Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जे
प्रिये भक्तों शिव महा पुरान के रुद्र सहीता
तरतिय पारवती खंड की अगली कथा है
हिमवान का पारवती को शिव की सेवा में रखने के लिए
उनसे आज्या मांगना
और शिव का कारण बताते हुए इस प्रस्ताव को अस्विकार कर देना
तो आईए भगतों आरंब करते हैं ये कथा और बारवा अध्याय
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद तदंतर शैल राज हिमाले उत्तम फल फूल लेकर
अपनी पुत्री के साथ हर्ष पूर्वक भगवान हर के समीप गए
वहाँ जाकर उन्होंने ध्यान, पारायन, तिरलोकी नाथ शिव को प्रणाम किया
और अपनी अध्भुद कन्या काली को हिर्दे से उनकी सेवा में अरपित कर दिया
फल, फूल, आदी सारी सामग्री उनके सामने रखकर
पुत्री को आगे करके शैलराज ने शम्भू से कहा
ही भगवन, मेरी पुत्री आप भगवान चंदरशेखर की सेवा करने के लिए उत्सुक है
अतेह आपके आराधन की इच्छा से मैं इसको साथ लाया हूँ
यह अपनी दो सक्षियों के साथ सदा आप शंकर जी की सेवा में रहे
हे नाथ, यदि आपका मुझ पे अनुग्रह है तो इस कन्या को सेवा के लिए आग्या दीजिये
तब भगवान शंकर ने उस परम मनोहर काम रूपनी कन्या को देखकर
आखें मूदली और अपने त्रिगुणातीत और विनाशी परम तत्व में उत्तम सरूप का ध्यान आरंब किया
उस समय सरविश्वर एवं सर्वव्यापी जटा जूट धारी वेदान्त वेद चंद्रकला विभूशन शंभू उत्तम आसन पर बैठ कर नेत्र बंद किये
पुन्हे उनके चर्णों में प्रणाम किया यद पी उनके हिर्दे में दीनता नहीं थी तो भी वे उस समय इस संशे में पढ़ गए कि नजाने भगवान मेरी प्रात्ना स्विकार करेंगे या नहीं
वक्ताओं में श्रेष्ट गिरी राज हिम्मान ने जगत के एक मात्र बंधु भगवान शिव से इस प्रकार कहा हिमाल्य बोले हे देव देव हे महादेव हे करुणाकर हे शंकर हे विभो मैं आपकी शरण में आया हूं आखें खोल कर मेरी ओर देखिए
हे शिव
शर्व महेशाण जगत को आननद प्रदान करने वाले प्रभु हे महादेव आप संपून आपत्यों का निवारन करने वाले हैं मैं आपको प्रणाम करता हूं हे स्वामिन हे प्रभु मैं अपनी इस पुत्री के साथ प्रति दिन आपका दर्शन करने के लिए आउंगा इसक
उनकी यह बात सुनकर देव देव महेश्वर ने आखें खोल कर ध्यान छोड़ दिया और कुछ सोच विचार कर कहा।
महेश्वर बोले गिरी राज तुम अपने इस कुमारी कन्या को घर में रखकर ही नित्य मेरे दर्शन को आ सकते हो अन्यथा मेरा दर्शन नहीं हो सकता।
क्या यह आपकी सेवा के योगे नहीं है फिर इसे नहीं लाने का क्या कारण है यह मेरी समझ में नहीं आता।
महेश्वर बोले गिरी राज तुम अपने इस कुमारी कन्या को आ सकते हो अन्यथा मेरा दर्शन को आ सकते हो अन्यथा मेरी समझ में नहीं आता।
महेश्वर बोले गिरी राज तुम अपने इस कुमारी कन्या को आ सकते हो अन्यथा मेरा दर्शन को आ सकते हो अन्यथा मेरा दर्शन को आ सकते हो अन्यथा मेरा दर्शन को आ सकते हो अन्यथा मेरा दर्शन को आ सकते हो अन्यथा मेरा दर्शन को आ सकते हो अन्यथा मेरा दर्
पन्य हो जाती है उससे वैराज्य नष्ट हो जाता है और वैराज्य न होने से पुरुष उत्तम तपस्या
से भ्रष्ट हो जाता है इसलिए शहल तपस्वी को इस रियों का संघ नहीं करना चाहिए क्योंकि इस तरीय वास्त
की जड़ एवं ज्ञान वेराज्य का विनाश करने वाली होती है
महा विशय मूलम सा ज्ञान वेराज्य नाशनी
ब्रह्मा जी कहते हैं
हे नारद इस तरह की बहुत सी बाते कहकर
महा योगी श्रोमनी भगवान महिश्वर चुप हो गए
हे देवर्शे शंभू का यह निरामय निस्प्रह्म
और निष्ठुर वचन सुनकर
काली के पिता हिम्वान चकित
कुछ-कुछ व्याकुल और चुप हो गए
तपस्वी शिव की कही हुई बात सुनकर
और गिरिराज हिम्वान को चकित हुआ जानकर
भवानी पारवती उस समय भगवान शिव को प्रणाम करके
विशद वचन बोली
बोलिए शिवशंकर भगवान की जय
प्रीभक्तों इस प्रकार यहां पर
शिव महा पुराण के रुद्र सहीता
त्रत्ये पारवती खंड की एक खथा और बारवा अध्याय
यहीं पर समाप्त होता है
बोलिए शिवशंकर भगवान की जय
ओम नामहा
शिवाई ओम नमः शिवाई ओम नमः शिवाई