Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की..
जै!
प्रिये भगतों..
शिश्यु महापराण के कोटी रुद्र सहीता की अगली कथा है..
अन्जान में शिवरात्री व्रत करने से..
एक भील पर भगवान शंकर की अदभूत कृपा..
बहुत आनन्दायक प्रसंग है भगतों..
आनन्द के साथ सुनेंगे तो बहुत
भहुत फल मिलने वाला है..
तो आईये भगतों आरंब करते हैं इस कथा के साथ..
चालिस्मा अध्याय..
रिश्यों ने पूछा..
हे सूच जी..
पूर्व काल में किसने इस उत्तम शिवरात्री व्रत का पालन किया था..
हे रिश्यों..
तुम सब लोग..
सुनो..
मैं इस विशे में एक निशाद का प्राचीन इतिहास सुनाता हूं..
जो सब पापों का नाश करने वाला है..
पहले की बात है..
किसी वन में एक भील रहता था..
उसका नाम था..
गुरू द्रूह..
उसका कुटुम्ब बढ़ा था..
तथा वे बल्वान और क्रूर स्वभाव का होने के साथ ही..
क्रूर्था पूर्ण कर्म में तत्पर रहता था..
वे प्रति दिन वन में जाकर म्रगों को मारता
और वही रहकर नाना प्रकार की चोरिया करता था..
उसने बच्पन से ही कभी कोई शुब कर्म नहीं किया था..
इसपरकार वन में रहते हुए उस दुरात्मा भील का बहुत समय बीट गया..
तद अंतर एक दिन बड़ी सुन्दर एवं शुब कारक शिवरात्री आई..
किन्तु वे दुरात्मा
घने जंगल में निवास करने वाला था..
इसलिए उस उरत को नहीं जानता था..
उसी दिन उस भील के माता पीता और पत्नी
ने भूग से पीडित होकर उससे याचना की..
हे वनेचर
हमें खाने को दो..
उनके इसपरकार याचना करने पर वे तुरंद धनुश लेकर चल दिया..
और मुर्गों के शिकार के लिए सारे वन में घूनने लगा..
ये व्योग से उसे उस दिन कुछ भी नहीं मिला..
और सूर्य अस्त हो गया..
इससे उसको बड़ा दुख हुआ..
और वे सोचने लगा..
अम मैं क्या करूँ..
कहां जाओं..
आज तो कुछ नहीं मिला..
घर में जो बच्चे हैं..
उनका तथा माता पीता का क्या होगा..
मेरी जो पत
ऐसा सोचकर
वह व्याद एक जलाशे के समीप पहुचा..
और जहां पानी में उतरने का घाट था..
वहां जाकर खड़ाओ हो गया..
वह मन ही मन यह विचार करता था..
कि यहां कोई न कोई जीव पानी पीने के लिए अवश्याएगा..
उसी को मार कर कृत कृत्य हो..
उसे साथ लेकर प्रसनता पूर्व घर को जाओंगा..
ऐसा अनिश्चे कर कि
वह व्याद एक बेल के पेड़ पर चड़ गया और
वहीं जल साथ लेकर बैठ गया..
उसके मन में केवली ही चिन्ता थी कि कब
कोई जीव आएगा और कब मैं उसे मारूंगा..
इसी प्रतिक्षा में भूग प्यास से पीड़ित हो
वह बैठा रहा..
उस रात के पहले पहर में एक प्यासी हिरणी वहाई..
जो चकित होकर जोर जोर से चोकडी भर रही थी..
हे ब्राह्मणों..
उस म्रिगी को देखकर
व्याद को बड़ा हर्ष हुआ..
और उसने तुरंत ही उसके वद के लिए अपने धनुश पर एक बान संधान किया..
ऐसा करते हुए उसके हाथ के धखे से थोड़ा
सा जल और बिल्वपत्र नीचे गिर पड़े..
उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था..
उक्त जल और बिल्वपत्र से शिव की पुधम प्रहर की पूजा संपन्य हो गई..
उस पूजा के महात्म से व्याद का बहुत सापा तक �
व्याद को देखते ही वै व्याकूल हो गई और बोली..
मिर्गी ने कहा..
हे व्याद..
तुम क्या करना चाहते हो..
मेरे सामने सच सच बताओ..
हरेनी की है बात सुनकर..
व्याद ने कहा..
आज मेरे कुटुम्ब के लोग भूखे हैं..
अत्यह तुम को मार कर..
उनकी भूख मिटाओंगा..
उने त्रिप्त करूँगा..
व्याद का वैदारुन वचन सुनकर..
तथा उसे रोकना कठिन था..
उस दुष्ट भील को बान ताने देखकर..
मिर्गी सोचने लगी..
अब मैं क्या करूँ..
कहां जाओं..
अच्छा कोई उपाय रश्ती हूँ..
ऐसा विचार कर उसने वहां इस प्रकार कहा..
मिर्गी बोली..
हे भील..
मेरे मानस से तुमको सुख होगा..
इस अनर्थकारी शरीर के लिए इससे अधिक महान
पुन्य का कारिय और क्या हो सकता है..
उपकार करस्चेव यत पुन्यम जायते त्विह..
तत पुन्यम शक्यते नेव..
वक्तुम वर्ष शतेरपी..
परंतु
इस समय मेरे सब बच्चे मेरे आश्रम में ही हैं..
मैं उन्हें अपनी बेहन को अथ्वा स्वामी को सौप कर लोट आऊंगी..
हे वनेचर..
तुम मेरी इस बात को मिठ्या न समझो..
मैं फिर तुमारे पास लोट आऊंगी..
इसमें संशे नहीं है..
इस्ठिता सत्येन धर्नी सत्ये नेव चेवारिधी
सत्येन जल धाराश्च सत्ये सर्वं प्रतिष्ठितम्
म्रगी के ऐसा कहने पर भी..
जब व्याद ने उसकी बात नहीं मानी..
तव उसने अठ्यंत विश्मित एवं भैबीत हो पुने इस प्रकार कहना आरम्ब किया..
म्रगी बोली..
एव्याद..
सुनो..
मैं तुम्हारे सामने ऐसी शपत खाती हूँ..
जिससे घर जाने पर मैं अवश्च तुम्हारे पास लोटाऊंगी..
ब्राह्मन यदी वेद बाचे और तीनों काल संध्या ना करे..
तो उसे जो पाप लगता है..
पती की आज्या का उलंगन करके..
स्विछ्छा अनुसार कारे करने वाली स्तिरियों को..
जिस पाप की प्राप्ती होती है..
किये हुए उपकार को ने मानने वाले..
बगवान शंकर से विमुख रहने वाले..
दूसरों से द्रोह करने वाले..
धर्म को लांगने वाले..
तथा विश्वास घात और छल करने वाले..
लोगों को जो पाप लगता है..
उसी पाप से मैं भी लिप्त हो जाओं..
यदी लोट कर यहां आओं..
इस तरहें अनेक शपत खा कर जब मृगी चुपचाप कड़ी हो गई..
तब उस वियाद ने उसपर विश्वास करके कहा..
अच्छा अब तुम अपने घर को जाओ..
तब वे मृगी बड़े हर्स के साथ पानी पीकर अपने आश्रम मंडल में गई..
इतने में ही रात का वे पहला प्रहर वियाद के जागते ही जागते बीद गया..
तब उस हिरनी की बहिन दूसरी मृगी
जिसका पहली ने स्मन्द किया था उसी की राह
देखती हुई जल पीने के लिए वहाँ आ गई..
उसे देखकर भील ने स्वेहम बान को तरकच से खीचा..
और बिल्व पत्र गिरे..
उसके द्वारा महत्मा शम्भू की
दूसरे पहर की पूजा संपन्य हो गई..
यद पीवह परसंगवश ही हुई थी..
तो भी वियाद के लिए सुख दायनी हो गई..
मिर्गी ने उसे बान कीचते हुए देखा..
और पूछा..
हे वनेचर..
यह क्या करते हो..
वियाद ने पूर्वत उत्तर दिया..
मैं अपने भूखे कुटुम्ब को त्रिप्त करने के लिए तुझे मारूंगा..
यह सुनकर वे मिर्गी बोली..
मिर्गी ने कहा..
हे व्याद..
मेरी बात सुनो..
मैं धन्य हूँ..
मेरा देह धारन सफल हो गया..
क्योंकि इस अनित्य शरीर के द्वारा उपकार होगा..
परन्तु मेरे छुटे छुटे बच्चे घर में हैं..
अतह..
मैं एक बार जाकर उन्हें अपने स्वामी को सौंपतू..
फिर तुम्हारे पास
यह सुनकर
वै हरनी भगवान विश्णो की शपत खाती हुई बोली..
हे व्याद..
जो कुछ मैं कहती हूँ उसे सुनो..
जदी मैं लोट कर नाओं..
तो अपना सारा पुन्य हार जाओं..
क्योंकि जो वचन देकर उससे पलट जाता है..
वै अपने पुन्य को हार जाता है..
जो पुरुष अपनी विवाहिता इस्तिरी को त्याग कर दूसरे के पास जाता है..
वैदिक धर्म का उलंगन करके कपोल कलपित धर्म पर चलता है..
भगवान विश्णो का भक्त होकर शिव की निन्दा करता है..
माता पिता की निधन तिति को शाद अदि ने करके उसे सुना �
जो पाप लगता है वही मुझे भी लगे यदि मैं लोट कर ना आओ..
सुज्जी कहते हैं..
उसके ऐसा कहने पर वैद ने उस मिर्गी से कहा..
जाओ..
मिर्गी जल पीकर हर्ष पूरुवक अपने आश्रम को गई..
इतने में ही रात का दूसरा प्रहर भी
वैद के जागते जागते बीट गया..
इसी समय तीस्रा प्रहर आरम्ब हो जाने पर
मिर्गी के लोटने में बहुत विलंब हुआ..
जान चकित हो वैद उसकी खोज करने ल�
उसे देख कर वनेचर को बड़ा हर्ष हुआ..
और वैद धनुश पर बान लग कर उसे माड़ डालने के लिए उधधत हुआ..
ऐसा करते समय उसके प्रारब्धवश कुछ जल और बिल्ब पत्र
शिवलिंग पर गिरे..
उससे उसके सो भाग्य से
भगवान शिव की तीसरे प्रहर की पूजा
संपन्य हो गई..
इस तरह भगवान ने उस पर अपनी दया दिखाई..
पत्तों के गिरने आदी का शब्द सुनकर उस
म्रगर ने व्याग्ड की ओर देखा और पूछा..
क्या करते हो..
व्याग्ड ने उत्
बड़ा हर्षव और तुरंत ही व्याद से इस प्रकार बोला..
हर्यने कहा..
मैं धन्य हूँ..
मेरा हरिष्ट पुछ्ट होना सभल हो गया..
क्योंकि मेरे शरीर से आप लोगों की त्रप्ती होगी..
जिसका शरीर पर उपकार के काम में नहीं आता..
उसका सब कुछ विर्थ चला गया..
जो सामर्थ रहते हुए भी किसी का उपकार नहीं करता है..
उसकी वै सामर्थ विर्थ चली गई..
तथा वै परलोप में नरक गामी होता है..
परन्तु एक बार मुझे जाने दो..
मैं अपने बालकों को उनकी माता के हाथ में सौप कर..
और उन सब को धीरज बनधा कर यहां लोट आऊंगा..
उसके ऐसा कहने पर व्याद..
मन ही मन बढ़ा विस्मित हुआ..
उसका हिर्दय कुछ शुद्ध हो गया था..
और उसके सारे पाप पुझ नश्ट हो जुके थे..
उसने इसपरकार कहा..
व्याद बोला..
जो जो यहाँ आये..
वे सब तुमारी इतने बाते बनाकर चले गए..
परन्तु वे वंचक अभी तक यहां नहीं लोटे हैं..
हे म्रिग..
तुम भी इस समय संकट में हो..
इसलिए जूट बोलकर चले जाओगे..
फिर आज मेरा जीवन निर्वाह कैसे होगा..
म्रग बोला..
हे व्याद..
मैं जो कुछ कहता हूं से सुनो..
मुझ में असत्य नहीं है..
सारा चराचर ब्रह्मान्ड सच से ही ठिका हुआ है..
जिसकी वानि जूटी होती है..
उसका पुन्य उसी ख्षन नश्ट हो जाता है..
तथापी भील..
तुम मेरी सच्ची प्रतिग्या सुनो..
संध्याकाल में मैथुन तथा शिवरात्री
के दिन भोजन करने से जो पाप लगता है..
जूटी गवाही देने..
धरोहर को हडप लेने..
तथा संध्या नहीं करने से दुज़ को जो पाप होता है..
वही पाप मुझे भी लगे..
यदि मैं लोट करने आओ..
जिसके मुक से कभी �
फल तोड़ता..
अभक्ष..
बख्षन करता..
तथा शिव की पूजा किये बिना..
और भस्म लगाये बिना भोजन कर लेता है..
इन सब का पाप तक मुझे लगे..
यदि मैं लोट करने आओ..
सुज्जी कहते हैं..
उसकी बाद सुनकर व्याद ने कहा..
जाओ..
शीगर लोटना..
व्य
पर प्रति बद्ध हो चुके थे..
आपस में एक दूसरे से वर्तान्त को भली भाती सुनकर..
सत्य के पाँच से बंधे हुए इन सब ने यही निश्चय किया..
कि वहाँ अवश्य जाना चाहिए..
इस निश्चय के बाद..
वहाँ बालक को आश्वासन देकर..
वही सब के सब जा
पर प्रति के बिना इस जीवन को धिकार है..
तब उन सब ने अपने बच्चों को सांतोना
देकर उसे पडोसीयों के हात में सौप दिया..
और स्वेहम शिगर ही उस इस्थान को प्रस्थान किया..
जहां वे व्याद शिरोमनी उनकी प्रतिक्षा में बैठा था..
उनने जाते देख उनके वे सब बच्चे भी पीछे पीछे चले आये..
उनने निश्चय कर लिया था..
किन माता पिता की जूगती होगी..
वही हमारी भी
शिव के ऊपर गिरे..
उससे शिव के चोथे पहर की शुब पूजा भी संपन्य हो गई..
उससमे व्याद का सारा पाप ततकाल भस्म हो गया..
इतने में ही दोनों मृगियां और म्रग बोल उठे..
व्याद शिरोमनी..
शिगर करपा करके हमारे शरीर को सार्थक करो..
उनकी है बा
पशू होने पर भी धन्य है..
सर्वता आधरनिये हैं..
क्योंकि अपने शरीर से भी परुपकार में लगे हुए हैं..
मैंने इस समय मनुष्य जन्म पाकर भी किस पुर्शार्थ का साधन किया..
दूसरे की शरीर को पीड़ा देकर अपने शरीर को पोसा है..
प्रति दिन अनेक प्रकार के पाप करके अपने कुटुम्ब का पालन किया है..
है..
ऐसे पाप करके मेरी क्या गती होगी..
अत्वा मैं किस खती को प्राप्त होगा..
मैंने जन्म से लेकर अब तक जुपा तक किया है..
उसका इस समय मुझे स्मर्ण हो रहा है..
इस चीवन को धिकार है..
धिकार है..
इसप्रकार ज्ञान संपन्य होकर व्याद ने
अपने पान को रोक लिया और कहा..
स्रेश्ट म्रगों
तुम जाओ..
तुमारा चीवन धन्य है..
व्याद के ऐसा कहने पर भगवान शंकर ततकाल प्रसन हो गए..
व्याद को अपने संभानित एवं पूजित स्वरूप का दर्शन कराया..
तथा क्रपा पूर्वक
उसके शरीर का इसपर्श करके उससे प्रीम से कहा..
ये भी
मैं तुम्हारे वृत से प्रसन हूँ..
वर मांगो..
व्याद भी भगवान शिव के उस रूप को देखकर ततकाल जीवन मुक्त हो गया..
और मैंने सब कुछ पा लिया..
मैंने सब कुछ पा लिया भगवान..
यों कहता हुआ उसके चर्णों के आगे गिर गया..
उसके इस
वर्षि पर देखते हुए..
और उसे गुह नाम देकर कृपा त्रश्टी से
दिखते हुए उनोंने उसे दिव्य वर्धिये..
शिव बोले..
हे व्याद..
सुनो..
आज से तुम शिंगवेरपूर में उत्तम राजधानी का आश्रे ले..
दिव्य भोगों का अपभोग करू..
तु
शिग योनी से मुक्त हो गए..
तथा दिव्य देह धारी हो..
विवान पर बैठ कर शिव के दर्शन मातर से..
शाप मुक्त हो..
दिव्य धाम को चले गए..
तब से अर्बुद परवद पर भगवान शिव व्याधिश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए..
जो दर्शन और पूज�
दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ..
अपनी राजधानी में रहने लगा..
उसने भगवान शीराम की कृपा पाकर..
शिव का सायुज्य प्राप्त कर लिया..
अन्जान में ही इस व्रत का अनुष्थान करने से..
उसको सायुज्य मोक्ष मिल गया..
फिर जो भक्ती भाव से
प्राप्त कर लिया..
अपनी राजधानी में रहने लगा..
उसने भगवान शीराम की कृपा पाकर..
शिव का सायुज्य प्राप्त कर लिया..
अनुष्थान मिल गया..
फिर जो भक्ती भाव से
प्राप्त कर लिया..
अनुष्थान मिल गया..
ओम नमः शिवाय..
ओम नमः शिवाय..