Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जए!
प्रिये भगतों,
श्री शिव महा पुरान के रुद्र सहिता
पंचम युद्धखंड की अगली कता है
तारक पुत्रों के प्रभाव से
संतप्त हुए देवों की ब्रह्मा के पास करुण पुकार
ब्रह्मा का उन्हें शिव के पास भेजना,
शिव की आग्या से देवों का विश्णू की शरण में जाना
और विश्णू का उन दैत्यों को मोहित करके
उन्हें आचार ब्रश्ट करना
तो आईए भक्तोँ,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ 2 से लेकर 5 अध्याय तक की कथा
सनत कुमार जी कहते हैं
हे महरशे
तदंतर तारक पुत्रों के प्रभाव से दग्द हुए इंद्र आती सभी देवता
दुखी हो
परसपर सला करने
ब्रह्मा जी की शरण में गई
वहां सम्पोन देवताओं ने
दीन होकर
प्रेम पूर्वक
पितामे को प्रणाम किया और अफसर देखकर उनसे अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा
देवता बोले
हे धात तिरप्रों के स्वामी तारक पुत्रों ने तथा
मयासुर ने समस्त स्वर्गवासियों को संतप्त कर दिया हैं
हे ब्राम्मन इसलिए हम लोग दुखी होकर आपकी शरण में आये हैं
आप उनके वद का कोई उपाय कीजिये
जिससे हम लोग
सुक्से रह सकें
ब्रह्मा जी ने कहा
हे देवगणों
तुम्हें उन दानों से विशेश भै नहीं करना चाहिए
मैं उनके वद का उपाय बतलाता हूं
भगवान शिव तुम्हारा कल्यान करेंगे
मैंने ही इन दैत्यों को बढ़ाया है
अतेह मेरे हाथों इनका वद होना उचित नहीं
साथ ही तिरपुर में इनका पुन्य भी वृधिंगत होता रहेगा
अतेह इंद्र सहित सभी देवता
शिव जी की प्रात्ना करें
वे सर्वाधीश यदी प्रसन्न हो जाएंगे
तो वे ही तुम लोगों का कारिय पूर्ण करेंगे
सनत्कुमार जी कहते हैं
हे व्यास्ची
ब्रह्मा जी की है वानी सुनकर
इंद्र सहित सभी देवता दुखी हो उस इस्थान पर गए जहां वृशब्धज शिव आसीन थे
तब उन सबने अञ्जली बांध कर
देविश्वर शिव को भकती पूर्वक परणाम किया
और कंधा जुका कर
लोकों के कल्यान करता शंकर का इस्तवन किया
सारक के पुत्र तीनों भाईयों ने मिलकर
इंद्र सहित समस्त देवताओं को परास्त कर दिया है
हे भगवन उन्होंने तिरलोकी को तथा मुनीश्वर को
अपनी अधीन कर लिया है
और संपून सिद्ध स्थानों को नश्ट भश्ट करके
सारे जगत को पीड़त कर रखा है
विदारुन दैत्य समस्त यग्य भागों को
स्वेम ग्रहन करते हैं
उन्होंने रिशी धर्म का निवारण करके
अधर्म का अविस्तार करखा है
हे शंकर
निश्चहिवे तारख पुत्र समस्त प्राणियों के लिए आवध्य हैं
इसी लिए वे स्विच्छा अनुसार
सभी कारिय करते रहते हैं
हे प्रभू
ये तिर्पूर निवासी धारुन दैत्य जब तक जगत का विनाच न कर डालें
उसके पहले ही आप किसी ऐसी नीति का विधान करें जिससे इसकी रक्षा हो सकें
सनत कुमार जी कहते हैं
हे मुने
यो भाशन करते हुए उन सर्गवासी इंद्रादी देवों की बात सुनकर
शिव जी उत्तर देते हुए बोले
शिव जी ने कहा
हे देवगण
इस समय वे तुरुपराधीश महान पुन्य कारियों में लगे हुए हैं
और ऐसा नियम है
कि जो पुन्यात्मा हो
उस पर विध्वानों को किसी परकार भी प्रहार नहीं करना चाहिए
मैं देवताओं के सारे महान कश्णों को जानता हूँ
फिर भी वे देथ्य बड़े प्रबल हैं अतेह
देवताओं और असुर मिलकर भी उनका वद्ध नहीं कर सकते
विधारक पुत्र
सब के सब पुन्य संपन्य हैं
इसलिए उन सभी तुर्पुरवासियों का वद
जो साध्य है
यद्ध भी मैं रणकरकश हूँ
तताफी जान बूचकर मैं मित्रदोह कैसे कर सकता हूँ
क्योंकि पहले किसी समय ब्रह्मा जी ने कहा था
कि मित्रदोह से बढ़कर दूसरा कोई बड़ा पाप नहीं है
सत्पुर्शों ने
ब्रह्मे हत्यारे,
शराबी,
चोर तथा वरत भंग करने वालों के लिए प्राश्चित्य का विधान किया है
हे देवताओ,
तुम लोग भी जो धर्मग्य हो,
अतेः
धर्म द्रिश्टी से विचार कर
तुम ही बताओ,
कि जब वे दैत्य मेरे भक्त हैं,
तब मैं उन्हें कैसे मार सकता हूँ?
इसलिए अमरो,
जब तक वे दैत्य मेरी भक्ती में तत्पर हैं,
तब तक उनका वध असंभव है,
तथापी तुम लोग विश्णू के पास जाकर
उनसे यह कारण निविधन करो।
तलंतर देवगण भगवान विश्णू के समीप गए,
और उनके द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई की,
जिस से वे असुर शेव्य सनातन धर्म से
विमुख होकर सर्वता अनाचार परायन हो गए।
वैदिक धर्म का नाश होने से वहाँ इस्तिरियों ने पति व्रत धर्म छोड़ दिया,
पुरुष इंद्रियों के वश हो गए।
यों इस्तिरी पुरुष सभी दुराचारी हो गए। देवाराधन,
श्राध,
यग्य,
व्रत,
तीर्त,
शिव, विश्णू, सूर्य,
गनेश आधी का पूजन,
इस्नान, दान आधी सभी शुबाचरन नश्ट हो गए।
तब माया तथा अलक्ष्मी
उन पुरों में जा पहुची,
तब से प्राप्त लक्ष्मी वहां से चली गई।
इसप्रकार वहां अधर्म का विस्तार हो गया।
हे मुने,
तब श्विच्छा से भाईयों सहित
उन दैत्यराज की तथा मैं की भी शक्ती कुंठित हो गई।
तो प्रीय भक्तों,
इसप्रकार
श्रीशिव महापुरान के रुद्र सहिता
पंचम युद्धखंड की ये कथा और
दो से लेकर पांच अध्याय तक की कथा समाप्त होती है।