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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-5

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran rudra sanhita tritiya parvati khand adhyay-5 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran rudra sanhita tritiya parvati khand adhyay-5 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-5 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-5

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

भोलिये शिवशंकर भगवान की जै
प्रिय भक्तु शिव महा पुरान के रुद्र सहीता तिर्तिय पारवर्ती खंड की अगली कथा है
मैना को प्रतक्ष दर्शन देकर शिवा देवी का उन्हें अभीष्ट वर्दान से संतुष्ट करना
तथा मैना से मैनाक का जन
तो आईए भक्तु आरंब करते हैं इस कथा के साथ पाँचवा अध्याय
नारजी ने पूछा
नारायन नारायन
हे पिताशरी जब देवी दुर्गाहंतर ध्यान हो गई
और देवगण अपने अपने धाम को चले गए
उसके बाद क्या हुआ
ब्रह्मा जी ने कहा मेरे पुत्रों में शेष्ट विप्रवर नारद जब विष्णु आदि देव समुदाय हिमालय और मेना को देवी की आराधना का उपदेश दे चले गए
तब गिरीराज हिमालय और मेना दोनों दंपत्ती ने बड़ी भारी तपस्या आरंब की
वे दिनराज शम्भू और शिवा का चिंतन करते हुए भक्ति युक्त चित से नित्य उनकी सम्यक रीती से आराधना करने लगे
हिमवान की पत्नी मेना बड़ी प्रसंदता से शिव सहित शिवा देवी की पूजा करने लगी
वे उनी के संतोष के लिए सदा ब्रह्मणों को दान देती रहती थी
मन में संतान की कामना ले मेना चैत्र मास के आरंब से लेकर 27 वर्षों तक प्रति दिन तत्परता पूर्वक शिवा देवी की पूजा और आराधना में लगी रही
वे अष्टमी को उपवास करके नवमी को लड्डू, बली, सामग्री, पीठी, खीर और गंद पुष्प आदी देवी को भेट करती थी
गंगा के किनारे ओष्धी प्रस्त में उमा की मिट्टी की मूर्ती बना कर नाना प्रकार की वस्तुएं समर्पित करके उसकी पूजा करती थी
मेना देवी कभी निराहार रहती, कभी व्रत के नियमों का पालन करती, कभी जल पी कर रहती और कभी हवा पी कर रह जाती थी
व्यतीत कर दिए 27 वर्ष पूरे होने पर जगनमैई शंकर कामनी जगदम्बा ओमा अत्यंत प्रसन्न हुई
मेना की उत्तम भक्ती से संतुष्ठ हो वे परमिश्वरी देवी उन पर अनुग्रह करने के लिए उनके सामने प्रगट हुई
तेजो मंडल के बीच में विराजमान तथा दिव्य अव्यवयों से संयुक्त ओमा देवी प्रतक्ष दर्शन दे मेना से हस्ती हुई बोली
देवी ने कहा गिरी राज हिमाले की राणी महा साध्वी मेना मैं तुम्हारी तपस्चा से बहुत प्रसन्न हूँ
तुम्हारे जन्म में जो अभिलाशा हो उसे कहो मेना तुमने तपस्चा व्रत और समाधी के द्वारा जिस-जिस वस्तु के लिए प्रार्थना की है वह सब मैं तुम्हें दूंगी
तब मेना ने प्रतक्ष प्रगट हुई कालिका देवी को देखकर प्रणाम किया और इस प्रकार कहा मेना बोली देवी इस समय मुझे आपके रूप का प्रतक्ष दर्शन हुआ है अत्ये मैं आपकी स्तुति करना चाहती हूँ
हे कालिकी इसके लिए आप प्रसन्न हो ब्रह्मा जी कहते हैं हे नारद मेना के ऐसा कहकर सर्वमोहिनी कालिका देवी ने मन में अत्यंत प्रसन्न हो अपनी दोनों बाहों से खीच कर मेना को हिर्दे से लगा लिया इससे उन्हें ततकाल महा ज्ञान की प्राप्ती हो गई फि
भक्ती भाव से अपने सामने खड़ी हुई कालिका की इस्तुती करने लगी मेना बोली जो महा माया जगत को धारन करने वाले चंडिका लोक धारनी तथा संपूर्ण मनो आंचित पदार्थों को देने वाली हैं उन महा देवी को मैं प्रणाम करती हूँ जो नित्य आनंद �
प्रदान करने वाली माया योग निद्रा जगजन्नी तथा सुन्दर कमलों की माला से अलंकृत है उन नित्य सिद्धा उमा देवी को मैं नमस्कार करती हूँ जो सबकी माता मही नित्य आनंद मही भक्तों के शोक का नाश करने वाली तथा कल्प परियंत नारीयों एवं प्
की बुद्धी रूपणी है उन देवी को में प्रणाम करती हूं आप यतियों के अज्ञान में बंधन के नाश की हेतु बूता
ब्रह्मा विध्या है हिर्थ मुझ जैसी नारियां आपके प्रभाव का क्या वर्णन कर सकती है अथरवेद की जो हिंसा
मारन आदि का प्रियोग है वह आप ही है हे देवी आप मेरे अभिष्ट फल को सदा प्रधान कीजिए भाव हीन आकार रहित
तथा दृष्य नित्या नित्य तन मात्राओं से आप ही पंच भूतों के समुदाय को संयुक्त करती हैं आप ही उनकी
के आप ही जगह की यो नहीं और आधार शक्ती है आप ही प्राकृत तत्वों से परे नित्या प्रकृति कही गई है
जिसके द्वारा ब्रह्मा के स्वरूप को वश्मे किया जाता है जाना जाता है कोई नित्य विध्या आप ही है हेमंखात आज मुझ
पर प्रसन्न होई थी आप ही अग्नि के भीतर व्याप्त उग्रल्धा ही का शक्ति है आप ही सूर्य किर्णों में
सिथ प्रकाशि का शक्ति है चंद्रमां में जो आलादि का शक्ति है वह भी आप ही है ऐसी आप चंड्डी देवी का
वह मैं स्तवन और वन्नन करती हूं आप इस त्रियों को बहुत प्रिय हैं उर्धरेता ब्रह्म चाहनियों की ध्याय
भूता नित्या ब्रह्म शक्ति भी आप ही हैं संपोर्ण जगत की वांच्छा तथा श्री हरी की माया भी आप ही हैं
जो देवी इच्छा नुसार रूप धारण करके सृष्टि पालन और संघार में ही हो उन कारियों का संपादन करती हैं
तथा ब्रह्मा विश्णु एमं रुद्र के शरीर की भी हेतु भूता हैं वे आप ही हैं देवी वे आप ही हैं
आज आप मुझे पर प्रसन्न हो आपको मेरा नमस्कार है देवी आपको मेरा नमस्कार है ब्रह्मा जी कहते हैं
आप हो ही नारद मेना के इस प्रकार स्थिति करने पर धुरुगा कालिका ने पुनिखे उन मेना देवी punishment
कहा तुम अपना मनो वांचित वर मांग लो हिमाचल प्रिये तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो तुम्हारी जो इच्छा हो वह मांगो उसे मैं निश्चय ही दे दूंगी तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अदे नहीं है
महेश्वरी उमा का यह अमरत के समान मधुरवचन सुनकर हिमगरी कामरी मेना बहुत संतुष्ट हुई और इस प्रकार बोली
है हे शिवे आपकी जय हो जय हो जय हो उत्कृष्ट ज्ञान वाली महेश्वरी हे जगदंबी के यदि मैं वर पाने के
योग हूं तो फिर आपसे शेष्ट वर मांगती हूं हे जगदंबे पहले तो मुझे सो पुत्र हो उन सब की बड़ी आयु हो वह
वह बल प्राकरम से युप्त तथा रिध्धि सिध्धि से संपन्य हो उन पुत्रों के पश्चात मेरे एक पुत्री हो जो
स्वरूप और गुणों से सुशोबित होने वाली हो वह दोनों कुलों को आनंद देने वाली तथा तीनों लोकों में पूजित हो
हे जगदम्बिके हे शिवे आप ही देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए मेरी पुत्री तथा रुद्र देव की पत्नी होईए
है और तद अनुसार लीला कीजिए कि ब्रह्मा जी कहते हैं हे नारद्ध
एक मेनका की बात सुनकर प्रसन्न हृदया देवी ऊमा ने उनके मनुवृत को पूर्ण करने के लिए मुस्करा कर कहा
देवी बोली को पहले तुम्हें सो बल्वान पुत्र प्राप्त होंगे उन्हें भी एक सबसे अधिक बल्वान और प्रधान
होगा जो सबसे पहले उत्पन्न होगा तुम्हारी भकति से संतुष्ठ हो मैं स्वयं तुम्हारे यहां पुत्री के
में अवतीर्ण होंगी और समस्त देवताओं से सेवित हो उनका कार्य सिद्ध करूंगी। ऐसा कहकर जगत धात्री परमेश्वरी कालिका शिवा मेनका के देखते देखते वहीं अद्रिश्व हो गई।
हे तात् मेहिश्वरी से अभिष्ट वर पाकर मेनका को भी अपार हर्ष हुआ। उनका तपस्चा जनित सारा कलेश नष्ट हो गया।
हे मुने फिर काल करम से मेनका के गर्व रहा और वे प्रती दिन बढ़ने लगा। समय अनुसार उसने एक उत्तम पुत्र को उत्पन्न किया जिसका नाम मेनाग था। उसने समुद्र के साथ उत्तम मेत्री बांधी वे अद्बुत परवत नाग बंधुओं के उपवोक का इ
बल प्राकरम से संपन्न है। अपने से या अपने बाद प्रगट हुए समस्त परवतों में एक मात्र मेनाग ही परवत राज के पद पर प्रतिष्ठित है। बोलिये शिवशंकर भगवान की जय। प्रिय भक्तों इस प्रकार यहाँ पर शिव महा पुरान के रुद्र सहित
के तत्ये पारवती खंड की यह कथा और पांचवा ध्याय यहाँ पर समाप्त होता है। बोलिये शिवशंकर भगवान की जय।
बोलिये शिवशंकर भगवान की जय।

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