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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Pratham Khand Adhyay-8

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran rudra sanhita pratham khand adhyay-8 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran rudra sanhita pratham khand adhyay-8 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Pratham Khand Adhyay-8 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Pratham Khand Adhyay-8

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोल ये शिवशंकर भगवान की.
जेव!
प्रिये भक्तों,
श्रीषिव महा पुरान के..
..रुद्र सहीता
प्रतं स्रिष्टी खंड की अगली कता है.
ब्रह्मा और विश्णू को भगवान शिव के..
..शब्द में शरीर का दर्शन.
तो आईए भगतों, इस कथा के साथ..
..आठमा अध्याय भी आरंब करते हैं.
ब्रह्मा जी आगे कहते हैं..
मुनी शेष्ट नारद,
इस प्रकार हम दोनों देवता..
..गर्व रहित होकर निरंतर पढाम करते रहे.
हम दोनों के मन में एक ही अभिलाशा थी..
..कि इस चोतिरमे लिंग के रूप में प्यगट हुए परमिश्वर..
..प्रतक्ष दर्शन दे.
भगवान शंकर दीनों के प्रतिपालक..
..एहिंकारियों का गर्व चूर्ण करने वाले..
..तथा सब के अभिनाशी प्रभू है.
वे हम दोनों पर दयालू हो गए.
उस समय वहाँ उन सुर्व शेष्ट से..
..ओम्..
ओम्..
..ऐसा शब्द रूप नाद प्रगत हुआ.
जो इस पश्च रूप से सुनाई देता था..
..वहे नाद लुप्त स्वर में अविवक्त हुआ था.
जोर से प्रगत होने वाले उस शब्द के विशय में..
..यह क्या है ऐसा सोचते हुए समस्त देवताओं के आराध्य..
..भगवान विश्णु मेरे साथ संतुष्ट चित से खड़े रहे.
वे सर्वता वैर भाव से रहित थे.
उन्होंने लिंग के दक्षिन भाग में..
..सनातन आदी वर्ण अकार का दर्शन किया.
उत्तर भाग में उकार का, मद्य भाग में मकार का..
..और अन्त में ओम्..
..इस नाद का साखशाद दर्शन एवं अनुभव किया.
दक्षिन भाग में प्रगट हुए आदी वर्ण अकार को..
..सूर्य मंडल के समान तेजो में देखकर..
जब उन्होंने उत्तर भाग में द्रिश्टी पात किया..
..तब वहाँ उकार वर्ण अगनी के समान..
..दीपति शाली दिखाई दिया.
हे मुनी शेष्ट,
इसी तरहें उन्होंने मद्य भाग में मकार को..
..चंड्र मंडल के समान उज्ञवल कांती से प्रकाश्चमान देखा.
तद अंतर जब उसके ऊपर द्रिश्टी डाली..
..तब शुद्ध इसपठिक मनी के समान..
..निर्मल प्रभाव से युक्त..
..तुरियातीत, अमल,
निशकल,
निरूप द्रव..
..निर्द्वन्द,
अदितिय,
शून्य में..
..बाहिय और
अभ्यंतर के भेद से रहित.
बाहिय आंतर भेद से युक्त..
..जगत के भीतर और बाहर स्वेम ही स्थित..
..आदी मध्य और अंत से रहित.
आनन्द के आदी कारण..
..अथा सबके परम आश्रे, सत्य, आनन्द..
..एवं अमरत् स्वरूप पर ब्रह्म का साक्षात कार किया.
उस समय श्री हरी यह सोचने लगे..
..की अगनी स्टंब यहां कहां से प्रगट हुआ है?
हम दोनों फिर उसकी परिशा करें..
मैं इस अनूपम अनल स्टंब के नीचे जाओंगा.
ऐसा विचार करते हुए श्री हरी ने..
..वेद और शब्द दोनों के आवेश से युक्त..
..विश्वात्मा शिव का चिंतन किया.
तब वहां एक रिशी प्रगट हुए..
..जो रिशी समू के परम सार रूप माने जाते हैं..
..उनी रिशी के द्वारा परमिश्वर श्री विश्णू ने..
..जाना कि इस शब्द ब्रह्म में..
..शरीर वाले परम लिंग के रूप में..
..जो रिशी के परम सार रूप महा देव जी ही..
..यहां प्रगट हुए हैं.
यह चिंता रहित अथ्वा अचिंत रुद्र हैं.
जहां जाकर मन सहित वानी..
..उसे प्राप्त किये बिना ही लोटाती है..
..उस परब्रम परमार्तमा शिव का वाचक..
..एक आक्षर प्रनव ही है.
वे इसके वाचार्थ रूप हैं.
वे परम कारण
रित सत्य आनन्द..
..एवं अमरित स्वरूप परादपरपर ब्रह्म..
..एक आक्षर का वाच्य है.
प्रणव के एक अक्षर अकार से..
..जगत के बीज भूत अंड जनमा..
उकार मोहमें डालने वाला है और मकार नित्य..
..अनुग्रह करने वाला है.
मकार बोध्य सरवव्यापी शिव, बीजी..
..बीज मात्र के स्वामी हैं.
और अकार संग्यक मुझ ब्रह्मा को बीज कहते हैं
उकार नामधारी स्रियरी योणी हैं
प्रधान और पुरुष के भी ईश्वर जो महिश्वर हैं वे बीजी
बीज और योणी भी हैं
उनहीं को नाध कहा गया है
उनके भीतर सबका समावेश है
बीजी अपनी इच्छा से ही अपने बीज को अनेक रूपों में विवक्त करके स्थित है
इस बीजी भगवान महिश्वर के लिंग से अकार रूप बीज प्रगट हुआ
जो उकार रूप योणी में स्थापित होकर
सब और बढ़ने लगा
विवक्त करके स्थित हुआ जो उकार रूप बढ़ने लगा
उस अवस्था में उसका ऊपर स्थित हुआ स्वानो में कपाल बड़ी शोभा पाने लगा
वही धूलोक के रूप में प्रगट हुआ तथा जो उसका दूसरा नीचे वाला कपाल था
वही यह पांच लक्षनों से युक्त प्रिथ्वी है
उस अंड से चत्रो मुख ब्रह्मा उत्पन हुए जिनकी कै संग्या है वे
समस्त लोकों के इस त्रिष्टा हैं इस प्रकार वे भगवान महेश्वर ही अ,
उ,
और म इन त्रिविध रूपों में वर्णित हुए हैं
इसा कहा
यह आग बाखिया,
यच्विजुर्य्वेदा के श्रेष्ट केश kinkyasan
श्री हरी ने शक्ती संभूत मंत्रों द्वारा उत्तम एवं महान
अभ्युद्धय से शोबिद होने वाले उन महिश्वर देव का इस्तवन किया
इसी बीच में मेरे साथ विश्वपालक भगवान विश्णू
ने एक और भी अद्भुत एवं सुन्दर रूप देखा
हेमुने वह रूप पांच मुखों और दस भुजाओं से अलंक्रित था
उसकी कांती करपूर के समान गोर थी वह नाना परकार की
छटाओं से छवीमान और भाती भाती के आभूशनों से विभूशित था
उस परम उदार महा प्राकरमी और महा पुरुष के लक्षनों से संपन्य अत्यंत
उत्कृष्ट रूप का दर्शन करके मैं और श्री हरी दोनों कृतार्थ हो गई
तत्पश्यात परमेश्वर भग्वान महेश प्रसंड हो अपने दिव
शब्द मैं रूप को प्रगट करके हसते हुए कहड़े हो गई
अकार उनका मस्तक और आकार लैलाथ है। इकार दाहीना और ईकार बाया
नेत्र है। उकार को उनका दाहीना और उकार को बाया कान बताया जाता है।
रिकार उन परमिश्वर का दाया कपोल है और रिकार बाया लिरी और लिरी
ये उनकी नासिका के दोनों छिद्र हैं।
एकार उन सर्वयापि प्रभु का ऊपरी ओष्ठ है और एकार अधर।
उकार तथा आउकार ये दोनों क्रमश हैं उनकी
ऊपर और नीचे की दो दंध पंक्तियां हैं।
अंग और अह
उन देवादि देव शूलधारी शिव के दोनों तालू हैं।
क आदी पांच अकशर उनके दाहीने पांच हात हैं।
और च आदी पांच अकशर बाएं पांच हात। त आदी
और त आदी पांच पांच अकशर उनके पैर हैं।
भकार पेठ है फकार को दाहीना पार्श
बताया जाता है और भकार को बायां पार्श।
भकार को कंधा केते हैं
मकार उन योगी महादेव शम्भू का हिरदे है।
येसे लेकर से तक साथ अकशर सर्वयापिशिव
के शब्द में शरीर की साथ धात्वे हैं।
हकार उनकी नाभी है और क्षकार को मेधु मुत्रिन्द्रिय कहा गया है।
इसप्रकार निर्गुन एवं गुन स्वरूप परमात्मा के शब्द में रूप को
भगवती ओमा के साथ देखकर मैं और श्रीरी हरी दोनों किर्तार्थ हो गये।
इस तरहें शब्द ब्रह्म में शरीर धारी महिश्वर शिव का दर्शन पाकर मेरे
साथ श्रीरी हरी ने उन्हें प्रणाम किया और पुनें उपर की ओर देखा।
उस समय है उन्हें पाच कलाओं से यूगत
आओम कार जनित मंत्र का साक्षातकार हुआ।
तत्पश्यात महादेव जी का ओम् तत्वमसी यहे महावाक्य द्रिश्टी गोचर हुआ।
जो परम उत्तम मंतर रूप है तथा शुद्ध इसपतिक के समान निर्मल है।
फिर संपून धर्म और अर्थ का साधक
तथा बुद्धी स्वरूप गायत्री नामग दूसरा महाँ मंत्र लक्षित हुआ।
जिसमें चोवीस अक्षर है तथा जो चारो पुर्शार्थ रूपी फल देने वाला है।
तद पश्चात म्रत्युञ्जै मंत्र फिर पंचाक्षर मंत्र तथा
दक्षणा मूर्ती संग्यग चिन्तामनी मंत्र का साक्षातकार हुआ।
इसप्रकार पांच मंत्रों की उपलब्धी
करके भगवान श्री हरी उनका जप करने लगे।
तद अंतर रिक,
यजूर और साम
ये जिनके रूप हैं जो ईशों के मुकृतमनी ईशान हैं,
जो पुरातन पुरुष हैं,
जिनका हिरदय अगोर अरथात सोम्य है,
जो हिरदय को प्रिय लगने वाले सर्व गुह सदाशिव हैं,
जिनके चरन वाम परमसुंदर हैं,
जो महान देवता हैं और महान सर्पराज
को आभूशनों के रूप में धारन करते हैं,
जिनके सभी ओर पेर और सभी ओर नेत्र हैं,
जो मुझ ब्रह्मा के भी हदीपती,
कल्यानकारी तथा स्रिष्टी पालने और संगार करने वाले हैं,
उन वर्दायक साम्बशिव का मेरे साथ भगवान विश्णू ने
प्रिये वच्णों द्वारा सन्तुष्ट चित से स्तमन किया,
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैए!
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार से शिव महा पुरान के रुद्र सहीता
प्रतं स्रिष्टी खंड की ये कथा और आठ्मा अध्याय समाप्त होता है,
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैए!

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