Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रीय भगतों
शिष्यु महा प्राण के कोटी रुद्र सहीता की अगली कता है
शंकर जी की आराधना से भगवान विश्णू को सुधर्शन चक्र की प्राप्ती
तथा उसके द्वारा तैत्यों का संघार
तो आईए भगतों इस कथा के साथ आरम्ब करते हैं
चोती स्वाध्याय
व्यास्ची कहते हैं सूध जी का यह वचन सुनकर उन मुनिश्वरोंने
उनकी भूरी भूरी प्रशंसा करके लोग हित की कामना से इस प्रकार कहा
रिशी बोले हे सूध जी आप सब जानते हैं इसलिए हम आपसे पूसते हैं
हे प्रभो
हरिश्वरलिंग की महिमा का वर्णन कीजिये
हे तात
हमने पहले से सुन लखा है
कि भगवान विश्णू ने शिव की आरादना से सुधर्शन चक्र प्राप्त किया था
अतय इस कथा पर भी विशेष रूप से प्रकाश डालिये
सुज्जी महराज कहते हैं
हे मुनिश्वरो
हरिश्वरलिंग की शुब कथा सुनो
भगवान विश्णू ने पूर्व काल में हरिश्वर
शिव से ही सुधर्शन चक्र प्राप्त किया था
एक समय की बात है
दैत्य अठ्यंत प्रबल होकर लोगों को पीड़ा देने और धर्म का लोप करने लगे
उन महावली और पराक्रमी दैत्यों से पीड़ित हो
देवताओं ने देवरक्षक भगवान विश्णू से अपना सारा दुख कहा
तब श्री हरी कैलाश पर जाकर भगवान शिव की विधी पूरवक आराधना करने लगे
वे हजार नामों से शिव की स्तुती करते
तथा प्रतेक नाम पर एक कमल चढ़ाते थे
तब भगवान शंकर ने विश्णू के भकती भाव की परिक्षा करने के
लिए उनके लाए हुए एक अजार कमलों में से एक को छिपा दिया
शिव की माया के कारण घटित हुई इस अदभुत
घटना का भगवान विश्णू को पता नहीं लगा
उन्होंने एक फूल कम जानकर उसकी खोज आरमब की
दर्ढता पूर्वक उत्तम व्रत का पालन करने वाले शिरी
हरी ने भगवान शिव की परसन्नता के लिए उसे एक फूल
की प्राप्ती के उधेश से सारी पिर्थवी पर भरमन किया
परंतु कहीं भी उन्हें वे फूल नहीं मिला
तब विशुद्ध चेता विश्णू ने एक फूल की पूर्थी के लिए
अपने कमल सद्रश्य एक नेत्र को ही निकाल कर चड़ा दिया
यह देख सबका तुख
दूर करने वाले भगवान शंकर
बढ़े प्रसन हुए और वहीं उनके सामने प्रगत हो गए
तगत हो कर वे श्री हरी से बोले
हे हरे मैं तुम पर बहुत प्रसन हुँ
तुम इच्छा अनुसार वर मांगो
मैं तुम्हे मनुवानच्छित वस्तू दूँगा
तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अधे नहीं है
विश्णू बोले
हे नाथ आपके सामने मुझे क्या कहना है आप अंतरयामी है
अतह सब कुछ जानते हैं
तथापी आपके आदेश का गुरोव रखने के लिए कहता हूं
दैत्योंने सारे जगत को पीड़ित करखा है
हे सदाशिव
हम लोगों को सुख नहीं मिलता
स्वामिन
मेरा अपना आस्तर शस्त्र
दैत्यों के वध में काम नहीं देता
हे परमिश्वर
इसलिए मैं आपकी शरण में आया हूं
सूच जी कहते हैं
शरी विश्णू का है वचन सुनकर
देवादी देव महिश्वर ने तेजो राशी में अपना सुधर्शन चक्र उन्हें दे दिया
उसको पाकर भगवान विश्णू ने उन समस्त प्रबल दैत्यों का
उस चक्र के द्वारा बिना परिश्रम के ही संघार कर डाला
रिश्यों ने पूछा शिव के वे सहस्त नाम कौन कौन हैं बताईये
वर्णन कीजिए
श्री विश्णू के ऊपर शंकर जी की जैसी करपा हुई थी उसका यथार्थ रूप से
प्रतिपादन कीजिए
शुद्ध अन्तह करन वाले उन मुनीयों की वैसी बात सुनकर
सूत ने शिव के चरणार विंदों का चिंतन करके इस प्रकार कहना आरंब किया
बोलिये शिव शंकर भगवाने की जैये
प्रीय भगतों इस प्रकार यहां पर शिवशिवमहः
पुरान के कोटी रुद्र सहीता की यह कथा
और चोती सवाध्याय
समापत होता है
स्रहेंसे बोलिए बोलिये शिवशंकर भगवाने
की जैये आदरसे बोलिये ओम नमः शिवाई