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Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-4

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran rudra sanhita tritiya parvati khand adhyay-4 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran rudra sanhita tritiya parvati khand adhyay-4 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-4 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Rudra Sanhita Tritiya Parvati Khand Adhyay-4

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवान की जय प्रिय भक्तों कि शिव महा पुराण के रुद्र सहीता
कि त्रतिय पारवती खंड की अगली कथा है ओमा देवी का दिव्य रूप से देवताओं को दर्शन देना
देवतां का उनसे अपना अभीप्राय निमेदन करना और देवी का अवतार लेने की बात स्वीकार करके देवताओं को
आश्वासन देना तो आइए भखतों आरंभ करते हैं इस कथा के साथ छोटा द्ध्याय ब्रह्माजी कहते हैं
हे नारद देवताओं के इस प्रकार इस्तुती करने पर दुर्गम पीडा का नाश करने वाली जगत जन्नी देवी दुर्गा उनके सामने प्रगट हुई
वे परम अद्वद्दिव्य रत्न में रत्पर बैठी हुई थी उस सेष्ट रत्में घुंगुरू लगे हुए थे और मुलायम बिस्तर बिछे थे उनके श्री विग्रह का एक एक अंग करोडो सूर्य से भी अधिक प्रकाशमान और रमनीय था
ऐसे अव्यव्यों से वे अत्यंत उद्भासित हो रही थी सब और फैली हुई अपनी तेजो राशी के मद्ध भाग में वे विराजमान थी उनका रूप बहुती सुन्दर था और उनकी छवी की कहीं तुलना नहीं की जा सकती थी
सदाशिव के साथ विलास करने वाली उन महा माया की किसी के साथ समानता नहीं थी
शिवलोक में निवास करने वाली वे देवी त्रिविध चिनमे गुणों से युक्त थी प्रकर्त गुणों का अभाव होने से उन्हें निर्गुणा कहा जाता है
वे नित्त रूपा हैं वे दुष्टों पर प्रचंड कोप करने के कारण चंडी कहलाती हैं परन्तु स्वरूप से वे शिवा कल्यान मैं हैं
सब की संपून पीड़ाओं का नाश करने वाली तथा संपून जगत की माता हैं वे ही प्रलैकाल में महा निद्रा होकर सबको अपने अंक में सुला लेती हैं तथा वे समस्त स्वैजनों भक्तों का संसार सागर से उधार कर देती हैं
शिवा देवी की तेजो राशी के प्रभाव से देवताओं ने अच्छी तरहें देख न सके तब उनके दर्शन की अभिलाशा से देवताओं ने फिर उनका इस्तवन किया तरंतर दर्शन की इच्छा रखने वाले विश्णु आदी सब देवता उन जगदंबा की कृपा �
पाकर वहां उनका सुष्पष्ट दर्शन कर सके इसके बाद देवता बोले हे अम्बिके हे महा देवी हम सदा आपके दास हैं आप प्रसन्नता पूर्वक हमारा निवेदन सुने
पहले आप दक्ष की पुत्री रूप से अवतीन हो लोक में रुद्रदेव की वल्लभा हुई थीं उस समय आपने ब्रह्मा जी के तथा दूसरे देवताओं के महान दुख का निवारन किया था
तदंतर पिता से अनाधर पाकर अपनी की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार आपने शरीर को त्याग दिया और स्वयधाम में पधार आई इससे भगवान हर को भी बड़ा दुख हुआ
हे महेश्वरी आपके चले आने से देवताओं का कार्य पूरा नहीं हुआ अतेहम देवता और मुनि व्याकुल होकर आपकी शरण में आए हैं
हे महेश्वरी आपके चले आने से देवताओं का कार्य पूरा नहीं हुआ अतेहम देवता और मुनि व्याकुल होकर आए हैं
जिस से सब सुखी हों और सब का सारा दुख नश्ट हो जाए ब्रह्मा जी कहते हैं हे नारद ऐसा कहकर विश्णु आदी सब देवता प्रेम में मगन हो गए और भक्ती से विनम्र होकर चुप चाप खड़े रहे
देवताओं की यह इस्तुति सुनकर शिवा देवी को भी बड़ी प्रसनता हुई उसके हेतु का विचार करके अपने प्रहु शिव का इस्मन्ड करती हुई भक्त वत्सला दया में उमा देवी उस समय विश्णु आदी देवताओं को संबोधित करके हसकर बोली उमा ने कह
गहा हे हरे हे विधे ओर हे देवताओं तथा मुनियों तुम साब लोग अपने मन से व्यथा को निकाल दो और मेरी बात
सुनो मैं तुम पर प्रसन हूं इसमें संश्य नहीं है सब लोग अपने अपने स्थान को जाओ और चिर
तक सुखी रहो मैं उतार ले मेना की पुत्री होकर उन्हें सुख दूंगी और रुद्ध देव की पत्नी हो जाऊंगी
यह मेरा अत्यंत गुप्तमत है भगवान शिव की लीला अद्भुत है वह ज्ञानियों को भी मोह में डालने वाली है
हे देवताओ उस यग्ग में जाकर पिता के द्वारा अपने स्वामी का अनादर देख जब से मैंने दक्ष जनित शरीर को त्याग दिया है
तभी से वे मेरे स्वामी कालागनी रुद्ध देव ततकाल दिगम्बर हो गए वे मेरी ही चिंता में डूबे रहते हैं
उनके मन में यह विचार उठा करता है कि धर्म को जानने वाली सती मेरा रोश देख कर पिता के यग्ग में गई और वहां मेरा अनादर देख मुझ में प्रेम होने के कारण उसने अपना शरीर त्याग दिया
यही सोचकर वे घर बाहर छोड़ अलोकिक वेश धारण करके योगी हो गए मेरी स्वरूप भूता सती के व्योग को वे महेश्वर सहन न कर सके
योगी हो गए मेरी स्वरूप भूता सती के व्योग को वे महेश्वर सहन न कर सके ये देवता हो भगवान रुद्र की भी अत्यंत इच्छा है कि भूतल पर मेना और हिमाचल के घर में मेरा अवतार हो क्योंकि वे पुन्हे मेरा पानी ग्रहन करने की अधिक अभिलाशा र�
अते मैं रुद्रदेव की संतोष के लिए अवतार लूँगी और लोकिक गती का आश्चे लेकर हिमाले पत्नी मेना की पुत्री होंगी।
ब्रह्माजी कहते हैं, हे नारद, ऐसा कहे कर जगदंबाज शिवा उस समय समस्त देवताओं के देखते देखते ही अद्रिश्य हो गई और त्रंत अपने लोक में चली गई।
तदंतर हर्ष से भरे हुए विश्णु आदी समस्त देवता और मुनी उस दिशा को प्रणाम करके अपने अपने धाम में चले गए।
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैए।
तो प्रिये भगतो इस प्रकार यहाँ पर शिव महा पुरान के रुद्र सहीता तृतिय पारवती खंड की ये कथा और चोथा अध्या यहाँ पर समाप्त होता है।
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैए।
ओम नमहा शिवाई।
ओम नमहा शिवाई।
ओम नमहा शिवाई।

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