का विनाश करने वाला ऐसा द्वन्द युद्ध आरम्भुआ। जिसे
देखकर वीर लोग हरशोत फुल हो गई और काइरों के मन में भैः समा गया।
इसी समय वीर भद्र कुपित होकर महा बलीप प्रमत गणों के साथ
वीर आभिमानी तारक के समीपा पहुँचे।
वे बल्वान गण नायक भगवान शिव के कोप से उत्पन हुए थे।
अतः
समस्त देवताओं को पीछे करके युद्ध की अभिलाशा से तारक के सम्मुख डट गई।
उस समय प्रमत गणों तथा सारे अस्रों के मन में परमुल लास था।
अतः वे उस महा समर में परस्पर गुथ्धम गुथ्ध होकर जूजने लगे।
तदंतर वीर भद्र से तारक का भयानक युद्ध हुआ। इसी बीच अस्रों
की सेना रन से विमुख हो भाग चली। इसप्रकार अपनी सेना को
तितर वितर हुआ देख। उसका नायक तारकासुर क्रोज से भर गया।
और दस हजार भुजाएं धारन करके सिंग पर सवार हो देवगणों
को मार डालने के लिए वेग पूर्वक उनकी ओर छप्टा।
वह युद्ध के मुहाने पर देवों तथा प्रमतकणों को मार मार कर गिराने लगा।
तब प्रमतकणों के नेता महाबली वीर भद्र उसके उस
कर्म को देख कर उसका वद करने के लिए अध्यंत कुपित हो उठे।
फिर तो उन्होंने भगवान शिव के चरन कमल का
ध्यान करके एक ऐसा शेष्ट तुरिशूल हाथ में लिया
जिसके तेज से सारी दिशाएं और आकाश प्रकाशित हो उठे।
इसी अवसर पर महान कोतुक प्रदर्शन करने वाले स्वामी कार्थिक
ने तुरंत ही वीर बाहु द्वारा कहला कर उस युद्ध को रोक दिया।
तब स्वामी की आज्या से वीर भद्र उस युद्ध से हट गए।
यहे देख कर असुर सेनापती महावीर तारक
कुपित हो उठा। वे युद्ध कोशल तथा नाना परकार के अस्तरों का जानकार
था। अतेह देवताओं को ललकार ललकार कर उन परवानों की व्रिष्ठी करने लगा।
उस समे बलवानों में श्रेष्ट असुर राज तारक ने
ऐसा महान कर्म किया कि सारे देवता मिलकर भी उसका सामना ना कर सके।
उन भैवीत देवताओं को यों पिटते हुए देखकर भगवान अच्युत को
क्रोधा आ गया और वे शेगर ही युध करने के लिए तयार हो गए।
उन भगवान श्री हरी ने अपने आयुद्ध सुधर्शन चक्र और सारंग
धनुश को लेकर युध इस थल में महा दैत्य तारक पर आक्रमन किया।
हेमुने तद अंतर सबके देखते देखते श्री हरी और तारकासुर
में अत्यंत भहेंकर एवं रोमाँचकारी महा युध चिड़ गया।
इसी बीच अच्युत ने कुपित होकर महान सिंगनाध किया और
धदकती हुई ज्वालाओं के से परकाश वाले अपने चक्र को उठाया।
फिर तो श्री हरी ने उसी चक्र से दैत्य राज तारक पर
प्रहार किया।
उसकी चोट से अध्यन्त व्यथित होकर
वह असुर प्रत्थ्वी पर गिर पड़ा। परन्तु यह असुर नायक
तारक अध्यन्त बलवान था। अतयह तुरंत ही उठकर उसत दैत्य
राज ने अपनी शक्ती से चक्र के टुकडे टुकडे कर दिये।
हे मुने बगवान विश्णू और तारक असुर दोनों बलवान थे और दोनों
में अगाध बल था। अतः युध्य स्थल में वे परस्पर जूजने लगे।
बोलिये शिवशंकर भगवान की ये।
प्रिये भगतों,
इस प्रकार यहां पर
शे शिव महा पुरान के रुद्र सहिता
चतुर्थ कुमार खंड की ये घथा और एक से लेकर आठ अध्याय तक
यहां समाप्त होते हैं।
बोलिये शिवशंकर भगवान की ये।
अओम्नमहाशिवाय।