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Shravan Mahatmya Adhyay-23 Shri Krishna Janmashtami

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Kailash Pandit

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Bài hát shravan mahatmya adhyay-23 shri krishna janmashtami do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shravan mahatmya adhyay-23 shri krishna janmashtami - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shravan Mahatmya Adhyay-23 Shri Krishna Janmashtami chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shravan Mahatmya Adhyay-23 Shri Krishna Janmashtami

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

ओम्
नमाश्रेव बोली शिवशंकर भगवान की जैज़ें
प्रिय भक्तों शावन महात्म का अगला अध्याय है तीसम अध्याय
और इसकी कथा है श्री कृष्ण जनमाश्ट में
भक्तों बहुती आनन्दायक कथा है बहुत रस परसने वाला है
आनन्द भरसेगा
तो आईये भक्तों इस कथा के साथ आरम्ब करते हैं
तीसम अध्याय है
परन्तु सिंग राशी के सूरी आने पर
इस महुत्सव को मनाना चाहिए
अश्टमी तित्ही से पहले
सब्तमी के दिन दातुन करके अलप भुजन करना चाहिए रात को
जीतेंद्रिय होकर सूझाना चाहिए प्राते होने पर उपवास नियम करें
केवल उपवास द्वारा शिरी कृष्ण जनमाश्टमी का
पवित्र दिन गतीद करना चाहिए
केवल उपवास करने से ही मनिश्य को साथ जन्म
के किये गए पापों से छुटकारा मिल जाता है
अश्टमी के दिन तिलों के साथ नदी में इस्थान करना चाहिए
शोबनिस्थान में देवकी के सूत की घर को बना कर उसे नाना
परकार के रंगों के कपडों से कलश तथा फलों से सजाना चाहिए
दीप माला,
पुष्प,
चंदन,
अगरबत्ती तथा धूपपत्ती जला कर
वहां गोकुल के कृष्ण चरित्र का वर्णन करें
वाद्यशब्द,
नित्यगान आधी से उस दिन को मनाएं,
सोले उपचार द्वारा देवकी मंत्र से देवकी की पूचा करें
सतत्वेनुविना,
निनाद सहीद कायन आधी से किन्नरों द्वारा स्तुति की जाती हैं
शिंगार,
दर्पण,
दुर्वा,
दधी,
कलश धारन किये किन्नरों से सेवित अपने निवास इस्थान पर,
खुब प्रसन्न मुक,
देव माता देव की कृष्ण के सहिद वसुदेव
के साथ चार पाई पर लेटी हुई दिखानी चाहिए
सब बाप, नाशार्थ आधी में
प्रणव तथा आंत में नमः जोड कर
चतुर्ध्यंत युक्त अलग-अलग नाम कीर्तन पूजा करनी चाहिए
देव की वसुदेव,
बलदेव,
नंद,
यशोदा की अलग-अलग पूजा करनी चाहिए
चंद्रमा के निकलने पर श्री हरी का इस्मर्ण कर
चंद्रमा को अर्ग देकर कहना चाहिए
हे रोहनी कांथ,
आप मेरे अर्ग को स्विकार करें
श्री क्रिश्न अश्टमी का व्रत एक करोड
एकादर्शी के व्रतों के तुल्य होता है
इसप्रकार रात को पूजा करकी
नाऊमी को प्राथे काल देवी भगवती विन्द्यवास्नी
का क्रिश्न तुल्यम होच्छव करना चाहिए
ब्राह्मनों को भोजन कराकर दक्षिना देकर कहना
चाहिए भगवान वासुदेव मुझ पर प्रसन्न हो,
मैं आपको नमस्कार करता हूँ
जो देवी तथा भगवान श्री कृष्न का
प्रतिभश महुच्छव करता है,
वह उपरोक्त फल प्राप्त करने के साथ साथ
आरोग्य तथा अतुलिनी सोभाग्य भी प्राप्त करता है
और अंत में बैकुंट धाम को जाता है।
उद्यापन विधी,
उद्यापन किसी शूग धिनी सवधी करना चाहिए,
प्रातेखाल,
संध्या आदी करके प्रामनों से स्वस्ती वाचन करवाकर
रिश्यों की पूजा करनी चाहिए,
स्वर्ण की भगवान, कृष्ण की प्रतिमा बनवानी चाहिए,
मंडप में ब्रह्मा अधी देवुताओं की स्थापना करनी चाहिए,
उसपर तांबे
या मिट्टी का कलश रखकर
उसमें रजत या बास का पात्र रखना चाहिए,
कपड़े से ढखकर
साधक उसपर कृष्ण कनहिया की वैधिक या तांत्रिक मंत्रों द्वारा
शोर्शुपचार द्वारा पूजा करनी चाहिए,
शंख में गंगा जल,
फल, फूल, चंदन रखकर,
नारी केल, फल युक्तकर,
गुमी पर घुटने देखकर कहना चाहिए,
आप मेरे इस अर्ग को स्विकार करें।
एफरभू,
वासुदेव आत्मज,
आपको मेरा नमसकार है।
आप इस भुहसागर से मेरी रक्षया करें।
इस प्रकार प्रार्थना करने के पश्चात,
रात्री जागरन करना चाहिए। अगले दिन जनारदन की पूजा करके,
मूल मंत्र द्वारा पायस,
तिल तथा शुद्ध घी से
एकसो आठ बार होम करके
आहुती देनी चाहिए।
इदम विश्णूह मंत्र से होम करें। व्रत की समाप्ती पर
एक कपिला गाय का दान करना चाहिए। आठ ब्रामणों को भोजन कराकर,
दश्णा तथा जल से भरेवेवे आठ गड़े दान करने चाहिए। इस
प्रकार उद्यापन करने से मनिश उसी समय पाप से रहीत हो जा
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार इस कथा के पश्यात
शावन महात्म का
23 मा अध्याय हमापर समाप्त होता है। शद्धा से बोलिये
शिवशंकर भगवान की जई,
जई, जई

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