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Shravan Mahatmya Adhyay-9 Shukrawar Ki Katha

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Kailash Pandit

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Bài hát shravan mahatmya adhyay-9 shukrawar ki katha do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shravan mahatmya adhyay-9 shukrawar ki katha - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shravan Mahatmya Adhyay-9 Shukrawar Ki Katha chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shravan Mahatmya Adhyay-9 Shukrawar Ki Katha

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैने
प्रिये भक्तों
शावन महात्म का
नौ अध्याय आरम्ब करते हैं
और इसकी कथा है
शुक्रवार की कथा
तायी भक्तो
आरम्ब करते हैं
नौ अध्याय
भगवान शंकर ने सनत कुमार से कहा
अब मैं तुम्हे शुक्रवार की कथा कहता हूं
जिसे सुनकर प्राणी समस्त विपत्तियों से चूट जाता है
पांडव वन्श में एक राजा था
जिसका नाम सुशील था
उसके यहां कोई संतान नहीं थी
उसकी पत्नी का नाम
सुकेशी था
पुत्रने होने के कारण वे उदास रहने लगा
राणी इस्त्री स्वभाव के कारण हर महीने कपड़ों को अपने पेट पर बांध कर
पेट की व्रध्धी करती थी
इसप्रकार साहस के कारण
स्वय प्रसूती के अनुसार सुकेशी किसी गर्वती स्तृइरी को खोस्ती रही।
संयोगवर्ष उसने गर्वती पुरोहित की पत्नी को देखा।
कप्ती राणी ने प्रसौव के समय में दाई का कारे करने वाली अन्य किसी स्तृइरी
को इस काम के लिए नियुक्त किया। उस दाई को एकांत में बहुत सा धन दिया
और गर्व के अनुकरण की सब बाते के सुनाई।
दाई ने पुरोहित की इस्तरी के नेतरों पर पट्ती बांद
दी और उसके उत्पन हुए पुत्र को राणी के पास भेज दिया।
इसप्रकार राणी के पास उस प्रोहितनी के पुत्र
के पहुँच जाने की किसी को कानों कान खबर न हुई।
इस नाटक को कोई न जान सका,
राणी ने अपनी दासीयों द्वारा राजा को सूचना करा दी
कि उनकी हैं लड़का पैदा हुआ है।
उधर दाई ने प्रोहितनी के नेत्रों से पट्टी खोल दी,
वै अपने साथ मास की एक पिंडी लाई थी।
दाई ने प्रोहितनी को वै मास की पिंडी दिखाते हुए कहा,
ये अनिष्ठ हुआ है,
अपने पती से इसकी शान्ती करवाना।
पुत्र नहीं हुआ तो न सही,
तुमारे प्राण तो बच गई।
प्रोहित की इस्तरी सोचने लगी,
कहीं दाई ने मेरे साथ कपट तो नहीं किया।
राजा ने जब पुत्र उत्पन्य होने की बात सुने,
तो जाद करम आदी करके ब्राह्मनों को गज, अश्व,
रथ आदी दान में दिये,
बंदी-बंदी खाने में बंद थे,
सब को छोड़ दिया।
राजा ने उसका नाम प्रियवरत रखा।
शावन मास प्रारंब होने पर,
प्रोहित की इस्तरी ने शुक्रवार के दिन भक्ती द्वारा
जीवनतिका की पूजा अर्चना की।
द्वार पर बहुत से लड़कों के साइत
जीवनतिका की तस्पीर बनाई,
और पांच दीपक जलाकर पुश्पमाला से पूजा अर्चना की।
गेहुं के आटे के दीपक बनाकर जलाती और स्वहम भी
गेहुं के आटे को शुद्धी घी में पकाकर भोजन करती।
भोजन के पश्चात जीवनतिका से प्रार्थना करती,
जहां पर भी मेरा पुत्र हो उसे सुरखषित रखना।
इसपरकार
प्राथना करने के पश्चात,
वै कथां सुनाति। और यताविधी नमस्कार करती।
जीवंतिका के प्रसाथ से वै बालक राजा के यहां चांद की तरह बढ़ने लगा
और जीवंतिका उसकी राद दिन रक्षा करने लगी.
कुछ समय बाद राजा का स्वर्गवास हो गया.
पित्र भक्त पुत्र ने पिता की पारलोकिक क्रिया संपन्य कराई,
इसके बाद मंत्री मंडल ने उसको राज सिंघासन पर बैठा दिया.
उसने कुछ काल तक राज्जी का शासन भली भाती किया.
इसके बाद वे राज्जी का भार मंत्रीयों को सोंप कर पित्र
रिन से मुक्ति पाने के लिए गया जी को रवाना हो गया.
उसने यह यात्रा
कारपटिक वेश में की.
रास्ते में वे किसी ग्रहस्ती के घर पर ठेरा.
उस ग्रहस्ती के यहां पुत्र हुआ था.
इससे पहले क
जी विंतिका देवी उसकी रक्षा कर रही थी.
ग्रहस्त ने जब अपने लड़के को जीवित वस्था में देखा,
तो उसको पक्का विश्वास हो गया कि यह
बालक अतिती राजा के कारण ही जीवित है.
उसने राजा से एक दिन घर पर ठेरने का निवेदन किया.
क्योंकि �
यहाँ ठेरा,
उसके यहाँ दूसरा पुत्र पैदा हुआ था,
जो केवल साथ दिन का था.
इस पुत्र को लेने जब शश्टी देवी आई,
तो जीविंतिका देवी ने उसे बालक को नहीं ले जाने दिया.
शश्टी देवी ने जीविंतिका देवी से पूचा,
आप इस लड़के को क्यों बचा रही हो,
इसकी माने कौन सा व्रत किया है,
जो दिन रात आप इसकी रख्षा करती हैं.
राजा भी उस समय जाग रहा था,
वे दोनों देवियों की बात सुन रहा था,
वे नीद का बहाना करके लिटा रहा.
जीविंतिका देवी बोली,
इसके हाँ जो अतीथी ठेरा हुआ है,
उसकी मा शावन के महीने में शुक्रवार के दिन मेरा पूजन
तथा व्रत नियाम अनुसार करती है,
वे नियम क्या है और किस प्रकार किया जाता है,
वे सब तुम्हें बताती हूं.
इस राजा की मा उस दिन हरे रंग के वस्तर
और हरे रंग की चूडिया नहीं पहंती,
चावल के धोवन मांड को कभी नहीं लांगती,
हरे पत्तों के मंडब के नीचे नहीं जाती,
हरे रंग की साग सबजी नहीं खाती,
राजा सुबह सुबह उठ कर अपने राज्य में आया,
राजा ने अपनी माता से पूछा,
माता,
आप जीविन्तिका देवी का व्रत करती हैं,
तो उसकी विधी क्या है?
राजा की माने उत्तर दिया,
मैं जीविन्तिका का व्रत नहीं करती,
इसलिए मुझे उसकी विधी का ज्यान नहीं है,
यह सुनकर राजा को बड़ा अश्चे हुआ,
और सोचने लगा कि मिरी माता कौन है?
राजा ने गयाजी यात्रा के फल प्राप्तार्थ,
ब्राह्मनों तथा सुहागणों को भोजन कराने की इच्छा प्रकट कर,
उनके यहां हरे वस्त्र,
हरी चूडियां आधी परिक्षार्थ विजवाए,
दूत ने सबके यहां संदेश दिया कि आप सब राजा के यहां भो
राजा ने वस्त्र और लाल रंकी चूडियां भेजी,
रोहित पत्नी ने उन चीजों को ले लिया
और राज महल में आई,
रोहित पत्नी को देखकर राजा ने हाथ जोड़कर उसका
भिनन्दन किया और नियम का पालन करने का कारण पूछा,
उसने इसका कारण शुक्रुवा
प्याजी में दो हाथ निकलने से
तत्धा रास्ते में ग्रहस्ती के हिंद देवी से
बादजीत और इस्तनों से दूर निकलने से राजा का पक्का विश्वास हो गया
कि यही उसकी माता है
राजा ने पूछा,
हे माते
भय मत करो
और मुझे मेरे जन्म का सही सही हाल बताओ
सुकेशनी ने उसके जन्म के सब तथ्य बता दिये,
राजा ने प्रसन्न होकर अपना जन्म देने वाले माता पिता को नमस्कार किया
और उनको संपत्ति देकर उनका मान बढ़ाया
एक रात राजा ने
जीविन्दिका से प्रार्थना की,
हे देवी मेरे जन्म दाता पिता तो अभी
जीवित है,
फिर गयाजी में पानी से दो हाथ किसके निकले थे?
देवी ने राजा को सपने में ही उत्तर दिया,
हे राजन,
मैंने तुम्हे विश्वास दिलाने हेतु ऐसी मया रची थी,
इसमें तुम कोई संदेह न करो।
भगवान शंकर बोले,
हे सनत कुमार,
मैंने तुम्हे शुकुरवार के व्रत करने का महात्म कह सुनाया,
इस व्रत को शावन के मास में करने से
मनुश्य की समस्त इच्छाएं पून हो जाती है।
बोली शिवशंकर भगवाने की जई!
प्रीये भक्तों,
इस प्रकार यहाँ पर,
इस कता के साथ,
शावन महात्म का नौ अध्याय समाप्त होता है,
तो मेरे साथ, स्नही के साथ बोली ये,
बोली शिवशंकर भगवाने की जै!
जै!
जै!

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