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Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-1

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran koti rudra sanhita adhyay-1 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran koti rudra sanhita adhyay-1 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-1 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-1

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

भोलियेशु शंकर भगवाने की जए!
प्रिये भक्तों,
शिष्यु महा पुरान की अगली संहिता आरम्ब करते हैं
और ये संहिता है कोटी रुद्र संहिता
और इसकी पहली कथा है
वो है द्वादश चोतिर लिंगो तथा उनके उप लिंगो का वर्णन
एवं उनके दर्शन पूजन की महिमा
तो आईये भक्तों,
आरम्ब करते हैं शिष्यु महा पुरान के कोटी रुद्र संहिता की
पहली कथा और पहला अध्याय
विभूवो स्वर्गा पवर्गा भिधो प्रतग्यबोद्ध
सुखाद्धयं रदी सदापशंतियं योगिन
अर्थात
जो निर्विकार होते हुए भी
अपनी माया से ही विराट विश्व का आकार धरन कर लेते हैं
स्वर्ग और अपवर्ग
मोक्ष जिनकी करपा कटाक्ष के ही वैभव बताये जाते हैं
तथा योगी जन जिन्हें सदा अपने हिरदे के भीतर
अध्वित्य आत्म ज्ञानानन्द स्वरूप में ही देखते हैं
उन तेजो में भगवान शंकर को
जिनका आधा शरीर शहल राजकुमारी पारवती
से सुशोबित है निरंतर मेरा नमसकार है
अर्थात
जिसकी कृपा पून चितवन बड़ी ही सुन्दर है
जिसका मुखार बिंद मंद मुसकान की छटा से अठ्यंत मनोहर दिखाई देता है
जो चंद्रमा की कला से परम उज्वल है जो आध्यात्मिक
आदी तीनों तापों को शांत करदिनी में समर्थ है
जिसका स्वरूप
सच्चन्नमे एवं परमानन्द रूप से प्रकाशित होता है
तथा जोगिरी राजनन्दनी पारवती के भुजबाश से आवश्टित है
वहेशिव नामक कोई अनिरवचनीय तेजह पुञ्ज सबका मंगल करें
रिशी बोले
सुच जी
आपने संपून लोकों के हित की कामणा से नाना परकार के आख्यानों से युक्त
जो शिवावतार का महात्मे पताया है
वह भावती उत्तम है
हे तात आप पुने शिव के परम उत्तम महात्मे का तथा
शिवलिंग की महिमा का प्रसनता पूरोक वर्णन कीजी
आप शिव भक्तों में शेष्ठ हैं अतय धन्य है प्रभू
आपके मुखार विंद से निकले हुए भगवान शिव के सुरम्य यश रूपी
यमरत का आपने कर्म पुटो द्वारा पान करके हम तृत्त हो रहे हैं
अतय फिर उसी का वर्णन कीजी
विवासशिश भुमी मंडल में तीर्थ तीर्थ में जो जो शुब लिंग है
अत्वा अन्य स्थलों में भी जो जो प्रसिद्ध शिव लिंग विराजमान हैं
परमिश्वर शिव के उन सभी दिव्य लिंगों का
समस्त लोकों के हित की च्छा से आप वर्णन कीजी
सूज्जी कहते हैं
हे महरशियों
सम्पून तीर्थ लिंग में हैं
सब कुछ लिंग में ही प्रतिष्ठित हैं
उन शिव लिंगों की कोई गढणा नहीं है
तथापी मैं उनका किंचित वर्णन करता हूं
जो कोई भी द्रिश्य देखा जाता है
तथा जिसका वर्णनने उम स्मर्ण किया जाता है
वैसा भगवान शिव का ही रूप है कोई भी वस्तव शिव के सवरूप से भिन्द नहीं
साधो शिरोमनीयो
भगवान शम्भूने साब लोकों पर अनुग्रह करने के लिए ही देवता असुर
और मनिश्यों सहीत तीनों लोकों को लिंग रूप से व्याप्त कर रखा है
समस्त लोकों पर
करपा करने के उद्देश्य से ही भगवान महेश्वर तीर्ठ तीर्थ में
और अन्य स्थलों में भी नाना परकार के लिंग धारन करते हैं
जहां जहां चब चब भक्तों ने भक्ती पूर्वक भगवान शम्भु का इसमन्द किया,
तहां तहां तब तब
अवतार ले कारिय करके वे स्थित हो गयें।
लोकों का उपकार करने के लिए उन्होंने
स्वेम अपने स्वरूप भूत लिंग की कल्पना की।
उस लिंग की पूजा करके शिव भक्त पुरुष अवश्य सिध्धी प्राप्त कर लेता है।
हे ब्राह्मणों,
भूमंडल में जो लिंग है उनकी गण्ना नहीं हो सकती।
तत्हापी मैं प्रधान प्रधान शिव लिंगों का
परीच्य देता हूं।
मुनी शेष्ट सोनक,
इस भूतल पर जो मुख्य मुख्य जोतिर लिंग हैं,
उनका आज मैं वढनन करता हूं।
उनका नाम सुनने मातर से पाप दूर हो जाते हैं।
सोराश्ट में सोमनाथ,
शी सोमनाथ का दर्शन करने के लिए काठ्यावार्ड प्रदेश के अंतरगत
पुरभास शित्र में जाना चाहिए।
शी शैल पर मल्लिकारजुन,
शी मल्लिकारजुन नामक जोतिर लिंग जिस परवद पर विराजमान है,
उसका नाम शी शैल या शी परवद है।
मैं इस थान मद्रास प्रांथ के किष्णा जिले में किष्णा नदी के तथ पर हैं।
उज्जैन को अविन्तिका पुरी भी कहते हैं।
उज्जैनी से खन्वा जाने वाली रेल्वे की छोटी लाइन पर
मोर टक्का नामक स्टिशन है।
वहां से यह स्थान साथ मील दूर है।
यहां ओमकारिश्वर और अमलिश्वर नामक दो पुरथक पुरथक लिंग हैं।
परंतु दोनों एक ही जोतिर लिंग के दो स्वरूप माने गये हैं।
हिमाले के शिखर पर केदार
श्री केदार नाथ या केदारिश्वर हिमाले के केदार नामक शिखर पर इस्थेत है।
शिखर से पूरव की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बद्री नाथ अवस्थित
हैं। और पश्यम में मन्दाकनी के किनारे श्री केदार नाथ विराजमान है।
यह है इस्थान हरिद्वार से 150 मील और रिशीकेश से 132 मील दूर है।
श्री भीमशंकर का इस्थान मंबई से पूरव और पूना
से उत्तर भीमा नदी के किनारे उसके उद्गम इस्थान
सैह्य परवत पर है।
यह है इस्थान लारी के रास्ते से जाने पर
नासिक से लगबग 120 मील दूर है।
सैह्य परवत के उस शिखर का नाम जहाँ इस
जोतरिलिंग का प्राचीन मंदिर है डाकनी है।
इससे अनुवान होता है कि कभी यहाँ डाकनी और भूतों का निमास था।
शिव प्राण की एक कथा के आधार पर भीमशंकर जोतरिलिंग आसाम के कामरूप
जिले में गोहाटी के पास ब्रह्म पुत्र पहाड़ी पर इस्थित बताया जाता है।
कुछ लोग कहते हैं कि नैनिताल जिले के उजजनक
नामक इस्थान में एक विशाल शिव मंदिर है।
वही भीमशंकर का इस्थान है।
वारानसी में विश्वनात।
काशी के श्री विश्वनात जी तो प्रसिद्ध ही है।
मंभई प्रांत के नासिक जिले में नासिक पंचवटी से 18
मील दूर गोधावरी के उद्गम स्थान ब्रंबगिरी के निकट,
गुधावरी के तट पर ही इसकी स्थिती है।
चिताभोमी में वैदनात यह इस्थान संथाल परगने में EI रेल्वे
के जसी डीह स्टेशन के पास वैदनात धाम के नाम से प्रसिद्ध है।
पुरानों के अनुसार यही चिताभोमी है।
कहीं कहीं परल्याम वैदनातं च ऐसा पाथ मिलता है।
इसके अनुसार परली में वैदनात की स्थती है। दक्षिन हैद्राबाद नगर से इधर
परभनी नामक एक जंक्षन है। वहां से परली तक एक ब्रांच लाइन गई है। इस परली
स्टेशन से थोड़ी दूरी पर परली गाउं के निकट श्रीवैदनात नामक जोतिरलिंग
बडोदा राज्य के अंतरगत गोमती द्वारका से
इशान कोण में बारह तेरे मिल की दूरी पर है।
द्वारका वन इसी का नाम है। कोई-कोई दारुका
वन के इस्थान में द्वारका वन पाठ मानते हैं।
इस पाठ के अनुसार भी यही इस्थान सिद्ध होता है
क्योंकि यह द्वारका के निकट और उस शेत्र के अंतरगत है।
कोई-कोई दक्षिन हैद्राबाद के अंतरगत आउड़ा ग्राम में
इस्थित शिवलिंग को भी नागिश्वर जोतिरलिंग मानते हैं।
कुछ लोगों के मच से अलमूडा से सत्रे मील उत्तर पूरू में
इस्थित योगेश जागिश्वर शिवलिंग ही नागेश जोतिरलिंग है।
सेत बंधुमे रामिश्वर। श्री रामिश्वर
तीर्थ को ही सेत बंध तीर्थ भी कहते हैं।
श्री गुष्मिश्वर को गुष्रिनेश्वर या
गृश्नेश्वर भी कहते हैं।
दोलताबाद श्टेशन से बारे मील दूर
बेरुल गाउं की पास है। इस स्थान को ही शिवाले कहते हैं।
भक्तों,
गुष्मिश्वर का इस थान स्पान कर रहे हैं। जो प्रति
दिन प्राते काल उठ कर इन बारे नामों का पाठ करता है,
वह सब पापों से मुक्त हो,
सम्पून सिद्धियों का फल प्राप्त कर लेता है।
दाकिन्यां भीमशंकरं
वारान्यस्यां चैविश्वेशं त्रियंबकं गोतमी तटे
वैदनाथं चिताभुमो नागेशं दारूकावने
सेतुबंधेचरामेशं घुष्मेशं तोशिवाले
ओम नमः शिवाय
हे मुनिश्वरो
जो शुद्धःं तह् रन वाले पुरुश निशकाम भाव से इन नमों का पाठ करेंगे
उन्हें कभी माता के गर्व में निवास नहीं करना पड़ेगा।
इन सब के पूजन मातर से ही
इह लोक में समस्त वर्णों के लोगों के दुखों का नाश हो जाता है।
और परलोक में उन्हें अवश्य मोक्ष प्राप्त होता है।
इन बार है जोतिलिंगों का
नैवेद्ध यतन पूर्वग ग्रहन करना
खाना चाहिए। ऐसे करने वाले पुर्षके जी
सारे पाप उसी खशन जल कर भस्म हो जाते हैं।
यहे मैंने जोतिलिंगों के दर्शन और पूजन का फल बताया।
अब जोतिलिंगों के उपलिंग बताये जाते हैं।
हे मुनिश्वरो ध्यान देकर सुनो।
वे उपलिंग मही नदी और समुद्र के संगंपरिस्थित है।
मल्लिक आर्जुन से प्रकत उपलिंग रुद्रिश्वर के नाम से प्रसिध है।
वे भ्रुगु कक्ष में इस्थित है और उपासकों को सुख देने वाला है।
महाकाल संबंद ही उपलिंग
दुगधिश्वर या दूधनात के नाम से प्रसिध है। वे नरवदा के तठ
पर है तथा समस्त पापों का निवारण करने वाला कहा गया है।
जो लोग उसका दर्शन और पूजन करते हैं,
वडे से बड़े पापों का वेनिवारन करने वाला बताया गया है.
भीम शंकर संमन्द अुपलिगौ
भीमिश्वर के नाम से परिसिद्ध है।
वेह भी सह परुवत पर ही स्थित है।
और महान बलक्य उध्यी करने वाला है।
व्यागेश्वर संबन्दी उपलिंग का नाम भी भूतेश्वर ही है,
वेह मल्लिकासर सर्सरती के थट पर स्थित हैं
और दर्शन करने मातर से सब पापो को हर लेता है,
रामेश्वर से प्रगट हुए उपलिंग को गुप्तेश्वर
गुश्मेश्वर से प्रगट हुए उपलिंग को व्यागेश्वर कहा गया है।
हे ब्राह्मनों,
इस प्रकार यहां मैंने जोते लिंगों के उपलिंगों का परिश्य दिया।
यह दर्शन मात्र से पाप हारी तता संपून अभिष्ठ के दाता होते हैं।
यह बड़ान परधान शिवलिंग बताये गई। अब अन्य प्रमुख
शिवलिंगों का वर्णन सुनो। बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
प्रीय भक्तों,
इसप्रकार यहां पर शिश्यु महापुरान के कोटी रुद्र सहीता की ये कथा
और पर्थम अध्याय समाप्त होता है।
तो प्रेम से बोलिये,
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
सिने के साथ भगवान शिव को अपने हिर्दे में बसा कर बोलिये।
ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।

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