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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Pancham Yuddha Khand Adhyay-11, 12

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Kailash Pandit

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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Pancham Yuddha Khand Adhyay-11, 12

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवान की जए!
तो आईये भगतों,
श्रीशिव महापुरान के रुद्र सहीता!
पंचम युद्धखंड की अगली कथा है,
देवों के स्तवन से शिवजी का कोप शान्त होना
और शिवजी का उन्हें वर देना,
मै दानव का शिवजी के समीप आना और उनसे वर याचना करना,
शिवजी से वर पाकर मै का
वितल लोक में जाना.
तो आईये भगतों,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ,
घ्यार्मा और बार्मा अध्याय.
व्यास जी ने पूछा,
हे महा बुद्धिमान सनत कुमार जी,
आप तो ब्रह्मा के पुत्र और शिवभक्तों में सर्वसेष्ट हैं,
अतहें आप धन्य हैं.
अब यह बतलाईई कि तिरपूर के दग्द हो जाने पर
संपूर्ण देवताओं ने क्या किया,
मैं कहां गया
और उन तिरपूरादक्षों की क्या गती हुई?
यदि यह वृतान्त शंभू की कथा से सम्मंद रखने वाला हो,
तो है सब विस्तार पुरुवक मुझसे वढन कीजी.
सूज्जी कहते हैं,
हे मुने
व्यास्जी का प्रश्न सुनकर
सश्टी करता ब्रह्मा की पुत्त भगवान सनत्कुमार
शिवजी के युगल चरणों का इसमंद करके बोले,
सनत्कुमार जी ने कहा,
हे महा पुध्धिमान व्यास्जी,
जब महिश्वर ने दैत्यों से खचाखच भरे हुए संपून तिरपुर को भस्म कर दिया,
तब सभी देवताओं को महान आश्चरिय हुआ.
उस समय शंकर जी के महान भहंकर रुद्रूप को,
जो करोडो सूर्यों के समान प्रकाश्मान
और प्रलेकालीन अगनी की भाती तेजश्वी था,
तथा जिसके तेज से
तसों दिसाएं प्रजलित से दीख रही थी,
देख कर साथ ही हिमाचल पुत्री पार्वती देवी की ओर दृष्टी भात करकी,
सम्पून देवता भैबीत हो गए,
तब मुख्य मुख्य देवता विनम्र हो कर सामने खड़े हो गए,
उस अवसर पर बड़े बड़े रिशी भी देवताओं की वाहिनियों को
भैबीत देख कर
खड़े ही रह गए,
कुछ पोल न सके,
विचारों और से शम्भू को प्रणाम करने लगे,
तत पशात ब्रह्मावी शिवजी के उस रूप को देख कर भैग्रस्त हो गए,
तब उन्होंने डरे हुए विश्णू तथा देवगणों के साथ प्रसन्न
मन से सावधानी पूर्वग उन गिर्जा सहीत महिश्वर का,
जो देवों के भी देव,
भाव तथा हर नाम से प्रिशिद भक्तों के अधीन
रहने वाले और तिरपूरहंताएं स्तमन किया हा,
तद अंतर सफी प्रमुक देवताओंने भगवान शिव की स्तुती की,
यों स्तुती किये जाने पर लोकों के कल्यान करता शंकर प्रसन्न होकर बोले,
शंकर जी ने कहा,
हे ब्रह्मः विश्णू तथा देवगण मैं तुम
लोगों पर विशेश रूप से प्रसन्न हूँ,
अतेख
अब तुम सभी विचार करके अपना मनो आँचित वर मांग लो।
सनत कुमार जी कहते हैं,
हे मुनिश्रेष्ट,
शिव द्वारा कहे हुए वचनों को सुनकर सभी
देवताओं का मन प्रसन्नता से खिल उठा,
फिर तो वो बोले,
देवताओं ने कहा,
हे भगवन,
हे देवदेवेश,
यदि आप हम पर प्रसन्न हैं और हम सब देवगणों को अ
प्रसनना करते हैं,
तो देवस्तम,
जब जब देवताओं पर दुख की संभावना हो,
तब तब आप प्रकट होकर सदा उनके दुखों का अविनाश करते रहें,
सनत कुमार जी कहते हैं,
हे महरशे,
जब ब्रह्मा,
विश्णों और देवताओं ने भगवान रुद्ध से ऐस
अच्छा,
सदा ऐसा ही होगा,
ऐसा कहकर शंकर जी ने जो सदा देवों का दुख हरन करने वाले हैं,
परसननता पूर्वक देवों को जो कुछ अभिष्ट था,
वै सारा का सारा उन्हें परदान कर दिया,
इसी समय मैं दानव,
जो शिव जी की किरपा से,
बल से,
जलने से बच
वो प्रसनन देखकर हर्शित मन से बहां आया,
उसने विनीत भाव से हात जोड कर प्रेम पूर्वक
हर तथा अन्यानन देवों को भी प्रणाम किया,
फिर वै शिव जी के चर्णों में लोट गया,
तत पश्चात
दानव शेष्ट मैंने उठकर शिव जी की ओर देखा,
उस सम
में लगा,
हे द्विज़ शेष्ट मैं द्वारा किये गए इस तवन को सुनकर
परमिश्वर शिव प्रसनन हो गयी और आननद पूर्वक आधर पूर्वक उससे बोले,
शिव जी ने कहा,
दानव शेष्ट मैं,
मैं तुझ पर प्रसनन हूँ,
अतय है तू वर मांग ले,
इस सम
श्वती भक्ति प्रदान कीजिये,
हे परमिश्वर
मैं सदा अपने भक्तों से मिठरता रखूं,
दीनों पर सदा मेरा दया भाव बना रहे और अन्यान
दुष्ट प्राणियों की भी मैं उपेक्षा करता रहूं,
हे महिश्वर
कभी भी मुझ में आसुर भाव का उदे ना हो
सनत कुमार जी कहते हैं,
हे वयाज जी,
शंकर तो सबके स्वामी तथा भक्त वच्चल हैं,
मैंने जब इसपरकार उन परमिश्वर की प्रार्थना की,
तब वे प्रसन होकर मैं से बोले
महिश्वर ने कहा,
हे दानव सत्तम,
तु मेरा भक्त है,
तुझ में कोई भी विकार नहीं है,
अतह तु धन्य है,
अब मैं तेरा जो कुछ भी अभिष्टवर है,
वे सारा का सारा तुझे प्रदान करता हूं,
अब तु मेरी आज्या से अपने परिवार सहित
वितल लोक को चला जा,
वे स्वर्ग से भी रमनी है,
तु वहां प्रसन चित से मेरा भजन करते हुए,
निर्भए होकर निवास कर,
मेरी आज्या से
कभी भी तुझ में आशुरभाव का प्राकट्य नहीं होगा,
सनत कुमार जी कहते हैं,
हे मुने
मैंने महात्मा शंकर की उस आज्या को
सिर जुका कर स्विकार किया,
और उन्हें तथा अन्यान्य देवों को भी
प्रणाम करके वहवितल लोक को चला गया,
तद अंतर महादेव जी देवुताओं के उस महान
कार्य को पूर्ण करके देवी पार्वती,
अपने पुत्र
और संपूर्ण गणों सहित अंतर ध्यान हो गये,
जब परिवार समेत भगवान शंकर अंतर हित हो गये,
तव वे धनुश,
पान, रत्ध आदी सारा उपकरण भी अद्रिश्य हो गया,
ततपश्चात ब्रह्मा, विश्णो तथा अन्यान्य देव,
मुनी,
गंधर,
किन्दर,
नाग, सर्प,
अपसरा और मनुश्यों को महान हर्ष प्राप्त हुआ,
वे सभी शंकर जी के उत्तम यश का बखान करते
हुए आनन्द पूर्वक अपने अपने स्थान को चले गए,
वहाँ पहुँचकर उन्हें परम सुख की प्राप्ति हुई,
हे महरशे,
इस प्रकार मैंने शशी मोली शंकर जी का विशाल चरित,
जो तिरपुर्ण विनाश को सूचित करने वाला
तथा परमोत क्रिष्ठ लीला से युक्त है,
सारा का सारा तुम्हें सुना दिया,
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
प्रिये भगतों,
इस प्रकार यहां पर
स्री शिव महा पुरान की रुद्र सहिता,
अंचम युद्धखंड की ये कथा और घ्यार्मा तथा
बार्मा अध्या यहां पर समाप्त होता है,
तो स्नेह के साथ पोलिये भगतों,
पोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
ओम्नमहाशिवाई

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