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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Chaturth Kumar Khand Adhyay-9, 10, 11, 12

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran rudra sanhita chaturth kumar khand adhyay-9, 10, 11, 12 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran rudra sanhita chaturth kumar khand adhyay-9, 10, 11, 12 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Chaturth Kumar Khand Adhyay-9, 10, 11, 12 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Chaturth Kumar Khand Adhyay-9, 10, 11, 12

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रिये भगतों,
श्रीशिव महापराण के रुद्र सहीता
चतुर्थ कुमार खंड की अगली कता है
ब्रह्मा जी की आग्या से कुमार का युद्धे के लिए जाना
तारक के साथ उनका भीशन संग्राम
और उनके द्वारा तारक का वध
तद पशाथ देवों द्वारा कुमार का भिनन्दन और इस्तवन
कुमार का उन्हें वर्दान देकर कैलास पर जा शिवपार्वति के पास निवास करना
तो आईये भगतों, आरंब करते हैं इस कथा के साथ
9, 10, 11 और 12 मा अध्याय
तब ब्रह्मा जी ने कहा
शंकर सुवन,
स्वामी कार्तिक
तुम तो देवादी देव हो
पार्वती सुद्ध
विश्नु और तारकासुर का यह व्यर्थ युद्ध
शोभा नहीं दे रहा है
क्योंकि विश्नु के हाथों इस तारक के मृत्यू नहीं होगी
यह मुझसे वरदान पाकर अध्यंत बलवान हो गया है
यह मैं बिलकुल सत्य बात कह रहा हूं
हे पार्वती नंदन,
तुम्हारे अतिरिक्त इस पापी को मारने वाला दूसरा कोई नहीं है
इसलिए हे महाप्रभो,
तुम्हें मेरे कतना अनुसार ही करना चाहिए
परन्तप
तुम शिगर ही उस देह्त्य का वध करने के लिए तयार हो जाओ
क्योंकि पार्वती पुत्र तारक का संघार करने
के निमित थी तुम शंकर से उत्पन्य हुए हो
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे मुने,
यों मेरा कतन सुनकर शंकर नन्दन कुमार कार्ति
के ठटाकर हस पड़े और प्रसन्निता पूर्वक बोले
तथास्तु ऐसा ही होगा
तब महान एश्वरेशाली शंकर सुन कुमार तारकास्वर के
वद का निष्य करके विवान से उतर पड़े और पैदल हो गए
जिस समय महावली शिव पुत्र कुमार अपनी अठ्यंत चमकीली शक्ती
को जो लप्टों से दमकती हुई एक बड़ी उलकासी जान परती थी
हात में लेकर पैदल ही दोड रहे थे
उस समय उनकी अद्भुत शोभा हो रही थी
उनके मन में तनिक भी व्याकुलता नही थी
वे परमप्रचंड और अप्रमेह बलशाली थे
उन शनमुख को अपनी ओराते देख कर
तारकस्वर सिश्ठों से बोला
क्या शत्रों का संघार करने वाला कुमार यही
है मैं अकेला वीर इसके साथ युद्ध करूँगा
और मैं समस्त वीरों परमत्घणों लोगपालों तथा श्री हरी जिनके नायक
हैं उन देवों को भी मार डालूँगा
तर अंतर देवुताओं को दुरवचन कहकर
वहे असूर तारक भीशन युद्ध करने लगा
उस समय बड़ा विकट संग्राम हुआ
तब शत्रों वीरों का संघार करने वाले कुमार
ने शिव जी के चरन कमलों का स्मन्द करके
तारक के वद का विचार किया
फिर तो महा तेजश्वी एवं महा बली कुमार
रोशा वेश में आकर गरजना करने लगे और बहुत
बड़ी सेना के साथ यद्ध के लिए डटकर खड़े हो गए
उस समय समस्त देवताओं ने जैज़ेकार का शब्द किया
और देवरिश्यों ने ईश्ट वानी द्वारा उनकी स्तुती की
तब तारक और कुमार का संग्राम प्रारंब हुआ जो अध्यन्त दुस्से
है वहाँ अन्धेहंकर और संपून प्राणियों को भैवीत करने वाला था
कुमार और तारक दोनों ही शक्ति युध्य में परंपरवीन थे
अताः अध्यन्त रोषा वेश में वे परस्पर एक दूसरे पर प्राहार करने लगे
परंपराकरमी वे दोनों नाना प्रकार के पैंत्रे बदलते हुए गर्जणा कर रहे थे
और अनेक प्रकार से दाव पेच से एक दूसरे पर आगात कर रहे थे
उस समय देवता,
गंधर्व और किन्नर सभी चुपचाप खड़े होकर वे द्रश्य देखते थे
उन्हें परम विश्मे हुआ यहां तक की वायू का चलना बंद हो गया
सूर्य की प्रभाब फीकी पड़ गई और परवत एवं वनकाननों सहीच सारी
प्रत्वी काप उठी इसी अवसर पर हिमाले आदी परवत सिनेहा भी भूत होकर
कुमार की रक्षा के लिए वहाँ आए तव उन सभी परवतों को भैभीत देखकर
शंकर एवं गिरजा के पुत
परवतों तुम लोग खेद मत करू
तुम्हें किसी प्रकार की चिंता नहीं करनी चाहिए मैं आज तुम
सब लोगों की आखों के सामने ही इस पापी का काम तमाम करदूंगा
यों उन परवतों तथा देवगणों को धाड़स बधाकर
कुमार ने गिरजा और शंभू को प्रणाम किया
तथा अपनी कांती मती शक्ती को हाथ में लिया
शंभू पुत्र कुमार महा बली तथा महानेश्वरय शाली तो थे ही
जब उनोंने तारक का बद करने की इच्छा से
शक्ती हाथ में ली उस समय उनकी अदभुद शोभा थी
तर अंतर शंकर जी के तेज से संपन्य कुमार ने उस शक्ती से
तारकासुर पर जो समस्त लोकों को कश्ट देने वाला था प्रहार किया
उस शक्ती के आगात से तारकासुर के सभी अंग छिन भिन्य हो गये
और सम्पून असुरगणों का अधिपती वहे महावीर
सहसा धराशा ही हो गया
हे मुने सब के देखते देखते वही कुमार
द्वारा मारे गई तारक के प्रान पखेर उड़ गये
उस उत्किष्ट वीर तारक को महासमर में प्रान रहित होकर गिरा हुआ देखकर
वीरवर कुमार ने पुने उस पर वार नहीं किया
उस महाबली द्यत्यराज तारक के मारे जाने पर
देवताओं ने बहुत से असुरों को मौत के घाट उतार दिया
उस युद्ध में कुछ असुरोंने भैभीत होकर
हात जोड लिये
कुछ के शरीर छिन भिन हो गये और हजारों दैत्य मृत्यू के अतिती बन गये
कुछ शर्णार्थी दैत्य अंजली बांध कर
पाही पाही रक्षा कीजिये रक्षा कीजिये
यों पुकारते हुए कुमार के शर्णा पन्य हो गये
कुछ मार डाले गये और कुछ मैदान छोड कर भाग गये
सहस्त्रों दैत्य जीवन की आशा से भाग कर पाताल में गुश गये
उन सब की आशाएं
भगन हो गयी थी और मुख पर दीनता च्छाई हुई थी
हे मुनिश्वर
इस परकार वे सारी दैत्य सेना विनश्ट हो गयी
देवगणों के भैसे कोई भी वहाँ ठैर न सका
उस दुरात्मा तारक के मारे जाने पर सभी लोक निशकंटक
हो गये और इंद्र आदी सभी देवता आनन्द मगन हो गये
यों कुमार को विजएई देख कर एक साथ ही संपून देवताओं तथा
तिरलोकी के समस्त प्राणियों को बहान आनन्द प्राप्त हुआ
उस समय भगवान शंकर भी कार्ति केही की विजए का समाचार पाकर परसन्नता
से भर गये और पारवती जी के साथ गणों से घिरे हुए वहां पधारे
तब जिनके हिरदे में स्नेह समाता नहीं था
विपारवती जी परम प्रेम पूर्वग
सूर्य के समान तेजश्वी अपने पुत्र कुमार को
अपनी गोद में लेकर लाड प्यार करने लगी
उसी अवसर पर अपने पुत्रों से घिरे हुए हिमाले ने
बंदु बांदु तथा अनुव्याईयों के साथ आकर शम्भू,
पारवती और कुह का
स्तमन किया
तत्पश्चाथ संपूर्ण देवगण,
मुनी,
सिध और चारणों ने शिव नन्नन कुमार,
शम्भू और परम प्रसन्य हुई पारवती की स्तुती की
उस समय उपदेवों ने बहुत बड़ी पुष्प वर्षा की
सभी प्रकार के बाजे बजने लगे,
विशेश रूप से जैकार और नमस्कार के शब्द बारंबार उच्छ स्वर से गूँजने लगे
उस समय वहाँ एक महान विजयवत्सव मनाया गया,
जिसमें कीरतन की विशेश्टा थी और वहे स्थान गहने
बजाने के शब्द तथा अधिकाधिक ब्रम्गोश से व्याप्त था
हे मुने समस्त देवगणोंने प्रसन्यता पूरवक गहा बजाकर तथा हात जोडकर
भगवान जगनाथ की स्तुति की
ततपश्चात सबने प्रशंशित तथा अपने गणों से घिरे हुए भगवान रुद्र
जगजजन्नी भगवती के साथ अपने निमास स्थान कैलास परवत को चले गए
इधर तारक को मारा गया देख सभी देवताओं तथा
अन्य समस्त प्राणियों के चहरे पर
हासी खेलने लगे
विभखती पूरवक शंकर सुमन कुमार की स्तुति करने लगे
हे देव
तुम दानव शेस तारक का हनन करने वाले हो तुमे नमसकार है
हे शंकर नन्न तुम बानासुर के प्राणों का अपरहन करने वाले तथा
प्रलंबासुर के विनाशक हो तुम्हारा स्वरूप
परम पवित्र है तुम्हे हमारा अभीनन्दन है
कि्वार
ब्रह्मजी कहते है
हे मुने
जब विश्णु आधी द्वताओं
ले इस परा कुमार का इस्तोमन किया
तब उन प्रभु ने सभी देवओंको
क्रमश है न्या न्या वर्परदान किया
ततपशात परवतों को
ये शंकर तने परम प्रसन हुए और उन्हे वर देते हुए बोले।
इसकंद ने कहा,
हे भूधरो,
तुम सभी परवत तपस्चियों द्वारा
पोजनीय तथा करमठ और ग्यानीयों के लिए सेवनीय होगे।
ये जो मेरे माता मह,
नाना,
परमशेष्ट हिमान हैं,
तो महाभाग आज से तपस्चियों के लिए फल दाता होंगे।
तब देवता बोले,
हे कुमार,
यों असुर राज तारक को मार कर तथा देवों को वर परदान करके,
तुमने हम सब को तथा चराचर जगत को सुखी कर दिया।
तुम्हें परम प्रसन्यता पूरुवक
अपने माता पिता पारवती और शंकर का धर्शन करने
के लिए शिव के निवास भूत कैलास पर चलना चाहिए।
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे मुने,
तद अंतर सब देवताओं के साथ विवान पर चढ़कर,
कुमार इसकंद शिव जी के समीप कैलास पहुँच गए।
उस समय शिव,
शिवा ने बढ़ा अनंद मनाया।
देवताओं ने शिव जी की सुती की।
शिव जी ने उन्हें वरदान तथा भैधान देकर विदा किया। हे मुने,
उस अँसर पर देवताओं को परम आनंद प्राप्त हुआ।
वे शिव,
पार्वती तथा शंकरनंदन कुमार के रमणिये यश
का बखान करते हुए अपने अपने लोकों चले गए।
हे मुने,
इस प्रकार जो शिव भक्तों से योत प्रोत,
सुख दायक एवं दिव्य है,
कुमार का वे सारा चरित्र मैंने तुमसे वढन कर दिया।
अब और क्या सुनना चाहते हुँ,
बताओ।
बोलिये शिव शंकर भगवाने की जए।
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार यहां पर श्रीशिव महा पुरान के रुद्र सहिता
चतुर्थ कुमार खंड की ये कथा और 9 से लेकर 12 मा अध्याय समाप्त होता है।
बोलिये शिव शंकर भगवाने की जए।

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