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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Pratham Khand Adhyay-9

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran rudra sanhita pratham khand adhyay-9 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran rudra sanhita pratham khand adhyay-9 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Pratham Khand Adhyay-9 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Pratham Khand Adhyay-9

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोल ये शिवशंकर भगवान की जै!
प्रिये भक्तों,
श्रीशिव महा पुरान के रुद्र सहीता..
..प्रतं स्थरस्टी खंड की अगली कथा है.
ऊमा सहित भगवान शिव का प्राकट्य..
तो भक्तों,
यहां से आरम्ब करते हैं नोवा अध्याय.
ब्रह्मा जी कहते हैं,
प्रिये शिव भगवान की जै!
उनके दस भुजाएं थी,
कंठ में नील चिन्ध था,
उनके श्री अंग समस्त आभूषनों से विभूषित थे.
उन सरवांग सुन्दर शिव के मस्तक भस्म में त्रिपुंडर से अंकित थे.
ऐसे विशेशनों से युक्त परमिश्वर महा देव जी..
को भगवती उमा के साथ उपस्थित देख,
मैंने और भगवान विश्णू ने पुनहें प्रिय वच्णों द्वारा उनकी स्तुती की.
तब पाप हारी करणा कर भगवान महिश्वर ने प्रसन्य चित होकर
उन श्री विश्णू देव को श्वास रूप से वेद का उपदेश दिया.
हेमुने उनके बाद शिवने परमात्मा श्री हरी को गोह ज्ञान प्रदान किया,
फिर उन परमात्मा ने कृपा करके मुझे भी वे ज्ञान दिया.
वेद का ज्ञान प्राप्त करके कृतार्थ हुए भगवान विश्णू ने
मेरे साथ हाथ जोड महिश्वर को नमसकार करके उन से पुनह पूजन
की विधी बताने तथा सदुपदेश देने के लिए प्रार्थना की.
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हेमुने श्री हरी की यह बात सुनकर अठ्यंत प्रसन हुए
कृपा निधान भगवान शिव ने प्रीत पूर्वक यह बात कही.
शिशिव बोले,
सूर्वश्रेष्ट गण मैं तुम दोनों की भगती से निष्चे ही बहुत प्रसन हुँ.
तुम लोग मुझ महादेव की और देखो.
इस समय तुम्हें मेरा स्वरूप जैसा दिखाई देता है,
वैसा ही रूप का प्रियतन पूर्वक पूजन चिंतन करना चाहिए.
तुम दोनों महाबली हो और मेरी स्वरूप भूता प्रकृती से प्रकट हुए हो.
मुझ सरविश्वर के दाएं बाएं अंगों से तुम्हारा आविर्भाव हुआ है.
ये लोक पितामे ब्रह्मा मेरे दाहिने
पार्श्व से उत्पन्न हुए हैं और तुम विश्णू
मुझ परमात्मा के वाम पार्श्व से प्रकट हुए हूँ.
मैं तुम दोनों पर भली भाती प्रसन हूँ
और तुम्हें मनोवान्चित फल देता हूँ.
मेरी आज्या से तुम दोनों की मुझ में सुद्रिध भक्ती हूँ.
ब्रह्मान,
तुम मेरी आज्या का पालन करते हुए जगत की स्रिष्टी करो.
और वच्च विश्णों,
तुम इस चराचर जगत का पालन करते रहो.
हम दोनों से ऐसा कहकर भगवान शंकर ने
हमें पूजा की उत्तम विधी परदान की.
उसके अनुसार पूजित होने पर वे पूजक को अनेक प्रकार के फल देते हैं.
शंभू की उपर युक्त बात सुनकर मेरे सहित श्री
हरी ने महिश्वर को हाथ जोड परनाम करके कहा.
भगवान विश्णू बोले,
हे प्रभू यदी हमारे प्रती आपके हिरदय में
प्रीत उत्पन हुई है और यदी आप
हमें वर देना आवश्यक समस्ते हैं तो हम यही �
ब्रह्मा जी कहते हैं
सगुन और निर्गुन हूं
तथा सच्चिदानन्द स्वरूप निर्विकार परब्रह्म परमात्मा हूं
वेश्णो,
स्रिष्टी रक्षा और परले रूप
गुनों अथ्वा कार्यों से
भेद से मैं ही ब्रह्मा,
वेश्णो
और रुद्र नाम धारन करके तीन स्वरूपों में विभक्त हुआ हूं
हरे वास्तम में
मैं सदा निशकल हूं
वेश्णो,
तुमने और ब्रह्माने मेरे अवतार के निमित जो इस्तुती की है
तुम्हारी उस प्रार्थना को मैं अवश्य सच्ची करूँगा
क्योंकि मैं भक्त वच्चल हूं
ब्रह्मान,
मेरा ऐसा ही परम उत्किरिश्ट रूप तुम्हारे शरीर से इस लोक में प्रकट होगा
जो नाम से रुद्र कहलाएगा
मेरे अंश से प्रकट हुए रुद्र की सामर्थ मुझ
से कम नहीं होगी जो मैं हूँ वही यह रुद्र है
पूजा की विधी विधान की द्रिश्टी से
भी मुझ में और उसमें कोई अंतर नहीं है
जैसे जोतिका जल आदी के साथ संपर्क होने पर भी उसमें सपर्श दोश नहीं लगता
उसी प्रकार मुझ निर्गुन परमात्मा को भी
किसी के संयोग से बंधन नहीं प्राप्त होता
यहे मेरा शिव रूप है
जब रुद्र प्रकट होंगे तव वे भी शिव के ही तुल्य होंगे
महामुने उनमे और शिवमे पराये पन का भेध नहीं करना चाहिए
वास्तव में एक ही रूप सब जगत में व्यवहार
निर्वाह के लिए दो रूपों में विबक्त हो गया है
अतहः शिव और रुद्र में कभी भेध बुद्धी नहीं करनी चाहिए
वास्तव में सारा द्रिश्य ही मेरे विचार से शिव रूप है
मैं, तुम,
ब्रह्मा तथा जो ये रुद्ध प्रकट होंगे वे सब के सब एक रूप हैं
इसमें भेध नहीं है भेध मानने पर
अवश्य ही बंधन होगा
तथापि मेरा शिव रूप ही सनातन है यही सदा सब रूपों का मूल भूत कहा गया है
यह सत्य है ज्यान एवं अनन्त ब्रह्म है
मूल भूतं संदोग्तं च सत्य ज्यान मनन्त कम
ऐसा जान कर सदा मन से मेरे यथारत स्वरूप का दर्शन करना चाहिए
ब्रह्मन सुनो मैं
तुम्हें एक गोपनिय बात बता रहा हूँ
मैं स्वेम ब्रह्मा जी की भिकुटी से प्रगट होँगा
गुनों में भी मेरा प्राकट्य कहा गया है
जैसा की लोगों ने कहा है हर तामस तकृती के हैं
वास्तव में उस रूप में एहंकार का वर्णन हुआ है
उस एहंकार को केवल तामस ही नहीं वैकारिक सात्विक भी समझना चाहिए
क्योंकि सात्विक
देवगण वैकारिक एहंकार की ही स्रिष्टी है ये तामस
और सात्विक आदी भेद केवल नाम मात्र का है वस्तुत है
नहीं है वास्तव में हर को तामस नहीं कहा जा सकता
ब्रह्मन
इस कारण से तुम्हें ऐसा करना चाहिए तुम तो इस स्रिष्टी के
निर्माता बनो और श्री हरी इसका पालन करें तथा मेरे अंश से
प्रकट होने वाले जो रुद्र हैं वे इसका प्रले करने वाले होंगे
ये जो ऊमा नाम से विख्यात परमेश्वरी प्रकृती देवी हैं
इनहीं की शक्ति भूता वांग देवी ब्रह्मा जी का सेवन करेंगी
फिर इन प्रकृती देवी से वहां जो दूसरी शक्ति प्रकट
होगी वे लक्ष्मी रूप से भगवान विश्णू का आश्रे लेंगी
तद अंतर पुनहें काली नाम से जो तीसरी शक्ति प्रकट होगी
वे निश्चे ही मेरे अंश भूत रुद्र देव को प्राप्त होगी
वे कार्य की सिध्धी के लिए वहां जोती रूप से प्रकट होगी
इस प्रकार मैंने देवी की शुब स्वरूपा पराशक्तियों का परिचे दिया
उनका कार्य क्रमश है सिश्टी पालन और संघार का संपाधन ही है
सुरुशेष्ट ये सब की सब
मेरी प्रिया प्रकृती देवी की अंश भूता है
हरे तुम लक्ष्मी का सहारा लेकर कार्य करो
ब्रह्मन तुम्हें प्रकृती की अंश भूता वांग देवी को पाकर मेरी
आज्या के अनुसार मन से सिश्टी कार्य का संचालन करना चाहिए
और मैं अपनी प्रिया की अंश भूता परात्परकाली का
आश्चेले रुद्र रूप से प्रले सम्मंधी उत्तम कारिय करूँगा
तुम सब लोग अवश्च ही संपून आश्चमों तथा
उन से भिन अन्यान्य विविद कारियों द्वारा चारों वर्णों
से भरे हुए लोक की सिश्टी एवं रक्षा आधी करके सुख पाओगे
हे हरे तुम ज्ञान विज्ञान से संपन्य तथा संपून लोकों के हितेशी हूँ
अतहः अम मेरी आज्या पाकर जगत में सब लोगों के लिए मुक्ति दाता वनो
मेरा दर्शन होने पर जो फल प्राप्त होता है
वही तुम्हारा दर्शन होने पर भी होगा
मेरी ये बात सत्य है सत्य है इसमें कोई शंसे नहीं है
मेरे हिरदय में विश्णू है और विश्णू के हिरदय में मैं हूँ
जो इन दोनों में अंतर नहीं समझता
वही मुझे विशेष प्रिय है
श्री हरी मेरे बाएं अंग से प्रकट हुए हैं ब्रह्मा
का दाहिने अंग से प्राकट्य हुआ है और महा प्रलेंकारी
विश्वात्मा रुद्र मेरे हिरदय से प्रादुरभूत होंगे
विश्वनों मैं ही सुरिश्टी पालन और संगहार करने वाले रज आदी
त्रिविध गुनों द्वारा ब्रह्मा विश्वनू और रुद्र नाम से
प्रिशिद्ध हो तीन रूपों में प्रिथिक प्रिथिक प्रकट होता हूं
साक्षात शिव गुनों से भिन्य हैं वे प्रक़ती और पुर्ष से भी परे हैं
अध्वितिय नित्य अनंत पूर्ण एवं निरंजन परब्रह्म परमात्मा हैं
तीनों लोकों का पालन करने वाले श्री हरी
भीतर तमो गुन और बाहर सत्व गुन धारन करते हैं
तथा त्रिभुवन की स्च्रश्टी करने वाले ब्रह्मा
जी बाहर और भीतर से भी रजो गुनी ही हैं
परणतों शिव गुनातीत माने गए हैं
विश्णों
तुम मेरी आज्या से इन स्च्रिश्टी करता
पिता मेह का प्रसन्यता पूर्वक पालन करो
ऐसा करने से तीनों लोकों में पूजनीय हो जाओगे
प्रिये भक्तों इस प्रकार यहां पर शिव शिव महा पुरान
की रुद्र सहीता प्रतं सुष्टी खंड की ये कथा और
नो आध्याय समाप्त होता है
नमहां शिवाय ओम् नमहां शिवाय
ओम् नमहां शिवाय

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