Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की जै!
प्रिय भक्तों,
शिवश्यु महा पुरान के कोटी रुद्ध सहिता की अगली कता है
काशी आदी के विभिन लिंगों का वर्णन तथा
अत्रिश्वर की उत्पत्ती के प्रसंग में
गंगा और शिव के अत्री के तपोवन में नित्य निवास करने की कता।
तो आईए भक्तों,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ दूसरा,
तीसरा और चोथा अध्याय।
सूज्जी कहते हैं, मुनिश्वरो,
गंगा जी के तट पर मुक्ती दाएनी काशी पुरी सूपरसिद्ध है,
वै भगवान शिव की निवास इस थली मानी गई है,
उसे शिव लिंग मैई ही समजना चाही है।
इतना कहकर सूज्जी ने काशी के विमुक्त कृति वाशिश्वर,
तिलभाडिश्वर,
दशाओमेद आधी और गंगा सागर आधी के संगमिश्वर,
भूतेश्वर,
नारिश्वर,
वठुकिश्वर,
पूरेश्वर,
सिधनाथिश्वर, दूरेश्वर, शंगेश्वर, वै�
प्रियाके ब्रह्मेश्वर, सोमेश्वर,
भरतद्वाजिश्वर,
शूल्टंकेश्वर,
माधवेश्वर तथा अयुध्या के नागेश आधी अनेक प्रसिद्ध शिवल्डिंगों का वर्णन
करके अत्रिश्वर की कथा के प्रसंग में यह बतलाया कि अत्री पत्नी अन्स�
हे अन्सुये,
यदि तुम एक वर्ष तक की की हुई शंकर जी
की पूजा और पती सेवा का फल मुझे दे दो,
तो मैं देवताओं का उपकार करने के लिए यहां सदा ही स्थित होंगी.
अंशो कुछ फलून पता ख� Elakshar play की अऩार्छी
मापनें affects जिन्मा ओर मानी सवसारारत पुर्वादीं से.
अतेह यदि तुम जगत का कल्यान करना चाहती हूँ
और लोक हित के लिए मेरी मांगी हुई वस्तु मुझे दिधिती
हूँ तो मैं अवश्य यहां इस्तिर रूप से निवास करूँगी।
सूज्जी कहते हैं,
हे मुणियों,
गंगा जी की है बात सुनकर पतिवता अन्सुया
ने वर्ष भरकावे सारा पुन्य उने दे दिया।
अन्सुया के पतिवत सम्मन्धी उस महान कर्म को देखकर
भगवान महदेव जी परसन हो गये और पार्थिवलिंग
से ततकाल प्रगच हो उनोंने साक्षात दर्शन दिये।
शम्भू बोले,
साधवी अन्सुये,
तुम्हारा यह कर्म देखकर मैं बहुत प्रसन हूँ।
यह दोनों पति पत्नी अदभुत सुन्दर आकरती एवं पंच मुक आदी से
युक्त भगवान शिव को वहां प्रगच हुआ देख बड़े विश्मित हुए।
उन्होंने हाथ जोड़कर नमसकार और इस्तुती करके
बड़े भकती भाव से भगवान शंकर का पूजन किया।
फिर उन लोग कल्यानकारी शिव से कहा,
ब्राह्मन तमपत्ती बोले,
एधेविश्वर,
यदि आप प्रसन हैं और जगदं भागंगा भी प्रसन हैं,
तो आप इस तपोवन में निवास कीजिए और
समस्त लोकों के लिए सुख दायक हो जाएए।
तब गंगा और शिव दोनों ही प्रसन हो उस इस्थान पर
जहां वे रिशी शिरोमनी रहते थे
प्रतिष्ठित हो गए।
इन ही शिव का नाम यहां अत्रिश्वर हुआ।
पर आप रान के कोटी रुद्र सहीता की यह कथा
और दूसरा तीसरा तरा चौता अध्याय हम पर समाब्ध होता है।
तो सुनहिसे भोलीं।
भोलिं शिव शंकर भगवाँ आने की जए।
और सुनहिसे बोलीं।
ओम नमः शिवाई।