Nhạc sĩ: Traditional
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भौलिये शिवशंकर भगवान की जय प्रिय भक्तु
कि शिव महापुराण का अगला खंड अर्थात रुद्र सहिता तृत्य पार्वती खंड यहां से आरंभ करते हैं
जिसकी पहली कथा है हिमालय के स्थावर जंगम द्विविद्ध स्वरूप एवं दिव्य तत्व का वर्णन मेना के साथ
उनका विभाह तथा मेना आदि को पूर्व जन्म में प्राप्त हुए संकादि के शाप एवं वर्दान का कथन तो आइए भक्तु
तो आरंब करते हैं यह कथा और इसका पहला और दूसरा अध्याय नारज्य ने पूछा नारायण नारायण
कि हे ब्रह्मन पिता के यज्ञ में अपने शरीर का परित्याग करके दक्ष कन्या जगदंबा सती देवी किस प्रकार
गिरीराज हिमाले की पुत्री हुई किस तरह अत्यंत उग्र तपस्या करके उन्होंने पुनहें शिव को ही पति रूप में
प्राप्त किया यह मेरा प्रश्न है आप इस पर भली भांती और विशेष रूप से प्रकाश दा लिए भगवन नारायण नारायण
ब्रह्मा जी ने कहा हे मुने हे नारद तुम पहले पार्वती की माता के जन्म विवहा और अन्य भक्ति वर्धक पावन चरित्र
को सुनो मुनिशेष्ट उत्तर दिशा में पर्वतों का राजा हिमवान नामक महान पर्वत है जो महातेजस्वी और संबद्धिशाली
है उसके दो रूप प्रसिद्ध हैं एक स्थावर और दूसरा जंगम मैं संक्षेप में उसके सोक्ष्म स्थावर स्वरूप का वर्णन
करता हूं वह रमणिय पर्वत नाना प्रकार के रत्नों का आकर है अर्थात खान है और पूर्व तथा पश्चिम सबुद्ध
के भीतर प्रवेश करके इस तरहें खड़ा है मानो भूमंडल को नापने के लिए कोई मान दंड हो यह नाना प्रकार के
व्रक्षों से व्याप्त है और अनेक शिख्रों के कारण विचित्र शोभा से संपन्न दिखाई देता है सिंह व्याग्र
आदि पशु सदा सुख पूर्व उसका सेवन करते हैं हिम का तो है भंड्यार ही है इसलिए अत्यंत उग्र जान पड़ता है
भांति-भांति के आश्य जनक दृश्यों से उसकी विचित्र शोभा होती है देवता रिशी सिद्ध और मुनि उस पर्वत का
आश्य लेकर रहते हैं भगवान शिव को वह बहुत ही प्रिय है तपस्या करने का स्थान है स्वरूप से ही वह अत्यंत
अवित्र और महात्माओं को भी पहावन करने वाला है तपस्या में वह अत्यंत शिगर सिद्धि प्रदान करता है अनेक
प्रकार के धात्वों की खान और शुभ है वहीं दिव्य शरीर धारण करके सर्वांग सुंदर रमणिय देवता के रूप में
भी स्थित है भगवान विष्णु का अविकृत अंश है इसलिए वह शैल राज साधु संतों को अधिक प्रिय है
कि एक समय ग्रीवर हिमवान ने अपनी कुल परंपराओं के स्थिति और धर्म की व्रद्धि के लिए देवताओं तथा
पित्रों का हित करने की अभिलाशा से अपना विभा करने की इच्छा की हे मुनिष्वर उस अवसर पर संपूर्ण देवता
अपने स्वार्थ का विचार करके दिव्य पित्रों के पास आकर उनसे प्रसन्नता पूर्वक बोले देवताओं ने कहा
हे पित्रो आप सब लोग प्रसन्य चित्त होकर हमारी बात सुने
और यदि देवताओं का कार्य सिद्ध करना आपको भी अभिष्ठ हो
तो शिगर वैसा ही करें
आपकी जेश्ट पुत्री को जो मेना नाम से प्रसिद्ध है
वहे मंगल रूपनी है उसका विभा आप लोग अत्यंत प्रसन्यता पूर्वक हिम्वान परवत से कर दें
ऐसा करने पर आप सब लोगों को सर्वथा महान लाब होगा
और देवताओं के दुखों का निवारन भी पग पग पर होता रहेगा
देवताओं की यह बात सुनकर पित्रों ने परस पर विचार करके स्विकर्ती दे दी
और अपनी पुत्री मेना को विधी पूर्वक हिमाले के हाथ में दे दिया
इस परम मंगल में विभा में बड़ा उत्सव बनाया गया
मुनिश्व नारद मेना के साथ हिमाले के शुभ विभा का यह सुखद प्रसंग मैंने तुमसे प्रसंदता पूर्वक कहा है
अब और क्या सुनना चाहते हो नारद जी ने पूछा नारायन नारायन हे विधे हे विद्वन
भगवन अब आदर पूर्वक मेरे सामने मेना की उत्पत्ती का वर्णन कीजिए उसे किस प्रकार शाब ताप्त हुआ था यह कहिए और मेरे संदेह का निवारन कीजिए भगवन
ब्रह्मा जी बोले हे मुने मैंने अपने दक्ष नामक जिस पुत्र की पहले चर्चा की है उनके साथ कन्याएं हुई थीं जो स्रस्टी की उत्पत्ती में कारण बनी
हे नारद दक्ष ने कश्यपादी सेष्ट मुनियों के साथ उनका विभाग किया था यह सब वृतांत तो तुम्हें विदित ही है अब प्रस्तुत विषय को सुनों उन कन्याओं में एक स्वधा नाम की कन्या थी जिसका विभाग उन्होंने पित्रों के साथ किया था स्व�
कन्या के नाम से प्रशिद्र थी और सबसे छोटी कन्या का नाम कलावती था
ये सारी कन्याएं पित्रों की मानसी पुत्रियां थी
उनके मन से प्रगट हुई थी इनका जन्व किसी माता के गर्व से नहीं हुआ था
अतैव ये अयोनि जाती केवल लोक व्यवहार से स्वधा की पुत्री मानी जाती थी
उनके सुन्दर नामों का कीर्तन करके मनुष्य संपून अभिष्ट को प्राप्त कर लेता है
ये सदा संपून जगत की वन्दनिया लोक माताए हैं और उत्तम अभ्यूदै से सुशोबित रहती है
सब की सब परम योगनी, ज्याननिधी तथा तीनों लोकों में सरवत्र जा सकने वाली है
हे मुनिश्वर, एक समय वो तीन बहने भगवान विश्णू के निवास इस्थान श्वेत्र दीप में उनका दर्शन करने के लिए गई
भगवान विश्णू को प्रणाम और भक्ती पूर्वक उनकी स्तुती करके वे उनी की आज्या से वहां ठेर गई
उस समय वहां संतों का बड़ा भारी समाज एकत्र हुआ था
हे मुने, उसी अवसर पर मेरे पुत्र शंकादिक सिद्धगन भी वहां गए
और श्री हरी की स्तुती वन्दना करके उनी की आज्या से वहां ठेर गए
संकादि मुनी देवताओं के आदि पुरुष और संपूर्ण लोकों में वंदित हैं
वे जब वहां आकर खड़े हुए उस समय श्वेत दीप के सब लोग उने देख प्रणाम करते हुए उठकर खड़े हो गए
परंतु यह तीनों बहने उन्हें डेखकर भी वहां नहीं उठी इससे संत कुमार ने उनको मर्यादा रक्षार्थ उन्हें
स्वर्ग से दूर होकर नर स्त्री बनने का शाव में दिया फिर उनके प्रार्थना करने पर वे प्रसंद हो गए और
बोले, संत कुमार ने कहा, पित्रों की तीनों कन्याओं, तुम प्रसंचित होकर मेरी बात सुनो, यह तुमारे शोक का नाश करने वाली और सदा ही तुम्हें सुख देने वाली है, तुम मेंसे जो जेश्ट हैं, वै भगवान विश्णू की अंश भूत हिमाले गिरी की पत्न
दूसरी प्रिय कन्या योगनी धन्या राजा जनक की पत्नी होंगी, उसकी कन्या के रूप में महालक्षमी अवत्रीर्ण होंगी, जिनका नाम सीता होगा, इसी प्रकार पित्रों की छोटी पुत्री कलावती द्वापर के अंतिम भाग में व्रशभानू वैश्य की पत्नी ह
होंगी और उसकी प्रिय पुत्री राधा के नाम से विख्यात होगी, योगनी मेन का मेना पारवती जी के वरदान से अपने पती के साथ उसी शरीर से कैलास नामक परमपत को प्राप्त हो जाएंगी, धन्या तथा उनके पती जनक कुल में उत्पन्न हुए जीवन मुक्त मह
योगी राजा सीर ध्वज लक्ष्मी स्वरूपा सीता के प्रभाव से वैकुंठ धाम में जाएंगे, वरशभानू के साथ वैवाहिक मंगल कृत्त संपन होने के कारण जीवन मुक्त योगनी कलावती भी अपनी कन्या राधा के साथ गोलोक धाम में जाएंगी, इसमें सं�
विपत्ती में पड़े बिना कहां किन की महिमा प्रगट होती है, उत्तम कर्म करने वाले पुन्यात्मा पुर्शों का संकट जब तल जाता है, तब उन्हें दुरलब सुख की प्राप्ती होती है, अब तुम लोग प्रसन्नता पूर्वक मेरी दूसरी बात भी सुनो, जो स�
सदा सुख देने वाली है, मेना की पुत्री जगदंबा पार्वती देवी अत्यंत दुस्य है तप करके भगवान शिव की प्रिय पत्नी बनेंगी, धन्या की पुत्री सीता भगवान शीराम जी की पत्नी होंगी, और लोकाचार का आश्चेले शीराम के साथ विहार करेंग
वे गुप्त स्नेह में बंद कर श्री कृष्ण की प्रियतमा बनेंगी।
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे नारद, इस प्रकार शाप के व्याद से दुरलब वर्दान देकर सब के द्वारा प्रशंसित भगवान सनत कुमार मुनी भाईयों सहित वहीं अंतरध्यान हो गए।
हे तात, पितरों की मांसी पुत्री वे तीनों बहने इस प्रकार शाप मुक्त हो सुख पाकर तुरंत अपने घर को चली गई।
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैए।
प्रिये भक्तों, इस प्रकार यहाँ पर शिव महा पुराण के रुद्र सहीता का तृतिय पार्वती खंड की यह कथा तथा पहला और दूसरा ध्याय यहीं पर समाप्त होता है।
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैए।
ओम नामहा शिवाय।
ओम नामहा शिवाय।
ओम नामहा शिवाय।