Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान एकी
जैये
प्रिय भगतों
शिश्यु महा पुरान के कोटी रुद्र सहिता की अगली कथा है
परथम जोतिरलिंग सौमनात के प्रादुरभाव की कथा
और इसकी महिमा
तो आईये भगतों आरम्ब करते हैं
इस कथा के साथ
आठवे अध्याय से लेकर चोहदवे अध्याय तक की कथा
तदंतर कपिला नगरी के कालिश्वर,
रामिश्वर आदी की महिमा बताते हुए
सूज जी ने समंद्र के तट पर इस्थित गोकांग
शेत्र के शिवलिंगों की महिमा का वर्णन किया
पिर महाबल नामकड शिवलिंग का अध्भुत महात्मे सुनाकर
अन्य भोतसे शिवलिंगों की विजित्र महात्मे कथा का वर्णन करने के पच्छात,
रिश्व्यों के पूछने पर वे जोतिर लिंगों का वर्णन करने लगे
अपनी बुद्धी के अनुसार संख्षीप में ही सुनाऊंगा।
तुम सब लोग सुनो।
हे मुने,
जोतिर लिंगो में सबसे पहले सोमनाद का नाम आता है।
अतय है,
पहले उनी के महात्मे को सावधान होकर सुनो।
मुनिश्वरो,
बहामना परजापती दक्ष ने अपनी अश्वनी आदी 27
कन्याओं का विभा चंद्रमा के साथ किया था।
चंद्रमा को स्वामी के रूप में पाकर वे दक्ष कन्याएं विशेश शोभा पाने
लगी तथा चंद्रमा भी उने पत्नी के रूप में पाकर निरंतर सुशोभित होने लगा।
उन सब पत्नीयों में से भी जो रोहनी नाम की पत्नी थी एक मात्र भी
चंद्रमा को जितनी प्रिय थी उतनी दूसरी कोई पत्नी कदापी प्रिय नहीं हुई।
इस से दूसरी स्ठीयों को बड़ा तुख हुआ।
वे सब अपने पिता की शरण में गई,
वहाँ जाकर उनोंने जो भी तुख था,
उसे पिता को निवेदन किया।
वे सब सुनकर दक्ष भी दुखी हो गए,
और चंद्रमा के पास आकर शान्ती पूरोग पुले।
दक्ष ने कहा,
एक अलाणिद्हे,
तुम निर्मल कुल में उत्पन हुए हुँ,
तुमारे आश्रे में रहने वाली जितनी स्ठीयां हैं,
उन सब के पृती तुमारे मन में निउन अधिक भाव क्यूं हैं,
तुम किसी को अधिक और किसी को कम प्यार क्यूं करते हुँ?
तक जो किया, सो किया,
अब आगे फिर कभी ऐसा विशमता पूरोग बरताव तुम्हें नहीं करना चाहिए,
क्योंकि उसे नरक देने वाला बताया गया है।
प्रजापति दक्ष गहर को चले गये,
उन्हें पूर्ण निष्चे हो गया था कि अब फिर आगे ऐसा नहीं होगा,
पर चंद्रमा ने प्रवल भावी से विवश होकर
उनकी बात नहीं मानी,
वे रोहनी में इतने आसक्त हो गये थे कि दूसरी किसी पत्नी का कभी आदर नही
दक्ष दुखी हो फिर स्वेम आकर चंद्रमा को उत्तम नीती से
समझाने तथा नियाय उच्छित वर्ताब के लिए प्रार्थना करने लगे
दक्ष बोले,
हे चंद्रमा,
सुनो मैं पहले अनेक बार तुमसे प्रार्थना कर चुका हूँ,
फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी,
इसलिए आज शाप देता हूँ
कि तुमें क्षे का रोग हो जाये
सुज्जी कहते हैं,
दक्ष के इतना कहते ही,
खण भर में चंद्रमा क्षे रोग से ग्रस्थ हो गए,
उनके क्षीन होते ही उस समय सब और महान हाहा कार मच गया,
सब देवता और रिशी कहने लगे कि हाय हाय,
अब क्या करना चाहिए, चंद्रमा कैसे ठीक होंगे,
हे मुने,
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चंद्रमा ने इंद्र आधी सब देवताओं तथा रिशीों को
अपनी अवस्था सुचित की,
तब इंद्र आधी देवता तथा वशिष्ट आधी रिशी ब्रह्मा जी की शरण में गई,
उनकी बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा,
देवताओं,
जो हुआ सो हुआ,
अब वै निच्च भरत नहीं सकता,
अते उसके निबारन के लिए मैं तुम्हें एक उत्तम उपाय बतलाता हूं,
आधर पूर्वक सुनो,
चंद्रमा देवताओं के साथ प्रभास नामक शुक शित्र में जाय,
और वहां मृत्युजिन्जै मंत्र का विधी पूर्वक अनुष्ठान करते हुए,
भगवान शिव की आराधना करे,
अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके,
वहां चंद्रदेव नित्य तपस्या क
की, बहुत निरंतर तपस्या की,
मृत्युजिन्जै मंत्र से भगवान विशब्द्धज का पूजन किया,
दस करोड मंत्र का जप और मृत्युजिन्जै का ध्यान करते हुए,
चंद्रमा वहां इस्थिरचित होकर लगातार खड़े रहे,
उन्हें तपस्या करते देख,
भक
देव,
तुम्हारा कल्यान हो,
तुम्हारे मन में जो अभिश्ठ हो,
वहवर मांगो,
मैं प्रसन हूँ,
तुम्हें संपोन उत्तमवर प्रदान करूँगा,
चंद्रमा बोले,
हे देवेश्वर,
यदि आप प्रसन हैं तो मेरे लिए क्या असाध्य हो सकता है,
तथापि प्रभ
जो अपराद बन गया हो,
उसे क्षमा कीजिये। शिव जी ने कहा,
चंद्रदेव,
एक पक्ष में प्रति दिन तुम्हारी कला ख्षीन हो
और दूसरे पक्ष में फिर वे निरंतर बढ़ती रहे,
तद अंतर चंद्रमा ने भक्ती भाव से भगवान शंकर की स्तुती की,
इसस
पर पूजन हो उस ख्षेत्र के महात्मे को बढ़ाने
तथा चंद्रमा की यश का विस्तार करने के लिए,
भगवान शंकर उनी के नाम पर वहां सोमिश्वर कहलाई,
और सोमनाथ के नाम से तीनों लोकों में भिख्यात हुए। हे ब्राह्मनों,
सोमनाथ का पूजन करने से
जिनके नाम से तीनों लोकों के स्वामी साक्षाद भगवान शंकर
भूतल को पवित्र करते हुए प्रभासक शेत्र में भी दुमान है।
उनी संपूर्ण देवताओं ने सोम कुंडली की स्थापना की है,
जिसमें शिव और ब्रह्मा का सदा निवास माना जाता है।
चंद्र कुंड
इस भूतल पर पाप नाशक तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है।
जो मनुष्य उसमें इसनान करता है,
वे सब पापों से मुक्त हो जाता है।
शे आदी जो असाध्य रोग होते हैं,
वे सब उस कुंड में छे मास तक इसनान करने मातर से नश्ट हो जाते हैं।
मनुश्य जिस फल के उद्धिश्य से इस उत्तम तीर्थ का सेवन करता है,
उस फल को सर्वता प्राप्त कर लेता है।
इसमें संचे नहीं है।
निरोग होकर अपना पुराना कारे समहालने लगे।
इसप्रकार मैंने सोमनात की उत्पत्ती का सारा प्रसंग सुना दिया।
हे मुनिश्वरो,
इस तरहें सोमिश्वर लिंग का प्रादुरभाव हुआ है।
जो मनुश्वर सोमनात के प्रादुरभाव की इस
कथा को सुनता अथ्वा दुसरों को सुनाता है।
वे संपूर्ण अभिष्ठ को पाता और सब पापों से मुक्त हो जाता है।
बोलिये शिवशंकर भगवाँने की जैये।
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार सिश्व महा पुरान के कोटी रुद्ध सहीता की ये कथा
और आट से लेकर चोधवे अध्याय का
यहां वाक्यान पूर्ण होता है।
बोलिये शिवशंकर भगवाँने की जैये।
और सने के साथ ओम नमः शिवाय।
ओम नमः शिवाय।
ओम नमः शिवाय।