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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-3

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran rudra sanhita tritiya parvati khand adhyay-3 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran rudra sanhita tritiya parvati khand adhyay-3 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-3 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-3

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिए शिवशंकर भगवान की जय प्रिय भक्तों शिव महापुराण के रुद्ध सहीता तृत्ये पार्वती
खंड की अगली कथा है देवताओं का हिमालय के पास जाना और उनसे सत्कृत हो उन्हें ऊमाराधन की विधी बता
स्वयं भी एक सुंदर इस्थान में जाकर उनकी इस्तुति करना तो आइए भक्तों आरंभ करते हैं इस कथा के साथ
तीसरा अध्याय नारज्य बोले नारायण नारायण महामते आपने मैना के पूर्व जन्म की यह शुभ एवं अशुभ कथा कही है उनके
के विभा का प्रसंग भी मैंने सुन लिया अब आगे के उत्तम चरित्र का वर्णन कीजिए ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद जब मेना के साथ विभा करके हिम्मान अपने घर को गए तब दोनों लोकों में बड़ा भारी उत्सव मनाया
गया हिमालय भी अत्यंत प्रसन्न हो मेना के साथ अपने सुख दायक सदन में निवास करने लगे हे मुने उस समय
श्री विष्णु आदि समस्त देवता महात्मा मुनी गिरिराज के पास गए उन सब देवताओं को आया देख महान हिम्मगिरी
से प्रशंसा पूर्वक उन्हें प्रणाम किया और अपने भाग्य की सराहना करते हुए भक्ति भाव से उन सब का आदर
सत्कार किया हाथ जोड़ मस्तक झुका कर वे बड़े प्रेम से स्तुति करने को उद्धत हुए शैल राज के शरीर में महान
रोमान छोवाया उनके नित्रों से प्रेम के आंसू बहने लगे हे मुने हिम शैल ने प्रसंद मन से अत्यंत प्रेम
पूर्वक प्रणाम किया और विनीत भाव से खड़े हो श्री विष्णवादी देवताओं से कहा हिमाचल बोले आज मेरा जन्म
शपल हो गया कि मेरी बड़ी भारी तपस्या शपल हुई आज मेरा ज्ञान सफल हुआ और आज मेरी सारी क्रियाएं
सफल हो गई है आज मैं धन्य हुआ मेरी सारी भूमी धन्य हुई मेरा कुल धन्य हुआ मेरी इस तरह मेरा सबकुछ
कुछ धन्य हो गया इसमें संश्य नहीं है क्योंकि आप सब महान देवता एक साथ मिलकर एक ही समय यहां पधारे
हैं मुझे अपना सेवक समझकर प्रसन्नता पूर्वक उचित कार्य के लिए आज्ञा दें हेमगिरी का ऐसा वचन सुनकर
वे सब देवता बड़े प्रसन हुए और अपने कार्य की सिद्धि बताते हुए बोले देवताओं ने कहा हे महा प्राज्य हिमाचल हमारा हितकारक वचन सुनो
हम सब लोग जिस काम के लिए यहां आए हैं उसे प्रसन्नता पूर्वक बता रहे हैं हेमगिरी राज पहले जो जगदंबा ओमा दक्ष कन्या सती के रूप में प्रकट हुई थी और रुद्र पत्नी होकर सुधीर्ग काल तक इस भूतल पर क्रीडा करती रही
हुई वही यंबी का सती अपने पिता से अनाधर पाकर अपनी प्रतिज्ञा का स्मर्ण करके यग्य में शरीर त्याग अपने परमधाम को पधार गई हे हिमगिरे वै कथा लोक में विख्यात है और तुम्हें विविदित है यदि वे सती पुने तुमारे घर में प्रकट ह
सुनकर ग्रीराज हिमाले मन ही मन प्रसन हो आदर से जुग गए और बोले यही प्रभो ऐसा हो तो बड़े सोभाग्य की बात है तदंतर वे देवता उन्हें बड़े आदर से उमा को प्रसन करने की विधी बता कर स्वेम सदाशिव पत्नी उमा की शरण में गए एक सुन्द
काम करके वे यहां स्थद्धा पूर्वक उनकी स्तुति करने लगे देवता बोले शिव लोक में निमास करने वाली देवी हे उमे हे जगदंबे
एक सदाशिव प्रियेद अ हे दुरघ हे महैश्वरि हम आपको नमस्कार करते हैं आप पावण का शांत शरूप सिर्फ शक्ति है परम
पावन पुष्टि हैं अव्यक्त प्रकृति और महत्तत्व यह आपके ही रूप हैं हम भक्ति पूर्वक आपको नमस्कार करते
हैं आप कल्याण में शिवा हैं आपके हाथ भी कल्याणकारी है आप शुद्ध स्थूल सोक्ष्म और सबका परम आश्रे हैं
ए तरविद्ध्या और सुविध्या से अत्यंत प्रसन्न होने वाली आप देवी को हम प्रणाम करते हैं आप हफ
शद्धा है आप दृति हैं आप श्री है और आप ही सब में व्यासुड़ रहने वाली देवी है आप ही सूर्य की किर्ले
है और आप ही अपने प्रपंच को प्रकाशित करने वाली है ब्रह्मांड रूप शरीर में और जगत के जीवों में
रहकर जो ब्रह्मा से लेकर तृण परियंत संपूर्ण जगत की पुष्टि करती है उन आदि देवी को हम नमस्कार करते
हैं हम नमस्कार करते हैं आप ही बेद्यमाता गायत्रि है आप ही सावित्री और सरस्वति हैं आप ही संपूर्ण
जगत के लिए वारता नामक वृत्ति है और आप ही धर्मस्वरूपा वेद्य त्रही हैं आप ही संपूर्ण भूतों में निद्रा
बनकर रहती है और उनकी
छुदा और तिर्प्ती भी आप ही है
आप ही त्रणा
कांती, छवी
तुष्टी और सदा
संपूर्ण आनंद को देने वाली है
आप ही पुञ्यकर्ताओं
के यहां लक्ष्मी
बनकर रहती है और आप ही
आपियों के घर सदा जेष्ठा लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रता के रूप में वास करती हैं।
हैं आप ही यजुर मंत्रों की आहूती हैं रिगवेद की मात्रा तथा अथरवेद की परम गती भी आप ही हैं जो प्राणियों के नाक, कान, नेत्र, मुख, बुजा, वक्ष अस्थल और हिरदै में ध्रती रूप में इस्थित हों सदा ही उनके लिए सुख का विस्तार करती ह
हैं जो निद्रा के रूप में संसार के लोगों को अत्यंत सुभग प्रतीत होती हैं वे देवी उमा जगत की स्थिती तथा पालन के लिए हम सब पर प्रसन हो, हम पर प्रसन हो, इस प्रकार जगत जन्नी सती
साध्वी महिश्वरी उमा की स्तुति करके अपने हिर्दे में विशुद्ध प्रेम के लिए वे सब देवता उनके दर्शन की इच्छा से वहां खड़े हो गए।
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैए। प्रिय भक्तो इस प्रकार यहाँ पर सिश्यू महा पुरान के रुद्र सहिता तृतिय पार्वती खन्ड की यह कथा और तीसरा ध्याय यहीं पर समाप्त होता है।
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैए।
कि शिवाई ओम नमः शिवाई ओम नमः शिवाई हुआ है

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