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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-11

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran rudra sanhita tritiya parvati khand adhyay-11 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran rudra sanhita tritiya parvati khand adhyay-11 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-11 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-11

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिए शिवशंकर भगवान की जय प्रिय भक्तों शिव महा पुराण के रुद्र सहीता त्रतिय पार्वती खंड की अगली कथा है
भगवान शिव का गंगा अवतरन तीर्थ में तपस्या के लिए आना हिम्वान द्वारा उनका स्वागत पूजन और इस्तवन तथा भगवान शिव की आग्या के अनुसार उनका उस इस्थान पर दूसरों को ना जाने देने की व्यवस्था करना
तो आईए भगतो आरंब करते हैं इस कथा के साथ ग्यार्वा अध्याय ब्रह्मा जी कहते हैं हे नारद हिम्वान की पुत्री लोक पूजित शक्ती स्वरूपा पारवती हिमाले के घर में रहकर बढ़ने लगी जब उनकी अवस्था आठ वर्ष की हो गई तब सती के विरह
से कातर हुए शम्भू को उनके जन्म का समाचार मिला हे नारद उस अद्भुत बाली का पारवती को हिर्दे में रखकर वे मन ही मन बड़े आनंद का अनुभव करने लगे इसी बीच में लोकिक गती का आश्चेले शम्भू ने अपने मन को एकागर करने के लिए तप करने
नामक तीर्थ में चले आए जहां पूर्व काल्म में ब्रह्म धाम से अक्षुत होकर समस्त पाप राशी का विनाश करने के लिए चली हुई परंपावनी गंगा पहले पहल भूतल पर अवतीन हुई थी
जितेंद्रिय हर ने वही रहकर तपस्यारंब की वे आलस्य रहित हो चेतन ज्ञान स्वरूप नित्य जोतिर में निरा में जगन में चिदानंद स्वरूप द्वेत हीन तथा आश्य रहित अपने आत्म भूतम परमात्मा का एकागर भाव से चिंतन करने लगे
भगवान हर के ध्यान पारायन होने पर नंदी भ्रंगी आदी कुछ अन्य पार्शत गण भी ध्यान में रत हो गए उस समय कुछ ही प्रमत गण परमात्मा शम्भू की सेवा करते थे वे सब के सब मोन रहते और एक शब्द भी नहीं बोलते थे कुछ द्वारपाल हो गए थ
समन सुनकर उनके प्रति आदर की भावना से वहां आए आकर सेवकों सहित गिरिराज ने भगवान रुद्र को प्रणाम किया उनकी पूजा की और अत्यंत प्रसन्न हो हाथ जोड उनका सुन्दर इस्तमन किया फिर हिमाले ने कहा ही प्रभु मेरे सोभाग्य का उदै हुआ ह
है जो आप यहां पधारे हैं आपने मुझे सनात कर दिया क्यों न हो महात्माओं ने यह ठीक ही वण्नन किया है कि आप
दीन वत्सल हैं आज मेरा जन्म सफल हो गया आज मेरा जीवन सफल हुआ और आज मेरा सब कुछ सफल हो गया
क्योंकि आपने यहां पदापरन करने का कश्ट उठाया है हे महेश्वर आप मुझे अपना दास समझ कर
शांत भाव से मुझे सेवा के लिए आग्या दीजिए मैं बड़ी प्रसन्नता से अनन्य चित्त होकर आपकी सेवा करूंगा
ब्रह्मा जी कहते हैं हे नारद गिरी राज का यह वचन सुनकर महेश्वर ने किंचित आखें खोली और सेवकों सहित
हिम्मान को देखा सेवकों सहित गिरी राज को उपस्थित देख ध्यान योग में स्थित हुए जगदीश्वर वृषभ ध्वज
ने मुस्कुराते हुए से कहा महेश्वर बोले शहर राज मैं तुम्हारे शिखर पर एकांत में तपस्या करने के लिए
आया हूं तुम ऐसा प्रबंध करो जिससे कोई भी मेरे निकट न आ सके तुम महात्मा हो तपस्या के धाम को तथा
मुनियों देवताओं राक्षसों और अन्य महात्माओं को भी सदा आश्य देने वाले हो द्विज्ञ आदि का तुम्हारे ऊपर
वाले तथा संपूर्ण पर्वतों के सामर्थशाली राजा हो हे गिरी राज मैं यहां गंगा आवतरण स्थल में तुम्हारे आश्यत
होकर आत्मसंयम पूर्वक बड़ी प्रसन्नता के साथ तपस्या करूंगा शहर राज गिरी शेष्ट जिस साधन से यहां मेरी
तपस्या बिना किसी विग्नबादा के चालू रह सके उसे इस समय प्रयत्न पूर्वक करो परवत प्रवर मेरी यही सबसे
बड़ी सेवा है तुम अपने घर जाओ और मैंने जो कुछ कहा है उसका उत्तम प्रीत से यत्न पूर्वक प्रबंध करो
कि ब्रह्माजी कहते हैं हे नारद अब ऐसा कहकर स्विष्ट्री करता जगदीश्वर भगवान शंभु चुप हो गई
उस समय गिरीराज ने शंभु से प्रेम पूर्वक यह बात कही हे जगनाद हे परमेश्वर आज मैंने अपने प्रदेश
में इस्तित हुए आपका स्वागत पूर्वक पूजन किया है यही मेरे लिए महान सोभाग्य की बात है अब आपसे और क्या
प्रार्थना करूं हे महेश्वर कितने ही देवता बड़े-बड़े यत्न का आश्य ले महान तप करके भी आपको नहीं पाते
वही आप यहां स्वयं उपस्थित हो गए मुझसे बढ़कर शेष्ट सोभाग्यशाली और पुन्यात्मा दूसरा कोई नहीं है
क्योंकि आप आप मेरे पृष्ट भाग पर तपस्या के लिए उपस्थित हुए हैं ही परमेश्वर आज मैं अपने को देवराज
इंद्र से भी अधिक भाग्यमान मानता हूं क्योंकि सेवकों सहित आपने यहां आकर मुझे अनुग्रह का भागी बना दिया
है देवेश आप स्वतंत्र हैं यहां बिना किसी विग्न बाधा के उत्तम तपस्या कीजिए ही प्रभु मैं आपका दास हूं
अत्य सदा आपकी आज्ञा के अनुसार सेवा करूंगा ब्रह्मा जी कहते हैं हे नारद ऐसा कहकर गिरिराज हिमाले तुरंत
अपने घर को लोटाए उन्होंने अपनी प्रिया मेना को बड़े आदर से यह सारा व्रतांत कह सुनाया तथ पश्चात शैल राज
ने साथ जाने वाले परीजनों तथा समस्त सेवक गणों को बुलाकर उन्हें ठीक-ठीक समझाया हिमाले बोले आज से कोई भी
गंगा अवतरण नामक स्थान में जो मेरे प्रश्ट भाग में ही है मेरी आज्या मान करना जाए यह मैं सच्ची बात कहता हूं
यदि कोई वहां जाएगा तो उस महादुष्ट को मैं विशेष दंड दूंगा हेमुने इस प्रकार अपने समस्त गणों को शीघर ही
नियंत्रित करके हिमवान ने विग्न निवारण के लिए जो सुंदर प्यत्न किया वह तुम्हें बताता हूं सुनो
बोलिये शिवशंकर भगवान की जय तो प्रिय भक्तों इस प्रकार यहां पर शिव महा पुरान के रुद्र सहीता तृत्ये
पार्वती खंड की यह कथा और 11 आध्याय समाप्त होते हैं बोलिए शिवशंकर भगवान की जय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
ओम नमः
शिवाय
शिवाय

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