Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैये
प्रिय भक्तों
श्री शिव महा पुरान के कोटी रुद्र सहिता की अगली कथा है
वारानसी तथा विश्विश्वर का महात्मय
तो आये भक्तो
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ तीसम अध्याय
सूज जी कहते है
हे मुनीश्वरो
मैं संक्षेब से ही वारानसी
तथा विश्विश्वर के परम सुन्दर महात्मय का वर्णन करता हूं
सुनो
एक समय की बात है
कि पार्वती देवी ने लोक हित की कामणा से बड़ी प्रसन्नता के साथ
भगवान शिव से अविमुक्त ख्षेत्र और अविमुक्त लिंग का महात्म पूछा
तब परमिश्वर शिव ने कहा
यहे वारानसी पुरी सदा के लिए मिरा
गुहतम ख्षेत्र है
और सभी जीवों की मुक्ति का सर्वता हेतु है
इस ख्षेत्र में सिद्धगन सदा मेरे वरत का आश्यली नाना
परकार के वीश धारन किये मेरे लोग को पाने की च्छा रखकर
जीवात्मा और जीतेंद्रिय हो नित्यमहायोग का ब्यास करते हैं
उस उठ्तमहायोग का नाम है पाशुपतियोग
उसका
शुत्यों द्वारा प्रतिपादन हुआ है
वह भोग और मोक्षरूप फल प्रदान करने वाला है
हे महेश्वरी
वारणसी पुरी में निवास करना मुझे सदा ही अच्छा लगता है
जिस कारण से
मैं सब कुछ छोड़कर काशी में रहता हूं
उसे बताता हूं
सुनो
जो मेरा भक्त तथा मेरे तत्व का ज्यानी हैं
वे दोनों ही अवश्च ही मोक्ष के भागी होते हैं उनके लिए
तीर्थ की अपेक्शा नहीं वहीत और अभीत दोनों परकार के कर्म
उनके लिए समान हैं उन्हें जीवन मुक्त ही समजना चाहिए
वे दोनों कहीं भी मरें तुनन्त ही मोक्ष प्राप्त
कर लेते हैं यह मैंने निश्चित बात कही है
सर्वत्तम् शक्ति देवियू में इस परम उत्तम
अविमुक्त तीर्थ में जो विशेश बात है
उसे तुम मन लगा कर सुनो
सभी वर्ण और समस्त आश्रमों के लोग चाहेवे बालक जवान या बूढहे
कोई भी क्यों न हो
यदि इस पुरी में मर जाएं
तो मुक्त हो ही जाते हैं इसमें संशै नहीं है
इस्तृ यपवित्र हो यपवित्र
कोमारी हो या विवाहिता
विद्वा हो या वंध्वारजसल्वा प्रसूता
सन्सकार attorney अथैशी, तैशी,
कैशी ही क्यों ना हो
जदि अस्चहेत्र में मरी हो
तोओवश मोक्ष की भाग़नी होती है,
इसमें संदेह नहीं灣ा रहे�
उद्भिज्य
अथ्वा जरायुज्य।
प्राणी जैसे यहां मरने पर मोक्ष पाता है,
वैसे और कहीं नहीं पाता।
देवी,
यहां मरने वालों के लिए
न घ्यान की अपिक्षा है,
न भक्ती की,
न कर्म की आवशक्ता है, न दान की,
न कभी संस्कृती की अपिक्षा है, और न धर्म की ही,
यहां नाम कीर्तन,
पूजन तथा उठ्तम जाती की भी अपिक्षा नहीं होती।
जो मनुष्य मेरे इस मोक्ष दायक शित्र में निवास करता है,
वे चाहे जैसे मरे,
उसके लिए मोक्ष की प्राप्ती सुनिश्चित है।
हे प्रिये, मेरा यह तिव्वपुर गुह से भी गुह तर है।
ब्रह्मा अधिदेवता भी इसके महात्मे को नहीं जानते,
इसलिए यह महान ख्षेत्र अविमुक्त नाम से प्रसिद्ध है। क्योंकि
नैमिश आदी सभी तीर्थों से यह शिष्ट है। यह मरने पर अवश्य मोक्ष
देने वाला है। धर्म का सार सत्य है। मोक्ष का सार समता है।
इच्छा अनुसार भूजन,
शैन,
क्रीडा
तथा विविद कर्मों का अनुष्ठान करता हुआ भी मनुश यद इस अविमुक्त
तीर्थ में प्राणों का परित्याग करता है तो उसे मोक्ष मिल जाता है।
और जिसने धर्म की रुची त्याग दी है,
वेह भी यदी इस शेत्र में मिर्त्यों को प्राप्त होता है,
तो पुने संसार बंधन में नहीं पड़ता।
फिर जो ममता से रहित,
धीर,
सत्वगुणी,
दंबहीन,
कर्मकुशल और करतापन के अविमान से रहित होने की
कारण किसी भी कर्म का आरम्भ नहीं करने वाले हैं,
उनकी तो बात ही क्या है।
वे सब मुझ में ही इस्थित हैं। इस काशीपुरी में शिव
भक्तों द्वारा अनेक शिवलिंग इस्थापित किये गए हैं।
हे पारवती,
वे संपून अभिष्ठों को
देने वाले और मुक्ष दायक हैं।
चारों दिशाओं में पांच-पांच कोस फैला हुआ यकशेत अभिमुक्त कहा गया है।
यह सब और से मुक्ष दायक है।
जीव को मृत्यू काल में यकशेत उपलब्द हो जाये,
तो उसे अवश्य मुक्ष की प्राप्ती होती है।
यदि निश्पाप मनुष्य काशी में मरे,
तो उसका ततकाल मुक्ष हो जाता है। और जो पापी मनुष्य मरता है,
वह कायव्यों को प्राप्त होता है। उसे पहले यातना
का अनुभव करके ही पीछे मुक्ष की प्राप्ती होती है।
हे सुन्दरी,
जो इस अविमुक्त ख्षेत्र में पातक करता है,
वह हजारों वर्षों तक भैरवी यातना पाकर पाप
का फल भोगने के पश्चात ही मुक्ष पाता है।
शत्कोटी कलपों में भी अपने किये हुए कर्म का ख्षे नहीं होता।
जीव को
अपने द्वारा किये गए शुब,
शुभाशुब कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है।
केवल अशुब कर्म नरक देने वाला होता है।
तथा शुबो� Valerie और अशुब दोनोँ कर्मों से
मनिष्श योणी की प्राप्ती बदाई काेए। अशुभ कर्म
की ख़मी और शुभ कर्म की अधिक्ता होने पर उठ्तं जन्ह
प्राप्त होता है। शुभ कर्म की कमी और अशुभ कर्म
कर्म की अधिक्ता होने पर
यहां अधम जन्म की प्राप्ती हुती हैं।
हे पार्वती,
जब शुब और अशुब दोनों ही कर्मों का ख्षे हो जाता है,
तभी जीव को सच्चा मोक्ष प्राप्त होता है।
प्राव्ता कर्म भोगे बिना नश्ट नहीं हुता।
हे प्रिये जिसने एक ब्राह्मन को भी काशी वास करवाया है,
वै स्वेम भी काशी वास का अउसर पाकर मोक्ष का लाब्भू करता है।
सूज्जी कहते हैं,
मुनीवरों,
इस तरहें काशी का तथा
विश्विष्वर लिंग का प्रचूर महात्म बताया गया है,
जो सत्पुर्शों को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला है।
इसके बाद मैं त्यम्बक नामक जोतर लिंग का महात्म बताऊंगा,
जिसे सुनकर मनुष्य खण भर में समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैये।
प्रिये भक्तों,
इसप्रकार यहाँपर
शिशिव महापुरान के गोटी रुद्ध सहीता की यह
कथा और 23वा अध्याय यहाँपर समाप्त होता है।
तो सनही से बोलिये, बोलिये शिवशंकर भगवान की जैये।
आदर के साथ बोलिये,
ओम नमः शिवाय।
ओम नमः शिवाय।