Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रिय भक्तों,
शिश्यु महा पुरान के
कोटी रुद्र सहीता की अगली कता है
शिवरात्री व्रत के उद्यापन की विधी
तो आईये भक्तों,
इस कता के साथ आरमब करते हैं
उन्तालिस्मा अध्याय
रिशी बोले
हे सूच जी,
अब हमें शिवरात्री व्रत के उद्यापन की विधी पतलाईये,
जिसका अनुष्थान करने से साक्षाद भगवान शंकर निष्चही प्रसन्न होते हैं
सूच जी ने कहा,
हे रिशीो,
तुम लोग भक्ती भाव से आधर पूर्वक शिवरात्री के उद्यापन की विधी सुनो,
जिसका अनुष्थान करने से वै व्रत अवश्य ही पून फल देने वाला हुता है,
लगातार चोधे वर्षों तक शिवरात्री के शोव व्रत का पाल
पूर्वक नामों ने करे,
वहां मान्डप के बीदर सर्वतो भद्रमंडल का निर्मान करे,
वहां प्राजापत्य नामक कलशों की स्थापणा करनी चाहिए।
उसके मद्द्यभाग में दिव्य लिंगतो भद्र मंडली की रचना करें
अत्वा मंडप के भीतर सर्वतो भद्र मंडल का निर्मान करें
वहां प्राजापत्य नामक कलशों की स्थापना करनी चाहिए
वे शुब कलश, वस्त, फल और दक्षणा के साथ होने चाहीं
उनसब को मंडप के पार्श भाग में यत्नपूर्वक इस्थापित करें
मंडप के मद्ध्यभाग में एक सोने का अत्वा दूसरी
धातु तामबे आधी का बना हुआ कलश इस्थापित करें
व्रती पुरुष उस कलश पर पार्वती सहित शिव की सोनमैं प्रतिमा बना कर रखें
वह प्रतिमा एक पल तोले अथवा आधे पल सोने की होनी
चाहिए या जैसी अपनी शक्ती हो उसके अनुसार प्रतिमा बनवा
लें वाम भाग में पार्वती की और दक्षिन भाग में �
उस कारिय में चार रितिजों के साथ एक पवित्र आचारे का वरन
करें और उन सब की आज्या लेकर भक्ती पूर्वक शिव की पूजा करें
रात को प्रतेक प्रहर में पुजा करते हुए
जागरन करें व्रती पुरुष भगवत सम्मंदित कीरतन,
गीत एवं नत्य आद
प्रातेह काल पुनह
पूजन करने के पश्चात सविधी होम करें फिर यथा शक्ती प्राजा पत्य
विधान करें फिर ब्राह्मनों को भक्ती पूर्वक भोजन कराएं और यथा शक्ती
दान दें इसके बाद वस्त्र अलंकार तथा अबुश्वनों द्वारा परतनी सहित
वोका आचारिय को यह कहकर विधी पूर्वक दान दे
दें कि इस दान से भगवान शिव मुझ पर प्रसन हो
तत पश्चात कलश सहित उस मूर्ती को वस्तर के साथ वुशब की पीठ
पर रककर सम्पून अलंकारों सहित उसे आचारिय को समर्पित कर दें
इसके बाद हात जोड मस्तक जुका बड़े प्रेम से गदगद
वानी से महा प्रभू महेश्वर देव से प्रार्थना करें
आईये भगतों बताते हैं कि किस प्रकार से महा प्रभू की प्रार्थना करनी है
बोरिये शिवशंकर भगवाने की जए
अरथात
देव देव महादेव
शर्णागत वच्छल देविश्वर
इस वरत से सन्तुष्ट हों आप मेरे उपर कृपा कीजिए
शिवशंकर
मैंने भगती भाव से इस वरत का पालन किया है इसमें जो कमी रह गई हो
वे आपके परसाच से पूरी हो जाये
एह शंकर
मैंने अञ्जान में या जान भूज कर जो जप
पूजन आधी किया है वे आपकी कृपा से सफल हो
इस तरहें परमात्मा शिव को
पुष्पांजली अरपन करके फिर नमसकार एवं प्रार्थना करे
जिसने इस प्रकार वरत पूरा कर लिया
उसके उस वरत में कोई न्यूनता नहीं रहती उससे वे
मनुवांचित सिध्धी प्राप्त कर लेता है इसमें संशे नहीं है
बोलिये शिवशंकर भगवाणे की जैये
तो प्रीय भगतों इस प्रकार यहां पर शिश्यु महा पुरान के कोटी रुद्र
सहीता की यह कथा और उन्तालिस्म अध्याय हाँ पर समाप्त होता है
स्नहे से बोलिये बोलिये शिवशंकर भगवाणे की जैये आनन्द
के साथ बोलिये ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय