Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैज़।
प्रीये भक्तों,
शावन महात्म का गला ध्याय है चोबी स्माध्याय
और इसकी कथा है श्री कृष्ण अवतार तथा राजा महा सेन कथा
प्रिये भक्तों, इस कथा के साथ आरम्ब करते हैं
बगवाने शंकर सनत कुमार से बोले
हे महरशी,
पूर्व कल्प में दैत्यों की अत्याचारों से पीड़ित होकर
पृत्वी ब्रह्माजी के पास गई,
पृत्वी की कथा सुनकर
पृत्वी के उध्धार के लिए ब्रह्माजी देवताओं के साथ पृत्वी को लेकर
ख्षीर सागर में विश्णु जी के पास गए,
ब्रह्माजी के मुक से
पृत्वी की कथा सुनकर
भगवान श्री हरी ने कहा,
आप लोग डरों नहीं,
मैं शेगर ही देवकी के गर्व से अवतार लूँगा
और पृत्वी के असनों का विनाश कर
पृत्वी के कश्णों को दूर करूँगा,
आप देवतागन पृत्वी पर गोकुल में जाकर यादव कुल में जन्न ले,
भ�
जाकर से वासुदेव उनको गोकुल में नन्द बाबा की हाँ छोडाए,
वहाँ पर उनका लालन पालन बड़े चाव से किया गया,
जब भगवान श्री कृष्ण कुछ बड़े हुए,
तो उनोंने कन्स तता उसके गनों का मत्रा कर वद कर डाला,
और अपने माता पिता दे�
एशर्णागत्वच्छल,
आपको हम नमस्कार करते हैं,
हमारी रक्षा करो,
हे देव
किसी को भी आपके जन्मदिन का ज्यान नहीं है,
आपके जन्म
का ज्यान होने पर
हम उस दिन
वर्धापनोच्छव मनाना चाहते हैं
बगवान श्री कृष्ण ने उनकी भक्ती,
शद्धा तथा,
आत्मियता देखकर,
उनसे जन्म दिवस में होने वाले कारिय को कहा,
उन मत्रा बासीयों ने बगवान कृष्ण का कथन सुनकर
उसी विधान से व्रध किया,
बगवान ने उन लोगों को अनेक वर प्रदान किये
अंग देश में मित्र जित नाम का एक राजा था,
उसके पुत्र का नाम महा सेन था,
वे अत्यंत सादु सवभाव वाला राजा था,
वे परजा की अपने प्राणों से भी अधिक रक्षा करता था,
परजा भी उसपर अपने प्राण चिढ़कती थी,
परंत वे अचानक पाकंडियों के संपर्क में आ गया,
जो राजा अपनी परजा को प्राणों से अधिक चाहता था,
वही अब अधर्म की रास्ते पर चल पड़ा,
वह वेद,
शास्त तथा प्राणों की निन्दा करने लगा,
और वर्णाश्रम धर्म में त्विश रखने लगा।
हे तात,
इस प्रकार बहुत समय में बीच जाने पर
उसकी मृत्यू हुई,
यमदूत उसे पाशों में बांध कर यम के पास ले गए,
यमदूत ने उसे नरक में गिरा कर पहुँच समय
तक यातना पोँचाई। नरक की यातना भोग कर,
वे इदर उदर खुमता हुआ मारवार तेश में पोँचा,
तथा एक वैश्य के शरीर में पुरेश कर गया।
वे वैश्य के साथ मत्रा लगडी में पोँच गया,
मत्रा के रक्षकों ने उसे वैश्य के शरीर से अलग कर दिया।
वहाँ पर वहे वनों में तथा रिश्यों के आश्रोम में खुमता हुआ,
भगवान की कृपा से जनमाश्टमे के दिन,
रिश्यों तथा ब्राह्मनों द्वारा की जाने वाली महा पूजा में शामिल हो गया।
वहाँ रात भर जाकता रहा और हरी कीर्तन का अनन्द लेने लगा।
वहाँ भगवान की कृपा से उसी खण निश्पापवित्र और स्वच्च चरित्र का होकर,
प्रेत शरीर को चूड़कर विमान द्वारा विश्णू लोक में पहुँच गया।
इस व्रत के प्रभाव से मैं मोक्ष को प्राप्त हुआ।
यह व्रत सब इच्छाओं को पून करने वाला है।
इसके करने से मनुष्यों को सभी वांचित भल प्राप्त हो जाते हैं।
विद्वानों का कर्तव है कि वे श्रीकृषन जन्म का विधान लिख करों,
इसका परचार परसार करें। बोलिये शिवशंकर भगवान की जैने।
प्रीये भक्तों,
इसप्रकार इस कथा के साथ शावन महार्त्म का
जो भी स्माध्या यहां पर समाप्त होता है।
शद्धा और प्रेम के साथ बोलेंगे। बोलिये
शिवशंकर भगवान की जैने। जैने। जैने।