Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
बोलिये शिवशंकर भगवान की जै
प्रिय भक्तों शिव महा पुराण के रुद्र सहीता तरत्ये पारवती खंड की अगली कथा है
पारवती और शिव का दार्शनिक समवाद
शिव का पारवती को अपनी सेवा के लिए आज्या देना
तथा पारवती द्वारा भगवान की प्रितिदिन सेवा
भक्तों आरंब करते हैं ये कथा और तेहर्वा अध्याय
भवानी ने कहा
हे योगिन आपने तपस्वी होकर ग्रीराज से ये क्या बात कह डाली
हे प्रभु आप ज्ञान विश्वान
सारद हैं तो भी अपनी बात का उत्तर मुझसे सुनिये
हे शंभू आप तपह शक्ती से प्रसन होकर ही बड़ा भारी तप करते हैं
उस शक्ती के कारण ही आप महात्मा को तपस्या करने का विचार हुआ है
सभी कर्मों को करने की जो वह शक्ती है उसे ही प्रकृति जानना चाहिए
प्रकृति से ही सबकी स्रष्टी पालन और संघार होते हैं
हे भगवन आप कौन है और सुख्षम प्रकृति क्या है इसका विचार कीजिए
करिए प्रकृति के बिना लिंग रूपी महिष्वर कैसे हो सकते हैं आप सदा प्राणियों के लिए जो अर्चनीय वंदनीय और
चिंतनीय है वह प्रकृति के ही कारण है इस बात को हिर्दय से विचार कर ही आपको जो कहना हो वह सब कहिए
ब्रह्मा जी कहते हैं हे नारद पार्वती जी के इस वचन को सुनकर महिति लीला करने में लगे हुए प्रसन्य चित्त
महिष्वर हासते हुए बोले महिष्वर ने कहा मैं उत्कृष्ठ तपस्या द्वारा ही प्रकृति का नाश करता हूं और
तत्वतह प्रकृति रहित शंभू के रूप में स्थित होता हूं अतः सत्व पुरुषों को कभी या कहीं प्रकृति का संग्रह
नहीं करना चाहिए लोकाचार से दूर एवं निर्विकार रहना चाहिए हे नारद जब शंभू ने लोकिक व्यवहार के अनुसार यह
बात कही तब काली मन ही मन हसकर मधर वाणी से बोली काली ने कहा मैं यह कल्यान कारिया प्रभू हे योगिन आपने
जो बात कही है क्या हुए वाणी प्रकृति नहीं है फिर आप उससे परे क्यों नहीं हो गए क्यों प्रकृति का साहरा लेकर
कर बोलने लगे इन सब बातों को विचार करके तात्विक दृष्टि से जो यथार्थ बात हो उसी को कहना चाहिए यह सब
कुछ सदा प्रकृति से बंधा हुआ है इसलिए आपको नहीं तो बोलना चाहिए और न कुछ करना ही चाहिए क्योंकि कहना
और करना सब व्यभार प्रकृत ही है। आप अपनी बुद्धी से इसको समझिए। आप जो कुछ सुनते, खाते, देखते और करते हैं, वह सब प्रकृती का ही कारिय है। जूठे वाद विवाद करना व्यर्थ है प्रभो।
हे शंभो, यदि आप प्रकृती से परे हैं, तो इस समय इस हिम्मान परवत पर आप तपस्या किसलिये करते हैं?
हर प्रकृती ने आपको निगल लिया है, अतहे आप अपने सरूप को नहीं जानते।
हे इश आप यदि अपने स्वरूप को जानते हैं तो किसलिये तब करते हैं
हे योगिन मुझे आपके साथ वाद विवाद करने की क्या हो शक्ता है
प्रतेक्ष प्रमान उपलब्द होने पर विद्वान पुरुष अनुमान प्रमान को नहीं मानते
जो कुछ प्राणियों की इंद्रियों का विशे होता है वे सब ज्ञानी पुरुषों को बुद्धी से विचार कर प्रकृतिक ही मानना चाहिए
हे योगिश्वर बहुत कहने से क्या लाब मेरी उत्तम बात सुनिए
मैं प्रकृति हूँ और आप आप पुरुष है यह सत्य है सत्य है इसमें कोई संचय नहीं है
मेरे अनुग्रह से ही आप सगुण और साकार माने गए हैं मेरे बिना तो आप निरी हैं कुछ भी नहीं कर
कर सकते आप जितेंद्रिय होने पर भी प्रकृति के अधीन हो सवाजा कि कर्म करते रहते हैं कि फिर निर्वकार कैसे हैं
और मुझसे लिप्त कैसे नहीं कि शंकर यदि आप प्रकृति से परेहें और यदि आपका यह कतन सत्य है तो आपके मेरे
मेरे समीप रहने पर भी डरना नहीं चाहिए ब्रह्मा जी कहते हैं पार्वति का यह साख्य शास्त्र के अनुसार
कहा हुआ वचन सुनकर भगवान शिव वेदांत में स्थित हो उनसे यह बोले श्री शिव ने कहा कि सुंदर भाषण करने
ले गिर्जे यदि तुम साख्यमत को धारण करके ऐसी बात कहती हो तो प्रतिदिन मेरी सेवा करो परन्तु यह सेवा
शास्त्र निशिद्ध नहीं होनी चाहिए गिर्जा ने ऐसा कहने पर भक्तों पर अनुग्रह और उनका मनोर्णजन करने वाले
भगवान शिव हिम्वान से बोले शिव ने कहा गिरी राज मैं यहीं तुम्हारे अत्यंत नमणिय क्षेत्र शिखर की भूमि
पर उत्तम तपस्यात था अपने आनंद में परमार्थ रूप का विचार करता हुआ विचरूंगा पर्वत राज आप मुझे यहां
तपस्या करने की अनुमति दें आपकी अनुग्या के बिना कोई तप नहीं किया जा सकता देवादी देव शूलधारी भगवान
शिव का यह कथन सुनकर हिमवान ने उन्हें प्रणाम करके कहा हे महादेव देवता असुर और मनुष्य सहित संपूर्ण
तो आपका ही है मैं तुछ होकर आपसे क्या कहूं ब्रह्मा जी कहते हैं हे नारद ग्रीराज हिमवान के ऐसा
कहने पर लोग कल्यानकारी भगवान शंकर हस पड़े और आदरपूर्वक उनसे बोले अब तुम जाओ शंकर की आज्या पाकर हिमवान
अपने घर लोट गए वह गिर्जा के साथ प्रतिदिन उनके दर्शन के लिए आते थे काली अपने पिता के बिना भी
दोनों सख्यों के साथ नित्य शंकर जी के पास जाती और भक्ति पूर्वक उनकी सेवा में लगी रहती नंदिश्वर आदि
कि कोई भी गण उन्हें रोकता नहीं था हेतात महेश्वर के आदेश से ही ऐसा होता था प्रतेक गण पवित्रता
पूर्वक रहकर उनकी आज्या का पारण करता था जो विचार करने से परस पर अभिन्न सिद्ध होते हैं उन्हें शिवा और
शिव ने सांख्य और वेदांत मत में स्थित हो जो कल्यानदायक संवाद किया वह सर्वधा सुख देने वाला है वह
संवाद मैंने यहां कह सुनाया इंद्रियातीत भगवान शंकर ने गिरीराज के कहने से उनका गोरव मानकर उनकी
पुत्री को अपने पास रहकर सेवा करने के लिए स्वीकार कर लिया काली अपनी दो सख्यों के साथ चंद्र शेखर
महादेव जी की सेवा के लिए प्रतिदिन आती-जाती रहती थी वे भगवान शंकर के चरण धोकर उस चर्णामृत का पान करती
थी आग से तपाकर शुद्ध किए हुए वस्त्र से अथवा गरम जल से धोए हुए वस्त्र के द्वारा उनके शरीर का मार्जन करती
उसे मलती पहुंचती थी फिर सोलय उपचारों से विदिवत हर की पूजा करके बारंबार उनके चरणों में प्रणाम करने के
पश्चात प्रतिदिन पिता के घर लोड़ जाती थी मुनी श्रेष्ट इस प्रकार ध्यान पर आयन शंकर की सेवा में लगी हुई
शिवा का महान समय व्यतीत हो गया तो भी वे अपनी इंद्रियों को संयम में रखकर पूर्वत उनकी सेवा करती रही
नहीं महादेव जी ने जब भी उन्हें अपनी सेवा में नित्य तत्पर देखा तब वे दया से द्रवित हो उठे और इस
प्रकार विचार करने लगे यह काली जब तपश्य अर्यावर्थ करेंगी और इसमें गर्व का बीज नहीं रह जाएगा तभी
मैं इसका पानी ग्रहन करूंगा ऐसा विचार करके महालीला करने वाले महायोगिश्वर भगवान भूतनात तत्काल ध्यान
में स्थित हो गए हेमुने परमात्मा शिव जब ध्यान में लग गए तब उनके हृदय में दूसरी कोई चिंता नहीं रह गई
काली प्रतिदिन महात्मा शिव के रूप का निरंतर चिंतन करती हुई उत्तम भक्ति भाव से उनकी सेवा में लगी रही
ध्यान पारायण भगवान हर शुद्ध भाव से वहां रहती हुई काली को नित्य देखते थे फिर भी पूर्व चिंता को भुला
कर उन्हें देखते हुए भी नहीं देखते थे इसी बीच में इंद्र आदि देवताओं तथा मुनियों ने ब्रह्मा जी की
आज्या से काम देव को वहां आधरपूर्वक भेजा वे काम की प्रेरणा से काली का रुद्र के साथ संयोग कराना चाहते थे
उनके ऐसा करने में कारण यह था कि महा प्राकरमी तार का सुर से वह बहुत पीड़ित थे और शंकर जी से किसी
महान बलवान पुत्र की उत्पत्ति चाहते थे काम देव ने वहां पहुंचकर अपने सव उपायों का प्रयोग किया परन्तु महा
देव जी के मन में तनिक भी क्षोब नहीं हुआ उल्टे उन्होंने काम देव को जलाकर भस्म कर दिया हे मुने तब सती
पार्वती ने भी गर्व रहित होकर उनकी आज्या से बहुत बड़ी तपस्या करके शिव को पति रूप में प्राप्त किया फिर वे
किया बोलिए शिवशंकर्व भगवान की जय प्रियाबध्भतों इस प्रकार यहां पर शिव महा पुरांग के उद्दोर सहिता
ओम् नमः शिवाई, ओम् नमः शिवाई।