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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-9, 10

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Kailash Pandit

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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-9, 10

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिए शिवशंकर भगवान की जय
प्रिय भक्तो शिव महा पुरान के रुद्र सहीता त्रतिय पारवती खंड की अगली कथा है
मेना और हिमाले की बातचीत पारवती तथा हिम्वान के स्वप्न तथा भगवान शिव से मंगल ग्रह की उत्पत्ती का प्रसंग
तो आईए भक्तो आरंब करते हैं ये कथा और नौवा तथा दस्वा अध्याय
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद
जब तुम स्वर्ग लोग को चले गए
तब से कुछ काल और व्यतीत हो जाने पर एक दिन मेना ने हिम्वान के निकट जाकर उन्हें प्रणाम किया
फिर खड़ी होवे गिरी कामनी मेना अपने पती से विनय पूर्वक बोली
मेना ने कहा
हे प्राननात उस दिन नारद मुनी ने जो बात कही थी उसको स्त्री स्वभाव के कारण मैंने अच्छी तरह नहीं समझा
मेरी तो यह प्रार्थना है कि आप कन्या का विभा किसी सुन्दर वर के साथ कर दीजिये
वै विवाहा सर्वथा अपूर्व सुख देने वाला होगा
गिर्जा का वर्ष शुब लक्षनों से संपन्न और कुलीन होना चाहिए
मेरी बेटी मुझे प्रानों से भी अधिक प्रिय है
वै उत्तम वर पाकर जिस प्रकार भी प्रसन और सुखी हो सके
वैसा कीजिये आपको मेरा नमस्कार है
ऐसा कहकर मैंना अपने पती के चरणों पर गिरपड़ी
उस समय उनके मुख पर आँसों की धारा बह रही थी
प्राग्य श्रोमणी हिम्वान ने उन्हें उठाया
और यथावत समझाना आरंब किया
हिमाले बोले हे देवी मेन के
मैं यथार्थ और तत्व की बात बताता हूँ सुनो
ब्रह्म छोड़ो मुनी की बात कभी जूठी नहीं हो सकती
यदि बेटी पर तुम्हें स्नेह है
तो उसे साधर शिक्षा दो
कि वह भक्ती पूर्वक सुइस्थिर्चित से भगवान शंकर के लिए तप करे
मेन के यदि भगवान शिव प्रसन होकर
काली का पानी ग्रहन कर लेते हैं
तो सब शुभ ही शुभ होगा
नारद जी का बताया हुआ अमंगल या अभिष्ट अशुब नष्ट हो जाएगा
शिव के समीप सारे अमंगल सदा अमंगल रूप हो जाते हैं
इसलिए तुम पुत्री को शिव की प्राप्ती के लिए तपस्या करने की शीगर शिक्षा दो
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद हिमवान की है बात सुनकर मेनिका को बड़ी प्रसन्नता हुई
वे तपस्या में रुची उत्पन्ने करने के लिए पुत्री को उपदेश देने के निमित उसके पास गई
परन्तु बेटी के सुकुमार अंग पर द्रष्टी पात करके मेनिका के मन में बड़ी विथा हुई
उनके दोनों नित्रों में तुरंत आँसु भराए
फिर तो ग्री प्रिया मेना में अपनी पुत्री को उपदेश देने की शक्ती नहीं रह गई
अपनी माता के उस चेष्टा को पारवती जी शिगर ही ताड़ गई
तब वे सर्वग्य परमेश्वरी कालिका देवी माता को बारंबार आश्वासंदे तुरंत बोली
पारवती ने कहा
मा तुम बड़ी समझदार हो
मेरी ये बात सुनो
आज पिछली रात्री के समय ब्रह्म मूर्त में मैंने एक सपन देखा है
उसे बताती हूँ
माता जी सपन में एक दयालू एवं तपस्वी ब्रह्मन ने मुझे
शिव की प्रसन्नता के लिए उत्तम तपस्या करने का प्रसन्नता पूर्व उपदेश दिया है
हे नारद यह सुनकर मेनिका ने शिगर अपने पती को बुलाया
और पुत्री के देखे हुए सपन को पून तहके सुनाया
मेनिका के मुख से पुत्री के सपन को सुनकर गिरीराज हिमाले बड़े प्रसन हुए
और अपनी प्रिय पत्नी को समझाते हुए बोले
गृरी राज ने कहा प्रिये पिछली रात में मैंने भी एक सपने देखा है मैं आदर पूर्वक उसे बताता हूँ तुम प्रेम पूर्वक उसे सुनो एक बड़े तपस्वी उत्तम तपस्वी थे
नारद जी ने वर के जैसे लक्षन बताए थे उनी लक्षनों से युक्त शरीर को उन्होंने धारन कर रखा था
वे बड़ी प्रसन्यता के साथ मेरे नगर के निकट तपस्चा करने के लिए आए उन्हें देखकर मुझे बड़ा हर्ष हुआ और मैं अपनी पुत्री को साथ लेकर उनके पास गया
उस समय मुझे ज्याद हुआ कि नारजी के बताए हुए वर भगवान शम्बू यही है तब मैंने उन तबस्वी की सेवा के लिए अपनी पुत्री को उपतेश दी कर उनसे भी प्रार्थना की कि वे उसकी सेवा सिविकार करें परन्तु समय उन्होंने मेरी बात नहीं मानी �
इतने में ही वहां साख्य और वेदान्त के अनसार बहुत बड़ा विवाद छड़ गया तदंतर उनकी आज्या से मेरी बेटी वहीं रह गई और अपने हिर्दे में उनहीं की कामना रखकर भक्ती पूर्वक उनकी सेवा करने लगी
हे सो मुखी यही मेरा देखावा सपन है जिसे मैंने तुम्हें बताया है अतेह प्रिये मेने कुछ काल तक इस सपन के पल की परिक्षा या प्रतिक्षा करनी चाहिए इस समय यही उचित जान पड़ता है तुम निश्चित समझो यही मेरा विचार है
ब्रह्मा जी कहते हैं हे मुनिश्वर नारद ऐसा कहकर गिरिराज हिम्वान और मेनिका शुद्ध हिर्दे से उस सपन के फल की परिक्षा एवं प्रतिक्षा करने लगे
देवरशे शिव भक्त शिरोमणे भगवान शंकर का यश परम पावन मंगलकारी भक्ति वर्धक और उत्तम है तुम इसे आदरपूर्वक सुनो
दक्ष यग से अपने निवास स्थान कैलास परवत पर आकर भगवान शंभू प्रिया विर्हय से कातर हो गए और प्राणों से भी अधिक प्यारी सती देवी का हिर्दे से चिंतन करने लगे
अपने पार्शदों को बुलाकर सती के लिए शोक करते हुए उनके प्रेम वर्धक गुणों का अत्यंत प्रीति पूर्वक वर्णन करने लगे यह सब उन्होंने सांसारिक गति को दिखाने के लिए किया फिर ग्रहस्त आस्रम की सुंदर इस्तिति तथा नीत रीत का परित्
करके वे दिगंबर हो गए और सब लोकों में उनमत्य की भाथी भ्रमन करने लगे लीला कुशल होने के कारण विरही की अवस्था का प्रदर्शन करने लगे सती के विरहे से दुखित हो कहीं भी उनका दर्शन ना पाकर भक्त कल्यानकारी भगवान शंकर पुने कैलास गिर
पर लोट आए और मन को यत्न पूर्वक एकागर करके उन्होंने समाधी लगा ली जो समस्त दुखों का नाश करने वाली है समाधी में वे अविनाशी स्वरूप का दर्शन करने लगे इस तरहें तीनों गुणों से रहित हो वे भगवान शिव चिर काल तक सुइस्थिर भ
जब असंख्य वर्ष व्यतीत हो गए तब उन्होंने समाधी छोड़ी उसके बाद तुरंत ही जो चरित्र हुआ उसे मैं तुम्हें बताता हूँ
भगवान शंकर के ललाट से उस समय श्रम जनित पसीने की एक बूंद पुर्थियों पर गिरी और तत्काल एक शिशु के रूप में परेनत हो गई
हे मुने उस बालक के चार भुजाएं थी शरीर की कांती लाल थी और आकार मनोहर था दिव विध्धुति से दीपती मान वह शोभाशाली बालक अत्यंत दुस्सह तेहज से संपन्य था
तथा भी उस समय लोकाचार परायण परमिश्वर शिव के आगे वे साधारन शिशु की भाती रोने लगा
यह देख पृत्वी भगवान शंकर के भैमान उत्तम बुद्धी से विचार करने के पश्चात सुन्दरी इस्तरी का रूप धारन करके वहीं प्रगट हो गई
उन्होंने उस सुन्दर बालक को तुरंद उठा कर अपनी गोद में रख लिया और अपने ऊपर प्रगट होने वाले दूध को ही इस्तन्य के रूप में उसे पिलाने लगी
उन्होंने इस नेह से उसका मूँ चूमा और अपना ही बालक मान हस-हस कर उसे खिलाने लगी
परमिश्वर शिव का हित साधन करने वाली पृत्वी देवी सच्चे भाव से स्वेम उसकी माता बन गई
संसार की स्वष्टी करने वाले परमकोति की एवं विद्वान अंतर्यामी शम्भू
वै चरित्र देखकर हस पड़े और पृत्वी को पहचान कर उनसे बोले
धरनी तुम धन्य हो मेरे इस पुत्र का प्रेम पूर्वक पालन करो
यह शेष्ट शिशु मुझ महा तिजस्वी शम्भू के शम्जल पसीने से तुम्हारे ही उपर उत्पन हुआ है
हे वसुधे यह प्रियकारी बालक यद्धपी मेरे शम्जल से प्रगट हुआ है
तथापी तुम्हारे नाम से तुम्हारे पुत्र के रूप में इसकी ख्याती होगी
यह सदा त्रिविद्ध तापओं से रहित होगा अत्यंत गुणवान और भूमी देने वाला होगा
यह मुझे भी सुख प्रदान करेगा तुम इसे अपनी रुची के अनुसार ग्रहन करो ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद ऐसा कहकर भगवान शिव चुप हो गए उनके हिर्दय से विरह का प्रभाव कुछ कम हो गया उनमें
विरह क्या था वे लोकाचार का पालन कर रहे थे वास्तव में सद्ध पुर्षों के लिए श्री जुद्ध देव निर्विकार
परमात्मा ही है शिव की उपर्युक्त आज्ञा को शिरोधार्य करके पुत्र सहित पृथ्वी देवी शिगर ही अपने स्थान
चली गई उन्हें अत्यंतिक सुख मिला वह बालक भोम नाम से प्रसिद्ध हो युवा होने पर तुरंत काशी चला गया और
वहां उसने दिर्ग काल तक भगवान शंकर की सेवा की विश्वनाथ जी की कृपा से ग्रह की पदवी पाकर वे भूमि
मार शिगर ही शेष्ट एवं दिव्य लोक में चले गए जो शुक्र लोक से परे है बोले शिव शंकर भगवान की प्रिय भक्तों
इस प्रकार यहां पर शिव महापुराण के रुद्र सहीता त्रत्य पार्वती खंड की यह कथा और नौवां दसवां अध्याय
यहां पर समाप्त होता है बोलिए शिव शंकर भगवान की जय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय
ओम नमः
शिवाय

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