Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जय
प्रिये भगतो शिव महा पुरान के रुद्र सहीता त्रतिय पारवती खंड की अगली कथा है
पारवती का नामकरण और विध्या ध्यन
नारद का हिमवान के हिया जाना
पारवती का हाथ जोड़ कर भावी फल बताना
चिंतित हुए हिमवान को आश्वासन दे
पारवती का विभा शिवजी के साथ करने को कहना
और उनके संदेह का निवारन करना
तो आईए भगतो आरंब करते हैं कथा के साथ
साथवा और आठवा अध्याय
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद
मैना के सामने महा तेजस्वी कन्या होकर
लोकिक गती का आश्वेले वहरोने लगी
उसका मनोहर रुदन सुनकर
घर की सब इस्त्रियां हर्ष से खिल उठी
और बड़े वेग से प्रसन्नता पूर्वक वहां आ पहुंची
नील कमल दल के समान शाम कांती वाली
उस परम तेजस्वी और मनोहर कन्या को देखकर
गिरिराज हिमाले अतीशै आनन्द में निमगन हो गए
तदंतर सुन्दर मुहूर्त में मुनियों के साथ
हिम्मान ने अपनी पुत्री के काली आदी सुखदायक नाम रखे
देवी शिवा गिरिराज के भवन में दिनों दिन बढ़ने लगी
ठीक उसी तरहें जैसे वर्षा के समय में
गंगाजी की जल राशी और शर्दरितू के शुक्ल पक्ष में चाननी बढ़ती है
शीतलता आदी गुणों से संयुक्त तथा बंदु जनों की प्यारी उस कन्या को
कुटंब के लोग अपने कुल के अनुरूप पारवती नाम से बुकारने लगे
माता ने कालिका को उमा अरी तपस्या मत कर कहकर तप करने से रोका था
हे मुने इसलिए मैं सुन्दर मुखवाली गिरिराज नन्दनी आगे चलकर लोक में उमा के नाम से विख्यात हो गई
हे नारद तदंतर जब विध्या के उपदेश का समय आया तब शिवा देवी अपने चित को एकागर करके बड़ी प्रसन्नता के साथ सेष्ट गुरुवों से विध्या पढ़ने लगी
पूर्व जन्म की सारे विध्याएं उन्हें उसी तरह प्राप्त हो गई जैसे शरद काल में हंसों की पांत अपने आप स्वर्व गंगा के तट पर पहुंच जाती है और रात्री में अपना प्रकाश स्वत्य महोषदियों को प्राप्त हो जाता है
हे मुने इस प्रकार मेंने शिवा की किसी एक लीला का ही वर्णन किया है अब अन्य लीलां का वर्णन करूंगा सो ध्यान से सुनो
हो एक समय की बात है तुम भगवान शिव की प्रेणा से प्रसन्नता पूर्वक हिमाचल के घर गए हे मुने तुम
शिव तत्तु के ग्याता और उनकी लीला के जानकारों में शेष्ट हो हे नारद गिरीराज हिमाले ने तुम्हें घर
आया देख प्राणाम करके तुम्हारी पूजा की और अपनी पुत्री को बुलाकर उससे तुम्हारे चर्णों में प्रणाम करवाया
और हे मुनिश्वर तुम्हें भी तुम्हे नमस्कार करके हिमाचल ने अपने सोभाग्य की सराहना की और अत्यंत मस्तक झुका
हाथ जोड़ कर तुम से कहा हिमाले बोले हे मुने नारत हे ब्रह्म पुत्रों में श्रेष्ट ज्ञान वान प्रभो
आप सर्वग्य हैं और कृपा पूर्वक दूसरों के उपकार में लगे रहते हैं मेरी पुत्री की जन्म कुंडली में
जो गुणदोष हो उसे बतलाइए मेरी बेटी किसकी सोभाग्यवति प्रिय पत्नी होगी ब्रह्मा जी कहते हैं हे मुनी
श्रेष्ट तुम बातचीत में कुशल और कौतु की तो हो ही गिरीराज हिमाले के ऐसा कहने पर तुमने कालिका का हाथ
देखा और उसके संपूर्ण अंगों पर विशेष रूप से दृष्टिपात करके हिमाले से इस प्रकार कहना आरंभ किया नारज्य
बोले नारायण नारायण नारायण शैल राज और मेना आपकी यह पुत्री चंद्रवां की आदि कलाओं के समान बढ़ी है समस्त
शुभ लक्षण इसकी अंगों में शोभा बढ़ाते हैं यह अपने पति के लिए अतंत सुखदायनी होगी और माता-पिता की भी
कीर्ति बढ़ाएगी संसार की समस्त नारियों में यह परम साध्वी और स्वजनों को सदा महान आनंद देने वाली होगी
हे गिरी राज तुम्हारी पुत्री के हाथ में सब लक्षण उत्तम है उत्तम ही उत्तम लक्षण विद्धमान है केवल एक
रेखा विलक्षण है उसका यथार्थ फल सुनो इसे ऐसा पति प्राप्त होगा जो योगी नंग धड़ंग रहने वाला निर्गुण और
एक काम होगा इसके ने मां होगी ने बाप उसे मान-सम्मान का भी कोई ख्याल नहीं रहेगा और वह सदा मंगल वेश
धारण करेगा ब्रह्मा जी कहते हैं यह नारद तुम्हारी इस बात को सुन और सत्य मान कर मेना तथा हिमाचल दोनों
पति-पत्मी बहुत दुखित हुए हैं परन्तु जगदंबा शिवा तुम्हारे ऐसे वचन को सुनकर और लक्ष्णों द्वारा उस
भावी पति को शिव मानकर मन ही मन हर्ष से खिल उठी नारद जी की बात कभी झूट नहीं हो सकती यह सोचकर शिवा
भगवान शिव के युगल चरणों में संपूर्ण हिर्दय से अत्यंत स्नही करने लगी हे नारद उस समय मन ही मन दुखी
हो हिम्मान ने तुमसे कहा कि ही मुने उस रेखा का फल सुनकर मुझे बड़ा दुख हुआ है मैं अपनी पुत्री को उससे
बचाने के लिए क्या उपाय करूं हे मुने तुम महान कोतुक करने वाले और वार्ताल आप विशारद हो हिम्मान की बात
सुनकर अपने मंगलकारी वचनों द्वारा उनका हर्ष बढ़ाते हुए तुमने इस प्रकार कहा नारद बोले नारायण नारायण
हे गिरी राज तुम स्नेह पूर्वक सुनो मेरी बात सच्ची है वह जूत नहीं होगी हाथ की रेखा ब्रह्मा जी की लिपी है
निष्चय ही यह मिठ्या नहीं हो सकती अत्यशैल प्रवर इस कन्या को वैसा ही पति मिलेगा इसमें संशय नहीं परंतु
इस रेखा के कुफल से बचने के लिए एक उपाय भी है उसे प्रेम पूर्वक सुनो उसे करने से तुम्हें सुख मिलेगा
मैंने जैसे वर्का निरूपण किया है वैसे ही भगवान शंकर है वह सर्व समर्थ है और लीला के लिए अनेक रूप धारण
करते रहते हैं उन्हें समस्त कुरक्षण सद्गुणों के समान हो जाएंगे समर्थ पुरुष में कोई दोष नहीं होता और
वह उसे दुख नहीं देता असमर्थ के लिए ही सब दुख दायक होता है इस विषय में सूर्य अग्नी और गंगा का
दृष्टांत सामने रखना चाहिए इसलिए तुम विवेक पूर्वक अपनी कन्या शिवा को भगवान शिव के हाथ में सौंप
दो नारायण नारायण भगवान शिव सबके ईश्वर सेव निर्विकार सामर्थ शाली और अविदाशी हैं वे जल्दी
हैं यदि शिवा तप करें तो सब काम ठीक हो जाएगा सर्विश्वर शिव सब प्रकार से समर्थ हैं वे इंद्र के
वज्ञ का भी विनाश कर सकते हैं ब्रह्मा जी उनके अधिन है तथा वे सबको सुख देने वाले हैं पार्वती भगवान
शंकर की प्यारी पत्नी होंगी वह सदारुद्रदेव के अनुकोल रहेंगी क्योंकि यह महासाद्वी और उत्तम व्रत पारण
करने वाली है तथा माता-पिता के सुख को बढ़ाने वाली है यह तपस्या भगवान शिव के मन को अपने वश्क में कर
लेंगी और भगवान भी इसके सिवा किसी दूसरी स्त्री से विभान नहीं करेंगे इन दोनों का प्रेम एक-दूसरे के
अनुरूप है वैसा उच्छकोटी का प्रेम न तो किसी का हुआ है उन्हें इस समय है और न आगे होगा नारायण नारायण इंग्रीश
श्रीष्ट इन्हें देवताओं के कार्य करने हैं उनके जो-जो काम नष्ट प्राय हो गए हैं उन सबका इनके द्वारा
पुन्हें उज्जीवन या उधार होगा आद्रिराज आपकी कन्या को पाकर ही भगवान हर अर्धनारिश्वर होंगे ओम नमः शिवाय
इन दोनों का पुन्हें हर्षपूर्वक मिलन होगा आपकी यह पुत्री अपनी तपस्या के प्रभाव से सर्विश्वर महिष्वर को
संतुष्ट करके उनके शरीर के आदे भाग को अपने अधिकार में कर लेंगी उनका अर्धांग बन जाएंगी नारायण नारायण
हे गृष्ट तुम्हें अपनी यह कन्या भगवान शंकर के सिवा दूसरे किसी को नहीं देनी चाहिए यह देवताओं का
गुप्त रहष्य है इसे कभी प्रकाशित नहीं करना चाहिए कि हिमालय ने कहा कि यह ज्ञानी मुने हे नारद मैं आपको
एक बात बता रहा हूं उसे प्रेम पुर्वक सुनियों और आनुद का अनुभव कीजिए सुना जाता है महादेव जी सब प्रकार
की आशक्तियों का त्याग करके अपने मन को सैयम में रखते हुए नित्य तपस्या करते हैं देवताओं के भी दृष्टि
नहीं आते हे देवर्षे ध्यान मार्ग में स्थित हुए भगवान शंभु पर ब्रह्म में लगाए हुए अपने मन को कैसे
हटाएंगे ध्यान छोड़कर विभाह करने को कैसे उद्धत होंगे इस विषय में मुझे महान संदेह है दीपक की लोग
समान प्रकाश मान अविनाशी प्रकृति से परे निर्विकार निर्गुण सगुण निर्विशेष और निरीह जो पर ब्रह्म है वहीं
उनका अपना सदाशिव नामक स्वरूप है अतय वे उसी का सर्वत्र साक्षात कार करते हैं किसी बाहिय अनात्म वस्तु
सर्वद्रष्टी नहीं डालते हेमुने यहां आए हुए किन्नरों के मुख से उनके विषय में नित्य ऐसी ही बात सुनी
जाती है क्या वह बात मिठ्या ही है विशेष्ट्र यह बात भी सुनने में आती है कि भगवान हर ने पूर्व काल में सती
के समक्ष एक प्रतिग्या की थी उन्होंने कहा था दक्ष कुमारी प्यारी सती मैं तुम्हारे सिवा दूसरे किसी
स्त्री का अपनी पत्नी बनाने के विषय में नवरण करूंगा नगर है यह मैं तुमसे सत्य कहता हूं इस प्रकार सत्य
साथ उन्होंने पहले ही प्रतिज्ञा कर ली है अब सती के मर जाने पर वे दूसरी किसी स्त्री को कैसे ग्रहन करेंगे
यह सुनकर तुम नारद ने कहा नारायण नारायण हे महामते हे ग्री राज इस विषय में तुम्हें चिंता नहीं करनी चाहिए
तुम्हारी यह पुत्री काली ही पूर्वकाल में दक्ष कन्या सती हुई थी उस समय सी का सरा सर्वमंगल दाई सती नाम था
वे सती दक्ष कन्या होकर रुद्र की प्यारी पत्नी हुई थी
उन्होंने पिथा के यग्य में अनादर पाकर तथा बगवान शंकर का भी अपमान हुआ देख
क्रोध पूर्वक अपने शरीर को त्याग दिया था
वे ही सती फिर तुम्हारे घर में उत्पन्न हुई है
तुम्हारी पुत्री साक्षा जगदंबा शिवा है
ये पारवती भगवान हर की पत्नी होगी इसमें संचे नहीं है
हे नारद ये सब बाते तुमने हिम्वान को विस्तार पूर्वक बताई
पारवती का वहे पूर्व रूप और चरित्र प्रीति को बढ़ाने वाला है
काली के उस संपूर्ण पूर्व व्रतान्त को तुम्हारे मुख से सुनकर
हिम्वान अपनी पत्नी और पुत्री के साथ ततकाल संदेह रहित हो गए
इसी तरहें तुम्हारे मुख से अपनी उस पूर्व कथा को सुनकर
काली ने लज्जा के मारे मस्तक जुका लिया और उसके मुख पर मन्द मुस्कान की प्रभा फैल गई
ग्रीराज हिमाले परवत के उस चरित्र को सुनकर उसके माथे पर हाथ फेरने लगे
और मस्तक सुनकर उसे अपने आसन के पास ही बैठा लिया
हे नारद इसके पश्चात तुम उसी क्षण प्रसन्नता पूर्वक स्वर्ग लोग को चले गए
और ग्रीराज हिमान भी मन ही मन मनोहर आनन्द से युक्त हो
अपने सर्वसंपत्ती शाली भौन में प्रविष्ठ हो गए
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
तो प्रिये भक्तो इस प्रकार यहाँ पर शिव महापुरान के रुद्र सहीता
त्रतिये पारवती खंड की ये कथा और सात्वा तथा आठ्वा अध्या यहाँ पर समाप्त होता है
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
ओम नमहा शिवाय
ओम नमहा शिवाय
ओम नमहा शिवाय