Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैने
प्रिये भक्तों
शावन महात्म का 21 मा अध्यायारंब करते हैं
और इसकी कथा है
पूर्ण मासी व्रत
बहुती सुन्दर कथा है भक्तों
ध्यान से सुनेंगे तो बहुत आनन्द आने वाला है
तो आईए भक्तों आरंब करते हैं
सनत कुमार ने भगवान शंकर से पूचा
हे प्रभू
आप अब मुझे पूर्ण मासी की विधी बताने की कृपा करें
बगवान शिवजी बोले
हे तात शावन शुक्ल पूरी मा को वेदोत सरजन उपा कर्म हुता है
उठ सरजन में पोश मा यह माग मा आ केवा है कै स्थरा है
रोहणी नक्ष्ट्र बता हे नई भी दिन्त काता
olioli
पूर्णी मा के दिन उठ सरजनग पन्त समयோ
इदनी मासि
तथा ब्रहच शाखार्ति उपाकर्म में शावन नकशत्र उचित है।
अतहें चतुर्दशी,
पून मासी या प्रतिपदातिति के दिनों में,
जिस दिन शावन नकशत्र हो,
उसी दिन रिगवेदियों का उपाकर्म होता है।
उपाकर्म गुरू और शुक्रास्त नकशत्र में भी हो सकता है।
गुरू तथा शुक्रास्त नकशत्र में पहले उपाकर्म का शुभारम्ब न करें।
यह शास्त्रों का कथन है।
ग्रहन तथा संग्रांति यादी योग या दुष्ट
समय आ जाने पर उपाकर्म दूसरे काल में करें।
हस्त युक्त पंचमी या भाद्रपद पूर्णिमा के दिन,
अपने अपने ग्रह सूत्र की अनुसार उच्चरजन उपाकर्म करें।
मलमास में,
शुद्ध पक्षमें उच्चरजन उपाकर्म करना चाहिए।
यहें दोनों उच्चरजन उपाकर्म नित्य हैं।
इनको प्रतिवर्ष नियम से करना पोड़ता है।
उपाकर्म की समाप्तेग पर,
द्वे जातियों के समक्ष उसी सभी में शेष्ट सभाधीब समर्पन करना चाहिए।
उसे आचारिया या अन्य ब्रामन को दे देना चाहिए।
मेरे सभी मनुरत पूरे हो तथा पुत्र,
पोथर अधी का भहुश्य उज्जवल हो,
यश्ची व्रधी हो।
इसप्रकार पांच वर्ष पस्चाथ उध्यापन करना न भूले।
ब्रामपन को यथाशक्ति दक्षणा दे कर
विधा करना चाहिए।
उसी रात को श्रावनी कर्म करना चाहिए। उसी के समीब सर्प
बली देनी चाहिए। यह दोनों कारिये अपने-अपने ग्रह सूत्रों
को देख कर करने चाहिए। इसी तिती में भगवान है ग्रीव का
अव्थार हुआ था। उस दिन है ग्रीव जैनती महुदस्व मनाना �
संपूम पाप नाशक साम देव गया गाया गया।
इसलिए इस दिन साम देव को सुनना चाहिए। और उसकी पूजा करने चाहिए।
पहाँ अपने बंदों बाद्धों तथा मिट्रों के साथ भोजन करना चाहिए।
और मनो-विनोद के खेल खेलने चाहिए।
हैगरीव की पूजा करनी चाहिए। शुरू में प्रणाऊब भोजन करना
चाहिए। उसके बाद भगवते तथा धर्माय कहकर चतुर्थ यंतर
आत्म विशोधन शब्द की योजन करनी
चाहिए। अन्त में नमः शब्द का उचारन करना चाहिए।
ये अठारे अक्षरों का मंत्र सब सिद्धियों को प्रदान करने वाला तथा वैश्य,
मोहन आधी प्रियोगों का एक ही साधक मंत्र है।
इसका पुरश्चरन
अक्षर संख्या के अनुसार अठारे लाख ये अठारे हसार
है। परन्तु इस कल्योग में इसका चोगना करना चाहिए।
इसप्रकार करने से भगवान है गिरिव परसंद
होते हैं और सभी कामना पौन कर देते हैं।
इसी दिन रक्षाबन्दन का परव मनाया जाता है।
यह सब रोगों का नाश करने वाला तथा अशुभों का नाश करने वाला है।
हे सनत कमार,
इसके विशे में मैं तुम्हे पुराना इतिहास सुनाता हूं।
पहले इंद्राणी ने
इंद्र की जै के लिए से किया था।
पुराने समय में देव और अशुभों में संग्राम चिड़ गया था।
जो बार है वर्ष तक चला।
इंद्राणी ने उसी समय इंद्र को ठका जान कर कहा।
हे देव,
आज चतुरदशी है।
अच्छा नहीं पर पुराने के लिए
ज़िन्द्र ने पुराने के लिए जिन्द्र ने पुराने के लिए जिन्द्र
ने पुराने के लिए जिन्द्र ने पुराने के लिए जिन्द्र ने पुराने
के लिए जिन्द्र ने पुराने के लिए जिन्द्र ने पुराने के लि�
बगवान भोले नाथ बोले
हे सनत कुमार
शावन मास की पूर्णी मा के दिन
मनुष्य को प्राते काल
शुती, स्मृती, विधान द्वारा इसनान करना चाहिए
संध्या
जप आदी करके
पितर, देवता और
रिशी तरपन करना चाहिए
सोने के पात्र की सुरक्षा बना कर
उसको स्वार्ण के सूत्र में बांध कर,
मोती आदी द्वारा विभूशित,
स्वच्छ रिशम के बने विजित्र गंथी युग्त पत्र गुच्छों से सुशोबित
सरसो चावलों को अंदर रक कर आकरशक बनाना चाहिए
वहां कलश रखकर
उसके ऊपर पूर्ण पात्र में रक्षा रखनी चाहिए
सुन्दर आसन पर सगे सम्मंधियों सहीट पैठकर
मंगल गान करना चाहिए
इसके बाद येन बद्धो अली राजा दान विंद्रो महाबला
तेन त्वा बनदनामी रक्षे माचल माचला
ब्राह्मण,
शत्रिय,वैश्य,
शुद्द तथाअन्य विग्तियों को भी बेले ब्राह्मणों की पूजा कर के
रक्षा बनदन करना चाहिए
इसप्रकार जो रक्षा बनदन करता हे
वे सब दोशों से चूटजाता है
प्रण्तु रक्षा बंधन का कारिय बद्ढरा नक्षत्र में कदापी नहीं करना चाहिए।
बद्ढरा नक्षत्र में इसको करने से विपरीत फल प्राप्त होता है।
बोली शिवशंकर भगवाने की जैए।
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार इस कथा के पस्चात
शावन महात्म का 21 मा अध्याय
समाप्त होता है।
तो शद्धा के साथ बोली ये।
बोली शिवशंकर भगवाने की जैए।