Nhạc sĩ: Traditional
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ओम्
नमाश्रेव बोली शिवशंकर भगवान की जैज़ें
प्रिय भक्तों शावन महात्म का अगला अध्याय है तीसम अध्याय
और इसकी कथा है श्री कृष्ण जनमाश्ट में
भक्तों बहुती आनन्दायक कथा है बहुत रस परसने वाला है
आनन्द भरसेगा
तो आईये भक्तों इस कथा के साथ आरम्ब करते हैं
तीसम अध्याय है
परन्तु सिंग राशी के सूरी आने पर
इस महुत्सव को मनाना चाहिए
अश्टमी तित्ही से पहले
सब्तमी के दिन दातुन करके अलप भुजन करना चाहिए रात को
जीतेंद्रिय होकर सूझाना चाहिए प्राते होने पर उपवास नियम करें
केवल उपवास द्वारा शिरी कृष्ण जनमाश्टमी का
पवित्र दिन गतीद करना चाहिए
केवल उपवास करने से ही मनिश्य को साथ जन्म
के किये गए पापों से छुटकारा मिल जाता है
अश्टमी के दिन तिलों के साथ नदी में इस्थान करना चाहिए
शोबनिस्थान में देवकी के सूत की घर को बना कर उसे नाना
परकार के रंगों के कपडों से कलश तथा फलों से सजाना चाहिए
दीप माला,
पुष्प,
चंदन,
अगरबत्ती तथा धूपपत्ती जला कर
वहां गोकुल के कृष्ण चरित्र का वर्णन करें
वाद्यशब्द,
नित्यगान आधी से उस दिन को मनाएं,
सोले उपचार द्वारा देवकी मंत्र से देवकी की पूचा करें
सतत्वेनुविना,
निनाद सहीद कायन आधी से किन्नरों द्वारा स्तुति की जाती हैं
शिंगार,
दर्पण,
दुर्वा,
दधी,
कलश धारन किये किन्नरों से सेवित अपने निवास इस्थान पर,
खुब प्रसन्न मुक,
देव माता देव की कृष्ण के सहिद वसुदेव
के साथ चार पाई पर लेटी हुई दिखानी चाहिए
सब बाप, नाशार्थ आधी में
प्रणव तथा आंत में नमः जोड कर
चतुर्ध्यंत युक्त अलग-अलग नाम कीर्तन पूजा करनी चाहिए
देव की वसुदेव,
बलदेव,
नंद,
यशोदा की अलग-अलग पूजा करनी चाहिए
चंद्रमा के निकलने पर श्री हरी का इस्मर्ण कर
चंद्रमा को अर्ग देकर कहना चाहिए
हे रोहनी कांथ,
आप मेरे अर्ग को स्विकार करें
श्री क्रिश्न अश्टमी का व्रत एक करोड
एकादर्शी के व्रतों के तुल्य होता है
इसप्रकार रात को पूजा करकी
नाऊमी को प्राथे काल देवी भगवती विन्द्यवास्नी
का क्रिश्न तुल्यम होच्छव करना चाहिए
ब्राह्मनों को भोजन कराकर दक्षिना देकर कहना
चाहिए भगवान वासुदेव मुझ पर प्रसन्न हो,
मैं आपको नमस्कार करता हूँ
जो देवी तथा भगवान श्री कृष्न का
प्रतिभश महुच्छव करता है,
वह उपरोक्त फल प्राप्त करने के साथ साथ
आरोग्य तथा अतुलिनी सोभाग्य भी प्राप्त करता है
और अंत में बैकुंट धाम को जाता है।
उद्यापन विधी,
उद्यापन किसी शूग धिनी सवधी करना चाहिए,
प्रातेखाल,
संध्या आदी करके प्रामनों से स्वस्ती वाचन करवाकर
रिश्यों की पूजा करनी चाहिए,
स्वर्ण की भगवान, कृष्ण की प्रतिमा बनवानी चाहिए,
मंडप में ब्रह्मा अधी देवुताओं की स्थापना करनी चाहिए,
उसपर तांबे
या मिट्टी का कलश रखकर
उसमें रजत या बास का पात्र रखना चाहिए,
कपड़े से ढखकर
साधक उसपर कृष्ण कनहिया की वैधिक या तांत्रिक मंत्रों द्वारा
शोर्शुपचार द्वारा पूजा करनी चाहिए,
शंख में गंगा जल,
फल, फूल, चंदन रखकर,
नारी केल, फल युक्तकर,
गुमी पर घुटने देखकर कहना चाहिए,
आप मेरे इस अर्ग को स्विकार करें।
एफरभू,
वासुदेव आत्मज,
आपको मेरा नमसकार है।
आप इस भुहसागर से मेरी रक्षया करें।
इस प्रकार प्रार्थना करने के पश्चात,
रात्री जागरन करना चाहिए। अगले दिन जनारदन की पूजा करके,
मूल मंत्र द्वारा पायस,
तिल तथा शुद्ध घी से
एकसो आठ बार होम करके
आहुती देनी चाहिए।
इदम विश्णूह मंत्र से होम करें। व्रत की समाप्ती पर
एक कपिला गाय का दान करना चाहिए। आठ ब्रामणों को भोजन कराकर,
दश्णा तथा जल से भरेवेवे आठ गड़े दान करने चाहिए। इस
प्रकार उद्यापन करने से मनिश उसी समय पाप से रहीत हो जा
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार इस कथा के पश्यात
शावन महात्म का
23 मा अध्याय हमापर समाप्त होता है। शद्धा से बोलिये
शिवशंकर भगवान की जई,
जई, जई