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Shravan Mahatmya Adhyay-11 Tithi Mahatmya

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Kailash Pandit

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Bài hát shravan mahatmya adhyay-11 tithi mahatmya do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shravan mahatmya adhyay-11 tithi mahatmya - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shravan Mahatmya Adhyay-11 Tithi Mahatmya chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shravan Mahatmya Adhyay-11 Tithi Mahatmya

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए!
प्रीये भक्तों,
शावन महात्म की
अगली कता है
तिथी महात्म
और अध्याय है ग्यार्वाँ.
तो आईए भक्तों, इस कता के साथ
आरम्ब करते हैं ग्यारवे अध्याय को.
इसमें प्रतिपदा एवं दुईत्या तिथी का वरत बताया गया है.
श्री सनत कुमार जी ने भगवान शंकर से इच्छा प्रगट की,
हे प्रभू,
आपने मुझे सब वारों का महात्म बताया,
अब मुझे तिथी महात्म के बारे में जानने की इच्छा हो रही है.
श्री उमापती बोले,
हे सनत कुमार,
शावन का महीना मुझे सब महीनों में सबसे अधिक प्रिय है.
शावन मास की प्रतिपदा यदि सोमबार को परती है,
तो शावन मास में पांच सोमबार होंगे.
ऐसा होने पर यह है,
रोटक वरत कहलाता है.
उस दिन मनिश्य को वरत रखना चाहिए.
यह साड़े तीन मास का भी होता है.
रोटक वरत लक्ष्मी की वरत्धी करने वाला,
सब कामनाओं को पूर्ण करने वाला और समस्त सिद्धियों को देने वाला है.
अब मैं तुमको रोटक वरत को करने का विधान बताता हूँ.
शावन मास की शुकल पक्ष की प्रतिपदा को,
प्रातय उठकर रोटक वरत करने का इस प्रकार संकल्प करना चाहिए.
आज से मैं रोटक वरत करूँगा.
हे जगत कुरू मुझ पर क्रपा करें.
इस प्रकार संकल्प कर
प्रतिदिन मेरा
बगवान शंकर का पूजन करना चाहिए.
अखंडित बेल पत्र,
तुलसी पत्र,
नेल कमल, कमल,
कलहार, कुसम,
चमपा,
मालती,
कुंद,
अर्ग आधी पुष्पों तथा,
अनेक प्रकार के रितू कालीन फूलों से,
धूप,
धीप,
नयवेद्य तथा,
अनेक प्रकार के फूलों से पूजा करनी चाहिए.
पुष्पाहार नाम से पांच रोटक बनाने चाहिए.
उन मेंसे दो रोटक ब्राह्मन को देने चाहिए.
एक रोटक नयवेद्य के रूप में मुझे समर्पित करना चाहिए.
दो रोटक व्रतधारी को खाने चाहिए.
केला,
नारीकेल,
जंबिरी,
बिजोरा,
नीम्बु,
खजूर,
ककडी,
दाक,
नारंगी,
मातुलिंग,
अक्रोट,
अनार और रितू में पाये जाने वाले फलों
के अर्गदान के लिए उत्तम कहा गया है.
सनत कुमार,
अब इस व्रत का पुण्य फल सुनो.
जितना फल साथ समुद्र परियंत भूमी दान करने से मिलता है,
उतना ही फल इस व्रत को विधी पूर्वक करने से मिलता है.
इस व्रत को पाँच वर्ष तक करने से अतुल धन संपत्ती प्राब्ध होती है.
इसके उध्यापन में सोने के दो रूटक बनाने चाहिए,
पहले दिन अधिवासन करके,
अन्य दिनों में प्रातेखाल शिव मंत्र द्वारा
घी तथा बेल पत्रों से हवन करना चाहिए.
हे सनत कुमार,
अब तुम द्वितिया के व्रत को सुनो,
इस व्रत को करने वाला प्राणी
लक्ष्मिवान तथा पुत्रवान हो जाता है.
यह व्रत
ओधुंबर नाम से प्रिशिद्ध है,
यह सब पापों को नाश करने वाला है.
मनुष्यों को शावन मास की द्वित्यातिति को
प्रातह संकल्प करके विधिवत व्रत करना चाहिए.
इस व्रत में गूलर,
ओधुंबर के पेड़ की पूजा की जाती है.
गूलर का पेड़ नमिल सके तो दीवार पर
गूलर के पेड़ का चित्र बना लेना चाहिए.
अरचन विधी इस प्रकार कहें,
हे ओधुंबर
आपको नमसकार है,
हे हेम पुश्पक आपको नमसकार है,
जन्तू फल युक्त लाल अंड तुल्ल शली युक्त आपको नमसकार है.
इसके बाद शिव तथा शुक्र की पूजा करनी चाहिए.
गूलर के 33 फलों से 11 फल ब्राह्मन को,
11 फल देवता को
और शेष 11 फल को स्वहम ग्रहन कर लेना चाहिए,
खा लेना चाहिए.
इस दिन अन्न नहीं खाना चाहिए,
रात में शुक्र तथा मेरा,
भगवान शंकर का अर्चन करते हुए
जागरन करना चाहिए.
इस प्रकार यह वरत 11 वर्ष तक करें,
फिर इसका उध्यापन करें,
उध्यापन में सोने का फल,
पुष्प, पत्ते आदी के साथ गूलर का पेर बनवाकर,
उसमें स्वण की बनी शुक्र तथा मेरी मूर्तियां रखकर पूजन करना चाहिए.
दूसरे दिन प्रातेह काल
चुटे-चुटे गूलर के फलों से 108 हवन करें.
उधुम्बर की लकडी,
घी तथा तिलों द्वारा हवन करना चाहिए.
हवन की समाप्ती पर
आचार्य का पूजन करना चाहिए.
अपनी सामर्थ के अनुसार ब्राह्मनों को भोजन कराना चाहिए.
यहां भी बहुत से पुत्र होते हैं तथा वंश व्रध्धी होती हैं.
उसे कभी धन्दाने की कमी नहीं होती.
बोली शिवशंकर भगवाने की जैये!
प्रिये भक्तों,
इस कथा के साथ यहाँ पर
शावन महात्म का घियारमा अध्याय समाप्त होता है.
शद्धा से बोली,
बोली शिवशंकर भगवाने की जैये! जैये! जैये!

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