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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Chaturth Kumar Khand Adhyay-20

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran rudra sanhita chaturth kumar khand adhyay-20 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran rudra sanhita chaturth kumar khand adhyay-20 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Chaturth Kumar Khand Adhyay-20 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Chaturth Kumar Khand Adhyay-20

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवाने की जए!
प्रिय भक्तों,
श्रिषिव महापुरान के रुद्र सहीता
चतुर्थ कुमार खंड की अगली कता है
स्वामी कार्ति के और गनेश की बाल लीला
दोनों का परस्पर विभा के विशेमे विवाद
शिवजी द्वारा प्रित्वी
परिक्रमा का अधेश
कार्ति के का प्रस्थान
गनेश का माता पिता की परिक्रमा करके
उनसे प्रित्वी परिक्रमा स्विक्रित कराना
तो
प्रिये भक्तों
आईये आरंब करते हैं
इस कथा के साथ बीस्मा अध्याय और भक्तों ये इस
अध्याय की अन्तिम कथा है आईये आरंब करते हैं
नारत जी ने पूछा
हे तात मैंने गनेश के जन्म सम्मंधी अनूपम व्रतान्त तथा
परमपराकरम से विभूशित
उनका दिव्य चरित्र भी सुन लिया
हे सुरेश्वर
उसके बाद कौन सी घटना घटी उसका वर्णन कीजिये
क्योंकि पिताजी शिव और पारवती का उज्जवल
यश महान आनन्द प्रदान करने वाला है
ब्रह्मा जी ने कहा
हे मुनी शेष्ट
तुम तो बड़े कारूनिक हो
तुमने बड़ी उत्तम बात पूची है
रिशी सत्तम अच्छा
अब मैं उसका वर्णन करता हूँ
तुम ध्यान लगा कर सुनो
विप्रेंद्र शिव और पारवती अपने दोनों पुत्रों की
बाल लीला देख देख कर महान प्रेम में मगन रहने लगे
पुत्रों का लाड ब्यार करने के कारण माता
पिता का सुख दिनों दिन बढ़ता जाता था
और वे दोनों कुमार प्रीत पूर्वक आनन्द
के साथ तरहें तरहें की लीलाएं करते थे
तो विचार करने लगे कि हमारे दोनों पुत्र विभा के योग्य हो गए
अब इन दोनों का शुब विभा कैसे संपन्य हो
हमें तो जैसे शडानन प्यारा है वैसे ही गनेश भी है
ऐसी चिंता में पढ़कर वे दोनों लीलावश आनन्द मगन हो गए
तब जगत के अधिष्वर वे दोनों दंपत्ती
पुत्तों की बात सुण रोकिकाचार का आस्शे ले
विश्णे को प्राप्त हुए,
कुछ समय बाद उन्होंने अपने दोनों पुत्रों
को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा.
शिव पार्वती बोले,
हे सुपुत्रों हम लोगोंने पहले से ही एक ऐसा नियम
बना रखा है जो तुम दोनों के लिए सुख दायक होगा.
अब हम यथारत रूप से उसका वर्णन करते हैं.
तुम लोग प्रेम पूर्वक सुनो.
प्यारे बच्चों,
हमें तो तुम दोनों ही पुत्र समान ही प्यारे हो,
किसी पर विशेश प्रेम हो,
ऐसी बात नहीं है.
अते हमने तुम लोगों के विभा के विशेह में एक ऐसी शर्त बनाई है,
जो दोनों के लिए कल्यान कारणी है.
वै शर्त यह है,
कि जो सारी पृत्वी की परिक्रमा करके पहले लोट आएगा,
उसी का शुब विभाँ पहले किया जाएगा.
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे मुने माता पिता की यह बात सुनकर
शर जन्मा महा बली कार्ति के त्रंथ ही अपने इस
थान से पृत्वी की परिक्रमा करने के लिए चल दिये.
परंतु आगाद बुद्धी संपन्य गनेश वहीं खड़े रह गए,
वे अपनी उत्तम बुद्धी का आश्रेले बारंबार
मन में विचार करने लगे कि अब मैं क्या करूं,
कहां जाओं,
परिक्रमा तो मुझे में से हो नहीं सकती,
क्योंकि कोस भर चलने के बाद आगे मुझे से चला जाएगा नहीं,
फिर सारी प्रित्वी की परिक्रमा करके मैं कैसे सुख प्राप्त कर सकुँगा।
ब्रह्मा जी कहते हैं,
एह मुने,
गनेश की बात सुनकर पार्वती और परमिश्वर उनकी
पूजा ग्रहन करने के लिए आसन पर विराज्मान हो गए।
तब गनेश ने उनकी विधी पूजा की और बारंबार
परणाम करते हुए उनकी साथ बार प्रदिक्षणा की।
गनेश जी ने कहा,
हे माता जी,
हे पिता जी,
आप लोग मेरी उत्तम बात सुनिए और शिगर ही मेरा शुव विभा कर दीजिए।
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे मुने,
महात्मा गनेश का ऐसा वचन सुनकर
वे दोनों माता पिता
महा बुध्धिमान गनेश से बोले,
शिवा ने कहा,
बेटा,
तु पहले
काननों सहिद इस सारी पृत्वी की प्रिकरमा तो कर आ,
कुमार गया हुआ है,
तू भी जा
और उससे पहले लोटा,
तब तेरा विभा पहले कर दिया जाएगा।
फिर आप लोग ऐसी बात क्यों कर रहे हैं?
ब्रह्मा जी ने कहा,
हे मुने,
शिव पारवती तो बड़े लीलानन्दी ही ठहरे,
वे गनेश का कथन सुन लोकिक गति का आश्ये ले कर बोले,
शिव पारवती ने कहा,
पुत्र,
तुने समुद्र परियंत विस्तार वाली बड़
जी,
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे मुने,
जब शिव पारवती ने ऐसा कहा,
तो उसे सुनकर महान बुद्धी संपन्य गनेश बोले,
गनेश जी ने कहा,
माता जी,
पिता जी,
मैंने अपनी बुद्धी से आप दोनों,
शिव पारवती जी की पूजा करके प्रदिक्षना कर ली है
धर्म के संग्रह, भूत, वेदों और शास्त्रों में
जो ऐसे वचन मिलते हैं, वे सत्य हैं अथ्वा असत्य
वे वचन है कि जो पुत्र माता पिता की पूजा करके उनकी प्रदिक्षना करता है,
उसे पृत्वी,
परीकरमा जनित,
फल सुलब हो जाता है
तीर्त सरोज ही महान तीर्त है अन्य
तीर्त तो दूर जाने पर प्राप्त होते हैं,
परन्तु धर्म का सादन भूत,
यह तीर्त तो पास में ही सुलब है
तो धर्म का सादन भूत यह तीर्त तो पास में ही सुलब है।
पुत्र के लिए माता पिता और इस्त्री के लिए पती
ये दोनों सुन्दर तीर्त घर में ही वर्तमान है।
ऐसा जो वेद शास्त्र निरंतर उद्गोशित करते रहते हैं
उसे फिर आप लोग असत्य कर दीजिए। और यदी वह असत्य
हो जाएगा तो निसंदेश वेद भी असत्य हो जाएगे।
वेद द्वारा वरनित आपका यह स्वरूप भी जूठा समझा जाएगा। इसलिए या तो शिगर
ही मेरा शुब विवा कर दीजिए अथवा यो कह दीजिए कि वेद शास्त्र जूठे
हैं। आप दोनों धर्मरूप हैं। अतेह भली भाती विचार करके इन दोनों में जो
ब्रह्मा जी कहते हैं हे मुने तब जो बुद्धी मानों में
श्रेष्ट उठ्तम बुद्धी संपन्य तथा महान ग्यानी हैं
वे पारवती नंदन गनेश इतना कहकर चुप हो गए।
उधर वे दोनों पती पतनी जगधीश्वर शिवा पारवती गनेश के
वचन सुनकर परम विश्मित हुए। तद अंतर वे यथार्थ्स भाशी
एवं अदबुद बुद्धी वाले अपने पुत्र गनेश की प्रशंसा करते हुए बोले।
जिसके पास बुद्धी है वही बलवान है। बुद्धी हीन के पास बल कहां।
पुत्र
वेद शास्त्र और पुराणों में बालक के
लिए धर्म पालन की जैसी बात कही गई है।
वे सब तूने पूरी कर ली। तूने जो बात की है वे दूसरा कौन कर सकता है।
हमने तेरी ये बात मान ली अब इसके विफरीत
नहीं करेंगे। ब्रह्मा जी कहते हैं ए नारद
यों कहकर उन दोनों ने बुद्धी साकर घनेश को सांतुना दी और
फिर वे उनके विभा के सम्मंद में उठ्तम विचार करने लगे।
इसी समय जब प्रसन्द बुद्धी वाले प्रजापती विश्वरूप को
शिव जी के उध्योग का पता चला तव उस पर
विचार करके उने परम सुख प्राप्त हुआ। उन प्रजापती विश्वरूप
के दिव्यरूप संपन्य एवं सरवांग सोभना दो सुन्दरी का
और गिर्जा ने उन दोनों के साथ हर्ष पूर्व
गनेश का विभास संसकार संपन्य कराया।
उस विभा के अवस्थर पर सम्पूंदेवता प्रसन्द होकर पधारे।
उस समय शिव और पारवती जैसा मनूरत था।
उसी के अनुसार विश्व कर्मा ने वह विभा किया।
उसे देखकर रिशीयों तथा देवताओं को परम हर्ष प्राप्त हुआ।
एह मुने,
गनेश को भी उन दोनों पत्मियों के मिलने से जो
सुख प्राप्त हुआ उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
उसकाल के पस्चात महात्माजनेश ने उन दोनों
पत्मियों से दो दिव्यपुत्र ुत्पन भुए।
उन में गनेश पत्मी शिद्धी के गर्ब से क्षेम नामक पुत्र पेदा हुआ।
और बुद्धी के गर्व से जिस परम सुन्दर
पुत्र ने जनम लिया उसका नाम था लाब।
इसप्रकार जब गनेश अचिन्त सुख का भोग करते हुए निवास करने लगे
तब दूसरे पुत्र स्वामी कार्तिक पिर्थ्वी की परिक्रमा करके लोटे।
उससमें नारच जीने आकर कुमार इसकंद को सब समाचार सुनाए। उनहीं
सुनकर कुमार के मन में बढ़ाक शोब हुआ। और वे माता पिता शिवा शिव
के द्वारा रोके जाने पर भी न रुककर क्रोच परवत की ओर चले गए।
हे देवर्शे उसी दिन से शिव पुत्र स्वामी कार्थिक का कुमारत्व कुआर्पन
प्रसिद्ध हो गया। उनका नाम त्रिलोकी में विख्यात हो गया। वे शुबदायक
सर्व पापहारी
पुन्य में और उत्क्रिष्ठ ब्रह्मचर्य की शक्ती प्रदान करने वाला ह
मुनिश्वर सदा कुमार का दर्शन करने के लिए क्रोञ्च परवत पर जाते हैं।
जो मनुष्य कार्थिकी पूर्णी मा के दिन कृतिका नक्षत्र
का योग होने पर स्वामी कार्थिक का दर्शन करता है
उसके संपून पाव नश्ट हो जाते हैं
और उसे मनुवान्चित फल की प्राप्ती होती है।
इदर इसकंद का विछो हो जाने पर
ऊमा को महान दुख हुआ उनोंने दीन भाव से अपने स्वामी शिवजी से कहा
हे प्रभो
आप मुझे साथ लेकर वहाँ चलिए। तब प्रिया को सुक देने के लिए निमित भगवान
स्वैम
अपने एक अंश से
उस परवत पर गए और सुक दायक मल्लिक आर्जुन नामक जोते लिंक के रूप में
वहाँ प्रतिष्ठित हो गए। वे सत्पुर्शों की
वे आज भी शिवा के सहित उस परवत पर विराजमान हैं।
बेटा नारद,
वे दोनों शिवा,
शिव भी पुत्र सनी से विहवल होकर प्रतेख परव पर
कुमार को देखने जाते हैं।
अमावस्या के दिन वहाँ स्वैम शम्भू पधारते हैं।
और पूर्णि मा के दिन पारवती जी जाती हैं।
हे मुनिश्वर,
तुमने स्वामी कार्थिक और गनेश का जो जो व्रतांत मुझसे पूछा था,
वह सब मैंने तुम्हे कह सुनाया।
इसे सुनकर बुद्धिमान मनुश्य
समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
और उसकी सभी शुब कामनाएं पून हो जाती हैं।
जो मनुश्य इस चरित्र को पढ़ता अथ्वा
पढ़ाता है एवं सुनता अथ्वा सुनाता है,
निसंदेह
उसके सभी मनुरत सफल हो जाते हैं।
यह अनूपमाक्यान पाप नाशक कीरती प्रद सुख वर्धक,
आयु बढ़ाने वाला,
स्वर्ग की प्राप्ती कराने वाला,
पुत्र पौत्र की व्रध्धी कराने वाला,
मोक्ष प्रद शिवजी के उत्तम ज्ञान का प्रदाता,
शिव पार्वती में प्रेम उत्पन्य कर
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए
शेषिव महा पुरान के रुद्ध सहिता का
चतुर्थ कुमार खंड भी समाप्त होता है
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए
ओम् नमहाँ शिवाय
ओम् नमहाँ शिवाय
ओम् नमहाँ शिवाय

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