Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जए!
प्रीय भक्तों,
शिशिव महा पुरान की शत रुद्र सहीता की अगली कथा है
काल भेरो का महात्म
विश्वानर की तपस्या और शिव जी का प्रसन्य होकर
उनकी पत्नी
सुचिस्मती के कर्ब से उनके पुत्र रूप
में प्रकट होने का उन्हें वर्धान देना
तो आईए भक्तों, आरम्ब करते हैं इसके साथ
आट से लेकर तेर्मा अध्याय तक की कथा
तद अंतर भगवान शंकर के भेरो अवतार का वर्णन करके नन्दीश्वर ने कहा
हे महा मुने परमिश्वर शिव उत्तम उत्तम लिलाहे
करने वाले तथा सत्पुर्शों के प्रेमी हैं
उन्होंने मार्गशीर्श मास के कृष्णपक्ष
की अश्टमी को भेरो रूप से अवतार लिया था
इसलिए जो मनुष्य मार्गशीर्श मास की कृष्णाश्टमी को काल
भेरो के सन्निकट उपवास करके रात्री में जागरन करता है
वें समस्त पापों से मूखत ओजाता है
जो मनुश्य अन्यत्रभी भकति पूरवक जागरन सहिट
इसव्रत का अनुषथान करेगा
वें भी महापापों से मूक्त होकर सद्गति को प्राप्त होजायेगा
प्राणीयों के लाखो जन्मों में कीए होए जो पाप हैं,
वे सब के सब कालभहरव के दर्शन से निरमल हो जाते हैं।
उर्ख काल भेरव के भकतों का अनिष्ट करता है,
वह इस जन्में दुख भोग कर पुने दुर्गती को प्राप्त होता है.
जो लोग विश्वनात के तो भघ्त हैं,
परन्तु काल भेरव की भखती नहीं करते,
उने महान दुख की प्राप्ती होती है.
काशी में तो इसका विशेष प्रभाव पढ़ता है,
जो मनिश्य वारानसी में निवास करके काल भेरव का भजन नहीं करता,
उसके पाप शुकल पक्ष के चंद्रमा की भाती बढ़ते रहते हैं.
जो काशी में प्रतेक भौमवार की कृष्णाश्टमी के दिन
काल राज का भजन पूजन नहीं करता,
उसका पुन्य कृष्णपक्ष के चंद्रमा की समान ख्षीन हो जाता है।
तदंतर नन्दिश्वर ने वीर भद्र तथा शर्भावतार का व्रतांत सुना कर कहा,
एब्रह्म पुत्र
भगवान शिव जिस परकार प्रसन होकर विश्वानर मुनी के घर अवतीन हुए थे,
शिव शी मौली के
उस चरित्र को तुम प्रेम पूर्वक शवन करो। उस समय वे
तेज की निधी अगनी रूप सर्वात्मा परम प्रभू शिव अगनी
लोग के अधिपती रूप से ग्रहपती नाम से अवतीन हुए थे।
विश्वानर नाम के एक बुदाशा नाम की बात है नर्वदा के रवणिय तथ पर। नर्मपुर
नाम का एक नगर था। उसी नगर में विश्वानर नाम के एक मुनी निवास करते
थे। उनका जन्म शानिल्य गोत्र में हुआ था। वे परम पावन पुन्यात्मा शिव भ
पर प्रश्वानर नाम की एक सद गुणवती कन्या से विवा कर लिया। और
वे ब्राह्मनोचित कर्म करते हुए देवता तथा पित्रों को प्रिय लगने
वाला जीवन बिठाने लगे। इस परकार जब बहुत सा समय वेतीत हो गया,
तब उन ब्राह्मन की भारिया शुचि
ने आपकी कृपा से आपके साथ रहे कर भोग लिया। परन्तुनाथ मेरे
हिर्दे में एक लाल साचिरकाल से वर्तमान है। और वे ग्रहस्तों
के लिए उचित भी है। उसे आप पूर्ण करने की कृपा करें।
हे स्वामिन,
यदि मैं वर पाने के योग्यू हूँ और आप मुझे वर देना चाहते हैं,
तो मुझे महिश्वर सरीखा पुत्व परदान कीजिए।
इसके अतिरिक्त मैं दूसरा वर नहीं चाहती।
पत्नी की बात संकर पवित्र वद्ध पारायन ब्राह्मन विश्वानर शण
भर के लिए समाधिस्थ हो गए और हिदय में यों विचार करने लगे,
यहो मेरी इस शुक्ष मांगी पत्नी ने कैसा त्यंत दुरलव
वर मांगा है। यह तो मेरे मनूरत पत्से बहुत दूर है�
मानों शम्भु ने ही इसके मुख में बैठ कर
वानी रूप से ऐसी बात कही है।
अन्यथा दूसरा कौन ऐसा करने में समर्थ हो सकता है।
तद अंतर वे एक पत्नीवती मुनी विश्वानर
पत्नी को आश्वासन दे कर वारानसी में गए
और गोर तप के द्वारा बगवान शिव के विरेश लिंग की आराधना करने लगे।
इसप्रकार उन्होंने एक वश्व परियंत बक्ति पूर्वक उत्तम
विरेश लिंग की त्रीकाल अर्चना करते हुए अद्भुत तप किया।
तेहर्वा मास आने पर एक दिन वे द्विजवर प्राते काल
त्रीपत कामिनी गंगा के जल में स्थान करके जो ही विरेश के निकट पहुँचे,
त्यों ही उन तपोधन को उस लिंग के मद्ध एक
अश्ट वर्षिय विभूती भूशित पालक दिखाई दिया।
उस नगन शिशु के नित्र कानों तक फैले हुए थे।
होठों पर गहरी लालीमा च्छाई हुई थी।
मस्तक पर पीले रंग की सुन्दर जटा सुशोबित थी और मुख पर हासी खेल रही थी।
वहे शैश वो चित अलंकार और चिता भस्म धारन किये हुए था।
पर वह अपने प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर
प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर
प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्रवाद पर प्र�
नेत्रहीन होका सब कुछ देखते हैं और
जिव्यारहित होकर भी समस्त रसों के घ्याता हैं
भला आपको सम्यक रूप से कौन जान सकता हैं
हिसलिय मैं आपकी शरण में जाता हूं
हे ईश आपके रहस्य को नहीं तो साक्षात वेद ही जानते हैं
न विश्णू
न अखिल विश्व के विधाता ब्रह्मा न योगिंद्र्य और
न इंद्र आदी प्रधान देवताओं को ही इसका पता हैं
परन्तु आपका भक्त उसे जान लेता है
अतर मैं आपकी शरण गहन करता हूं
हे ईश्व नहीं तो आपका कोई गोत्र है न जन्म
है न नाम है न रूप है न शील है और न देश है
हैसा होने पर भी आप तिरलोकी की अधिश्वर
तदा सम्पून कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं इसलिए मैं आपका भजन करता हूं
हे इसम्रारे आप सर्वसरूप हैं
यह सारा विश्व प्रपंच आपसे ही प्रगट हुआ हैं आप
गोरी के प्रारणात दिकंबर और परमशान्त हैं बाल,
युवा और व्रद्ध रूप में आप ही वर्तमान हैं
विश्वानरवाज
एको रुद्ध्रोन दिथ्तियोवतस्थते
तस्माधेकं त्वायां प्रपधे महेशं
करता हरता त्वं ही सर्वस्य
शंभो नानारूपेश वेक रूपो पयरूपः
यद्वत्तप्रत्यग्नधर्म एको अपयेनीकस्त इस्मानन्यानं त्वामु विनेशं प्रपधे
रज्जो शर्पः शूप्तिखायां चेरोप्यं नरेह पूरस्तन्म्रिगाखे मरीचो
यद्वत्तद्विद्विदेश्वगेश प्रपंचो यश्मिन्ग्याते तमं प्रपधे महेशं
तो एशेत्यं दाह कत्वं चेवहनों तापो भानो शीत भानो प्रसादः
पुष्पे गंधो दुग्ध मधे अपी सर्पीरि
अंत चन्म भोत्वम ततस्त्वां प्रपधे
शब्दं ग्रहेनाश शवास्वत्वं ही जीग्रहस्य ग्राणस्त्वं
व्यंग ग्रीरायासी दुरात्
व्यक्षः पशेस्त्वं रस्ग्यो अप्यजुव्यः कस्त्वां संगेत्य तस्त्वां प्रपधे
नोवेद्धस्त्वामीश साक्षाद्धि वेदनोवा विश्णूर्णोविधाताखिलस्य
नोयोगिंद्रानेंद्रमुख्याश्यदेवा
भगतोवेद्धस्त्वाम तस्त्वाम प्रपधे
नोते गोत्रम्नेश जनमापिनाख्या
नोवारूपं नेवशीलं नदेशः
इत्धं भूतोवपिश्वरत्सत्वं तिलोख्याः सर्वान कामान पूर्येस्तद्भजेत्वाम्
त्वत्तः सर्वं त्वं ही सर्वं स्मेरारे त्वं गोरीश सत्वं चे नगनोतिशान्तः
बोल ये शिवशंकर भगवाने की
जए!
नन्दिश्वर कहते हैं
हे मुने यों इस्तुती करके विप्रवर विश्वानर हाथ जोड कर भूमी पर
गिरना ही चाहते थे।
तब तक संपून व्रद्धों के भी व्रद्ध बालक रूप
धारी शिव परम हर्षित होकर उन भूदेव से बोले।
बाल रूपी शिव ने कहा,
मुनी शेष्ट विश्वानर,
तुमने आज मुझे संतुष्ठ कर दिया है। हे भूदेव,
मेरा मन परम प्रसन हो गया है,
अते अब तुम उत्तम वर मांग लो।
यह सुनकर मुनी शेष्ट विश्वानर कृत कृत्य
हो गये और उनका मन हर्षमगन हो गया।
तव वे उठकर बालक रूप धारी शंकर से बोले,
विश्वानर ने कहा,
प्रभाओशाली महेश्वर,
आप तो सर्वान्तर यामी, एश्वर्य संपन्य,
शर्व तथा भगतों को सबकुछ दे डालने वाले हैं,
भला आप सरवग्य से कौन सी बात छुपी है।
फिर भी आप मुझे दीनता प्रगट करने वाले यानचा के
प्रधी आक्रिष्ट होने के लिए क्यों कह रहे हैं।
हे महिशान,
ऐसा जान कर आपकी जैसी इच्छा हो,
वैसा कीजिए।
नन्दिश्वर कहते हैं,
हे मुनी,
पवित्र व्रत के तत्पर विश्वानर के उस वचन को सुनकर,
पावन शिशुरूब धारी महादेव हसकर,
शुची विश्वानर से बोले,
हे शुची, तुमने अपने हिरदेह में अपनी पत्नी,
शुचिस्मती के प्रती जो अभिलाशा कर रखी है,
वै निसंदेय थोड़े ही समय में पून हो जाएगी।
हे महामती,
मैं शुचिस्मती के गर्व से तुम्हारा पुत्र होकर प्रघट होंगा,
मेरा नाम ग्रहपती होगा,
मैं परम,
पावन तथा समस्त देवताओं के लिए प्रिय होंगा।
जो मनुष्य एक वर्ष तक शिवजी के सन्नीकट तुम्हारे द्वारा कथित
इस पुन्य में अभिलाश तक स्त्रोत का तीनों काल पाठ करेगा,
उसकी सारी अभिलाशाएं यह पून कर देगा।
नंदिश्वर कहते हैं,
एवने,
इतना कहकर बाल रूप धारी शम्भु,
जो सत्पुर्षों की गती हैं,
अनत्मी जाना है,
तो पूर्ट खवायणा करता है,
आद्वार रूप तबीला खवायणा करता है।
अंतर ध्यान हो गए। तब विप्रवर विश्वानर
भी प्रसन्न मन से अपने घर को लोड गए।
आप भी प्रसनता के साथ बोलिये। बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
बोलिये भक्तों,
इस परकार यहां पर शिशिव महापुरान के शत्रुद्र सहिता की ये कथा
तथा
आठ से लेकर तेर्वे अठ्याय तक का प्रसंग समाप्त होता है।
तो भक्तों,
स्नेह के और भक्ती के साथ बोलिये।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।